“ऊंची जाति के लोग हमें दबा रहे हैं,” जौनपुर में बलात्कार के बाद मार दी गई बेटी के पिता का आरोप

उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के पेशवा माई घाट गांव में 30 मई को नाबालिग के साथ बलात्कार कर घर से थोड़ी दूरी पर उसकी हत्या कर दी गई थी. कारवां के लिए शाहिद तांत्रे

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बेटी के पिता ने मुझसे कहा, “गांव के ठाकुरों ने मुझे धमकाया है कि 'हम तुम्हें इतना पीटेंगे कि तुम टकले हो जाओगे.” वह उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के पेशवा माई घाट गांव के रहने वाले हैं और 30 मई को उनकी नाबालिग बेटी का बलात्कार कर घर से थोड़ी दूरी पर उसकी हत्या कर दी गई थी. चार दिन बाद गांव के तीन युवकों- अजय सिंह, विपिन खरवार और विनय पाठक- को इस मामले में गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस को दिए अपने बयान में उन्होंने किशोरी के साथ सामूहिक बलात्कार और उसकी हत्या की बात स्वीकार की है. सिंह ठाकुर समुदाय से है जबकि पाठक ब्राह्मण है. खरवार अनुसूचित जाति है लेकिन उसकी हालत निषादों की तुलना में बेहतर है. उन्होंने मुझे बताया कि आरोपी के परिवार वाले बयान बदलने के लिए उन पर जबरदस्ती कर रहे हैं. “हमें डराया जा रहा है. ऊंची जाति के लोग हमारी आवाज को दबाने की कोशिश कर रहे हैं,'' उन्होंने कहा.

उनके अनुसार, 29 मई की देर रात उनकी बेटी, जो तब दसवीं कक्षा में पढ़ती थी, अपने घर के आंगन में सो रही थी. उनका आठ साल का बेटा लड़की के साथ था, जबकि उनकी पत्नी घर के भीतर सो रही थी. वह और उनकी मां यानी किशोरी की दादी धनदेई देवी घर से कुछ दूर अपने आमों पेड़ों के पास सो रहे थे. "लॉकडाउन चल रहा था और कोई काम-पैसा नहीं था. मेरे पास दो आम के पेड़ हैं और मुझे लगा कि हम उनसे घर का कुछ खर्चा चला लेंगे. इसलिए मैंने फल बचाने के लिए पेड़ों पास सोना शुरू कर दिया था.” उन्होंने मुझे बताया कि अगली सुबह लगभग 5 बजे, “जब मैं नहा-धोकर अपने घर पहुंचा, तो मैंने बांस की झाड़ियों में लोगों की भीड़ और अपनी पत्नी को रोते सुना. मैं भीड़ की ओर भागा और वहां मेरी बेटी की लाश पड़ी थी.”

उन्होंने कहा, "मेरी बेटी के गले में एक गमछा था. उसकी जीभ बाहर निकली हुई थी. उसके पूरे शरीर को नोच डाला गया था और उसकी आंखों और मुंह में चारों तरफ गंदगी थी.” उन्होंने मुझे बताया कि वह टूट गए और पूरी तरह से बेहाल हो गए. “कुछ समय बाद जब मैंने उसे उठाने की कोशिश की, तो उसकी कमर के नीचे काफी खून था. मैं फिर बेसुध हो गया. मैं उसकी लाश भी नहीं उठा सका.'' उन्होंने कहा कि कुछ समय बाद उन्होंने उसे फिर से उठाने की हिम्मत जुटाई और उसके शव को अपने घर ले आए. उन्होंने मुझे यह भी बताया कि अब तक गांव के कई लोग वहां जमा हो गए थे और किसी ने यह भी पहचान लिया था कि उसके गले में गमछा पाठक का है.

