इस साल फरवरी में जब मैं दिलीपन महेंद्रन से मिली, तो वह एक जुनूनी आदमी लग रहे थे. चेन्नई के बाहरी इलाके में उनका एक कमरे का छोटा सा घर कागज की कतरनों से भरा हुआ था. उनके लैपटॉप में कम से कम एक दर्जन केस फाइलें खुली थीं और एक फेसबुक पेज कभी-कभार पिंग करता था. यह कमरा किसी खोजी पत्रकार की मांद सरीखी थी, जिसने कोई बड़ी स्टोरी का खुलासा किया हो या नोयर फिल्म के किसी निजी जासूस का सा था. हालांकि, यह एक संघर्षरत बिरयानी की दुकान के मालिक का था.
वह मामला जिसने दिलीपन को इतना परेशान किया था तमिलनाडु में दशकों में देखी गई सबसे सनसनीखेज हत्याओं में से एक था. लगभग हर शाम, काम पर पसीने से तर बतर दिन बिताने के बाद, वह विवरणों को खंगालते हुए और अपने यूट्यूब चैनल के लिए वीडियो फिल्माने में बिताते थे.
24 जून 2016 की सुबह, चेन्नई के सबसे उन्नत क्षेत्रों में से एक, नुंगमबक्कम में रेलवे स्टेशन पर एक प्लेटफॉर्म पर ब्राह्मण समुदाय की 24 वर्षीय आईटी पेशेवर एस स्वाति की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई. जब तक पुलिस कर्मी मौके पर नहीं पहुंचे करीब दो घंटे तक उसकी लाश वहीं पड़ी रही. पुलिस ने जल्द ही सूचना दी कि राज्य में अनुसूचित जाति के रूप में वर्गीकृत पल्लर जाति के 24 वर्षीय व्यक्ति पी रामकुमार ने उसकी हत्या कर दी थी. उन्होंने दावा किया कि रामकुमार ने कई हफ्तों तक स्वाति का पीछा किया था और कि स्वाति ने उसे ठुकरा दिया था.
स्थानीय मीडिया ने स्वाति मामले को 2012 में दिल्ली में हुए कुख्यात बलात्कार और हत्या की तर्ज पर तमिलनाडु का निर्भया कांड बताया. महीनों तक हर ब्रॉडशीट और न्यूज शो में रामकुमार का चेहरा, हर रेडियो स्टेशन पर उनका नाम था. कामगार वर्ग के पुरुषों के बारे में एक निश्चित उन्माद के साथ था, जो स्टेशन पर लड़कियों का पीछा करते, संपादकीय पन्ने औरतों की सुरक्षा को लेकर भरे पड़े थे. इससे पहले कि पुलिस किसी भी सबूत का खुलासा करती, मीडिया की अदालत ने रामकुमार को जाति-आधारित समाज में सबसे खराब अपराध का दोषी ठहराया: एक उत्पीड़ित-जाति के पुरुष द्वारा एक प्रभावशाली जाति की औरत का यौन हनन और हत्या. पुलिस के मामले का ब्योरा अंततः एक फिल्म, नुंगमबक्कम में याद किया गया, जिसने रामकुमार को दक्षिण एशिया की हिंसक पितृसत्ता की महामारी के एक भयानक उदाहरण के रूप में चित्रित किया.
इस बीच, संदिग्ध सबूतों के आधार पर, पुलिस ने रामकुमार को अपराध का मास्टरमाइंड बताते हुए लगातार प्रेस कॉन्फ्रेंस की. अदालतों को रामकुमार की पुलिस हिरासत देने की जल्दी थी. मीडिया ने कभी भी पुलिस के बयानों की जांच नहीं की और रामकुमार के अपने बचाव में खुद की अदालती फाइलिंग से महत्वपूर्ण विवरणों को हटा दिया.
दिलीपन पुलिस के निष्कर्षों से बेहद असहज थे. पुलिस के साथ उनके अपने अतीत के कारण यह कोई छोटा मामला नहीं था. 29 जनवरी 2016 को, उन्होंने पत्रकार के मुथुकुमार की मृत्यु के सात साल बाद एक कार्यक्रम में भाग लिया था, जिन्होंने तमिलों के नरसंहार के दौरान भारत की निष्क्रियता का विरोध करने के लिए आत्मदाह कर लिया था. घटना के बाद एक भारतीय ध्वज जलाने वाले दिलीपन को गिरफ्तार कर लिया गया और चेन्नई के पुझल सेंट्रल जेल के उच्च सुरक्षा विंग में ले जाया गया. उन्होंने मुझे बताया कि पुलिस ने उन्हें प्रताड़ित किया और उनका हाथ तोड़ दिया. जब उन्हें एक मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया, तो उन्होंने कहा, उन्हें यह दावा करने का निर्देश दिया गया था कि गिरफ्तारी से पहले एक पुल से गिरने पर उनका हाथ टूट गया था.
दिलीपन ने कहा, ''मैं न तो रामकुमार का दोस्त हूं और न ही भाई. मैं तो उससे कभी मिला तक नहीं. लेकिन रामकुमार की गिरफ्तारी से जुड़ी घटनाओं ने मुझे पूरी कहानी पर शक करने के लिए मजबूर कर दिया. मुझे पता है कि पुलिस विभाग कैसे काम करता है. मुझे पता है कि जेल का माहौल कैसे काम करता है."
पांच साल से अधिक समय से दिलीपन स्वाति की हत्या के बारे में सबूत जुटा रहे हैं. लगभग एक हजार छपे पेज, यह बताते हैं कि पुलिस ने फर्जी सबूत गढ़े, नकली गवाहों का इस्तेमाल किया और हिरासत में हिंसा के जरिए से कबूल कराने की कोशिश की. "उन्हें जिन कारणों से फंसाया गया था उनका हम पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं," उन्होंने कहा. “शुरू से ही, पुलिस मामले को जल्दबाजी में खत्म करने की कोशिश कर रही थी और दोषी ठहराने के लिए उन्हें किसी की जरूरत थी. जजों ने पुलिस का पक्ष लिया, मीडिया पुलिस की बात दोहराती रही और रामकुमार, जो अपनी जिंदगी जी रहा था, दुर्भाग्य से इस गठजोड़ में फंस गया.
