दिसंबर 2015 में पंजाब का बठिंडा जिला तरह-तरह की गतिविधियों की हलचल से भरा था. राज्य में शिरोमणि अकाली दल की सरकार थी और प्रकाश सिंह बादल मुख्यमंत्री थे. अभी नई-नई बनी आम आदमी पार्टी दिल्ली के अपने इलाके से बाहर जमने के लिए हाथ-पैर मार रही थी और इस कोशिश में थी कि राष्ट्रीय राजनीति में उसका दखल हो सके. मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस 2017 के विधानसभा चुनावों के अपने अभियान की शुरुआत कर रही थी और इसके लिए उसने पवित्र शहर तलवंडी साबो में अपनी ताकत का प्रदर्शन करने के लिए एक विशाल रैली का आयोजन किया था. इस सभा में अमरिंदर सिंह को भाषण देना था जिन्होंने अभी ही पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष का पद संभाला था. एक महीने पहले ही राज्य के उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने दावा किया था कि अमरिंदर सिंह यहां भीड़ नहीं जुटा सकेंगे. बठिंडा बादल परिवार का गढ़ माना जाता है.
मंच पर कांग्रेसी सदस्यों की भीड़ जमा थी जो अपनी जगह बनाने के लिए धक्का-मुक्की कर रहे थे. इन सबके बीच अमरिंदर सिंह खड़े थे. उन्होंने हाथ धोने के लिए पानी मांगा. इसके बाद अपने एक सहयोगी से उन्होंने कहा कि वह पवित्र ग्रंथ गुटका साहिब की एक प्रति उन्हें पकड़ा दें जिसमें सिख धर्म से संबंधित भजन होते हैं. नीले आवरण वाली इस पुस्तक को बाएं हाथ में पकड़ कर ऊपर तक लहराते हुए उन्होंने तेज आवाज में कहा, "यह हमारे हाथ में गुटका साहिब है और सामने यहां से 3 किलोमीटर की दूरी पर दमदमा साहिब है." दमदमा साहिब सिख धर्म का एक पवित्र केंद्र है. इसके बाद अमरिंदर सिंह ने कुछ शानदार वायदे किए.
"चार हफ्ते बिच नशे दा लत तोड़ के छड्डू" यानी मैं चार हफ्ते के अंदर नशे की आदत की कमर तोड़ कर रख दूंगा. उनकी इस घोषणा का भीड़ ने हर्ष ध्वनि से स्वागत किया. उन्होंने यह भी कहा कि वह भ्रष्टाचार का खात्मा कर देंगे, नौजवानों में बेरोजगारी कम करेंगे और बादल सरकार द्वारा कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के खिलाफ थानों में दर्ज सभी एफआईआर को रद्द कर देंगे. उन्होंने कहा, "मैंने अपने दसवें गुरु की कसम खाकर यह सारा कुछ करने की प्रतिज्ञा की है" और यह कहते हुए उन्होंने एक बार फिर गुटका साहिब को हवा में लहराया. उन्होंने आगे कहा, "अगर आप जानना चाहते हैं कि यह सब कुछ मैं कैसे कर सकूंगा तो इसका जवाब केवल समय ही दे सकता है."
यह एक नाटकीय घटना थी जिसे पंजाब का मतदाता शायद ही कभी भूल सके. रैली में कई बार उनके नाम के साथ वक्ताओं ने "भावी मुख्यमंत्री" शब्द जोड़ा. अगले वर्ष 2016 में पूरे साल आम आदमी पार्टी ने भी ड्रग के मुद्दे को सामने रखकर सरकार पर दबाव बनाया और अनेक वायदे किए. पार्टी ने अमरिंदर सिंह पर आरोप लगाया कि पंजाब में नशीले पदार्थों के सेवन से उत्पन्न संकट से जुड़े अत्यंत विवादास्पद व्यक्ति बिक्रम सिंह मजीठिया के प्रति अमरिंदर सिंह काफी नरमी बरतते हैं. बिक्रम सिंह मजीठिया सुखबीर सिंह बादल के बहनोई हैं. उन दिनों मजीठिया राजस्व मंत्री के पद पर थे और आने वाले चुनाव में अपने गढ़ मजीठा से खड़े होने वाले थे. आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल नशीले पदार्थों (ड्रग) के धंधे में लिप्त होने का उन पर खुलकर आरोप लगा रहे थे. इससे पहले किसी ने इतने खुले ढंग से सार्वजनिक तौर पर उन पर ऐसा आरोप नहीं लगाया था. अगस्त 2016 में अमरिंदर सिंह को भी मजबूरी में कांग्रेस की एक रैली में कहना पड़ा कि "अगर कांग्रेस ने 2017 में सरकार बना ली तो मैं बिक्रम सिंह मजीठिया को जेल के सीखचों के अंदर डाल दूंगा."
चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली और मार्च 2017 में अमरिंदर सिंह ने मुख्यमंत्री का पद संभाल लिया. उसी महीने पंजाब सरकार ने ड्रग्स के खिलाफ स्पेशल टास्क फोर्स का गठन किया और पुलिस के अतिरिक्त महानिदेशक हरप्रीत सिंह सिद्धू को इसका प्रमुख बनाया. सिद्धू की यह नियुक्ति बड़े तामझाम के साथ की गई. सिद्धू को खास तौर पर छत्तीसगढ़ से यहां लाया गया था जहां वे ऐंटी इनसरजेंसी के डेपुटेशन पर भेजे गए थे. एसटीएफ के नियमों के अनुसार उन्हें पुलिस महानिदेशक को नहीं बल्कि सीधे मुख्यमंत्री को अपनी रिपोर्ट देनी थी.
एसटीएफ ने काफी शोर-शराबे के साथ अपना काम शुरू किया. पंजाब सरकार की एक प्रेस रिलीज के अनुसार राज्य में ड्रग से संबंधित 36 हजार से अधिक मामले दर्ज किए गए, 45 हजार से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया और तमाम प्रतिबंधित पदार्थों के साथ 13 सौ किलोग्राम से अधिक हेरोइन जब्त की गई. सिद्धू ने हमें जो आंकड़े दिए वह कई गुना बढ़ा कर दिए गए थे: तकरीबन 50 हजार मामले दर्ज किए गए थे और 2017 से इस वर्ष मई के बीच 64 हजार से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया था. उल्लेखनीय बात यह है कि लगभग 200 मामले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ दर्ज किए गए. लेकिन चार किलोग्राम हेरोइन रखने और नशे का कारोबार करने वालों के साथ सांठगांठ करने के आरोप में इंदरजीत सिंह नाम के पुलिस इंस्पेक्टर की गिरफ्तारी के बाद से तरह-तरह की अड़चनें सामने आने लगीं जो पंजाब की ड्रग समस्या की छानबीन करने वाले किसी भी व्यक्ति को महसूस हो रही थी.
हालांकि कुछ दिनों के बाद ही इंदरजीत को नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया लेकिन उसकी गिरफ्तारी ने पंजाब पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच काफी तनाव पैदा कर दिया था और फिर एक के बाद एक कुछ घटनाएं होती चली गईं. एक वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक राज जीत सिंह हुंडल ने, जो इंदरजीत के वरिष्ठ थे और और इंदरजीत को कई प्रमोशन मिलने में जिनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी, अदालत में एक अर्जी दी और मांग की कि इंदरजीत सिंह का मामला सिद्धू को न देकर किसी और अधिकारी को दिया जाए. (सिद्धू ने इससे पहले इंदरजीत को दिए जा रहे संरक्षण को और नशे के धंधे के मामले में उसकी भूमिका को लेकर हुंडल पर सवाल उठाए थे.) इसकी वजह से ही दिसंबर 2017 में एक स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) का गठन हुआ था. इसके गठन का आदेश पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने दिया था. यह एसआईटी तीन सदस्यों की एक टीम थी जिसका नेतृत्व सिद्धार्थ चट्टोपाध्याय कर रहे थे जो उन दिनों मानव संसाधन विकास में पुलिस महानिदेशक थे. इस टीम को नशे के धंधे में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की संलिप्तता की छानबीन करनी थी.
21 जनवरी 2018 को एसटीएफ ने एक रिपोर्ट पेश की जिसमें एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट से सामग्री हासिल की गई थी और जिसमें ड्रग माफिया से जुड़े लोगों के कबूलनामे थे और कुछ पुलिस रिकॉर्ड थे. रिपोर्ट में निष्कर्ष के तौर पर कहा गया था, " बिक्रम सिंह मजीठिया के खिलाफ जिन आरोपों की जांच के लिए आवेदन दिया गया है उस सिलसिले में यह कहा जा सकता है कि इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं जिनसे इस मामले में आगे जांच की जा सकती है." उसी वर्ष 1 फरवरी को एसआईटी ने हाई कोर्ट को अपनी पहली स्टेटस रिपोर्ट सौंप दी और फिर 15 मार्च और 8 मई को क्रमशः दूसरी और तीसरी रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में अदालत को सौंप दी गई. इन रिपोर्ट पर केवल चट्टोपाध्याय के हस्ताक्षर थे.
ये रपटें अन्य रपटों के साथ अब पंजाब के नशीले पदार्थों की दास्तान के प्रमुख दस्तावेज हैं. सिद्धू ने राज्य में ड्रग माफिया की स्थिति की जांच-पड़ताल की और एसआईटी की रपटों में आरोप लगाया गया कि नशे के धंधे को मजबूत बनाने में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और राजनीतिज्ञों के बीच एक सांठगांठ है लेकिन इन सिफारिशों के मद्देनजर पंजाब सरकार तथा न्यायपालिका की निष्क्रियता की वजह से सारा कुछ ठप पड़ा रहा. (सितंबर 2018 में सिद्धू को एसटीएफ के प्रमुख के पद से हटा दिया गया. उन्हें हटाने से पहले तत्कालीन पुलिस महानिदेशक सुरेश अरोड़ा और उनके बीच तनाव की काफी खबरें आ रही थी. उन्हें मुख्यमंत्री के विशेष मुख्य सचिव की जिम्मेदारी सौंपी गई. लेकिन जुलाई 2019 में बतौर एसटीएफ प्रमुख सिद्धू वापस अपने पद पर आ गए.)
