नवरीत सिंह की मौत : पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से मेल नहीं खाती एक्स-रे रिपोर्ट, दादा और डॉक्टर ने उठाए सवाल

गणतंत्र दिवस पर किसानों की ट्रैक्टर रैली के दौरान मारे गए नवरीत सिंह के दादा हरदीप सिंह डिबडिबा 13 फरवरी को गाजीपुर विरोध स्थल पर किसानों को संबोधित करते हुए. उस महीने डिबडिबा ने अपने पोते की मौत की स्वतंत्र जांच और नवरीत के एक्स-रे और पोस्टमार्टम वीडियो की एक प्रति के लिए दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया. एएनआई/हिंदुस्तान टाइम्स
21 April, 2021

15 अप्रैल को नौजवान किसान नवरीत सिंह की मौत की स्वतंत्र जांच के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष एक मामले में दिल्ली पुलिस ने उसकी एक्स-रे प्लेटों के बारे में एक चिकित्सा रिपोर्ट प्रस्तुत की, जो उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट के साथ मेल नहीं खाती है. उच्च न्यायालय के पिछले आदेश का पालन करते हुए दिल्ली सरकार ने एक मेडिकल बोर्ड का गठन किया था जिसमें मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के तीन वरिष्ठ डॉक्टर शामिल थे जिन्हें नवरीत की चोटों के एक्स-रे प्लेटों की जांच कर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी थी. 5 अप्रैल को प्रस्तुत एमएएमसी मेडिकल बोर्ड की राय में उल्लेख किया गया है कि एक्स-रे में "खोपड़ी और चेहरे की हड्डियों का फ्रैक्चर" दिखाया गया था और कहा कि "शरीर की कोई धातु-रेडियो-अस्पष्टता नहीं थी." वास्तव में यह रिपोर्ट दिल्ली पुलिस के कथन का समर्थन करती है कि नवरीत को गोली नहीं लगी थी और उसकी मौत सड़क दुर्घटना में हुई है लेकिन यह निष्कर्ष नवरीत की पोस्टमार्टम रिपोर्ट के साथ मेल नहीं खाते.

सरकारी संस्थानों में काम करने का दशकों का अनुभव रखने वाले दो वरिष्ठ सरकारी डॉक्टरों ने दोनों दस्तावेजों का अध्ययन किया और हमसे बात की. एक ने ऑन रिकॉर्ड और दूसरे ने ऑफ रिकॉर्ड और जरूरत पड़ने पर अदालत या सरकारी जांच में बात रखने की इच्छा जाहिर की. डॉक्टरों ने कहा कि पोस्टमार्टम में उन घावों का वर्णन किया गया है जो स्पष्ट रूप से बुलेट की चोटों का खुलासा करते हैं और मेडिकल रिपोर्ट में किया गया दावा गलत या भ्रामक है. उन्होंने कहा कि नवरीत की चोटें बंदूक की गोली के घाव की थीं और मेडिकल बोर्ड की एक्स-रे रिपोर्ट में पोस्टमार्टम में बताए गए महत्वपूर्ण विवरणों की अनदेखी की गई है. डॉक्टरों ने यह भी कहा कि नवरीत के विवरण को एक्स-रे प्लेट पर एक सफेद मार्कर से लिखा गया था. ध्यान रहे कि यह मानक तरीकों से महत्वपूर्ण विचलन था और इस तथ्य को चिकित्सा रिपोर्ट में भी स्वीकार किया गया है.