न्यायिक हिरासत में तीन महीने पूरे करने से कुछ समय पहले, जिस बिंदु पर पुलिस को या तो उसके खिलाफ चार्जशीट दाखिल करनी थी या उसे रिहा कर देना था, रामकुमार की मौत हो गई. पुलिस ने दावा किया कि उसने अपनी जान ले ली, लेकिन सबूत हिरासत में हत्या की ओर इशारा करते. उनकी मौत के बाद, स्वाति हत्याकांड को बंद कर दिया गया और काफी हद तक भुला दिया गया. फिर भी कुछ लोग- जिनमें दिलीपन, रामकुमार का परिवार और तमिलनाडु के कुछ सबसे साहसी जाति-विरोधी नेता शामिल हैं - लगातार सवाल करना करते हैं कि आखिर क्यों और कैसे मुकदमे का सामना करने से पहले अदालतों, मीडिया और राजनीतिक प्रतिष्ठानों की साफ सहमति से 24 वर्षीय दलित ने कीमत चुकाई और किसी को इससे कोई परेशानी तक न हुई. स्वाति मामले पर करीब से नज़र डालने से पितृसत्तात्मक हिंसा की भयावहता का पता चलता है, लेकिन यह इस बात की भी भयावह तस्वीर पेश करता है कि तमिलनाडु में देश के बाकी हिस्सों की तरह, राज्य के अंग और उन्हें नियंत्रण में रखने वाले लोग कैसे हाथ मिला सकते हैं न्याय को अपना काम करने से रोक सकते हैं.
स्वाति के मारे जाने के चार दिन बाद, 28 जून 2016 को मद्रास उच्च न्यायालय ने मामले का स्वत: संज्ञान लिया. हत्या की व्यापक रूप से रिपोर्ट किए जाने के बावजूद, सरकारी रेलवे पुलिस कार्रवाई करने में धीमी थी. अदालत ने चेन्नई पुलिस को इसके बजाय जांच करने और दो दिनों में इसे तेजी से पूरा करने का आदेश दिया.
पुलिस ने नुंगमबक्कम के आस-पास घर-घर जाकर तलाशी शुरू की, जिसमें यह स्पष्ट नहीं था कि उसे क्या मिलने की उम्मीद है. अदालत के आदेश के तीन दिन बाद, जांचकर्ताओं ने दावा किया कि, पास के एक लॉज में एक कमरे की तलाशी के दौरान, उन्हें खून से सनी एक शर्ट मिली, जिसे हत्यारे ने पहना था. लॉज के मालिकों ने पुलिस को बताया कि रामकुमार पिछले तीन महीने से कमरे में रह रहा था और हत्या वाले दिन 24 जून को अपने गांव से लौटा था. पुलिस ने जल्द ही पास की दुकानों से दो धुंधले सीसीटीवी फुटेज इकट्ठा किए, जिसमें दिखाया गया था कि लगभग रामकुमार की उम्र का एक व्यक्ति 24 जून की सुबह नुंगमबक्कम स्टेशन की ओर जा रहा था और एक अन्य व्यक्ति प्लेटफॉर्म पर दौड़ रहा था. जांचकर्ताओं ने दावा किया कि फुटेज में दिखाया गया है कि रामकुमार ने लॉज में मिली हरे रंग की चेक वाली शर्ट पहनी हुई थी. उन्हें चार गवाह भी मिले जिन्होंने दावा किया था कि उन्होंने रामकुमार को हत्या करते देखा था.
इन शुरूआती सबूतों में से ज्यादातर संदिग्ध थे. उस समय चेन्नई के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त के शंकर, जो हत्या की जांच करने वाली टीम का नेतृत्व कर रहे थे, ने मुझे बताया, “रामकुमार की खून से सनी शर्ट को मोड़कर अपने बैग में रखा था. यह सबसे महत्वपूर्ण सबूत था जिसने पुष्टि की कि रामकुमार हत्यारा है." तमिल समाचार चैनलों द्वारा लगभग तुरंत प्रसारित किए गए सीसीटीवी फुटेज में स्टेशन छोड़ने वाले युवक की शर्ट पर साफ तौर पर खून नहीं दिख रहा है. ऐसा लगता है कि शर्ट भी पुलिस रिकॉर्ड से गायब हो गई है. रामकुमार के वकील और एक पूर्व सत्र न्यायाधीश पी रामराज ने मुझे बताया, "सबूत रिकॉर्ड में उस शर्ट की कोई तस्वीर नहीं थी. मामला बंद होने के बाद भी, कमीज रामकुमार के माता-पिता को वापस नहीं दी गई. हमें शक है कि क्या यह वास्तव में रामकुमार की ही शर्ट थी.”
एक सीसीटीवी वीडियो पुलिस द्वारा उद्धृत किया गया और दूसरा मीडिया के साथ साझा किया गया, दोनों को सुबह 6.43 बजे का बताया गया था. एक वीडियो प्लेटफॉर्म पर के एक कैमरे से आया था और दूसरा सड़क पर कुछ दूरी पर लगे कैमरे से आया था. पुलिस ने कभी यह नहीं बताया कि रामकुमार एक साथ दोनों जगहों पर कैसे हो सकते थे.
पुलिस द्वारा उद्धृत प्रमुख गवाहों ने भी कई सवाल खड़े किए. 107 गवाहों में से केवल चार प्रत्यक्ष चश्मदीद गवाह थे. सभी चार के बयान लगभग शब्दशः हैं, हर दस्तावेज में बस नामों को बदला गया है. उन चार में, तीन के संपर्क विवरण गलत तरीके से दर्ज किए गए थे, जिससे उन्हें ट्रैक करना लगभग असंभव हो गया था. चौथा चश्मदीद मुरुगन है, जो स्टेशन के पास स्थित लोयोला कॉलेज के गेट पर सुरक्षा गार्ड है. "मैं हत्या के बारे में कुछ नहीं जानता," उन्होंने मुझे अप्रैल 2022 में बताया. "मैं वहां रेलवे स्टेशन पर था, पुलिस ने मेरा पता और फोन नंबर मांगा, जो मैंने दिया और उन्होंने अपनी मर्जी से कुछ लिख दिया. मैंने कोई हत्या नहीं देखी. मुझे तो कुछ मालूम नहीं." दिलीपन ने मुझे बताया कि उन्होंने ने इस मामले में नामित एक अन्य चश्मदीद गवाह का पता लगाया है, जो कि स्टेशन कैंटीन में एक कर्मचारी है, जिसका नाम शिवकुमार है. दिलीपन के मुताबिक, शिवकुमार ने कहा कि रामकुमार वह व्यक्ति नहीं था जिसे उसने हत्या करते देखा था. मैं दिलीपन के बयान को सत्यापित करने के लिए शिवकुमार तक नहीं पहुंच पाई.