जैसे-जैसे राज्य में 2022 के विधानसभा चुनाव को लेकर हलचल शुरू हुई, एक बार फिर अमरिंदर सिंह पर चर्चा का बाजार भी गर्म हो गया है. बहुत सारे लोग यह सवाल करने लगे हैं कि क्या उन्होंने सत्ता में आने से पहले जो शानदार वायदे किए थे उन्हें पूरा किया? कांग्रेस के अंदर नवजोत सिंह सिद्धू उनके सबसे प्रमुख विरोधी हैं और काफी मुखर भी हैं. ड्रग्स के सवाल पर उन्होंने मुख्यमंत्री के खिलाफ एक खुली लड़ाई छेड़ रखी है. इस वर्ष जुलाई में, जिस समय पार्टी के अंदर तनाव काफी तीव्र था, उन्हें पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी का मुखिया बना दिया गया. उन्होंने ट्वीट किया, "18 सूत्री कार्यक्रम के अंतर्गत कांग्रेस की वरीयता नशे के धंधे में लगे अपराधियों को दंड देना है". ट्वीट में उन्होंने आगे सवाल किया, "मजीठिया के खिलाफ कौन सी कार्रवाई की गई? अगर इसमें और देर की गई तो हम रिपोर्टों को सार्वजनिक करने के लिए पंजाब विधानसभा में प्रस्ताव लाएंगे."
पंजाब की सीमा पाकिस्तान से लगी है और अफगानिस्तान से लेकर पूर्व एशिया तक तथा सुदूर में अमेरिका और पश्चिमी अफ्रीका तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नशीले पदार्थों की स्मगलिंग का जो नेटवर्क है उसका यह एक केंद्र बिंदु है. हालांकि भारत में भी बड़े पैमाने पर अफीम पैदा होता है लेकिन दुनिया के पैमाने पर अगर देखें तो अफीम का बड़ा हिस्सा अफगानिस्तान से आता है. सड़क और हवाई मार्ग से इसके व्यापार पर कई बार छापे पड़े हैं और माल जब्त किया गया है जिससे जानकारी मिलती है कि भौगोलिक दृष्टि से कितनी दूर-दूर तक इन गैरकानूनी नशीले पदार्थों की सप्लाई होती है. यूनाइटेड नेशन्स ऑफिस ऑन ड्रग्स ऐंड क्राइम के अनुसार, कनाडा ने इस बात पर गौर किया है कि उसके बाजार में भारत और पाकिस्तान से हेरोइन की सप्लाई होती है. 2011 में भारतीय अधिकारियों द्वारा जब्त किए गए पैकेटों में से अधिकांश कनाडा भेजे जा रहे थे.
भारत में नशीले पदार्थों के इस्तेमाल के विनियमन के लिए मुख्य कानून नारकोटिक ड्रग्स ऐंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंसेज ऐक्ट 1985 है. एनडीपीएस ऐक्ट के तहत अनेक पदार्थों को अनुसूचीबद्ध किया गया है और कड़े नियंत्रण के अंतर्गत लाया गया है और इस प्रकार इन पदार्थों के उपभोग अथवा व्यापार को आपराधिक कार्रवाई की श्रेणी में रखा गया है. तो भी नियंत्रण के अधीन कई ऐसे सीमित फार्माक्यूटिकल ड्रग्स हैं जिनका स्वास्थ्य से संबंधित अनेक समस्याओं में महत्वपूर्ण ढंग से इस्तेमाल होता है. इन समस्याओं में नशीले पदार्थों के इस्तेमाल से होने वाले विकार भी शामिल हैं. कुछ रसायन ऐसे हैं जिनका इस्तेमाल विभिन्न दवाओं या उत्पादों में किया जाता है पर जिनका प्रयोग अवैध नशीले पदार्थों के रूप में भी होता है. इनके अनेक वैधानिक उपयोग भी हैं और इनकी वजह से कानून लागू करने से संबंधित अनेक चुनौतियाँ पैदा होती हैं.
नशीले पदार्थों के इस्तेमाल और इसके प्रभाव का भारत में व्यवस्थित ढंग से दस्तावेजीकरण नहीं किया गया है और आधिकारिक आंकड़ों का मिलना मुश्किल है. ड्रग्स के इस्तेमाल के बारे में नीति बनाने का आधार तैयार करने के प्रयास में 2004 में एक सर्वेक्षण कराया गया लेकिन यह अनेक सीमाओं में जकड़ा हुआ था. मिसाल के तौर पर इसमें केवल पुरुषों के इस्तेमाल पर जोर दिया गया था और इसका भी कोई आंकड़ा नहीं था कि अलग-अलग राज्यों में क्या स्थिति है. इनमें से कुछ खामियों से निपटने के लिए 2016 में मिनिस्ट्री ऑफ सोशल जस्टिस ऐंड एंपावरमेंट ने नशीले पदार्थों के सेवन के तरीके जानने के लिए एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण कराया. 2019 में प्रकाशित इस सर्वेक्षण के अनुसार उत्तर प्रदेश और पंजाब दो राज्य ऐसे थे जो इन पदार्थों के दुरुपयोग से सबसे बुरी तरह प्रभावित पाए गए . शराब के बाद सबसे ज्यादा सेवन करने वाले जो दो पदार्थ हैं वह है अफीम और भांग.
नशीले पदार्थ (ड्रग) के सेवन के खतरे से निपटना पंजाब के लिए हमेशा से ही बहुत कठिन काम रहा है. इसे केंद्र में रखकर बॉलीवुड ने लोकप्रिय फिल्म भी बनाई और राज्य के अनेक चुनावों में इस समस्या ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. अकेले 2018 में एसटीएफ ने पंजाब में ड्रग के ओवरडोज से 118 लोगों की मृत्यु दर्ज की लेकिन मरने वालों की असली संख्या इससे भी ज्यादा होने की आशंका है. अनुराग अग्रवाल ने, जो उन दिनों पंजाब के मुख्य स्वास्थ्य सचिव थे, हमें बताया कि "इस तरह की मौतों की संख्या इससे कहीं ज्यादा है और इसकी जानकारी कभी हो भी नहीं पाएगी क्योंकि पीड़ित परिवार सामाजिक बदनामी के डर से यह नहीं बताएगा कि ड्रग्स की वजह से ये मौतें हुईं.'" नसों में इंजेक्शन लगा कर इन नशीले पदार्थों का इस्तेमाल करने वाले एचआईवी और हेपेटाइटस सी जैसी बीमारियों से भी प्रभावित हो जाते हैं.
राज्य सरकार ने बहिरंग रोगियों के लिए ओपियोड (अफीम, हीरोइन, मार्फिन आदि) की लत के उपचार के 199 केंद्र, नशे से मुक्ति दिलाने वाले 35 सरकारी केंद्र खोले हैं और 100 से भी ज्यादा लाइसेंसशुदा प्राइवेट केंद्रों की व्यवस्था की है. पंजाब की सबसे ज्यादा आबादी वाले लुधियाना जिले में ड्रग की लत वाले सबसे ज्यादा पंजीकृत लोग हैं. इसके बाद मोगा और तरनतारन का स्थान है. अकेले लुधियाना में मरीजों के लिए 23 प्राइवेट नशा मुक्ति केंद्र, 3 सरकारी नशा मुक्ति केंद्र, 17 राज्य द्वारा संचालित ओओएटी क्लीनिक और तीन ओपियोड सब्स्टीट्यूट उपचार केंद्र हैं. तरनतारन के जिला सिविल अस्पताल के आंकड़ों से पता चलता है कि बुप्रेनारफ़ीन के लिए अस्पताल आने वाले मरीजों की संख्या में वृद्धि हुई है. बुप्रेनारफ़ीन एक ओपियोड है जिसका इस्तेमाल ड्रग की लत सहित अनेक विकारों के उपचार के लिए किया जाता है.
सरकार की एक नीति है नुकसान में कमी लाना. इसके जरिए ही सरकार नशीले पदार्थों के सेवन की समस्या का हल ढूंढने का प्रयास करती है और इसकी चपेट में आए लोगों पर इसका प्रयोग करती है. लेकिन जहां तक ड्रग सप्लाई से संबंधित व्यवसाय का मामला है, यह नहीं स्पष्ट होता कि राज्य सरकार और न्यायपालिका के अंदर उन हाई प्रोफाइल मामलों से निपटने की इच्छा शक्ति है या नहीं जिनमें रसूखदार लोगों के नाम जुड़े हैं. इनमें से सबसे उल्लेखनीय मामला 2013 का भोला ड्रग केस है जिसमें आरोपियों में से तीन ने एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट को मजीठिया का नाम बताया. इसके साथ ही यह भी कहा जा सकता है कि इस धंधे में कथित तौर पर राज्य के वरिष्ठतम पुलिस अधिकारियों के शामिल होने से यह निश्चित हो जाता है कि नशीले पदार्थों की समस्या से निपटने की पंजाब सरकार की कोशिश शायद शुरू भी नहीं हुई है. राज जीत सिंह हुंडल के अलावा एसआईटी की रिपोर्ट में पंजाब पुलिस के पूर्व चीफ सुरेश अरोड़ा और उनके उत्तराधिकारी दिनकर गुप्ता का नाम शामिल था और कहा गया था कि इंदरजीत के मामले में इनकी " भूमिका की जांच" की जानी चाहिए. एसआईटी के अनुसार इंदरजीत को वर्षों तक अनेक वरिष्ठ अधिकारियों का एक तरह से संरक्षण प्राप्त होता रहा और राज्य पुलिस में भी उसने अपनी अच्छी-खासी पकड़ बना रखी थी जबकि उसके खिलाफ अनेक विभागीय जांच चल रही थी और अनेक आपराधिक मामले भी अदालतों में लंबित पड़े थे.
इन विस्फोटक आरोपों के बावजूद इन मामलों में कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं दिखाई दी. तीन साल से भी ज्यादा का समय बीत चुका है और इस दौरान एसआईटी के प्रमुख चट्टोपाध्याय और ईडी के डिप्टी डायरेक्टर निरंजन सिंह सहित आधा दर्जन से अधिक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और साथ ही वरिष्ठ वकीलों की टीम लगातार हाईकोर्ट से वापस आती रही है लेकिन न तो भोला ड्रग्स केस में और न ड्रग माफिया को मिल रहे पुलिस संरक्षण के मामले में कोई प्रगति दिखाई दी. सारी रपटें सीलबंद लिफाफे में कैद हैं. एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने बताया कि "देखा जाए तो मई 2018 के बाद से अब तक कुछ भी नहीं हुआ."
हमने कई लोगों से बातचीत की जो इन रपटों से परिचित हैं. इनमें एक वरिष्ठ राजनीतिज्ञ हैं जिन्होंने एसटीएफ रिपोर्ट की कई बातों को हमसे साझा किया और विभिन्न सरकारी एजेंसियों के अधिकारियों से हमने एसआईटी रिपोर्ट में कही गई बातों के बारे में चर्चा की और साथ ही ईडी के उन दस्तावेजों की भी चर्चा हुई जिनमें उन तीनों अभियुक्तों जगदीश भोला, जगजीत चाहल और बिट्टू औलख ने मजीठिया का नाम लिया था. इन दस्तावेजों को देखने से अत्यंत लचर व्यवस्था का पता चलता है जिसमें राजनीतिज्ञों और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने नशीले पदार्थों के कारोबार को बढ़ाने में मदद की और बहुत संभव है कि उससे उन्हें भी मुनाफा हुआ हो.