दादी ने उनकी बात से हामी जताई. उन्होंने मुझे बताया कि लड़की का शरीर पूरी तरह गीला था और ऊपर से नीचे तक नाखून के निशान थे. “हम सभी रो रहे थे. वहां बहुत सारे लोग थे और उन्होंने पहचान लिया था कि उसके गले में जो गमछा है वह पंडित का है,” उन्होंने पाठक का जिक्र करते हुए कहा. वह अपनी पोती के बारे में बात करते हुए उनकी आंखे बार-बार भर आतीं. “वह हमेशा खाना बनाती थी और मुझे खाना परोसती थी. वह मुझे अपने स्कूल के बारे में बताती थी. मैं ज्यादा कुछ नहीं समझती थी लेकिन वह मुझसे बात करती थी. वह मेरे पोते की तरह पढ़ाई में अच्छी थी. वह समय पर अपना काम करती थी.” उन्होंने कहा, "मेरा दिल जानता है कि मेरी बच्ची के साथ क्या हुआ. हम दुनिया को अपना दुख बता भी नहीं सकते.

उन्होंने मुझे बताया कि जब तक वह शव को घर ले आते तब तक किसी ने ग्राम प्रधान शिवबदन यादव को कर दी थी और लगभग पूरा गांव उसके घर में जमा हो गया था. “वह आया और हमसे पूछा कि हम क्या करना चाहते हैं. वह अपनी बाइक पर बैठकर हमसे बात कर रहा था. उसने कहा कि उसने केराकत पुलिस स्टेशन से बात कर ली है और वे किसी को यहां नहीं भेजेंगे.” उन्होंने कहा कि यादव ने उनसे कहा, “जितनी जल्दी हो सके शव को जला दो. गमछा भी जला दो. अगर तुम ऐसा नहीं करोगे तो प्रशासन अपने लोगों को भेजेगा और फिर तुम्हारे लिए परेशानी होगी. वे तुमको ही उसकी हत्या के इलजाम में फंसा देंगे.” उन्होंने मुझसे कहा, “मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा था. हम टूटे और डरे हुए थे और इसलिए हमने अपनी बेटी का अंतिम संस्कार कर दिया. ”

वकील और लड़की के मामा इंद्रजीत निषाद ने इसकी पुष्टि की और मुझे बताया कि यादव के कहने पर शव को जलाया गया था. "जरा सोचिए, अगर गांव में कोई छोटा-मोटा झगड़ा भी हो जाए तो कोई भी 112 पर कॉल करता है. लेकिन इतनी बड़ी बात पर प्रधान का रवैया पूरी तरह से गलत था." यादव को अंततः 14 जून को सबूत नष्ट करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया और एक हफ्ते बाद जमानत पर रिहा कर दिया गया.

उन्होंने कहा कि दाह संस्कार के बाद उसके बेटे ने उन्हें बताया कि "तीन लड़के रात में आए और दीदी को ले गए और मुझे भी मारने की धमकी दी." आगे कहा, “लड़कों ने खुद पुलिस में कबूल किया है कि जब भाई जाग गया तो उन्होंने उसे मारने की धमकी दी. मेरा बेटा बहुत डर गया.” उन्होंने बताया कि जब उन्होंने अपने बेटे से उसकी पहचान बताने को कहा तो उसने बताया कि वह क्या पहना हुआ था. उसने उस गमछे के बारे में बताया जो बाद में लड़की के शरीर पर पाया गया था. उसके एक बाजू पर एक टैटू बना था.

उन्होंने मुझे बताया कि उनकी बेटी की हत्या से पहले भी कई घटनाएं हुईं थी. उन्होंने कहा कि पाठक ने वारदात से करीब बीस दिन पहले उनकी बेटी को परेशान किया था. “मेरी बेटी चक्की में गेहूं पीसाने गई थी. जब वह गेहूं तौलने के लिए अंदर गई तो पंडित लड़का वहां मौजूद था. उसने मेरी लड़की की साइकिल की चाबी निकाल ली.” उन्होंने बताया कि चक्की वाले ने बेटी को चाबी वापस दिलाई. उन्होंने आगे बताया, “कुछ दिन पहले एक सुबह मेरी बेटी घर के बाहर दांत साफ कर रही थी. यह अजय सिंह सामने से गुजर रहा था और उसने उसके साथ दुर्व्यवहार किया. मेरी बेटी ने मुझे बताया तो मैं उसके घर गया और उसे डांट लगाई. "