सर्जरी के पूर्व प्रोफेसर और पंजाब विश्वविद्यालय में चिकित्सा विज्ञान संकाय में डीन रह चुके डॉ. प्यारे लाल गर्ग ने कहा, ''पोस्टमार्टम में दिखाई गई चोटों और उनके स्वभाव, आकार, मार्जिन और साइट को आकस्मिक रूप से ट्रैक्टर से गिर कर लगी चोट नहीं कहा जा सकता है.'' गर्ग ने कहा कि चोटें "एक ही आकार के हथियार" के कारण लगी होंगी. उन्होंने यह भी कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में "खोपड़ी की हड्डियों और चेहरे की हड्डियों के फ्रैक्चर का कोई उल्लेख नहीं है" जैसा कि एक्स-रे रिपोर्ट में दर्ज किया गया है. उन्होंने स्पष्ट किया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में "कोई भी चोट जो दिख रही हो या साफ दिखाई दे रहे फ्रैक्चर को रिकॉर्ड करना चाहिए और यदि नहीं, तो किसी को एक्स-रे के बाद यह रिकॉर्ड करना होगा", जिसे पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं दर्शाती है.

दूसरे डॉक्टर, जिन्होंने अपनी सेवानिवृत्ति तक एक प्रमुख सरकारी चिकित्सा संस्थान में नौकरी की थी, नाम न छापने की शर्त पर बात की और जरूरत पड़ने पर अदालत के सामने गवाही देने के लिए सहमत जताई. उन्होंने कहा, "रामपुर (उत्तर प्रदेश) की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में जिस तरह के घावों का जिक्र किया गया है, वह बिना किसी अन्य स्पष्टीकरण या संभावना के आग्नेयास्त्र या बंदूक की गोली के घाव हो सकते हैं," उन्होंने कहा. "गोली के सिर से निकल जाने के बाद कोई धातु शरीर के अंदर नहीं मिली."

नवरीत के दादा हरदीप सिंह डिबडिबा और उनके चाचा इंद्रजीत सिंह, जो रामपुर के जिला अस्पताल में पोस्टमार्टम के वक्त वहां मौजूद थे, ने दावा किया है कि पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों ने यह माना था कि चोटें गोली के घाव की हैं.

फरवरी की शुरुआत में डिबडिबा ने दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और अपने पोते की मौत की स्वतंत्र जांच की मांग की. उन्होंने निश्चित समय के भीतर जांच और साथ ही अदालत से अधिकारियों को यह निर्देश देने की मांग की कि उनके परिवार को शव की एक्स-रे की प्रतियां और पोस्टमार्टम की वीडियो रिकॉर्डिंग उपलब्ध कराई जाए. 4 मार्च को दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश योगेश खन्ना ने उत्तर प्रदेश पुलिस और रामपुर जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी को निर्देश दिया कि वह दिल्ली पुलिस को नवरीत की मूल एक्स-रे प्लेट और पोस्टमार्टम वीडियो प्रदान करें.

15 अप्रैल को एक मेडिकल बोर्ड ने नवरीत सिंह के एक्स-रे पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की. अपनी टिप्पणियों के बीच, बोर्ड ने कहा, "दिए गए चिकित्सीय साक्ष्यों के आधार पर बेईमानी के बारे में कोई निश्चित राय नहीं दी जा सकती है."

अदालत के आदेश के बाद डिबडिबा अपने बेटे विक्रमजीत सिंह और अपने भतीजे इंद्रजीत के साथ सिंघू सीमा पर पहुंचे थे. डिबडिबा ने उस समय मुझे बताया था कि "परिवार के तीन सदस्य, मैं, मेरा बेटा और मेरा भतीजा, जो एक्स-रे के दौरान वहां मौजूद थे, मूल एक्स-रे प्लेट और वीडियो रिकॉर्डिंग देखेंगे." उन्होंने कहा, "मेरा भतीजा पता लगाएगा या सत्यापित करेगा कि क्या यह वही एक्स-रे प्लेट है जिसे उन्होंने पहले देखा था." इंद्रजीत के अनुसार, डिबडिबा ने कहा, मूल एक्स-रे में "तीन इंच लंबा बुलेट का निशान" दिखाया गया है जो स्पष्ट रूप से बुलेट के प्रवेश और निकास बिंदुओं को दर्शाता है. लेकिन आखिरकार, न तो डिबडिबा और न ही उनके परिवार के किसी अन्य सदस्य को एक्स-रे प्लेटें देखने का मौका दिया गया.