पंजाब ह्यूमन राइट्स ऑर्गेनाइजेशन ने दलील दी है कि इस पूरे धंधे में मजीठिया के कथित रूप से शामिल होने की वजह से तकरीबन छह हजार करोड़ के अंतर्राष्ट्रीय ड्रग रैकेट को प्रकाश में नहीं आने दिया गया. इस मामले में आरोपी कनाडा के तीन निवासियों के संदर्भ में पीएचआरओ ने हाई कोर्ट में दी गयी अपनी याचिका में कहा कि "इस पूरे कांड में अंतर्राष्ट्रीय माफिया के जुड़े होने वाले पहलू को एक बार फिर दबा दिया गया और सट्टा, पिंडी तथा लड्डी के शामिल होने को ऑन रिकॉर्ड नहीं आने दिया गया." उसने आगे कहा, "इसमें ड्रग का धंधा करने वाले इन लोगों के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा गया है और इसकी एकमात्र वजह यह है कि वे चाहते हैं कि मजीठिया के खिलाफ कोई कार्रवाई होने का रास्ता बंद हो जाए."
अनेक याचिकाओं के माध्यम से हाई कोर्ट से कहा गया कि इन मामलों की सुनवाई तत्काल आधार पर की जाए लेकिन कोर्ट द्वारा देरी की जाती जारी है. इस दौरान पंजाब की ड्रग समस्या लगातार बढ़ती गई है.
पंजाब पुलिस में चमत्कारिक ढंग से इंदरजीत सिंह को लगातार तरक्की मिलती गई. सिंह ने 1986 में जालंधर में एक कांस्टेबल के रूप में अपनी नौकरी शुरू की थी और तीन वर्ष के अंदर ही वह हेड कांस्टेबल के पद पर पहुंच गया. 1993 तक उसे तदर्थ सब इंस्पेक्टर का पद मिल गया. जल्दी ही वह इस बात के लिए मशहूर हो गया कि उसे कहीं भी क्यों न तैनात किया जाए, हर जगह ड्रग का रैकेट ध्वस्त करने में उसे शत-प्रतिशत कामयाबी मिलती है. बताया जाता है कि तरनतारन के तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक राज जीत सिंह हुंडल ने सरकार से अनुरोध किया कि इंदरजीत का जालंधर से तबादला कर दिया जाए. बताया जाता है कि हुंडल ने पंजाब के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक को लिखा कि इंदरजीत की सेवाएं "तत्काल चाहिए." कई अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने भी खास तौर पर अनुरोध किया कि इंदरजीत की सेवाएं उनके जिले में प्रदान की जाएं. इंदरजीत को 77 प्रशस्ति प्रमाण पत्र और एक वीरता का पुरस्कार मिला. उसे जो लगातार पदोन्नतियां मिलती गईं उनमें सबसे महत्वपूर्ण उसकी पंजाब पुलिस की एक विशेष शाखा क्राइम इन्वेस्टिगेशन एजेंसी में अफसर के तौर पर नियुक्ति भी शामिल है.
लेकिन इंदरजीत की यह कहानी आगे चलकर अविश्वसनीय लगने लगी. एसआईटी की जांच रिपोर्ट से परिचित अनेक सरकारी अधिकारियों ने हमें रिपोर्ट के कुछ ब्यौरों को बताया जिनमें इंदरजीत के रिकॉर्ड को लेकर सवाल उठाए गए थे. चट्टोपाध्याय की निगरानी में एसआईटी का गठन इंदरजीत और हुंडल के बीच "मिलीभगत की जांच" के लिए किया गया था ताकि "कानून लागू करने वाली एजेंसियों तथा ड्रग्स का कारोबार करने वालों के बीच के सांठगांठ को तोड़ा जा सके." एक सरकारी अधिकारी ने हमें बताया कि एसआईटी की एक रिपोर्ट में इंदरजीत के खिलाफ "आपराधिक दुराचार के गंभीर आरोप" लगाए गए हैं. इन आरोपों में पाकिस्तान से नशीले पदार्थों की तस्करी, गैर कानूनी ढंग से वसूली, छापे मारने के लिए फर्जी तरीके से ड्रग रखना और सबूतों के साथ छेड़छाड़ करना शामिल है.
क्राइम इन्वेस्टिगेशन एजेंसी में इंदरजीत को शामिल किए जाने की घटना ने निश्चय ही आश्चर्य और घबराहट पैदा की. यह पंजाब पुलिस के नियमों का उल्लंघन था. नियम के अनुसार इस एजेंसी में किसी जिले में तैनात वरिष्ठतम इंस्पेक्टरों को ही नियुक्त किया जा सकता है और उनमें से भी ऐसे लोगों को जो पूरी तरह बेदाग हों. जिस समय इंदरजीत की इस पद पर नियुक्ति हुई, इंदरजीत से भी सीनियर कई अधिकारी थे और इसके अलावा इंदरजीत का रिकॉर्ड भी बेदाग नहीं था. हुंडल ने इंदरजीत के लिए डबल प्रमोशन की सिफारिश की जिसके नतीजे के तौर पर उसे पहले हेड कांस्टेबल से असिस्टेंट सबइंस्पेक्टर बनाया गया और फिर सब इंस्पेक्टर के पद पर नियुक्त कर दिया गया. इससे उन्होंने यह भी प्रमाणित कर दिया कि उसके विरुद्ध न तो कोई आपराधिक मामला लंबित है और न कोई विभागीय जांच चल रही है. एसआईटी के अनुसार यह बात पूरी तरह गलत थी. हुंडल को इंदरजीत के खिलाफ चल रही कई जांचों की जानकारी दी गई थी बावजूद इसके वह उसके नाम के आगे लगातार असाधारण अधिकारी जोड़ते रहे.
इंदरजीत द्वारा जितनी गिरफ्तारियां की गई थीं और छापे में ड्रग बरामद किए गए थे, सबमें एक खास तरीका नजर आता था. उसने ऐसे अनेक मामले दर्ज किए थे जिसमें आरोपी व्यक्ति एनडीपीएस ऐक्ट के अंतर्गत आरोपित किए जाने के बाद चमत्कारिक ढंग से अभियोग से बच जाता था. वह लोगों को फर्जी मामलों में फंसाता था और फिर उनसे मोटी रकम ऐंठने के बाद उन्हें जमानत दिलाने में मदद कर देता था. उन्हें जाल से बाहर निकलने में मदद पहुंचाने के लिए वह उनके खिलाफ अदालतों में चालान देर से भेजता था या कथित तौर पर बरामद नशीले पदार्थ को विश्लेषण के लिए फॉरेंसिक लैब में निर्धारित समय सीमा बीत जाने के बाद भेजता था. इंदरजीत ने अनेक मामलों में 20-20 लोगो को एक ही आरोप में बंद किया और उनके पास से किसी तरह की बरामदगी भी नहीं दिखाई.
6 जून 2014 को इंदरजीत ने तरनतारन में सात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की. पुलिस ने तीन लोगों के पास से हेरोइन की व्यावसायिक मात्रा बरामद की थी. बाद में इस मामले में अन्य 16 लोगों का नाम जोड़ दिया गया हालांकि उनके पास से कुछ भी बरामद नहीं किया गया था. इन सभी को जमानत पर छोड़ दिया गया क्योंकि इनके खिलाफ अदालत में चालान नहीं जमा किया गया था और साथ ही उनके यहां से कुछ बरामद भी नहीं हुआ था. इनमें कथित तौर पर मुख्य अभियुक्त गुरु प्रकाश सिंह नाम का एक दुकानदार था जिसे सनी नाम से भी लोग जानते थे. इंदरजीत ने इस मामले में सनी का नाम तो जोड़ा लेकिन एफआईआर को आधार बनाते हुए उसे अगले साल गिरफ्तार किया.
बाद के महीने में सनी को एक दूसरी एफआईआर पर गिरफ्तार कर लिया गया. उसने एसआईटी को बताया कि 26 जून को इंदरजीत अमृतसर में उसकी दुकान पर आया था और 20 लाख रुपए की मांग की थी. वह पैसे नहीं दे सका और फिर तीन दिन बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया. जिस समय वह जेल में था, उसकी 6 वर्ष की बेटी का निधन हो गया. उसके दाह संस्कार पर उसने प्रेस के लोगों को बताया कि इंदरजीत उससे पैसे वसूलने के लिए उसे धमकी दे रहा है. बताया जाता है कि उसने एसआईटी को कहा कि पैसे न देने की वजह से उसका नाम बाद में उस एफआईआर में जोड़ा गया जिसे हेरोइन जब्त किए जाने के समय दर्ज किया गया था. 7 जनवरी 2015 को जब उसे गिरफ्तार किया गया, कोई भी हीरोइन जब्त नहीं की गई थी.
इस मामले के आधार पर ही हुंडल ने इंदरजीत के डबल प्रमोशन की सिफारिश की थी, बावजूद इसके कि उसके खिलाफ एक विभागीय जांच चल रही थी जिसका आदेश खन्ना के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने दिया था. हुंडल ने होशियारपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की हैसियत से खुद ही 4 सितंबर 2014 को इंदरजीत को सभी आरोपों से बरी कर दिया.
एक दूसरा मामला सतरपाल सिंह नामक 18 वर्षीय छात्र से संबंधित है. उसे एनडीपीएस ऐक्ट के तहत तीन अलग-अलग मामलों में गिरफ्तार किया गया. उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज किए जाने के एक साल बाद उसे गिरफ्तार किया गया. सतरपाल ने एसआईटी को बताया कि उसके घर पर उस समय छापा मारा गया जब घर में कोई नहीं था. बाद में जब वह इंदरजीत के दलाल साहब सिंह से मिला तो कहा गया कि अगर इंदरजीत को 25 लाख रुपए दे दिए जाएं तो उन्हें राहत मिल सकती है. इस बीच इंदरजीत ने सतपाल के पिता प्रेम सिंह को भी उसके यहां से 200 ग्राम हेरोइन पाए जाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया.