रामकुमार के कमरे में शर्ट मिलने के कुछ घंटों बाद, इसने तिरुनेलवेली पुलिस को सतर्क कर दिया, जिसके अधिकार क्षेत्र में रामकुमार का गांव मीनाक्षीपुरम था. उस रात, पास के तेनकासी पुलिस स्टेशन के निरीक्षक केएस बालमुरुगन के नेतृत्व में एक पुलिस दल रामकुमार के घर पहुंचा और दरवाजे पर उनके पिता पी परमशिवम से बात की.
"उन्होंने मुझसे पूछा कि मेरे बेटे का नाम क्या है और वह कहां है," परमशिवम ने मुझे बताया. उन्होंने दावा किया कि पुलिस ने उस समय इलाके की बिजली काट दी थी. “जब हम बात कर रहे थे, मैंने घर के अंदर से और पुलिसवालों की आवाज सुनी. मुझे लगता है कि वे हमारी पिछली दीवार से कूद कर आए थे, जहां रामकुमार सो रहा था. परमशिवम ने कहा कि उन्होंने घर के अंदर से एक पुलिसकर्मी की चीख सुनी, "देखो तुम्हारे बेटे ने क्या किया है, उसने अपना गला काटने की कोशिश की है." जब परमशिवम घर में पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि एक पुलिसकर्मी रामकुमार को पकड़े हुए है , जिसकी गर्दन पर गंभीर चोट लगी है. रामकुमार को पुलिस जीप से तिरुनेलवेली मेडिकल कॉलेज अस्पताल ले जाया गया.
जब मैं तेनकासी पुलिस स्टेशन में बालमुरुगन से मिली और उनसे कहा कि मैं इस मामले के बारे में लिख रही हूं, तो वह मुझसे छुटकारा पाने के इच्छुक दिखे. उन्होंने मेरा विजिटिंग कार्ड देखा और कहा कि वह बात नहीं कर सकते. उन्होंने कहा, ''जांच अधिकारी चेन्नई में हैं, आपको उनसे बात करनी चाहिए.'' मुझे जाने के लिए कहने से पहले बालमुरुगन ने मेरे सभी सवालों को टाल दिया. उन्होंने मुझसे एक सवाल पूछा : "आप एक ऐसे मामले के बारे में क्यों लिखना चाहती हैं जो छह साल पहले बंद हो गया था?"
रामकुमार द्वारा पेश की गई तीन मेडिकल रिपोर्ट से यह संकेत मिलता है कि उनकी गर्दन के दाहिनी ओर एक गहरा कट था और बाईं ओर एक छोटा सा कट था. सांसद और विदुथलाई चिरुथैगल काची - लिबरेशन पैंथर्स पार्टी - के संस्थापक अध्यक्ष थोल थिरुमावलवन ने मुझे बताया कि उन्होंने एक क्रिमिनोलॉजिस्ट और फोरेंसिक विशेषज्ञ के रूप में इस मामले का बारीकी से अध्ययन किया था. उनके पास क्रिमिनोलॉजी में मास्टर डिग्री है और चुनावी राजनीति में आने से पहले उन्होंने राज्य के फोरेंसिक विभाग में काम किया था. "दाहिने हाथ का व्यक्ति दाहिनी ओर अपना गला काटने की कोशिश कर रहा है, बहुत ही असामान्य है," उन्होंने मुझे बताया. "कोई भी तार्किक इंसान यह समझे जाएगा कि अगर आप दाएं हाथ के हैं, तो आप बाईं ओर से अपना गला और गर्दन काटने की प्रवृत्ति रखेंगे. लेकिन, उनके मामले में यह बिल्कुल अलग था."
रामकुमार के परिवार की तरह, थिरुमावलवन का मानना है कि यह पुलिस ही थी जिसने रामकुमार की गर्दन काट दी थी. घाव पर 18 टांके लगाने पड़े और यह सुनिश्चित हो गया कि वह कई दिनों तक बोल नहीं सकेगा.
तिरुनेलवेली पुलिस और उस समय की कई मीडिया रिपोर्टों ने दावा किया कि रामकुमार के पास से स्वाति का फोन और हैंडबैग मिला है. परमशिवम ने मुझे बताया कि उनके परिवार ने रामकुमार के पास कोई फोन नहीं देखा था और पुलिस ने उनके घर से कोई फोन बरामद नहीं किया था. उन्होंने कहा कि पुलिस ने एक ऑफिस बैग जब्त किया है, लेकिन वह रामकुमार की छोटी बहन कलेश्वरी का है. "हम अगले दिन तेनकासी उपाधीक्षक के कार्यालय गए और उसका बैग वापस ले लिया," रामकुमार की बड़ी बहन मधु ने मुझे बताया.
परमशिवम ने कहा, "उन्होंने हमें रामकुमार से पांच मिनट भी बात नहीं करने दी. जब उन्हें तिरुनेलवेली में भर्ती कराया गया, तो उनकी मां और मधु उनसे मिलने गए, लेकिन उन्हें केवल दो मिनट के लिए दूर से ही उन्हें देखने की इजाजत दी गई." गिरफ्तारी के तीन दिन बाद, रामकुमार को चेन्नई स्थानांतरित कर दिया गया. वहां उसे अस्पताल में इलाज के बाद पुझल सेंट्रल जेल में रखा गया था.
जब पुलिस ने रामकुमार को गिरफ्तार किया था, तो पुलिस नेरेटिव से केवल एक चीज गायब थी, वह एक मकसद था. गिरफ्तारी के अगले दिन 2 जुलाई तक, उसके पास पेश करने के लिए एक नेरेटिव था. चेन्नई पुलिस के आयुक्त टीके राजेंद्रन ने प्रेस के सामने घोषणा की कि रामकुमार महीनों से स्वाति का पीछा कर रहा था और उसने हाल ही में उसे ठुकरा दिया था. ऐसे राज्य में इस कहानी को बेच पाना बहुत आसान जहां पीछा करना इतना आम है कि कई फिल्में इसे युवा पुरुषों के रोमांटिक रिश्ते के रूप में मनाती हैं. इसके साथ ही दबी-कुचली जाति के पुरुषों द्वारा दबंग-जाति की औरतों को बहकाने के बारे में सार्वजनिक उन्माद भी जोड़ा गया, यह एक ऐसा षड़यंत्र सिद्धांत जिसे स्वाति की हत्या से पहले राज्य के कुछ शक्तिशाली प्रभावशाली-जाति के राजनेताओं द्वारा फैलाया जा रहा था.