उन्होंने कहा कि घटना के दो दिन पहले कोई उन्हें लगातार अलग-अलग नंबरों से कॉल करके परेशान कर रहा था. "कभी वह कहता था कि उसने मुझे गलती से फोन किया या कभी-कभी वह कहता कि कॉल डायवर्ट हो गई होगी." मैंने उसे जोर से डांटा और कहा, 'ऐसा दोबारा नहीं होना चाहिए’. ये तीनों गांव की लड़कियों को शौच जाते वक्त परेशान करते थे. वे दीवारों पर लड़कियों के नाम और फोन नंबर लिख देते.”

उन्होंने मुझे बताया कि जब वह पहली बार 30 मई की रात को केराकत पुलिस स्टेशन गए, तो पुलिस ने उन्हें धमकी दी और भगा दिया. इंद्रजीत के मुताबिक, केराकत स्टेशन ने आखिरकार 2 जून को पूर्व सांसद रामचरित्र निषाद के कहने पर एफआईआर दर्ज की. पुलिस ने तीनों युवकों को भारतीय दंड संहिता की दो धाराओं के तहत गिरफ्तार किया- हत्या के लिए धारा 302 और सबूत मिटाने के लिए 201. इन आरोपों के आधार पर तीनों युवकों को शुरू में गिरफ्तार कर लिया गया और 5 जून को सिंह और खरवार को रिहा कर दिया गया. इंद्रजीत ने मुझे बताया, "सामाजिक संगठनों, हमारे नेताओं और विरोध प्रदर्शनों के दबाव के चलते 12 दिनों के बाद पुलिस हरकत में आई और धारा 376 और 506 भी जोड़ दी." ये धाराएं सामूहिक बलात्कार और आपराधिक धमकी से संबंधित हैं. इन अतिरिक्त आरोपों के आधार पर सिंह और खरवार को 14 जून को फिर से गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि पाठक पहले ही हिरासत में था. इंद्रजीत ने कहा, "पुलिस ने इन विरोधों की वजह से महामारी के दौरान कानून-व्यवस्था भंग करने की कोशिश का भी आरोप लगाया." उन्होंने मुझे यह भी बताया कि सिंह को 14 अक्टूबर को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जमानत दे दी थी.

वह पुलिस से नाखुश लगे. "दोषियों को पकड़ लिए जाने के बाद हमें स्टेशन पर बुलाने में पुलिस को दो दिन लग गए." उन्होंने कहा, "मेरी बेटी चली गई. अब इन अपराधियों को सजा दी जानी चाहिए ताकि किसी और की बेटी के साथ ऐसा न हो सके.” उन्होंने यह भी माना कि वह अपने बेटे की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं. उन्होंने कहा, "ठाकुर और पंडित न माफ करते हैं, न भूलते हैं.” उन्होंने यह भी कहा कि खरवार का परिवार उन्हें परेशान कर रहा था. “खरवार के पिता ने कहा कि अगर उनके बेटे को सजा मिली तो वे लोग मेरे घर को जला देंगे और वकील की फीस भी हमसे ही वसूलेंगे. उन्होंने मुझे धमकी दी कि अगर मैंन उनके घर के पास दिखा, तो वे मुझे मार डालेंगे.”

अपनी बेटी के बारे में बात करते हुए वह फिर से रोने लगे. “उसने इस बार दसवीं के पेपर दिए थे. जब उसके स्कूल के शिक्षकों को पता चला तो सभी घर आए. उन्होंने कहा कि वह एक होनहार बच्ची थी. वह पढ़ाई में बहुत अच्छी थी.” उन्होंने कहा, "वह कहती थी, 'पापा, मैं बहुत पढ़ाई करूंगी और तब मुझे एक अच्छी नौकरी मिल जाएगी."