सतरपाल के खिलाफ जो आरोप लगे थे उनमें से एक आरोप उसके पास एक किलोग्राम हेरोइन पाए जाने का भी था. एनडीपीएस ऐक्ट के अनुसार जब भी कहीं से नशीले पदार्थ जब्त किए जाते हैं तो उन्हें जल्द से जल्द फॉरेंसिक लेबोरेटरी में भेज दिया जाना चाहिए. लेकिन इंदरजीत की टीम ने जब्त किए गए नमूनों को कई महीने बाद लेबोरेटरी को भेजा. इसका नतीजा यह हुआ कि सभी आरोपियों को अदालत से जमानत मिल गई. बाद में एसआईटी को पता चला कि पंजाब के खरार में स्थित फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी को जो 50 नमूने भेजे गए थे, वे संदिग्ध परिणामों के साथ वापस लौट आए.
गुरजीत सिंह नामक एक अन्य व्यक्ति के मामले में इंदरजीत ने उसके घर से 60 लाख रुपए बरामद किए लेकिन रिकॉर्ड में महज 36 लाख दिखाया. इसके कुछ दिनों बाद तरनतारन के क्रिमिनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी में एक असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर और इंदरजीत के दलाल साहब सिंह के बहनोई बलविंदर सिंह ने गुरजीत सिंह के मकान पर फिर छापा डाला और वहां से उसके जेवर, घर के साज-सामान, फर्नीचर और यहां तक कि गुरजीत के कपड़े भी जब्त कर के ले गया. अंत में गुरजीत की पत्नी से कहा गया कि वह अपने घर की रजिस्ट्री के कागज बलविंदर के नाम कर दें. गुरजीत को तभी जमानत मिल सकी जब उसने 35 लाख रुपए दिए. उसका चालान काफी दिनों बाद अदालत में पेश किया गया.
एनडीपीएस ऐक्ट के अनुसार केवल असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर या इससे ऊंचे पद के अधिकारी ही ड्रग से संबंधित मामले दर्ज कर सकते हैं या उसकी छानबीन कर सकते हैं. हुंडल ने इस ऐक्ट के अंतर्गत लोगों को गिरफ्तार करने का अधिकार इंदरजीत को दे दिया था जबकि वह असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर भी नहीं था. एक सरकारी अधिकारी ने हमें बताया कि उसका असली पद हेड कांस्टेबल का था. इसकी वजह से अनेक आरोपी अदालत से बरी हो गए. अदालत में खुद इंदरजीत गवाहों के बयान लेने में, सामान जब्त किए जाने की तारीख या जब्त की गई गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन नंबर आदि डालने में तमाम तरह की विसंगतियां कर देता था, जिससे छूट पाना और भी ज्यादा आसान हो जाता.
एसआईटी ने अन्य वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के साथ इंदरजीत की सांठगांठ की भी छानबीन की. बताया जाता है कि हुंडल ने अपने बयान में एसआईटी से कहा था कि इंदरजीत ने उसके साथ महज 14 महीने काम किया था और उसके पहले के तथा बाद के अफसरों के साथ भी वह काम कर चुका था. एसआईटी ने 2012 के बाद से हुंडल की अर्जित संपत्ति की भी जांच शुरू कर दी थी और यह भी पता लगाने में जुटी थी संपत्ति खरीदने के लिए उसके पास पैसे के कौन से स्रोत थे.
पाया गया कि 15 जून 2006 को अमृतसर में इंदरजीत के खिलाफ एक मामला दर्ज हुआ था जो संबद्ध पुलिस स्टेशन की क्राइम डायरी से रहस्यमय ढंग से गायब कर दिया गया था. इंदरजीत के खिलाफ अनेक मामले भ्रष्टाचार निरोधी कानून के तहत राज्य के भ्रष्टाचार विरोधी निकाय के विजिलेंस ब्यूरो के समक्ष लंबित पड़े थे.
एसटीएफ ने 12 जून 2017 को इंदरजीत को कपूरथला से गिरफ्तार किया. जालंधर और फगवाड़ा में उसके दो सरकारी आवास से हेरोइन बरामद हुआ था. जालंधर के तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक संदीप कुमार शर्मा ने 16 जून को उसे बर्खास्त कर दिया. एक अन्य असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर और इंदरजीत के घनिष्ठ सहयोगी अजायब सिंह को भी बर्खास्त किया गया. ईडी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने हमें बताया कि ईडी को लिखे एक पत्र में चट्टोपाध्याय ने आरोप लगाया था कि इंदरजीत, हुंडाल और अन्य लोगों ने अवैध ढंग से कमाई गई धनराशि को छुपाया और ये लोग काले धन को वैध बनाने (मनी-लांड्रिंग) के धंधे में भी लगे रहे. लेकिन इस सिलसिले में उन्होंने कोई प्रमाण नहीं दिए.
जुलाई 2018 में पंजाब विजिलेंस ब्यूरो ने सभी हवाई अड्डों को एक लुक आउट नोटिस भेजा ताकि हुंडल को देश से बाहर जाने से रोका जा सके. इंदरजीत द्वारा ड्रग्स के धंधे का उन्हें सरगना बताने के बाद यह कदम उठाया गया. आज, इस घटना के तीन वर्ष बाद, हुंडल मोहाली स्थित विजिलेंस ब्यूरो के मुख्यालय में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के अत्यंत महत्वपूर्ण पद पर तैनात हैं.
इस रिपोर्ट के सिलसिले में पूछे गए सवालों का जवाब देने से हुंडल ने यह कह कर इनकार कर दिया कि यह मामला अभी अदालत में विचाराधीन है. लेकिन वह इस बात को दर्ज कराना चाहते थे कि उन्होंने ही अदालत से गुहार लगाई कि उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों की किसी एसआईटी से जांच कराई जाए. उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने अदालत से अनुरोध किया है कि उनसे संबंधित एसआईटी की रपट को सार्वजनिक किया जाए.
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने, जो अपना नाम जाहिर नहीं करना चाहता है, बताया कि पंजाब में टारगेटेड किलिंग्स के एक मामले की वजह से हुंडल के कुछ वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के साथ बहुत अच्छे संबंध थे. उस अधिकारी ने बताया कि "राज जीत उस टीम का सदस्य था जिसने एक महत्वपूर्ण मामले को सुलझाया. इस बीच ही राज जीत के खिलाफ ये मामले सामने आए. इस मामले के बाद राज जीत को धमकियां भी मिल रही थीं और विभाग ने तथा कुछ वरिष्ठ लोगों ने संभवत तय किया कि वे उसका साथ देंगे जबकि हाई कोर्ट द्वारा गठित एसआईटी ड्रग माफिया के साथ उसके संबंधों के आरोपों की जांच में लगी थी.
15 मार्च 2018 को, जब दूसरी एसआईटी की रिपोर्ट पेश की गई, चट्टोपाध्याय ने हाई कोर्ट से विशेष अनुरोध किया कि वह कुछ संवेदनशील मुद्दों पर जानकारी देना चाहते हैं. पंजाब के एडवोकेट जनरल के साथ उन्हें जज के चैंबर में बुलाया गया. चट्टोपाध्याय ने जजों को बताया कि उन्हें आत्महत्या के मामले से संबंधित एक केस के सिलसिले में दर्ज एफआइआर में गलत ढंग से फंसाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि "यह उन वरिष्ठ अधिकारियों के इशारे पर किया जा रहा है जिनकी राज जीत सिंह और इंदरजीत सिंह के साथ घनिष्ठ संबंध होने की भूमिका की जांच चल रही है."
यह एफआईआर प्रभप्रीत सिंह की एक शिकायत पर आधारित थी जिसके पिता इंदरप्रीत सिंह चड्ढा ने उस वर्ष जनवरी में आत्महत्या कर ली थी. 5 अप्रैल को हाई कोर्ट में दिए गए एक आवेदन के जरिए चट्टोपाध्याय ने बताया कि चड्ढा ने जो दो सुसाइड नोट लिखे थे, उनमें से किसी में उनका नाम नहीं था. उन्होंने आगे बताया कि उन नोट्स में कहा गया था कि चड्ढा इसलिए आत्महत्या कर रहा है क्योंकि "उसके खिलाफ एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें उसके पिता को एक स्कूल के प्रिंसिपल के साथ आपत्तिजनक स्थिति में दिखाया गया है और इससे उसकी जो बदनामी हुई, उसे वह बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है."
इस मामले की छानबीन के लिए अपराध शाखा के महानिरीक्षक एलके यादव की देखरेख में एक एसआईटी का गठन हुआ. अपने आवेदन में चट्टोपाध्याय ने बताया था कि उन दिनों से संबंधित मामले में उनकी खुद की छानबीन की चपेट में पंजाब के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक सुरेश अरोड़ा और उनके बाद अगले वर्ष इस पद पर नियुक्त होने वाले दिनकर गुप्ता आ गए थे. एक वरिष्ठ आयकर अधिकारी ने हमें बताया कि चट्टोपाध्याय ने अरोड़ा और गुप्ता की संपत्ति के आवश्यक दस्तावेज विभाग से मांगे थे. उस अधिकारी ने बताया कि उसने चट्टोपाध्याय को जवाब दे दिया के उसके पास इन दोनों का कोई विवरण नहीं है.
अरोड़ा और गुप्ता के इंदरजीत और हुंडल के साथ संबंधों की जांच चल रही थी. चट्टोपाध्याय ने अदालत को बताया "यह बताना जरूरी है कि ऊपर जिन वरिष्ठ अधिकारियों का उल्लेख किया गया है वे आईजीपी क्राइम एलके यादव के अधीन काम कर रही एसआईटी की टीम के सुपरवाइजरी ऑफिसर हैं." चट्टोपाध्याय ने आगे यह भी बताया कि "इनकी पदोन्नति, नियुक्तियां तथा कैरियर का आगे बढ़ना इन वरिष्ठ अधिकारियों के हाथ में होता है."
यादव ने 2 अप्रैल को चट्टोपाध्याय के पास एक प्रश्नावली भेजी. इसके अगले दिन शाम को एक प्रमुख अखबार के संवाददाता द्वारा भेजी गई वही प्रश्नावली उनके पास आई और इस पर उनकी टिप्पणी मांगी गई थी. 4 अप्रैल को यादव द्वारा की गई एसआईटी की जांच के सारे गोपनीय ब्योरे अखबार में प्रकाशित हो गए थे. चट्टोपाध्याय ने बताया कि "इससे साफ पता चलता है कि सारा खेल मुझे परेशानी में डालने के लिए तैयार किया गया था और इस बात की कोशिश की गई थी कि किसी तरह सार्वजनिक तौर पर मेरी छवि खराब हो." अपने आवेदन में चट्टोपाध्याय ने दलील दी थी कि एफआईआर में उनका नाम उन पर दबाव डालने के मकसद से डाला गया था ताकि ड्रग्स के मामले में उन्होंने छानबीन की जो दिशा ली है, उसे बदल दें. उन्होंने यह भी अनुरोध किया कि चड्ढा का मामला सीबीआई को अथवा हाईकोर्ट के किसी रिटायर्ड जज को हस्तांतरित कर दिया जाए.
