“हमे नहीं पता कि क्या हुआ है!”
आदिवासी कार्यकर्ता और पेशे से डॉक्टर अभय ओहरी रतलाम, मध्य प्रदेश में जय आदिवासी युवा शक्ति नाम का एक आदिवासी युवा संगठन चलाते हैं. एक दिन उन्हें संगठन के एक कार्यकर्ता का फोन आया, जिसने घबराई हुई आवाज में उन्हें जल्द से जल्द रतलाम जिला अस्पताल पहुंचने के लिए कहा. उन्हें बताया गया कि “राजाराम खादरी का शव यहां है. वो मर चुका है. उस पर कुछ तंत्र-मंत्र किया गया है.”
ओहरी कुछ समझ नहीं पा रहे थे. 20 फरवरी 2021 की सुबह जब उन्हें यह फोन आया, तब वह नींद से जगे ही थे. हड़बड़ी में अस्पताल पहुंचने के दौरान उनके दिमाग में केवल 27 वर्षीय राजाराम खादरी से जुड़ी बातें घूम रही थीं. ओहरी के बाद राजाराम ही वह शख्स थे, जो समूचे आदिवासी गांव में डॉक्टर बन पाए थे. कुछ दिन पहले ही राजाराम ने ओहरी को बताया था कि वर्षों की निजी प्रैक्टिस के बाद उन्हें सरकारी आयुर्वेदिक डॉक्टर के रूप में नियुक्ति मिल गई है. दोनों सहकर्मी आखिरी बार राजाराम के दो वर्षीय बेटे आदर्श के जन्मदिन के मौके पर मिले थे. 2021 की गर्मियों में जब मैं ओहरी से उनके क्लिनिक में मिली, तो उन्होंने अपनी और राजाराम की आखिरी मुलाकात के बारे में मुझे बताया जो मौत से बस दो महीने पहले हुई थी.
अंग्रेजी हुकूमत के समय में निर्मित अस्पताल के पुराने सफेद भवन में पहुंचने पर ओहरी ने राजाराम का शव देखा. पूरा शरीर कुमकुम से सना हुआ था. शरीर पर कई जगह पीले रंग के लच्छे भी बंधे हुए थे. ओहरी कहते हैं, “मैं एक डॉक्टर हूं. मैंने हजारों लाशों का निरीक्षण किया है. पर फिर भी मैं राजाराम को देखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था.” राजाराम के हाथ-पांव पर निशान थे, जो इशारा कर रहे थे कि उसे बंधक बनाया गया था. साथ ही पूरे शरीर पर धारधार वस्तुओं से की गई चोटों के भी कई निशान थे. मृत्यु के पश्चात भी शव से खून का बहना बंद नहीं हुआ था.
ओहरी के अस्पताल पहुंचने से पहले वहां के स्टाफ को राजाराम की जेब में एक पहचान-पत्र मिला था, जो उसकी 28 वर्षीय पत्नी सीमा कटारा का था. स्टाफ सदस्यों को यह समझते देर नहीं लगी कि यह वही सीमा है, जो उनके अस्पताल में नर्स का काम करती थी. उन्होंने उसे फोन लगाया, पर उसका नंबर बंद था. उसके परिवार में भी कोई फोन का जवाब नहीं दे रहा था. ओहरी कहते हैं, “मुझे महसूस हुआ कि कुछ बहुत भयावह घटा है. मैंने तुरंत ही पुलिस को उनके घर की तलाशी के लिए सूचना दी.”
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