सुनवाई की अगली तारीख 17 मार्च को डिबडिबा की वकील वृंदा ग्रोवर ने अदालत को सूचित किया कि एक्स-रे प्लेट दिल्ली पुलिस को प्रस्तुत की गई थी. तब ग्रोवर ने एक्स-रे की समीक्षा करने और उस पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए एमएएमसी में एक मेडिकल बोर्ड का गठन करने के लिए कहा. उन्होंने मेडिकल बोर्ड द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, इसके अलावा कहा, "जैसा कि मैंने उच्च न्यायालय के समक्ष कहा था, हम पोस्टमार्टम रिपोर्ट और वीडियो और एक्स-रे रिपोर्ट फॉरेंसिक और चिकित्सा विशेषज्ञों को दिखाएंगे." डिबडिबा ने जोर देकर कहा कि वह मेडिकल बोर्ड की समीक्षा से पहले इसकी प्रामाणिकता की पुष्टि करने के लिए इसे देखना चाहते हैं.

"हमने एक्स-रे के लिए कहा था लेकिन हमारी मुख्य मांग होने और अदालत में जाने की वजह होने के बावजूद हमें नहीं दिखाया गया है," डिबडिबा ने मुझे बताया. उन्होंने कहा कि परिवार यह सुनिश्चित करने के लिए एक्स-रे प्लेट देखना चाहता था कि यह वही है जिसे 27 जनवरी को रामपुर में दिखाया गया था. "हमें कैसे पता चलेगा कि उन्होंने किस एक्स-रे पर अपनी रिपोर्ट दी है?" उन्होंने पूछा. डिबडिबा ने कहा कि नवरीत के दादा के तौर पर उन्हें यह अधिकार है कि वह उन सबूतों को देख सकें जिनके आधार पर दिल्ली पुलिस ने यह तर्क दिया कि उनके पोते की मृत्यु दुर्घटना से हुई है. "एक्स-रे को हमसे क्यों छिपाया?" डिबडिबा ने पूछा.

दिल्ली उच्च न्यायालय ने ग्रोवर के अनुरोध पर मेडिकल बोर्ड को एमएएमसी के फॉरेंसिक मेडिसन और रेडियोलॉजी विभागों से गठित करने का निर्देश दिया था. दिल्ली सरकार ने 24 मार्च को उच्च न्यायालय का अनुपालन करने वाला एक आदेश जारी किया. मेडिकल बोर्ड में तीन डॉक्टर थे : अध्यक्ष डॉ. अनिल अग्रवाल (एमएएमएस के रेडियोलॉजी विभाग में फॉरेंसिक मेडिसिन विभाग में निदेशक), डॉ गौरव प्रधान और डॉ. सपना सिंह.

नवरीत सिंह की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उनकी मृत्यु का कारण "एंटीमार्टम हेड इंजरी" बताया गया है. इसमें गोली की चोटों का कुछ भी उल्लेख नहीं किया गया था, लेकिन फॉरेंसिक विशेषज्ञों का कहना है कि सूचीबद्ध एंटीमार्टम चोटों की व्याख्या केवल बंदूक की गोली के घाव के रूप में की बताई जा सकती है.