7 अप्रैल को हाईकोर्ट ने चड्ढा के मामले में चट्टोपाध्याय के खिलाफ कार्यवाही पर रोक लगा दी. चट्टोपाध्याय की ओर से अधिवक्ता अनुपम गुप्ता ने अदालत को बताया कि आत्महत्या वाले मामले की जांच को हर घंटे अरोड़ा और गुप्ता मॉनिटर कर रहे हैं और इसके पीछे उनका एकमात्र उद्देश्य यह है कि कैसे चट्टोपाध्याय को "ठीक" किया जाए. उस दिन की सुनवाई के बाद एक बार फिर ड्रग ट्रैफिकिंग केस के कागजात और स्थिति रिपोर्ट तथा साथ ही यादव द्वारा चट्टोपाध्याय को परेशान किए जाने से संबंधित सभी संलग्नकों को हाई कोर्ट द्वारा सीलबंद कर दिया गया.
चड्ढा के मामले पर जो एसआईटी बनी थी उसकी निगरानी पंजाब पुलिस की जांच ब्यूरो के डायरेक्टर प्रबोध कुमार कर रहे थे जो चट्टोपाध्याय के नेतृत्व में बनी एसआईटी के भी एक सदस्य थे. कारवां के पास एक पत्र है जिसे 20 अप्रैल 2018 को प्रबोध् कुमार ने राज्य के गृह मामलों और न्याय विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव निर्मलजीत सिंह कालसी को भेजा था. उस पत्र में कुमार ने यह बताया था कि 15 मार्च 2018 को ड्रग्स के मामले में एसआईटी की दूसरी रिपोर्ट पेश किए जाने के बाद 5 अप्रैल तक एसआईटी की कोई भी औपचारिक अथवा अनौपचारिक बैठक नहीं हुई. ड्रग्स के मामले पर गठित एसआईटी के एक अन्य सदस्य कुंवर विजय प्रताप सिंह ने भी एक पत्र के जरिए बताया कि चट्टोपाध्याय ने उनको शामिल किए बिना जांच का काम जारी रखा. उन्होंने बताया कि हालांकि अप्रैल के महीने में दो बैठकें हुईं जिनमें प्रबोध ने भी भाग लिया लेकिन इन बैठकों में जांच से संबंधित किसी भी विषय पर चर्चा नहीं की गई.
दोनों अधिकारियों ने चड्ढा के मामले में अदालत में दिए गए चट्टोपाध्याय के आवेदन की जानकारी से इनकार किया. उन्होंने कहा कि चट्टोपाध्याय ने कभी उनसे उस कथित दबाव की चर्चा नहीं की जो एसआईटी जांच को प्रभावित करने के लिए वह झेल रहे थे. उन्होंने लिखा कि एसआईटी की सहमति के बगैर चट्टोपाध्याय इस जांच को अपने तरीके से चला रहे हैं लिहाजा वे इससे आज सहमत होते हुए खुद को जांच से अलग कर रहे हैं.
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने, जिसने अपना नाम जाहिर करना नहीं चाहा, बताया कि चड्ढा आत्महत्या मामले में चट्टोपाध्याय को महज पेश होने को कहा गया था और कुछ भी निष्कर्ष के तौर पर साबित नहीं हुआ था. लेकिन चूंकि चट्टोपाध्याय की महत्वाकांक्षा राज्य के डीजीपी बनने की थी, उन्होंने जांच पर रोक लगाने की कोशिश की और अरोड़ा तथा गुप्ता के नाम को इसमें लपेट लिया. हमने चट्टोपाध्याय से मिलने की कई बार कोशिश की लेकिन हम कामयाब नहीं हो सके.
फरवरी 2019 में दिनकर गुप्ता की नियुक्ति राज्य के पुलिस प्रमुख के पद पर हुई. इस नियुक्ति को मोहम्मद मुस्तफा और चट्टोपाध्याय ने फौरन चुनौती दी क्योंकि इस पद के लिए उनके नामों पर भी विचार हो रहा था और अमरिंदर सिंह सरकार द्वारा इस पद के लिए उम्मीदवारों की जो सूची तैयार की गई थी उन उम्मीदवारों की तुलना में इन दोनों की वरिष्ठता काफी थी. जनवरी 2020 में सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल (कैट) ने इस नियुक्ति को इस आधार पर रद्द कर दिया कि यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन ने चयन प्रक्रिया में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन किया और समूची प्रक्रिया में पक्षपातपूर्ण रुख अपनाया. यूपीएससी ने सूची में सम्मिलित करने के लिए गुप्ता सहित तीन अफसरों का चयन किया था. सरकार द्वारा जिन 12 नामों को अग्रसारित किया गया था उनमें इन तीनों के नामों को अन्य पांच नामों के नीचे रखा गया था.
सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल ने कहा कि चयन समिति को इसकी इजाजत नहीं है कि वह अपने मनमाफिक नियमों से काम करे और अंतिम तौर पर चयन तीन मानदंडों पर आधारित होना चाहिए: सेवाकाल, शानदार रिकॉर्ड और पुलिस फोर्स के नेतृत्व का व्यापक अनुभव. पैनल में नामों को रखने की प्रक्रिया में सुरेश अरोड़ा भी शामिल थे हालांकि ड्रग्स मामले पर सुनवाई चलने की वजह से उन्हें चट्टोपाध्याय की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट को रिकॉर्ड करने की इजाजत नहीं दी गई. लेकिन हाईकोर्ट ने गुप्ता के पक्ष में कैट के आदेश पर रोक लगा दी. हाई कोर्ट के आर्डर को चुनौती दिए जाने के बाद दिसंबर आते-आते सुप्रीम कोर्ट ने अरोड़ा, गुप्ता, यूपीएससी, पंजाब सरकार और साथ ही केंद्र सरकार को अपना जवाब दाखिल करने के लिए नोटिस भेजा.
अरोड़ा और गुप्ता दोनों ने इस मामले पर टिप्पणी करने से इनकार किया. गुप्ता ने दलील दी कि उनके पुलिस महानिदेशक के कार्यकाल के दौरान ड्रग्स से संबंधित मामलों से निबटने में पंजाब में उल्लेखनीय प्रगति हुई. उन्होंने कहा कि उनके कार्यकाल में पंजाब पुलिस ने करोड़ों रुपए के ट्रामाडोल और अल्प्राजोलम जैसे ओपियोड को दिल्ली, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश से जब्त किया. उन्होंने अगस्त 2020 में दिल्ली में हुई गिरफ्तारी की चर्चा की जिसमें बकौल उनके ऐसे बाप बेटे गिरफ्तार हुए थे जो अवैध ओपियोड व्यापार का लगभग 70% नियंत्रित करते थे और 17 राज्यों को ड्रग्स की सप्लाई करते थे. उन्होंने यह भी बताया कि 2017 से लेकर अब तक ड्रग के धंधे में लिप्त होने के आरोप में एक सौ से ज्यादा पुलिस अधिकारी नौकरी से निकाले जा चुके हैं.
2013 की सर्दियों में करोड़ों के ड्रग रैकेट का सार्वजनिक तौर पर पर्दाफाश हुआ. पंजाब पुलिस ने जगदीश सिंह भोला को गिरफ्तार किया. जगदीश सिंह भोला पूर्व में कुश्ती के क्षेत्र में पुरस्कार जीत चुका था. उसके और उसके सहयोगियों के निवास से 20 करोड़ रुपए की कीमत के ड्रग्स बरामद हुए थे. इन ड्रग्स में क्रिस्टल मेथामफेटामाइन के साथ ही एफेड्रिन और सूडो-एफेड्रिन नामक नशीले पदार्थ थे जिनका इस्तेमाल सिंथेटिक ड्रग्स के उत्पादन में किया जाता था.
भोला को इससे पहले के दशक में उस समय काफी बदनामी मिली थी जब नशे के कारोबार के आरोप में उसका अर्जुन पुरस्कार उससे वापस ले लिया गया और पंजाब पुलिस के उपअधीक्षक पद से उसे बर्खास्त किया गया. 2008 में वह नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की गहन निगरानी में था. लगभग इसी समय उपनिदेशक निरंजन सिंह के नेतृत्व में ईडी ने 25 मार्च 2013 को प्रिवेंशन ऑफ मनी लांड्रिंग ऐक्ट के तहत उसके खिलाफ मुकदमा कायम किया था. यह मुकदमा उस एफआईआर के आधार पर किया गया था जो उसी महीने फतहगढ़ साहिब में दर्ज हुआ था. बाद में इस मामले के साथ और अन्य सात एफआईआर जोड़ दी गई. भोला को 11 नवंबर को गिरफ्तार कर लिया गया.
इसके कुछ महीनों बाद जनवरी 2014 को ईडी ने उसका बयान दर्ज करने के लिए हिरासत में लिया. भोला ने ड्रग के कारोबार में अपनी भूमिका को स्वीकार किया लेकिन साथ ही मनिंदर सिंह औलख या बिट्टू तथा कनाडा में रहने वाले अनेक एनआरआई सहित कुछ और लोगों का नाम ड्रग के कारोबार से जुड़ा बताया. अन्य नामों में सतरप्रीत सिंह उर्फ सत्ता, परमिन्दर सिंह उर्फ भिंडी और अमरिंदर सिंह उर्फ लड्डी नाम शामिल था. लेकिन इनमें जो सबसे विस्फोटक नाम उसने लिया वह बिक्रम सिंह मजीठिया का था जो पंजाब के राजस्व मंत्री थे. आगे चलकर इस मामले को सीबीआई ने ले लिया लेकिन ईडी ने अवैध व्यवसाय से जुड़े मनी लांड्रिंग मामले की समानांतर जांच शुरू कर दी.
भोला ने बताया कि उसे जगजीत सिंह चाहल नामक व्यापारी ने ड्रग्स दिए थे. चाहल अनेक टायर कंपनियों और दवा बनाने वाली तीन इकाइयों का मालिक था. भोला के इस बयान के तीन दिन बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया. ईडी ने यह सुनिश्चित करने की कोशिश की कि कैसे दोनों आरोपी एक दूसरे को जानते थे. चाहल ने बताया कि उसकी मुलाकात सत्ता, पिंडी और लड्डी से बिट्टू के साथ तीन बार हुई थी. उसने ईडी को बताया कि "ये लोग मेरे पास सूडो एफेड्रिन खरीदने आए थे और बिट्टू औलख ने मुझसे कहा कि बिक्रम सिंह मजीठिया ने कहा है कि मैं उनकी मदद कर दूं." जहां तक मजीठिया के साथ चाहल के खुद के संबंध की बात है, यह संबंध कई साल पुराना लगता है. उसने अपने बाद के एक बयान में बताया कि 2007 और 2012 के बीच उसने कई किस्तों में मजीठिया को नकद के रूप में 35 लाख रुपए दिए थे क्योंकि उन्हें 'चुनाव के लिए पैसों की जरूरत थी.'