2012 में, धर्मपुरी शहर के पास दलित समुदाय के एक 19 वर्षीय कॉलेज छात्र ई इलावरसन ने अपने परिवार की इच्छा के खिलाफ पड़ोसी गांव की एक युवती एन दिव्या से शादी की. दिव्या वन्नियार थी, जो तमिलनाडु के सबसे बड़े जाति समूहों में से एक है. वन्नियार हिंदू जाति पदानुक्रम में दलितों से ऊपर खड़े हैं, हालांकि, चुनावी सफलताओं और क्षेत्रीय प्रभुत्व के बावजूद, वे अभी भी आर्थिक रूप से पिछड़े हैं और राज्य के सबसे पिछड़े वर्गों में वर्गीकृत हैं. दिव्या ने अपने पैदाइशी घर लौटने से इनकार कर दिया और उसके पिता ने कथित तौर पर अपनी जान ले ली, जिसके बाद वन्नियार भीड़ ने तीन दलित गांवों को आग लगा दी. महीनों बाद, इलावरसन को धर्मपुरी के पास रेलवे ट्रैक के किनारे मृत पाया गया. पुलिस ने शुरू में दावा किया कि उसने खुदकुशी कर ली, इस बात के भारी सबूत के बावजूद कि उसकी हत्या की गई थी.
वन्नियारों की लामबंदी, जिसके कारण दलित गांवों को जला दिया गया, पट्टली मक्कल काची की राजनीति का केंद्र था, जो एक वन्नियार-केंद्रित पार्टी थी, जिसने इस क्षेत्र में वामपंथियों के पहले के प्रभुत्व को सफलतापूर्वक चुनौती दी थी. 2014 के आम चुनाव के लिए, पीएमके के संस्थापक एस रामदास ने राज्य भर में बैठकें कीं ताकि मध्यवर्ती जातियों को एक "गैर-दलित संघ" के तहत एक साथ लाया जा सके. यह दो प्राथमिक वादों के इर्द-गिर्द घूमता है: अंतर्जातीय विवाह पर प्रतिबंध और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम को हटाना. इस अभियान ने दलितों द्वारा प्रभावशाली जाति की औरतों को बहकाने और उनसे शादी करने के लिए एक संगठित अभियान के झूठे दावों को खूब हवा दी. यह "लव जिहाद" साजिश के स्थानीय संस्करण की तरह था जहां हिंदू राष्ट्रवादी मुस्लिम मर्दों पर आरोप लगाते हैं. रामदास ने दावा किया कि युवा दलित "जीन्स, टी-शर्ट और फैंसी धूप का चश्मा पहने हुए थे" और अन्य जातियों की लड़कियों को लुभाने के लिए "फर्जी प्यार" का इस्तेमाल कर रहे थे. पीएमके के वरिष्ठ नेता कदुवेट्टी गुरु ने कथित तौर पर पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा कि वे हर उस दलित व्यक्ति के हाथ काट दें, जो वन्नियार औरत को छूता है.
पीएमके ने चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया, जिससे यह राज्य के नियंत्रण के लिए होड़ करने वाली प्रमुख पार्टियों के लिए सबसे वांछनीय गठबंधन सहयोगी बन गया. इस बीच, तमिलनाडु में ऑनर किलिंग में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई . दलित अधिकार कार्यकर्ता, विन्सेंट राज ने 2017 में द वायर को बताया, "2013 और 2017 के बीच, तमिलनाडु में 187 ऑनर किलिंग की घटनाएं हुई हैं ." 2020 की फिल्म द्रौपती में एक धूर्त दलित राजनेता दिखाया गया है जो अपने समुदाय के पुरुषों को प्रभावशाली जाति की महिलाएं को लुभाने के लिए यह कहते हुए भुगतान करता है कि, "अगर हम उनकी औरतों पर हाथ रखेंगे तो ही हम उनकी जमीन पर अपना पैर रख सकते हैं." फिल्म की इसके शातिर जातिवाद और लिंगवाद के लिए निंदा हुई थी, लेकिन पीएमके और भारतीय जनता पार्टी ने इसका खूब समर्थन किया. रामदास और बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव एच राजा के लिए इसकी विशेष स्क्रीनिंग हुई, जबकि बीजेपी नेता और पुडुचेरी की राज्यपाल किरण बेदी अपने घर के कर्मचारियों की औरतों को यह कहते हुए यह फिल्म दिखाई कि फिल्म में "नारीत्व का जश्न मनाया गया है!"
दिलीपन ने मुझे बताया कि स्वाति की हत्या ऑनर किलिंग का मामला हो सकती है. वह एक ऐसे परिवार से आती थी जो ब्राह्मण मानकों से भी रूढ़िवादी था. उसके पिता के सोशल मीडिया पोस्ट में अक्सर "लव जिहाद" के खतरों का उल्लेख किया गया है. स्वाति के पिता के संथानगोपालकृष्णन ने मुझे बताया, “हम पूरी घटना को फिर से ताजा के लिए तैयार नहीं हैं. हमें माफ करें." स्वाति की हत्या की शुरुआती रिपोर्टों से पता चलता है कि वह एक मुस्लिम व्यक्ति, मोहम्मद बिलाल के साथ रिश्ते में थी , उनके दोस्तों का घेरा भी एक था. दिलीपन ने कहा, "मैंने भी कुछ ऐसा किया है जिससे दूसरे लोग सहमत नहीं होंगे. मैंने स्वाति और रामकुमार की फेसबुक आईडी हैक कर ली है." स्वाति की मृत्यु के दो दिन बाद उसका फेसबुक अकाउंट ब्लॉक कर दिया गया था और अब इसे एक्सेस नहीं किया जा सकता है. दिलीपन ने मुझे स्वाति के अकाउंट से लिए गए कई संदेश दिखाए, जो स्वाति और बिलाल के बीच घनिष्ठ संबंध का संकेत देते थे. रामकुमार के वकील रामराज ने मुझे फोन रिकॉर्ड दिए जो स्वाति और बिलाल के बीच घनिष्ठ संबंध का संकेत देते हैं, जिन्हें पुलिस ने मामले की सुनवाई शुरू होने पर साझा किया था. हैरानी की बात है, उसकी हत्या से एक सप्ताह पहले के मेसेज पूरी तरह से गायब हैं.
