सितंबर के दौरान चार इंटरव्यू की एक कड़ी में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक पूर्व प्रचारक यशवंत शिंदे ने कारवां के एक स्टाफ राइटर सागर से बात की. शिंदे ने बताया कि कैसे उन्हें पाकिस्तान में गुप्त अभियान चलाने और पूरे भारत में बम विस्फोट करने के लिए प्रशिक्षित किया गया था ताकि उन आतंकी गतिविधियों के लिए मुसलमानों को जिम्मेदार ठहराया जा सके. उन्होंने आरोप लगाया कि 2003 और 2004 में, उनके साथी प्रशिक्षुओं ने महाराष्ट्र के जालना, पूर्णा और परभणी शहरों में मस्जिदों पर बमबारी की. अन्य जिन्होंने कथित तौर पर साजिश को आसान बनाने में मदद की, वे एक बमबारी अभियान से जुड़े हुए हैं, जिसमें पांच सालों में एक सौ बीस से ज्यादा लोग मारे गए थे. शिंदे के ज्यादातर दावे मीडिया रिपोर्टों और अदालती रिकॉर्ड में इन मामलों के ब्योरों से मेल खाते हैं. शिंदे के दावों को पूरी तरह से सत्यापित करना तब तक मुमकिन नहीं है जब तक कि उन्हें फोन रिकॉर्ड, प्रशिक्षण-शिविर रजिस्टर, फोरेंसिक रिपोर्ट और अपराध स्थल के वीडियो और तस्वीरों की बतौर सबूत जांच नहीं की जाती है, जो केवल जांच एजेंसियां ही कर सकती हैं. इनमें से कई आरोपों का जिक्र एक हलफनामे में किया गया है जिसे शिंदे ने नांदेड़ की एक जिला अदालत में दर्ज कराया था जिसमें उन्होंने 2006 के नांदेड़ बम विस्फोट मामले में गवाह बनने का अनुरोध किया था. केंद्रीय जांच ब्यूरो या सीबीआई, जिसने मामले की जांच की थी और एक क्लोजर रिपोर्ट दायर की थी, ने उनके हलफनामे का विरोध किया है.
शिंदे आज भी संघ परिवार की हिंदुत्व की विचारधारा के प्रति समर्पित हैं. हालांकि, संघ के लिए चरमपंथी हिंसा में कई दोस्तों को अपनी जान गंवाते हुए देख कर उनका धीरे-धीरे आरएसएस नेतृत्व से मोहभंग हो गया. उनको यह यकीन हो चला है कि वैचारिक रूप से संचालित चरमपंथी कार्यकर्ताओं के बलिदान को हिंदुत्व की प्रतिष्ठा के बजाए भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिक लाभ के लिए बर्बाद कर दिया गया है. उनका मानना है कि चरमपंथी हिंसा से लंबे समय में संघ परिवार को ही नुकसान होगा. अपनी भागीदारी के स्तर को पूरी तरह से समझे बिना, शिंदे ने संघ परिवार के कई वरिष्ठ नेताओं को या तो सीधे या बिचौलियों के जरिए से सतर्क करने का दावा किया है कि उनके संगठन के सदस्य साजिश रच रहे हैं और एक आतंकी अभियान चला रहे हैं.
इन नेताओं में आरएसएस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य इंद्रेश कुमार, आरएसएस के पूर्व राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य श्रीकांत जोशी, विश्व हिंदू परिषद के पूर्व केंद्रीय महासचिव वेंकटेश अब्देव, बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव सुनील देवधर, एक पूर्व आरएसएस नेता और हिंदू संहति के संस्थापक तपन घोष, श्री राम सेना के संस्थापक प्रमोद मुतालिक और सरसंघचालक मोहन भागवत शामिल हैं. अगर शिंदे के दावे सही हैं, तो आरएसएस और विहिप का ज्यादातर नेतृत्व या तो बम विस्फोटों के पीछे की साजिशों का हिस्सा था या जानता था कि संघ के सदस्य साजिश का हिस्सा थे और उस सूचना पर कार्रवाई करने में विफल रहे.
चिंता की बात यह है कि शिंदे के दावों के साथ-साथ इन मामलों की पिछली जांच में पेश की गई चार्जशीट में बताया गया है कि साजिश के कितने सदस्यों को भारतीय सेना और खुफिया ब्यूरो के सेवारत या सेवानिवृत्त कर्मियों द्वारा प्रशिक्षित किया गया. सबूत बताते हैं कि 2000 के दशक की शुरुआत से ही संघ परिवार ने भारत के सुरक्षा प्रतिष्ठान के व्यक्तियों की मदद से उपमहाद्वीप में एक संगठित आतंकी अभियान चलाने के लिए लोगों की कई सेलों को विकसित और प्रशिक्षित किया. शिंदे के दावों के संबंध में एक विस्तृत प्रश्नावली कुमार, भागवत और देवधर को भेजी गई थी. विहिप के वर्तमान महासचिव मिलिंदो परांडे, बीजेपी सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और पूर्व गृह मंत्री और पूर्व बीजेपी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी को भी सवाल भेजे थे. सीबीआई, भारतीय सेना, राष्ट्रीय जांच एजेंसी और त्रिपुरा बैपटिस्ट क्रिश्चियन यूनियन सहित साक्षात्कारों में शिंदे द्वारा नामित संगठनों को भी सवाल भेजे गए थे. इंटरव्यू के प्रकाशित होने तक किसी ने भी कोई जवाब नहीं दिया.
सागर : आप संघ से कब और कैसे जुड़े? मुझे आपके हलफनामे से पता चला कि आप 1994 में जम्मू-कश्मीर में इसमें जुड़े. आप आरएसएस में थे या फिर बजरंग दल के सदस्य थे?
कमेंट