बिट्टू ने, जिसका बयान उसी दिन दर्ज किया गया जिस दिन चाहल ने बयान दिया, कहा कि "बिक्रम सिंह मजीठिया ने सतप्रीत सिंह सत्ता को अपने सबसे अच्छे दोस्त के रूप में मुझसे मिलाया और बताया कि मजीठा निर्वाचन क्षेत्र से एमएलए के उनके चुनाव अभियान का सारा काम सत्ता ही संभाल रहा है." चाहल ने ईडी को बताया कि सत्ता जब भी भारत आता मजीठिया के साथ ही रहता. उसने यह भी बताया कि "जब भी ये तीनों लोग भारत आते थे वे अमृतसर में ग्रीन एवेन्यू में मजीठिया के घर पर और चंडीगढ़ के सेक्टर 39 में आवंटित मजीठिया के सरकारी निवास पर रुकते थे."
बिट्टू ने आगे बताया कि, "जिन दिनों सतबीर सिंह सत्ता पंजाब में रुकता था बिक्रम सिंह मजीठिया उसे एक ड्राइवर और एक गनमैन के साथ इनोवा गाड़ी देते थे."
एसटीएफ की रिपोर्ट के अनुसार चाहल ने यह भी बताया कि बिट्टू और शिरोमणि अकाली दल के एक एमएलए बोनी अमरपाल सिंह अजनाला मजीठिया के साथ खनन के एक कारोबार में भी शामिल थे. एसटीएफ का कहना था कि रेत के खनन का मामला भी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि संभवत: यही ड्रग के अवैध धंधे वाला भी समय है जिसकी वह जांच कर रहा है. इन्हीं दिनों 2007 के बाद की अवधि में वह पंजाब सरकार में मंत्री थे लिहाजा कुछ और जांच के जरिए इसकी पुष्टि करने की जरूरत है.
26 दिसंबर 2014 को ईडी के तत्कालीन सहायक निदेशक निरंजन सिंह ने मजीठिया से पूछताछ की. ईडी के दिल्ली मुख्यालय से एक विशेष निदेशक जालंधर गया और पूछताछ के समय वह लगातार वहां मौजूद रहा. मजीठिया ने सत्ता के साथ अपने संबंधों को उन्होंने बहुत कम कर के दिखाया और उनके बीच हुई मुलाकातों को भी उन्होंने बहुत साफ साफ ढंग से नहीं बताया. उन्होंने जांच करने वाले अफसरों से कहा, ‘‘आप तो जानते ही हैं कि पंजाबी कल्चर में सत्ता, सत्ती, सुखी, मुखी, जग्गा, जग्गी जैसे ढेर सारे नाम होते हैं. कृपया मुझसे किसी खास नाम वाले के बारे में पूछें क्योंकि सतप्रीत सत्ता जैसे बहुत सारे लोग हो सकते हैं.’’
सत्ता के साथ अपने संबंधों के बारे में मजीठिया ने कुछ भी साफ तौर पर नहीं बताया. बस यही कहा कि "हो सकता है कि वह कुछ दिनों तक मेरे साथ ठहरा हो" लेकिन उसके साथ या विदेश में रहने वाले किसी अन्य व्यक्ति के साथ पैसों से संबंधित किसी तरह के लेनदेन से इनकार किया. बिट्टू के बारे में उन्होंने कहा कि ‘‘वह अमृतसर का एक मशहूर व्यक्ति है जो अपने परिवार के साथ राजनीति में सक्रिय है और इसीलिए मैं उसे जानता हूं.’’
कारवां के पास जमीन से जुड़े कुछ दस्तावेज हैं जिनसे पता चलता है कि महज राजनीतिक होने के नाते नहीं बल्कि और कारणों से भी मजीठिया तथा बिट्टू के बीच घनिष्ठ संबंध थे. बिट्टू की ही मदद से मजीठा में 1.37 एकड़ के फॉर्म हाउस का स्वामित्व मजीठिया की पत्नी गनीव कौर के नाम हस्तांतरित किया जा सका था. इस संपत्ति के पॉवर ऑफ अटार्नी में भी उसकी ही भूमिका थी. दरअसल यह जमीन मूल रूप से बिट्टू के मामा पाल सिंह की थी.
अप्रैल 2016 में ईडी के सामने अपना कबूलनामा दर्ज कराते हुए बिट्टू ने इस बात का उल्लेख किया था कि इस जमीन के हस्तांतरण की प्रक्रिया में वह ‘‘गवाह’’ था और यह भी बताया था कि कुछ महीने बाद पाल सिंह की मृत्यु हो गयी थी. लेकिन ईडी को या पंजाब पुलिस को इस बात का वह कोई प्रमाण नहीं दे सका कि गनीव कौर ने उतने पैसों का भुगतान किया था जितने की वह संपत्ति थी. ईडी के एक अधिकारी ने बताया कि पाल सिंह का महज एक बैंक में खाता था और उस खाते में जमीन की खरीद फरोख्त से संबंधित कोई भी राशि जमा नहीं की गई थी. उसने कहा कि ‘‘प्रमाण के तौर पर अब तक जो भी दस्तावेज पेश किए गए हैं उनमें यह नहीं दिखाया गया है कि इस सौदे के एवज में कोई धनराशि दी गई."
इससे स्वाभाविक रूप से यह अटकल लगाई गई कि हो सकता है यह संपत्ति ड्रग से संबंधित किसी धंधे में बतौर घूस दी गई हो. भोला ड्रग केस की जांच कर रहे पीएचआरओ द्वारा सितंबर 2018 में दिए गए एक हलफनामें के अनुसार, ‘‘योजना के मुताबिक बिट्टू से बताया गया कि कच्चे माल/रसायन की क्वालिटी अच्छी नहीं थी और यह सौदा रद्द किया जाता है. दूसरी तरफ मजीठिया, सत्ता, चाहल और पिंडी ने उत्तरी अमेरिका सहित विदेशों में स्यूडोएफेड्रिन इत्यादि की सप्लाई का धंधा शुरू कर दिया. बिट्टू औलख द्वारा रखी गयी अग्रिम राशि (सत्ता और चाहल के बीच ड्रग संबंधी सौदे के एवज में मिली) को वापस मांगा गया और तब बिट्टू ने उन पैसों के बदले एक प्रॉपर्टी मजीठिया की पत्नी गनीव कौर के नाम हस्तांतरित ेह.’’
13 फरवरी को मोहाली सीबीआई कोर्ट ने इस मामले में चाहल को सजा दी लेकिन बिट्टू इससे बरी हो गया. लेकिन ईडी के मनी लांडरिंग केस में बिट्टू अभी भी एक आरोपी है.
कारवां ने मजीठिया को कुछ सवालों की जो सूची भेजी थी उसका उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.
ड्रग के धंधे के सिलसिले में और साथ ही इसकी मदद में राजनीतिज्ञों और पुलिस की साठगांठ से संबंधित एक जनहित याचिका पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में 2013 से ही लंबित पड़ी है. अदालत ने शुरूआती तौर पर इस मामले में पंजाब सरकार और केंद्र सरकार को अभियोजित किया लेकिन समस्या की नजाकत को देखते हुए इसने ईडी को, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो को और केंद्रीय वित्त मंत्रालय को भी नोटिस भेजा. इस जनहित याचिका को दिसंबर 2013 में उस समय और मजबूती मिली जब लायर्स फॉर ह्यूमन राइट्स इंटरनेशनल की ओर से एडवोकेट नवकिरन सिंह ने हस्तक्षेप करते हुए एक आवेदन दिया. इसके नतीजे के तौर पर पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ में नशीले पदार्थों के खतरों से संबंधित विभिन्न मामलों की सुनवाई करने वाली खंडपीठों ने अनेक आदेश जारी किए. 21 जुलाई 2014 को उच्च न्यायालय ने पंजाब सरकार से इस आशय का हलफनामा चाहा कि ‘कितने लोग गिरफ्तार किए गए’, ‘इस नशे के आदी कितने लोग पकड़े गए’ और ‘क्या सरकार द्वारा ऐसा कोई कदम उठाया गया जिनसे उन दोषियों को जो विदेश में रह रहे हों प्रत्यापित करने की मांग की गई और अगर ऐसा है तो उसका ब्यौरा दिया जाए.’
2015 में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट को निर्देश दिया कि ड्रग से संबंधित सभी मामलों की सुनवाई के लिए वह एक विशेष खंडपीठ का गठन करे. लेकिन जांच के काम को - खासतौर पर ईडी में- कैसे आगे बढ़ाया जाए, इस बारे में संघर्ष जारी रहा.
16 जनवरी को मजीठिया से हुई पूछताछ के बाद जल्दी ही निरंजन सिंह का तबादला ईडी के कोलकाता आफिस में कर दिया गया. इसके कुछ दिनों बाद हाई कोर्ट ने इस तबादले पर रोक लगा दी. कोर्ट का यह निर्देश नवकिरन सिंह द्वारा दायर एक जनहित याचिका के जवाब में था जो उन्होंने एलएफएचआरआई की ओर से दायर की थी. इसमें कहा गया था कि जांच के कार्य को पूरा करने के लिए निरंजन की भूमिका जरूरी है. तो भी जांच का काम कुछ खास आगे नहीं बढ़ सका.
जब हमने नवकिरन से बातचीत की तो वह निरंजन पर भड़क उठे. उन्होंने कहा कि ‘‘निरंजन ने महज एक बार मजीठिया को पेश होने के लिए कहा और उनका कोलकाता तबादला हो जाने के बाद मैंने इस तबादले को रोकने के लिए एक जनहित याचिका दायर की. ... लेकिन इस तबादले के रोके जाने के बाद भी बिक्रमजीत सिंह मजीठिया से संबंधित मामले में वह आगे छानबीन करने में असमर्थ रहे. ऐसा क्यों हुआ इसका कारण बस वही बता सकते हैं.’’