अपनी "रिव्यू ओपिनियन रिपोर्ट" में बोर्ड ने कहा कि उसे "664 / 27.1.202" और "665 / 27.1.21" नंबर के दो एक्स-रे मिले थे. "मेडिकल बोर्ड की राय / टिप्पणियां" नामक एक खंड के नीटे डॉक्टरों ने लिखा, "एक्स-रे के खोपड़ी के एपी और परोक्ष रूप से देखने पर खोपड़ी और चेहरे की हड्डियों के फ्रैक्चर दिखाई देते हैं… “दिए गए चिकित्सकीय सबूतों के आधार पर किसी प्रकार बेईमानी से संबंधित कोई निश्चित राय नहीं दी जा सकती. मामले के संबंध में कोई और राय नहीं दी जा सकती है.” जाहिर है कि मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट में गलती होने की संभावना से इनकार किया गया. यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि नवरीत के पोस्टमार्टम में खोपड़ी या चेहरे की हड्डियों का कोई फ्रैक्चर रिकॉर्ड नहीं किया गया था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार नवरीत की मौत "ऐंटे-मॉर्टम, सर की चोट" के कारण हुई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में छह ऐंटे-मॉर्टम चोटों को सूचीबद्ध किया गया है. साथ ही उनकी ठोड़ी के बाईं ओर "2सेंमी x 1सेंमी आकार" का "उल्टे और गहरी हड्डी तक" मार्जिन के साथ एक गहरा घाव था; और दूसरा घाव दाहिने कान के ऊपर "6x3 सेमी आकार" का "अनियमित और उल्टा" मार्जिन का घाव था और "कान के अस्थि-पंजर और भेजा बाहर आ गया था."

दोनों डॉक्टर अपने बयान में स्पष्ट थे कि यह चोटें बंदूक की गोली के कारण लगी थीं. "मार्जिन तभी उल्टा आएगा जब किसी चीज को मस्तिष्क और कान के अंदर से बाहर निकाला गया हो," गर्ग ने दाहिने कान पर लगी चोट को "निकास घाव" बताते हुए कहा. उन्होंने कहा कि ठोड़ी और भौं पर "एक ही आकार" का घाव, "समान रूप से उल्टे मार्जिन और गहरी हड्डी दर्शाती है कि एक ही आकार की कोई चीज ताकत से छेद गई."

इसी तरह दूसरे डॉक्टर ने कहा, "एक नजर देखने भर से दुनिया का कोई भी डॉक्टर आपको बताएगा कि दो उल्टे घाव और बड़े व्यास के दो उल्टे घाव यानी गोली के संभावित निकास की उल्टे घावों से तुलना करने पर जो संभवतः गोली घुसने को चिह्नित करते हैं, यह सड़क दुर्घटना या यहां तक कि भाले के हमले से भी संभव नहीं हैं और यह केवल गोली की चोटों के साथ ही मेल खाते हैं.” उन्होंने कहा, "यह सवाल जिसे हर कि​सी को इस बोर्ड से पूछना चाहिए कि क्या ये चोटें उसी तरह की हैं जैसे बंदूक की गोली से होती हैं." दूसरे डॉक्टर ने कहा कि नवरीत के परिवार को "निश्चित रूप से पुनर्मूल्यांकन की मांग करनी चाहिए.”

गर्ग ने मेडिकल बोर्ड के निष्कर्षों के बारे में बताया कि उसमें "मेटेलिक रेडियोओपासिटी किसी बाहरी चीज का सुझाव नहीं देती है." उन्होंने कहा, “मेटेलिक रेडियोओपासिटी किसी भी तरह की ऐसी अस्पष्टता है जो फिल्म में एक्स-रे के समय धातु की उपस्थिति दिखाती है और न केवल बुलेट की बल्कि भीतर धातु का जो कुछ भी मौजूद हो उसे रेडियो ओपासिटी दर्शाता है. हालांकि धातु का टुकड़ा या गोली, अगर बाहर निकल जाती है तो यह किसी भी धातु की अस्पष्टता नहीं दिखाता है.” इसलिए मेडिकल रिपोर्ट में केवल यह दर्शाया गया है कि एक्स-रे के समय नवरीत के सिर में कोई गोली नहीं थी, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि उसे कभी गोली नहीं लगी थी.

दूसरे डॉक्टर ने आगे कहा, "बोर्ड खोपड़ी और चेहरे की हड्डियों के फ्रैक्चर के बारे में पक्षों को निर्दिष्ट करने के लिए बिना चिंता किए बहुत कच्चे और गैर पेशेवर ढंग से बात रखता है." उन्होंने कहा, "एक चोट जो कान के गुहा में प्रवेश करती है और मस्तिष्क में दो प्रवेश और दो निकास घाव बनाती है, जिसका उल्लेख बोर्ड द्वारा नहीं किया गया है. इसी तरह की चीजों को बोर्ड ने अनदेखा किया है. कम से कम ठोड़ी के घाव, जिसका जिक्र रामपुर पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में है, का उल्लेख जबड़े के बाईं ओर के एक्स-रे पर किया जा सकता है.”