स्वाति की हत्या के दो हफ्ते बाद थांथी टीवी के साथ एक साक्षात्कार में, बिलाल ने कहा कि उसने पहले कभी रामकुमार के बारे में नहीं सुना था. के शंकर ने मुझे बताया कि स्वाति की मौत के तुरंत बाद और थांथी टीवी के साक्षात्कार के बाद भी उनकी टीम ने बिलाल से दस घंटे से अधिक समय तक पूछताछ की. दूसरी पूछताछ के बाद, बिलाल ने मीडिया को बताया कि वह और स्वाति केवल करीबी दोस्त थे और उसने उसे बताया था कि रामकुमार के विवरण से मेल खाता कोई व्यक्ति रेलवे स्टेशन पर हफ्तों से उसका पीछा कर रहा था. वह जल्द ही पुलिस के लिए एक प्रमुख गवाह बन गया और उसने दावा किया कि उसने पहले भी रामकुमार को स्टेशन पर देखा था.
जब मैंने बिलाल के वकील पी पुगझेंधी से संपर्क किया, तो उन्होंने मुझे बताया कि बिलाल से मिलना मुमकिन नहीं है, लेकिन वह अपने मुवक्किल की ओर से बोल सकते हैं. "यह सच है कि बिलाल और स्वाति प्यार में थे और उन्होंने अपने रिश्ते के बारे में भी खुलकर बात की," पुगझेंधी ने मुझे इस अप्रैल में बताया. "लेकिन मैंने ही उसे सलाह दी थी कि वह स्वाति के साथ अपने रिश्ते के बारे में बात न करे, क्योंकि हमारे समाज में लोग आसानी से किसी औरत के बारे में बुरी बात कर सकते हैं और स्वाति के चरित्र को दागदार कर दिया जाएगा, जो ठीक नहीं है. यही कारण है कि उन्होंने अपने रिश्ते के बारे में बात करना बंद कर दिया और स्वाति को अपना एक करीबी दोस्त ही बताया. पुगझेंधी ने कहा कि स्वाति ने बिलाल को एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बताया था जो उसका पीछा कर रहा था. "एक बार, जब स्वाति ने बिलाल से कहा कि रेलवे स्टेशन पर कोई उसका पीछा कर रहा है, तो वह वहां यह पता लगाने गया था कि वह कौन है," पुगझेंधी ने कहा. बिलाल का दावा है कि उसने वहां से खिसक गए चार लड़कों को देखा है, जिनमें से एक की पहचान बाद में उसने रामकुमार के रूप में की.
फिल्म निर्देशक और जाति-विरोधी कार्यकर्ता पा रंजीत ने मुझे बताया कि राजनीतिक गणनाओं ने तमिलनाडु में पार्टियों को मामले पर कड़ा रुख अपनाने से रोका होगा. "इस मामले में, शुरुआत से ही, समुदाय ने एक बड़ी भूमिका निभाई," उन्होंने कहा. “चूंकि वह ब्राह्मण समुदाय से थी, इसलिए नेरेटिव के किसी भी सवाल को हिंदुओं के खिलाफ प्रचार के रूप में चित्रित किया जाता. बीजेपी ने तमिलनाडु में इस तरह की स्थिति पैदा की है और कोई भी राजनीतिक दल रामकुमार के बारे में बात नहीं करना चाहता क्योंकि उन्हें डर है कि इससे हिंदुओं की भावनाओं पर असर पड़ेगा.
एक वरिष्ठ पत्रकार, जिन्होंने नाम न छापने का अनुरोध किया, रंजीत के आकलन से सहमत थे. उन्होंने मुझे बताया, "चूंकि उच्च न्यायालय ने उनसे पूछताछ की थी, इसलिए पुलिस पर मामला खत्म करने का भारी दबाव था. इसके अलावा, उसका साथी एक मुस्लिम था. अगर बात आगे निकल जाती तो एक बहुत बड़ा सांप्रदायिक संकट हो जाता, जिससे पुलिस किसी भी कीमत पर बचना चाहती थी. रामकुमार जंजीर में सबसे कमजोर कड़ी था. उस समय उनकी बेगुनाही मायने नहीं रखती थी."
18 सितंबर 2016 को रामकुमार को चेन्नई के सरकारी रोयापेट्टा अस्पताल में मृत लाया गया था. पुलिस ने दावा किया कि उसने खुदकुशी की है, लेकिन इस पर सवाल खड़े करने के पर्याप्त कारण हैं, जैसा कि रामकुमार के अंतिम दिनों के बारे में है.
घड़ी की सुई अब पुलिस पर टिक रही थी. 4 जुलाई को, रामकुमार को उसके घर से ले जाने के तीन दिन बाद, चेन्नई में एग्मोर कोर्ट के एक मजिस्ट्रेट ने सरकारी रोयापेट्टा अस्पताल में रामकुमार से मुलाकात की और उसे 15 दिनों के लिए न्यायिक हिरासत में रखा, जिसे बाद में 90 दिनों के लिए बढ़ा दिया गया. अगर पुलिस उस अवधि के भीतर उसके खिलाफ चार्जशीट पेश करने में असमर्थ होती, तो रामकुमार को डिफ़ॉल्ट रूप से जमानत मिल जाती. इस दांव को और आगे बढ़ाने के लिए, पुलिस आयुक्त राजेंद्रन ने 2 जुलाई को पहले ही मीडिया के सामने घोषणा कर दी थी कि रामकुमार हत्या में एकमात्र अपराधी था. जब पत्रकारों ने उनसे सवाल किए तो उन्होंने दोहराया कि रामकुमार का कोई साथी नहीं है. इससे पुलिस के पास केवल नब्बे दिनों में ठोस मामला बनाने की बहुत कम गुंजाइश बची. राजेंद्रन ने इस रिपोर्ट के लिए मुझसे बात करने से इनकार कर दिया.
इस अवधि में पुलिस ने अदालतों और मीडिया दोनों को जो पहला सबूत दिया, वह कथित तौर पर तिरुनेलवेली में रामकुमार द्वारा दिया गया एक कबूलनामा था. छह पन्नों के दस्तावेज़ में, रामकुमार ने स्वाति की हत्या करने की बात स्वीकार की क्योंकि वह उस पर फिदा हो गया था और उसने उसे ठुकरा दिया था. बयान में दावा किया गया है कि हत्या के बाद रामकुमार चेन्नई से भाग गया था और पुलिस को अपने घर में घुसते हुए देखकर खुद को मारने की कोशिश की थी.