अगले वर्ष 24 जून 2016 को मजीठिया को एक बार फिर ईडी आफिस तलब किया गया लेकिन वह नहीं आए. इसके कुछ महीनों बाद निरंजन को तरक्की दे दी गई और डिप्टी डायरेक्टर बना दिया गया. अप्रैल 2017 में ईडी ने हाई कोर्ट में एक आवेदन देकर मांग की कि उनके स्थान पर नए जांच अधिकारियों को नियुक्त किया जाए. हाई कोर्ट ने ईडी को इस बात की अनुमति दे दी कि वह इस काम के लिए दो सहायक निदेशकों की नियुक्ति कर दे लेकिन साथ ही यह भी आदेश दिया कि निरंजन इस छानबीन को मॉनीटर करे और इसकी देखरेख करे. मार्च 2015 और जुलाई 2017 के बीच निरंजन ने 68 आरोपियों के खिलाफ सात चालान दायर किए. उसके बाद से नए जांच अधिकारियों द्वारा कोई भी नया चालान नहीं जारी किया गया.
दीपक चौहान ने औपचारिक तौर पर 8 जनवरी 2018 को भोला ड्रग केस अपने हाथ में लिया लेकिन इसके साथ ही वह लंबी छुट्टी पर चले गए. इस दौरान हरप्रीत सिद्धू के अधीन एसटीएफ ने अपनी रिपोर्ट जमा की और कहा कि ईडी द्वारा दर्ज किए गए बयानों और इसके द्वारा की गई कार्रवाई के आधार पर यह स्पष्ट हो गया कि सत्ता, लड्डी और पिंडी ड्रग्स की तस्करी और मनीलॉडरिंग मामले में शामिल थे. एसटीएफ ने इस बात पर भी जोर दिया कि सत्ता और पिंडी को अन्य लोगों के अलावा मजीठिया द्वारा किस सीमा तक मदद और सहूलियत मिली, इसकी और भी जांच की जानी चाहिए.
उसी वर्ष मार्च में निरंजन ने हाई कोर्ट को जानकारी दी कि ईडी में उसके वरिष्ठ अफसर उसे धमका रहे हैं कि आदेशों का पालन न करने की वजह से उसे मुअत्तल कर दिया जाएगा. उसने सीलबंद लिफाफे में स्टेटस रिपोर्ट फाइल की और कोर्ट को बताया कि मनी लांडरिंग से संबंधित मामले कानून के अनुसार चल रहे हैं और इस सिलसिले में कुछ और साक्ष्य जुटाने का प्रयास किया जा रहा है. हाई कोर्ट ने केंद्रीय गृह तथा विदेश मंत्रालयों से भी स्टेटस रिपोर्ट सील बंद लिफाफे में मांगी ताकि पता चले कि इस मामले में इंटरपोल नोटिसें कब जारी की हुईं. इसने मंत्रालयों से यह भी कहा कि पंजाब पुलिस ने जिन लोगों के ब्यौरे भेजे हैं उनके प्रत्यार्पण की कार्रवाई को तेज किया जाए.
23 मई 2018 को पंजाब सरकार ने एक सीलबंद लिफाफे में एसटीएफ रिपोर्ट पर अपनी स्थिति पर बयान किया और साथ में एक संक्षिप्त हलफनामा भी दिया. उस दिन जारी एक आदेश में जस्टिस सूर्यकांत और शेखर धवन की उच्च न्यायालय की पीठ ने एक आदेश जारी करते हुए कहा कि अदालत एसआईटी द्वारा भेजी गई रपटों का बारीकी से अध्ययन करेगी. इसमें कहा गया था, ‘‘जुडीशियल रजिस्ट्रार इन सीलबंद रपटों / समूचे रेकॉर्ड को उस दिन और उस समय पर हमारे सामने पेश करेंगे जिसकी अलग से उन्हें जानकारी दी जाएगी ताकि हम इन रपटों का गहन अध्ययन कर सकें.’’
राज्य सरकार की रिपोर्ट और हलफनामा को अभिलिखित कर लिया गया और वे रजिस्ट्रार द्वारा अदालत में पेश किए जाने के लिए एक सीलबंद लिफाफे में वहां पड़े हैं. तब से अब तक कोई भी उल्लेखनीय आदेश नहीं जारी हुआ है.
अक्तूबर 2018 में इंदरजीत सिंह का मामला, जिसके यहा से एसटीएफ ने पिछले वर्ष ड्रग्स, हथियार और नगदी बरामद किए थे, निरंजन के हाथ से ले लिया गया. अगले दिन निरंजन ने नौकरी से इस्तीफा दे दिया. इसके कुछ दिनों बाद 11 अक्टूबर को उसने हाईकोर्ट और ड्रग्स के मामलों में जनहित याचिका की ओर से पेश वकीलों की इच्छा के अनुरूप अपना इस्तीफा वापस ले लिया.
21 जनवरी 2019 को एलएफएचआरआई ने एक और आवेदन दिया जिसमें कहा गया था कि 2013 के ड्रग्स मामले के सार संक्षेप को अभिलिखित किया जाए ताकि वरीयता के आधार पर इससे निपटा जा सके. तब से ही यह मामला लगातार स्थगित होता जा रहा है. 2020 में कोविड-19 महामारी की वजह से इसमें विलंब हुआ. इस वर्ष 16 अप्रैल को नवकिरन ने एलएफएचआरआई की ओर से दो और आवेदन हाई कोर्ट के समक्ष पेश किए. इनमें से एक में अनुरोध किया गया था कि पंजाब सरकार द्वारा पेश की गयी रिपोर्ट को हाई कोर्ट अभिलिखित करे. दूसरे आवेदन में कोर्ट से अनुरोध किया गया था कि अंतर्राष्ट्रीय ड्रग कारोबार में शामिल 13 भगोड़ों के प्रत्यार्पण के सिलसिले में विदेश मंत्रालय से स्थिति रिपोर्ट प्राप्त की जाए. इस मामले पर अभी भी कनाडा की सरकार द्वारा विचार किया जा रहा है.
अमृतसर जिले के गांव चाटीविंड लहल के सरपंच ने कहा, ‘‘इन नशीले पदार्थों का आतंक इस सीमा तक बढ़ने का कारण अगर आप सचमुच जानना चाहते हैं तो बड़े राजनीतिक नेताओं और पुलिस वालों से बात करो.’’ यह 2019 के जाड़े का दिन था और समूचा गांव ड्रग के ओवरडोज की वजह से मृत दो लोगों के शोक में डूबा हुआ था. उनकी लाशों के पास चारो तरफ कुछ सिरिंज पड़ी हुई थीं. उनकी मृत्यु का समाचार पंजाबी भाषा के सबसे ज्यादा प्रसार वाले अखबार अजित में छपा था. एसटीएफ के सदस्य इन मौतों के बारे में बयान लेने के लिए पहुंचे लेकिन मृतकों के परिवार के लोगों ने बिना कोई बयान दिए उन्हें वहां से भगा दिया. मृतक के एक भाई ने कहा, ‘‘अगर अभी पोस्टमार्टम होता है तो हम और भी बहुत सारी मुसीबतों में पड़ जाएंगे. हम गरीब लोग हैं और हम नहीं चाहते कि ऐसे किसी पचड़े में पड़ें.’’
सरपंच ने हमें बताया कि परिवार के सामने किस तरह की दिक्कतें आ सकती थीं. पुलिस उनसे लगातार यह पूछती कि मृतकों के पास ड्रग कहां से आया और इसी तरह के और भी सवाल करती. इलाके के लोग पहले से ही चिट्टा (हेरोइन तथा अफीम से बने नशीले पदार्थों के लिए पंजाबी में प्रचलित शब्द) की सप्लाई के लिए एक दूसरे के गांव को दोषी ठहराते हैं. सरपंच ने हमसे कहा, ‘‘एक चक्कर रायपुर कलान का लगा लीजिए और आपको पता चल जाएगा कि इनकी सप्लाई कौन करता है.’’
नशीले पदार्थों का इस्तेमाल करने वालों को जिस तरह के अपराधीकरण का सामना करना पड़ता है, उसे देखते हुए यह शिथिलता वाजिब लगती है. मानसा में 20 वर्षीय धरमप्रीत सिंह की मौत के बाद पुलिस ने उसके उन तीन दोस्तों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जिनके साथ उसने कथित तौर पर हेरोइन का सेवन किया था. धरमप्रीत की मां ने अपने बेटे की मौत के लिए उसके दोस्तों को जिम्मेदार ठहराया. उसकी मां ने एफआईआर में कहा कि, ‘‘ये तीनों लड़के मेरे बेटे को नशे के लिए ले जाते थे और फिर उसे ये लोग बेहोशी की हालत में यहां छोड़ गए.’’ तीनों आरोपियों की उम्र 20 से 30 साल के बीच थी और उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 304 के अंतर्गत दोषी बनाया गया जिसका अर्थ था गैरइरादतन की गयी हत्या.
मानसा में ही सुनील नामक एक अन्य 22 वर्षीय लड़के की मौत हो गई जिसने बहुत ज्यादा मात्रा में ड्रग का सेवन किया था. मृतक के परिवार के सदस्यों ने एक स्थानीय पुलिसकर्मी पर आरोप लगाते हुए कहा कि उसने ही "सिटी-2 के पुलिस थाने से चिट्टा की सप्लाई की थी.’’ एक रिश्तेदार ने अपना नाम जाहिर न करने का अनुरोध करते हुए बताया कि ‘‘मेरा भाई न केवल नशे का सेवन करता है बल्कि बेचता भी है और उसके पास नशे की सप्लाई थाने के एक पुलिस द्वारा की जाती है.’’
ऐसी बहुत सारी खबरें देखने को मिलती हैं जिसमें जेल के अंदर बंद विचाराधीन कैदी अपने मोबाईल फोन की मदद से ड्रग्स का धंधा करते हैं. 2018 में रूपनगर पुलिस ने जसपाल सिंह के खिलाफ, जो पहले से ही कपूरथला सेंट्रल जेल में बंद था, एनडीपीएस ऐक्ट के अंतर्गत दो प्राथमिकी दर्ज की. इस सिलसिले में जिले के अलग अलग हिस्सों से नशे का धंधा करने वाले चार लोगों को गिरफ्तार किया गया जिनके पास व्यापारिक मात्रा में अर्थात 250 ग्राम से अधिक हेरोइन मिली. इन सभी ने दावा किया कि उन्होंने जसपाल के निर्देश पर ही इसे खरीदा था.
इस तरह के बढ़ते मामलों को देखकर एसटीएफ ने समूचे राज्य की जेलों में ‘जैमर’ लगाने का प्रस्ताव रखा ताकि मोबाईल काम न कर सके. यह प्रस्ताव अभी गृह मंत्रालय में लंबित है. जेलों से संबंधित पुलिस के अतिरिक्त महानिदेशक प्रवीण कुमार सिन्हा ने बताया कि "4जी जैमर्स" लगाने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की दो एजेंसियों को कहा गया है लेकिन ‘फंड की कमी की वजह से’ यह काम अभी तक नहीं हो सका. सिन्हा ने आगे बताया कि, "हमारे पंजाब की जेलों में तकरीबन 30 प्रतिशत कैदी नशे के आदी हैं और तकरीबन 50 प्रतिशत ऐसे हैं जिन्हें एनडीपीएस ऐक्ट के तहत गिरफ्तार किया गया है. हमारी जेलें विचाराधीन कैदियों से भरी हुई हैं."
