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वरिष्ठ अधिवक्ता ए मारियारपुथम अदालत में एक महत्वपूर्ण दिन के लिए तैयार थे. उन्हें देश के सबसे बड़े आतंकी हमलों में से एक में पांच आरोपियों के खिलाफ, भारत की प्राथमिक आतंकवाद विरोधी टास्क फोर्स -राष्ट्रीय जांच एजेंसी- के वकील बतौर सुप्रीम कोर्ट की एक खंडपीठ के सामने 15 अप्रैल 2015 को पेश होना था. 29 सितंबर 2008 को इस्लाम के अनुयाइयों के लिए पवित्र रमजान के महीने के दौरान उत्तर-पश्चिमी महाराष्ट्र के मुस्लिम बहुल शहर मालेगांव में एक मोटरसाइकिल में छुपाए गए दो बम फटे थे जिसमें छह लोग मारे गए थे और एक सौ से अधिक घायल हो गए थे. उसी दिन गुजरात के एक कस्बे मोडासा के मुस्लिम बहुल सुक्का बाजार इलाके में एक मस्जिद के पास एक और बम धमाका हुआ था.
सभी आरोपी एक हिंदू उग्रवादी समूह के सदस्य थे जिसका नाम अभिनव भारत था. अभिनव भारत से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कई वरिष्ठ नेताओं का संबंध था. सात साल बाद जब मरियारपुथम मामले पर न्यायाधीशों को संबोधित करने के लिए उठे, तब तक नरेन्द्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी, जो आरएसएस की राजनीतिक शाखा है, लगभग एक साल से केंद्र में सत्ता में थी. मारियारपुथम ने उस दिन अदालत के लिए जो जिरह तैयार की थी, बीच में ही रोकनी पड़ी.
सुनवाई प्रज्ञा सिंह ठाकुर और मामले में कई अन्य प्रमुख आरोपियों द्वारा दायर एक मामले से संबंधित थी, जिसमें महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम यानी मकोका के तहत उनके मुकदमे को चुनौती दी गई थी. मकोका उन मामलों में लगाया जाने वाला सख्त कानून है जिसमें आरोपित बार-बार गैरकानूनी गतिविधियों को अंजाम देते हैं.
ठाकुर पहले आरएसएस की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य रह चुकी हैं. अभियोजन पक्ष के लिए मकोका के तहत ठाकुर पर मुकदमा चलाना जरूरी था क्योंकि कानूनन पुलिस के सामने स्वीकार किए गए इकबालिया बयान अदालत में मान्य नहीं होते. अपने इकबालिया बयानों में, तीन आरोपियों ने दावा किया था कि अभिनव भारत ने हथियारों का एक बड़ा जखीरा एकत्र किया था और ठाकुर ने हमले से दो साल पहले मध्य प्रदेश के पचमढ़ी में एक प्रशिक्षण शिविर में आतंकी सेल के अन्य सदस्यों से मुलाकात की थी. गवाहों के इकबालिया बयानों के साथ-साथ सबूतों में आरोपी के लैपटॉप से जब्त ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंगें भी थीं.
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