11 अगस्त को दोपहर में दिल्ली के उत्तरी घोंडा के सुभाष मोहल्ला में एक भीड़ ने कारवां के तीन पत्रकारों पर हमला किया. कारवां के पत्रकार दिल्ली हिंसा की एक शिकायतकर्ता से संबंधित रिपोर्ट करने वहां गए थे. तकरीबन 2 घंटे तक शाहिद तांत्रे, प्रभजीत सिंह और कारवां की एक महिला पत्रकार पर हमला होता रहा. उन्हें सांप्रदायिक गालियां दीं, हत्या कर देने की धमकी दी और उनके साथ हिंसा की. जब ये पत्रकार इलाके में लगे भगवा झंडों की तस्वीरें ले रहे थे, तब कुछ लोग उनके पास जमा होकर तस्वीर लेने से रोकने लगे. वहां मौजूद एक आदमी, जो भगवा कुर्ता पहने था, खुद को बीजेपी का महासचिव बता रहा था. उस आदमी ने तांत्रे से परिचय पत्र मांगा और जैसे ही उन्हें यह पता चला कि तांत्रे मुसलमान हैं, उन लोगों ने हमला कर दिया. महिला पत्रकार जब वहां से भागने लगीं तो एक अधेड़ उम्र का आदमी उनके सामने पेंट उतार कर नंगा हो गया. भीड़ ने उस महिला पत्रकार पर भी हमला कर दिया. महिला पत्रकार की सुरक्षा के मद्देनजर कारवां उनकी पहचान जाहिर नहीं कर रहा है.
हमला दोपहर 2 बजे के आसपास हुआ था. स्थानीय आदमी और महिलाओं की भीड़ ने पत्रकारों को घेर लिया और जब तांत्रे की मुस्लिम पहचान का पता चला तो हमला कर दिया. हमले से बचने के लिए महिला पत्रकार गली के एक गेट में घुस गई लेकिन भीड़ ने को बंद कर लिया और दोनों पत्रकार अंदर कैद हो गए. महिला पत्रकार ने हमला करने वालों से मिन्नतें की कि उनके साथियों को जाने दें लेकिन एक आदमी ने, जिसके बाल जवानों जैसे थे और हाथों में राखियां बंधी हुई थीं, उसने महिला के कपड़े पकड़कर गेट के अंदर खींचने की कोशिश की. महिला पत्रकार वहां से निकल कर पड़ोस की एक गली में भागीं लेकिन जब वह एक जगह रुक कर सांस लेने लगीं तो लड़कों ने उन्हें घेर लिया और महिला पत्रकार की तस्वीरें खींचने लगे और वीडियो बनाने लगे और उन पर भद्दी टिप्पणियां करने लगे और कहने लगे, “दिखाओ, दिखाओ.” महिला पत्रकार ने अपनी आपबीती पुलिस में दर्ज अपनी शिकायत में बताई है, जो उन्होंने घटना के तुरंत बाद दर्ज कराई थी.
महिला पत्रकार ने अपनी शिकायत में लिखा है, “जैसे ही मैं वहां से निकलने लगी, एक अधेड़ उम्र का आदमी, जिसने धोती और टीशर्ट पहन रखी थी और उसके गंजे सिर पर एक चोटी थी, वह मेरे सामने आकर खड़ा हो गया. उस आदमी ने अपनी धोती खोली और अपने गुप्तांग दिखाने लगा. वह आपत्तिजनक और अश्लील इशारे करने लगा और मुझ पर हंसने लगा.” उस आदमी से बचकर भागते समय महिला पत्रकार को तांत्रे का फोन आया और तांत्रे ने उनसे भजनपुरा पुलिस स्टेशन पहुंचने को कहा. उस वक्त तक पुलिस तांत्रे और सिंह को पुलिस स्टेशन ले जा चुकी थी. जब वह महिला पत्रकार लोगों से पुलिस स्टेशन का रास्ता पूछ रही थीं तब भीड़ ने उन्हें फिर घेर लिया और पिटाई करने लगी.
पत्रकार प्रभजीत सिंह ने बताया है कि भगवा कुर्ता वाले आदमी के परिचय पत्र मांगने से पहले ही वहां गली में 20 के आसपास लोग मौजूद थे. उन्होंने बताया है कि भीड़ को उन्होंने बता दिया था कि तीनों पत्रकार हैं और कुछ भी गैरकानूनी काम नहीं कर रहे हैं. सिंह ने भीड़ से कहा, “हम लोग गली की फोटो ले रहे हैं. घर के अंदर की फोटो नहीं ले रहे हैं. कोई भी पत्रकार इतने सारे झंडे देखने पर फोटो लेगा ही.” लेकिन भीड़ ने उनकी बात नहीं सुनी. भगवा कुर्ता वाला आदमी बोला, “तुम्हारी तरह फटीचर पत्रकार बहुत देखे हैं. मैं बीजेपी का जनरल सेक्रेटरी हूं. हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते तुम.”