मामला और भी ज्यादा उलझ जाता है जब खुद पुलिस को ड्रग्स का इस्तेमाल करते हुए पाया जाता है. दिसंबर 2019 में हमने जब अमृतसर में ऐंटी नारकोटिक्स सेल की एक चौकी का दौरा किया तो पाया कि उसके दरवाजे अंदर से बंद थे. हम लगातार दरवाजे पर दस्तक देते रहे और दरवाजा भी तब खुला जब उसका एक साथी शोर सुनकर आया और उसने ही अंदर से दरवाजे को खोला. दरवाजा खुलने पर हमने पाया कि नशे में धुत एक सिपाही आधी नींद में वहां बैठा हुआ था. जब उन्हें पता चला कि पंजाब में ड्रग्स की समस्या पर कोई रिपोर्ट तैयार करने के लिए पत्रकार आए हैं तो उन्होंने कुछ विशेष ध्यान देना शुरू किया.
ड्यूटी पर तैनात हेड कांस्टेबल ठीक से बोल भी नहीं पा रहा था. उनके अंदर इस बात का भी भय नहीं दिखाई दे रहा था कि उनका पर्दाफाश हो जाएगा. अगले दिन अमृतसर के पुलिस कमिश्नर सुखचैन सिंह गिल ने फोन पर हमसे कहा कि, ‘‘आपने अगर हमें कल रात फोन कर दिया होता तो हम उनका डोप टेस्ट करा देते... फिर भी मैं इस मामले को देखूंगा. उस हेड कांस्टेबल की डॉक्टरी जांच करानी होगी.’’
हमारी इस यात्रा से कुछ ही महीने पहले पीटीआई ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसका शीर्षक था- ‘‘पंजाब के अमृतसर में 15 पुलिसकर्मी डोप टेस्ट में नशे के आदी पाए गए.’’ लगभग उन्हीं दिनों तरणतारण जिले की पुलिस ने 38 पुलिसकर्मियों का डोप टेस्ट कराया था जिनमें से 26 नशेड़ी पाए गए. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के अनुसार इनमें से दो को ‘‘ड्रग्स के धंधे में उनकी भूमिका’’ की वजह से नौकरी से निकाल दिया गया.
इस समय तक अमरिंदर सिंह दावा कर रहे थे कि इस मामले में उल्लेखनीय प्रगति हुई है.
4 दिसंबर 2019 को अमरिंदर सिंह ने टाइम्स आफ इंडिया में लिखा :
‘‘इस बरबादी से युवकों को बचाने की कसम खा कर मेरी सरकार द्वारा राज्य की बागडोर संभाले जाने के ढाई वर्ष से भी ज्यादा समय बीत जाने के बाद आज हम इस हालत में नहीं हैं कि अतीत की तरह लाचार बन कर सब कुछ देखते रहें. हमने पूरी ताकत के साथ नशे का धंधा करने वालों के खिलाफ हथियार उठा लिया है.’’
अमरिंदर ने लिखा कि भले ही उन्हें किसी भी साधन का इस्तेमाल क्यों न करना पड़े, वह इस लड़ाई को इसके तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध हैं. नशीले पदार्थों के खतरे के खिलाफ उनकी सरकार ने अब तक क्या क्या किया है, इसकी उन्होंने एक लंबी सूची दी. बेशक, उन्होंने जो तस्वीर खींची उसमें इस बात का कहीं उल्लेख नहीं था कि इस धंधे में पुलिस की साठगांठ और राजनीतिक तौर पर मिल रहे संरक्षण के खिलाफ उन्होंने कौन से उपाय किए.
पंजाब के एक पूर्व पुलिस महानिदेशक सर्वदीप सिंह विर्क 2006 की एक घटना को याद करते हैं. पंजाब के शहीद भगतसिंह नगर जिले के नवांशहर नामक कस्बे में ड्रग्स के मामले में एक वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक का नाम सुनाई देने लगा. ‘‘मैंने उस समय मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से कहा कि "किंगशिप नोज नो किनशिप" यानी राजकाज में रिश्तेदारी नहीं देखी जाती. (2002 से 2007 के बीच भी अमरिंदर सिंह ही पंजाब के मुख्यमंत्री थे). विर्क ने उस वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की भूमिका की जांच करने की बात कही लेकिन बकौल विर्क ‘‘शाही तबीयत के होने की वजह से अमरिंदर सिंह ने मुझे ऐसा करने से रोक दिया.’’ विर्क का कहना था कि उस पुलिस अधीक्षक को इसलिए छोड़ दिया गया क्योंकि उसने उन दिनों बादल परिवार पर छापा डालकर कांग्रेस की सरकार को अपना एहसानमंद बना लिया था.
विर्क का कहना है कि इन सबके बावजूद उन्हें हालात की गंभीरता से मुख्यमंत्री को अवगत कराने में कामयाबी मिली और उन्होंने ‘‘एनडीपीएस ऐक्ट के तहत लगभग 30-40 नामीगिरामी लोगों को पकड़ा. ड्रग के कारोबार को फलने फूलने से पहले ही खत्म कर देने के प्रयास में जो छुपे तौर पर छानबीन चल रही थी, उसी के बीच भोला का नाम सामने आया था.’’ भोला को ऐन वक्त पर किसी ने खबर कर दी और वह भाग गया. विर्क ने बताया कि बाद में उन्हें पता चला कि एक अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक ने ही संभावित गिरफ्तारी की जानकारी भोला को देकर सतर्क किया था. इसके कुछ ही समय बाद विर्क को महाराष्ट्र पुलिस की जिम्मेवारी सौंप दी गयी. बाद में राज्य के खुफिया तंत्र में तैनात उनके कुछ लोगों ने उन्हें बताया कि 2013 में बड़े पैमाने पर नशीले पदार्थ जब्त किए गए और इस धंधे में पंजाब पुलिस के एक व्यक्ति की संलिप्तता पाई गई. उन्हें यह अनुमान लगाने में तनिक भी देर नहीं लगी कि वह व्यक्ति जगदीश सिंह भोला था.
अगले कुछ वर्षों तक बादल सरकार के शासनकाल में भोला ड्रग केस बस यूं ही अदालतों में चलता रहा. 2017 में अमरिंदर सिंह के दुबारा सत्ता में आने के बाद लोगों को उम्मीद थी कि अब, खासतौर पर मजीठिया के मामले में, कुछ ठोस कार्रवाई होगी.
इसकी बजाए आगामी विधानसभा चुनाव की गहमा गहमी के साथ ऐसा लगता है कि मजीठिया और भी फलते-फूलते जा रहे हैं. वह मजीठा विधानसभा की अपनी सीट बचाए रखने के लिए संघर्ष करेंगे. इस वर्ष फरवरी में मजीठिया की एक तस्वीर प्रकाशित हुई जिसमें वह अपनी पार्टी के सहयोगी बोनी अजनाला के साथ विजय का ‘वी’ निशान बनाते हुए खड़े हैं. बोनी अजनाला वही व्यक्ति हैं जिन्होंने 2016 में ड्रग का धंधा करने वाले सत्ता और पिंडी के साथ मजीठिया की कथित साठगांठ के बारे में तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल को पत्र लिखा था. ये दोनों नेता स्थानीय म्युनिसिपल चुनावों में अकाली उम्मीदवारों की जीत का जश्न मना रहे थे.
इस दौरान ड्रग्स से संबंधित मामला अदालत में घिसटता रहा. हाई कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए 15 नवंबर 2021 की तारीख तय की. नवकिरन ने बताया कि यह सुनवाई 9 अगस्त को करने के लिए एलएफएचआरआई ने एक आवेदन दिया है. इस आवेदन में कहा गया है कि, ‘‘मामला राज्य में काम कर रहे ड्रग माफिया से संबंधित है जिसके अंतर्राष्ट्रीय संबंध हैं और जिसे अत्यंत तीव्र गति से सुनवाई करने के आधार पर देखा जाना चाहिए क्योंकि यह पंजाबी युवकों के जीवन को प्रभावित कर रहा है.’’
नवकिरन ने एक बार फिर इस तथ्य की ओर इशारा किया कि एसटीएफ की रिपोर्ट को प्रस्तुत किए जाने के तीन वर्ष से भी अधिक का समय बीत जाने के बाद राज्य सरकार ने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की जबकि इस रिपोर्ट में कुछ वरिष्ठ राजनीतिज्ञों और पुलिस अधिकारियों की संलिप्तता का जिक्र था. चट्टोपाध्याय ने अपनी एसआईटी जांच में दिनकर गुप्ता और सुरेश अरोड़ा का नाम लिया था लेकिन इस रिपोर्ट के आने के 10 महीने बाद ही अमरिंदर सिंह की सरकार ने दिनकर गुप्ता की पदोन्नति पंजाब पुलिस के महानिदेशक के पद पर कर दी. राज जीत सिंह हुंडल विजिलेंस ब्यूरो में बने हुए हैं और उन्हें कभी भी बर्खास्तगी का सामना नहीं करना पड़ा.
13 अगस्त को न्यायमूर्ति राजन गुप्ता और अजय तिवारी की पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की एक विशेष खंडपीठ ने इन आवेदनों पर सुनवाई दो हफ्तों के लिए स्थगित कर दी. आदेश में कहा गया था कि ऐसा इसलिए करना पड़ा क्योंकि ‘‘इस पीठ का गठन हाल ही में किया गया और 2-3 वर्ष पहले की जमा जांच रपटों पर जल्दी काम करना जरूरी है.’’ इसमें आगे कहा गया था कि ‘‘अदालत को यह जानकारी दी गई कि ये रपटें रजिस्ट्रार के पास हैं. जल्दी सुनवाई करने से संबंधित मौजूदा आवेदन पर कोई आदेश जारी करने से पूर्व रजिस्ट्रार (जुडीशियल) को निर्देश दिया जाता है कि सुनवाई की अगली तारीख से पहले वह इन रपटों को चैंबर में लेकर आएं.’’ मामले की सुनवाई के लिए 1 सितंबर की तारीख तय की गई. अजय तिवारी ने खुद को इस पीठ से अलग कर लिया. अब यह मामला मुख्य न्यायाधीश के आदेश पाने के बाद नई पीठ के समक्ष पेश किया जाएगा.
(अंग्रेजी कारवां के सितंबर 2021 अंक में प्रकाशित इस कवर स्टोरी का अनुवाद आनंद स्वरूप वर्मा ने किया है. मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)