ऐसी संभावना कम ही है कि रामकुमार ने पुलिस को यह पूरी कहानी सुनाई होगी. रामकुमार का इलाज करने वाले डॉक्टर सिथी अथिया मुनवारा ने 2 जुलाई को मीडिया को बताया कि उनकी गर्दन पर टांके लगने के कारण वह दो-तीन दिनों तक बोल नहीं पाएंगे. उनके परिवार ने यह भी बताया कि जब वे अस्पताल में उनसे मिलने गए तो वह पूरी तरह से बोलने में असमर्थ थे. छह पेज लंबा बयान देना ऐसे में मुमकिन भी नहीं. महत्वपूर्ण बात यह है कि बिना मजिस्ट्रेट की मौजूदगी के पुलिस को दिए गए बयान अदालत में स्वीकार्य नहीं हैं और जब रामकुमार ने यह बयान दिया तब कोई मजिस्ट्रेट मौजूद नहीं था.
पुलिस ने दावा किया कि बाद में भी रामकुमार ने यह कबूल किया. शंकर ने मुझे बताया, "पूछताछ के दौरान, उसने अपने किए पर पछतावा जताया. उसने गुस्से में ऐसा किया लेकिन उसका कोई और मकसद नहीं था. वह निराश था कि स्वाति ने उसे डांटा और वह उसका ध्यान आकर्षित नहीं कर पाया. हो सकता है कि मीडिया और फिल्मों का उस पर असर हो. मीडिया में उन औरतों पर हमला करने की मीडिया रिपोर्ट, जो प्रेम प्रस्ताव स्वीकार करने से इनकार करती हैं, उसी तर्ज पर फिल्में बनाई जाती हैं, ये सब बातें उसे इस अपराध को करने के लिए प्रभावित कर सकती हैं.”
लेकिन रामकुमार के कबूलनामे पुलिस के सामने ही होते नजर आए. 13 जुलाई को, उसने एग्मोर कोर्ट के समक्ष बेगुनाही का लिखित दावा दायर किया. उसने कहा कि वह पहले कभी स्वाति को नहीं जानता था और पुलिस झूठे कबूलनामे के लिए मजबूर करने की कोशिश कर रही थी क्योंकि पुलिस मामले को जल्दी से रफा दफा करना चाहती थी.
न्यायिक हिरासत खत्म होने से एक हफ्ते पहले रामकुमार की मौत हो गई. पुलिस ने दावा किया कि 18 सितंबर को शाम करीब 5 बजे उसे उस डिस्पेंसरी ब्लॉक से बाहर जाने दिया गया, जहां उसे पानी पीने के लिए कहा गया था. जैसे ही वह बाहर निकला, उसने कथित तौर पर एक स्विचबोर्ड को तोड़ दिया और बिजली के तारों को काट दिया, जिससे बिजली का करंट लगने से उसकी मौत हो गई. एक कांस्टेबल, पेचिमुथु, जिसने डिस्पेंसरी ब्लॉक का दरवाजा खोलने का दावा किया था, और दो कैदियों ने चश्मदीद गवाह के बयान दिए. रामकुमार को अस्पताल ले जाने से पहले बेहोशी की हालत में जेल के डॉक्टर के पास लाया गया, जहां शाम 5.45 बजे उसे मृत घोषित कर दिया गया.
जुलाई 2022 के अंत में, मैंने एक कैदी से बात की, जो रामकुमार के ही ब्लॉक में था और अपना नाम नहीं बताना चाहता था. “वे रामकुमार को पिछले दिन शाम लगभग 5.30 बजे हमारी सेल से यह कहते हुए ले गए थे कि उसे किचन की ड्यूटी दी गई है. उसके बाद हमने रामकुमार को नहीं देखा," उन्होंने मुझे बताया. उसने आगे बताया कि अगले दिन उन्होंने किचन के आसपास तलाशी ली लेकिन रामकुमार नहीं मिला. कैदियों को कोठरी में बंद करने के प्रभारी, "ब्लॉक ऑल्टिस ने हमें बताया कि रामकुमार उच्च सुरक्षा वाले ब्लॉक में बेहोश पड़ा हुआ था. उस ब्लॉक के एक कैदी ने बाद में हमें बताया कि रामकुमार को जेल के अधिकारी मृत या बेहोश देखकर जेल में लाए थे. वह उस हालत में बिजली के तारों को कैसे काट सकता था, खासकर जब वह उसकी पहुंच में ही नहीं था?”
19 सितंबर 2016 को, रामकुमार के पिता, परमशिवम ने एक निषेधाज्ञा दायर कर कहा कि परिवार के पसंदीदा डॉक्टर रामकुमार का पोस्टमार्टम करवाएं. अदालत ने, हालांकि, इस याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि पोस्टमार्टम अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दिल्ली के एक विशेषज्ञ द्वारा किया जा सकता है, और रॉयपेट्टा अस्पताल में डॉक्टरों द्वारा सहायता प्राप्त की जा सकती है. रिपोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि रामकुमार की मृत्यु बिजली के करंट से हुई और उसने शरीर पर एक दर्जन से ज्यादा जगह पर बिजली से जलने का उल्लेख किया. इसने किसी अतिरिक्त चोट की ओर इशारा नहीं किया. दलित संगठनों द्वारा कानूनी कार्यवाही और विरोध प्रदर्शनों के बाद अधिकारियों को आखिरकार रामकुमार के परिवार और कानूनी सलाहकार के साथ पोस्टमार्टम रिपोर्ट साझा करने में चार साल लग गए.