उन्होंने स्वयं एक्स-रे की प्रामाणिकता के बारे में एक प्रासंगिक अवलोकन किया. मेडिकल रिपोर्ट में कहा गया है कि एक्स-रे पर पहचान संख्या "उन पर सफेद मार्कर से लिखी गई थी." दूसरे डॉक्टर के अनुसार, यह मानक अभ्यास से एक गंभीर विचलन था. उन्होंने कहा, "आजकल एक्स-रे में सबसे ऊपर रोगी के नाम/नंबर की मेटालिक रेडोपैक छाप एक्स-रे की अदला-बदली से बचने के लिए रहती है. सफेद मार्कर के साथ नाम या सीरियल नंबर डालना निश्चित रूप से बेईमानी की संभावना को इंगित करता है. बोर्ड ने निश्चित रूप से इसका अवलोकन किया है कि नाम/नंबर को सफेद मार्कर के साथ लिखा गया था जो एक अप्रचलित तरीका है."

मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरों के बोर्ड द्वारा प्रस्तुत एक्स-रे रिपोर्ट में कहा गया है कि एक्स-रे लेने के बाद पहचान का विवरण एक सफेद मार्कर द्वारा लिखा गया था. बोर्ड ने कहा, "सामान्य तरीका एक्स-रे छवि में शामिल संख्याओं को फिल्म के ऊपर रेडियोपैक फिक्सिंग द्वारा शामिल करना है."

मेडिकल बोर्ड ने इस विचलन को भी नोट किया. इसकी रिपोर्ट में यह उल्लेख करने के बाद कि एक्स-रे की पहचान का विवरण एक सफेद मार्कर के साथ लिखा गया था, बोर्ड ने कहा, "एक्स-रे प्लेटों पर उपरोक्त चिह्नों को एक्स-रे लेने के बाद बनाया गया है." बोर्ड ने औक कहा, "सामान्य तरीका यह है कि एक्स-रे छवि में शामिल संख्याओं को फिल्म के ऊपर रेडियोपैक फिक्सिंग द्वारा शामिल किया जाए." गर्ग ने मुझसे कहा, "एक्स-रे फोटो लेते समय एक्स-रे पर नाम और संख्या का स्वयं निर्धारण मानक अभ्यास है लेकिन अगर एक्स-रे के बाद मार्कर से लिखा जाता है तो यह संदिग्ध है."

डॉक्टरों द्वारा उठाए गए ये सवाल एक्स-रे प्लेट्स की प्रामाणिकता के बारे में डिबडिबा की चिंताओं जैसे हैं. डिबडिबा ने कहा, "हम बोर्ड के निष्कर्षों को स्वीकार नहीं करते हैं. जब तक हमें एक्स-रे नहीं दिखाया जाता है और हम पुष्टि नहीं कर लेते कि यह वही एक्स-रे है, तब जाकर हम इसे स्वीकार करेंगे." उन्होंने आगे कहा, "शुरू से ही हमारी प्राथमिक मांग रही है कि हमें एक्स-रे दिखाया जाए क्योंकि हमें संदेह है कि एक्स-रे की अदला-बदली हुई है. और जैसा हम सोचते हैं वैसा ही यहां हुआ है. डॉक्टरों ने नवरीत के एक्स-रे की जांच नहीं की."

"हमें लगता है कि इसकी अदला-बदली हुई है," डिबडिबा ने कहा. "सरकार नहीं चाहती कि सच्चाई सामने आए." उन्होंने कहा कि परिवार आगे क्या करेगा इसकी उनके पास कोई योजना नहीं है. मामले की अगली सुनवाई 26 जुलाई को होगी.