रामकुमार के परिवार और चिकित्सा विशेषज्ञों ने पोस्टमार्टम के निष्कर्षों को गलत बताते हुए खारिज कर दिया है. सविता विश्वविद्यालय में फोरेंसिक विभाग के प्रमुख संपत कुमार, जो तमिलनाडु के कई सबसे विवादास्पद मामलों में विशेषज्ञ अन्वेषक रहे हैं, ने मुझे बताया कि निश्चित तौर पर रामकुमार की मौत बिजली के झटके से नहीं हुई. कुमार को रामकुमार के पिता ने पोस्टमार्टम के दौरान विशेषज्ञ गवाह के रूप में नामित किया था, लेकिन अदालत ने उन्हें उपस्थित होने की अनुमति नहीं दी. कुमार ने कहा, "अगर बिजली के तार काटने से बिजली के तेज झटके से उसकी मौत हो जाती, तो उसके होंठ, मुंह और चेहरे का एक हिस्सा गंभीर रूप से जल जाता," कुमार ने कहा. रिपोर्ट में ऐसी किसी विकृति का उल्लेख नहीं किया गया था. उन्होंने कहा, जब किसी व्यक्ति की मृत्यु बिजली के झटके से होती है तो "झटका दिल या दिमाग से होकर गुजरता है और आमतौर पर खून जम जाता है, रक्तस्राव होता है या अंग फट जाता है, जिनमें से मकुमार के मामले में ऐसा कुछ भी होता दिखाई नहीं देता है." कुमार ने कहा कि जिस स्विचबोर्ड के बारे में बताया जा रहा है कि रामकुमार ने उसे तोड़ा था वह जमीन से छह फीट से अधिक दूर था. तारों को काटने के लिए, रामकुमार को अपने हाथों से तारों को नीचे गिराना पड़ता, जिससे बिजली के झटके से और भी चोटें होतीं जो पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में दर्ज नहीं हैं.
एक लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद, तमिलनाडु राज्य मानवाधिकार आयोग ने मामले का संज्ञान लिया. अगस्त 2021 में, दो हिस्टोपैथोलॉजिस्ट जिन्होंने पोस्टमार्टम के तुरंत बाद रामकुमार के शरीर की जांच की थी, आयोग के समक्ष पेश हुए. उनकी रिपोर्ट पोस्टमार्टम के निष्कर्षों के विपरीत प्रतीत होती है. रामकुमार के होंठ और जीभ सहित उनके द्वारा एकत्र किए गए शरीर के किसी भी ऊतक में बिजली के झटके से कोई नुकसान नहीं होने का सुझाव दिया. हिस्टोपैथोलॉजी रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद, कुमार ने मुझे बताया कि एक और महत्वपूर्ण खोज रामकुमार के मुंह में बिजली के इन्सुलेशन के कणों की कमी थी, जैसा कि दावा किया गया है, अगर उसने तारों को काटा होता तो ऐसा कुछ जरूर पीछे छूट गया होता.
रामकुमार के शरीर की जांच करने वाले रोयापेट्टा अस्पताल के कैजुअल्टी मेडिकल आफिसर अब्दुल खादर ने टीएनएसएचआरसी के समक्ष अपना पक्ष रखा. जिरह के दौरान, उन्होंने कई दावे किए जो पुलिस बयान का खंडन करते हैं. उन्होंने कहा कि ऐसा कोई सबूत नहीं है जो बताता हो कि रामकुमार का जेल क्लिनिक में इलाज किया गया था. इसके अलावा उसकी देह अकड़ने लगी थी. उन्होंने कहा कि देह अकड़ना आमतौर पर मृत्यु के बाद केवल बारह घंटे में होना शुरू हो जाता है. उन्होंने टीएनएसएचआरसी को यह भी बताया कि उन्होंने जो चोटें देखीं, वे बिजली की चोटें नहीं थीं.
थिरुमावलवन ने मुझे बताया, "अगर कोई व्यक्ति आत्महत्या करना चाहता है, तो वह जेल में बंद होने के बाद पहले सप्ताह में ऐसा कर लेता. वह 83 दिनों तक इंतजार नहीं करेगा और फिर आत्महत्या कर लेगा जब उसे कुछ दिनों में जमानत मिलने वाली थी. उसके पास जेल में केवल एक सप्ताह बचा था.” उन्होंने कहा कि यह बताने के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि रामकुमार की मौत हिरासत में हुई हत्या थी और उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी केंद्रीय जांच ब्यूरो से मामले की जांच की मांग कर रही है.
टीएनएसएचआरसी की पूरी रिपोर्ट अभी भी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है. आयोग द्वारा खादर से जिरह के फौरन बाद, पुझल के जेल अधीक्षक आर अंबालागन ने मद्रास उच्च न्यायालय से जांच पर रोक लगाने के लिए कहा, जिसे अदालत ने मंजूरी दे दी. पिछले छह महीने से मामले की सुनवाई लगातार टल रही है. अंबालागन के वकील आर थॉमस ने मुझे बताया कि उन्होंने जांच का विरोध किया था क्योंकि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने पहले ही मामले की जांच कर ली थी. आयोग ने मार्च 2017 में एक मामला दर्ज किया था और यह तय करते हुए इसे जल्दी से बंद कर दिया था कि रामकुमार को गलत तरीके से फंसाया या हत्या करने का संकेत देने के लिए "रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं" था.
दिलीपन ने मुझे बताया, "यह अविश्वसनीय है कि रामकुमार की हत्या के बारे में अक्षम या द्वेष के कारण काम करने वाले लोगों की भारी संख्या है. चेन्नई पुलिस को उसे फंसाना पड़ा, तिरुनेलवेली पुलिस को उसकी हत्या का प्रयास करना पड़ा, वहां के डॉक्टरों को पुलिस की रक्षा करनी पड़ी, जेल वार्डन को उसकी हत्या करनी पड़ी, अदालतों को पूरी प्रक्रिया में कोई कार्रवाई करने में विफल होना पड़ा और मीडिया को दो बार सोचे बिना पूरे दिल से पुलिस के नेरेटिव को दोहराना पड़ा. उन्होंने कहा कि अगर कोई ऐसा पत्रकार, पुलिस अधिकारी या न्यायाधीश होता, जिसकी रीढ़ की हड्डी होती, तो मुमकिन है रामकुमार जीवित और मुक्त होता.
स्वाति और रामकुमार की मौत के पुलिस नेरेटिव को वैध बनाने में तमिल और अंग्रेजी दोनों मीडिया की मिलीभगत को समझना मुश्किल है. रामकुमार की गिरफ्तारी के दिन से, अदालत में कोई सबूत पेश किए जाने से पहले ही, अधिकांश मीडिया सुर्खियों में रामकुमार को एक हत्यारा बताया गया था. थंथी टीवी, दिनमलार, न्यूज 7 और मलाईमलर सभी ने उसे स्वाति का हत्यारा बताते हुए सुर्खियां बटोरीं, उन्होंने "कथित" शब्द से परहेज किया जो इस तरह की घटना की किसी भी जिम्मेदार रिपोर्टिंग के वक्त इस्तेमाल किया जाता है. अन्य मीडिया संगठनों ने कामुकता भरी सुर्खियां चलाईं. ज़ी न्यूज़ ने रिपोर्ट चलाई कि "स्वाति हत्याकांड: 'साइलेंट' रामकुमार इंफोसिस के तकनीकी विशेषज्ञ पर फिदा था, उसके साथ दोस्ती की पेशकश ठुकराने के बाद उसकी हत्या कर दी," जबकि इंडिया टुडे की हेडलाइन थी "तुमने मेरी बेटी के साथ ऐसा क्यों किया? हत्यारे रामकुमार को देखकर स्वाति के पिता रो पड़े.''
दिलीपन ने कहा कि अखबारों और टेलीविजन चैनलों ने लगातार उन तथ्यों की अनदेखी की जो पुलिस के बयान के खिलाफ हैं. उन्होंने मुझे बताया, "रामकुमार ने अपनी लिखावट में लिखा था और एग्मोर कोर्ट में जमा किया था कि उसने स्वाति की हत्या नहीं की और वह किसी भी तरह के मानसिक अवसाद में नहीं है. मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन के दौरान भी, रामकुमार ने कहा था कि उसके मन में कभी आत्महत्या के विचार नहीं आए." उन्होंने कहा कि रामकुमार ने टेलीविजन चैनल पुथिया थलाइमुराई द्वारा अपनी मृत्यु से आठ दिन पहले 10 सितंबर को, भेजी गई एक प्रश्नावली का जवाब दिया था, जिसमें उन्होंने उल्लेख किया था कि उसका स्वाति की हत्या से कोई संबंध नहीं है. उसकी मृत्यु के बाद तक चैनल ने इसे प्रकाशित नहीं किया. दिलीपन ने कहा, "ये तथ्य तब और महत्वपूर्ण हो जाते हैं जब एक जान पहले ही जा चुकी है. अगर उन्होंने रामकुमार या उसके वकील की बात सुनने की परवाह की होती कि उसे किस तरह अपनी जिंदगी का डर है और इसकी सूचना दी होती, तो हो सकता है कि वह अभी भी जीवित होता."
रामकुमार के परिवार ने शिकायत की कि कैसे मीडिया ने उनके जीवन के सबसे कष्टदायक दौर में उनका पीछा किया. रामकुमार की मां पुष्पम ने मुझे बताया, "मीडिया के लोगों के डर से हमें अपनी बेटियों को शौचालय में छिपाना पड़ा. वे हमें घेरते रहे, तस्वीरें लेते रहे और हम पर सवालों की बौछार करते रहे." कलेश्वरी ने कहा कि गिरफ्तारी के बाद के दिनों में परिवार अपने घर पर रहने में असमर्थ था. "हमें कुछ दिनों के लिए अपने रिश्तेदार के यहां रहना पड़ा, क्योंकि पुलिस घर पर तैनात थी और कैमरे हमेशा वहां होते थे," उसने याद किया. "हम लगातार निगरानी में थे." परिवार का इस तरह डर के साये में रहना एक और अभिव्यक्ति और सुर्खी बन गई जो रामकुमार को अपराधी के रूप में चित्रित कर सकती थी.
जब मैं इस साल अप्रैल में पहली बार परिवार से मिलने गई, तो परमशिवम एक स्थानीय मंदिर उत्सव में व्यस्त थे. उन्होंने कहा कि परिवार इस तथ्य को स्वीकार कर चुका था कि वे अपने बेटे को वापस नहीं पा सकते, लेकिन उन्हें अभी भी उम्मीद थी कि रामकुमार का नाम कम से कम इस मामले से साफ हो जाएगा. "मुझे नहीं पता कि यह पूछना ठीक है, लेकिन इतने सारे लोगों ने उसे उस स्थिति में डाल दिया. मुझे यकीन है कि वे कम से कम राज्य को यह स्पष्ट करने के लिए जो कुछ करना है वह कर सकते हैं कि मेरा बेटा हत्यारा नहीं था.
मीनाक्षीपुरम और मंदिर का जहां परमशिवम मुस्तैद थे, का तमिलनाडु के इतिहास में एक विशेष स्थान है. 1981 में, गंभीर जातिवाद और हिंसा का सामना करने के बाद, क्षेत्र के पल्लार समुदाय, जो परंपरागत तौर पर जाति पिरामिड के निचले भाग में आते, ने सामूहिक रूप से इस्लाम कबूल कर लिया. इस घटना ने भारत सरकार और हिंदू दक्षिणपंथ के बीच इस तरह के धर्मांतरण का लगभग उन्मादपूर्ण भय पैदा कर दिया, जिसने इसे हिंदू धर्म को कमजोर करने की साजिश के हिस्से के रूप में देखा. बीजेपी नेता और भावी प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी दलितों को हिंदू धर्म में वापस लाने के लिए मनाने के प्रयास में गांव पहुंचे. प्रधान मंत्री, इंदिरा गांधी और गृह मंत्री, जैल सिंह, एक संभावित राजनीतिक साजिश के रूप में सामूहिक धर्मांतरण की जांच करना चाहते थे. इस घटना ने तमिलनाडु में हिंदू दक्षिणपंथ के उदय को जन्म दिया, जिसमें हिंदू मक्कली काची और हिंदू मुन्नानी जैसे संगठन भी शामिल थे. जब दलितों में से एक को गिरफ्तार कर लिया गया और संदिग्ध परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई, तो दलितों के इस्लाम में परिवर्तित होने पर क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दोनों दल कहीं अधिक मुखर साबित हुए.
दिलीपन ने मुझे बताया कि रामकुमार की कहानी उन्हें परेशान करती रही क्योंकि उन्हें एहसास हुआ कि उनके साथ भी ऐसा ही कुछ आसानी से हो सकता था. दिलीपन ने कहा, "वह गलत समय पर गलत जगह पर था. इस तरह की घटनाएं आए दिन होती रहती हैं और हम में से कुछ लोगों की वजह से ही इस मामले के बारे में अभी भी सवाल पूछे जा रहे हैं." उन्होंने कहा कि रामकुमार के साथ जो कुछ हुआ वह पुलिस के काम और मीडिया ऐसी घटनाओं के बारे में कैसे रिपोर्ट करता है, इसकी मानक प्रक्रिया है. "यह पूरा सिस्टम एक 24 वर्षीय व्यक्ति को उस अपराध के लिए मारने में लगा था जो उसने नहीं किया था. उस दिन रामकुमार था, कल मैं हो सकता हूं, या मेरे जैसा दिखने वाला कोई भी हो सकता है, जो किसी और के अपराध के लिए जेल में बंद हो जाता है और बिना शोक के मर जाता है.