तांत्रे ने बताया कि जब आदमी ने प्रेस कार्ड में उनका नाम देखा तो वह चिल्लाया, तू तो कटुआ मुल्ला है.” इसके बाद वह आदमी तुरंत स्थानीय लोगों को बुलाने लगा और मिनटों में वहां 50 के आसपास लोग जमा हो गए. सिंह ने बताया कि “भीड़ बहुत आक्रमक हो गई थी और शाहिद का आईडी देखने के बाद उसकी संख्या में तेजी से इजाफा होने लगा.”
लगभग डेढ़ घंटे तक लोग दोनों पत्रकारों को घेरे रहे और तांत्रे पर सांप्रदायिक गालियों की बौछार करते रहे. वे लोग लगातार तांत्रे के साथ धक्कामुक्की कर रहे थे, उन्हें थप्पड़ और लातों से मार रहे थे. जब सिंह ने बीच-बचाव की कोशिश की तो उन्हें भी लातों से मारने लगे. भीड़ ने पत्रकारों को धमकी दी कि वे लोग उनका कैमरा तोड़ देंगे. इसके बाद तांत्रे ने कहा कि वह फोटो डिलीट करने को तैयार हैं. क्योंकि कैमरा महिला पत्रकार के पास था इसलिए तांत्रे ने उनसे कैमरा लेने गेट तक आए और महिला पत्रकार के हाथ से कैमरा लेकर फोटो डिलीट कर दी. इसके बावजूद भीड़ कैमरा तोड़ने की धमकी देती रही और मजबूरन तांत्रे को अपना मेमोरी कार्ड भीड़ को सौंपना पड़ा. इसके बावजूद भीड़ शांत नहीं हुई और पत्रकारों को पीटती रही. तांत्रेक ने बताया, “वे लोग मुझे मार रहे थे और कैमरे के बेल्ट से मेरा गला घोंटने लगे.”
पुलिस को दर्ज कराई अपनी शिकायत में सिंह ने बताया है कि भीड़ में शामिल लोग चिल्ला रहे थे, ''मुल्ला साले कटुआ'' और “साले जान से मार देंगे.'' तभी वहां दो पुलिस वाले, अतिरिक्त सब इंस्पैक्टर जाकिर खान और हेड कांस्टेबल अरविंद कुमार पहुंच गए. सिंह ने अपनी शिकायत में बताया, ''उन्होंने बीच-बचाव करने और हिंसक, बर्बर भीड़ को शांत करने की कोशिश की लेकिन भगवा कुर्ता पहने आदमी ने औरतों को हमारे खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया. दो औरतें शाहिद का कैमरा छीनने लगीं. पुलिस की मौजूदगी के बावजूद भीड़ बेकाबू थी.''
आखिरकार कुछ और पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंचे और दोनों पत्रकारों को भीड़ से दूर ले जाने में सफल रहे. यहां तक कि जब उन्हें ले जाया जा रहा था, तब भी भीड़ के सदस्यों ने विरोध किया. उनमें से एक चिल्लाया, "आप उन्हें इस तरह कैसे दूर कर सकते हैं?" एक पुलिस अधिकारी ने जवाब दिया, "हम उन्हें स्टेशन ले जा रहे हैं. हम उनसे वहां सवाल करेंगे." तब तांत्रे और सिंह को भजनपुरा पुलिस स्टेशन ले जाया गया, जहां उन्होंने घटना के बारे में शिकायत लिखी. शिकायत में सिंह ने कहा, "अगर मैं वहां नहीं होता तो उस भगवा कुर्ता पहने आदमी के नेतृत्व वाली भीड़ शाहिद के मुस्लिम होने के चलते उन्हे मारती."
पुलिस द्वारा पत्रकारों को भीड़ से दूर ले जाने के बाद तांत्रे ने महिला पत्रकार को फोन किया. जब महिला पत्रकार भजनपुरा पुलिस स्टेशन का रास्ता तलाश रही थीं तो भीड़ ने उन्हें ढूंढ लिया. उन्होंने अपनी शिकायत में कहा कि जब वह पुलिस स्टेशन जाने का रास्ता पूछ रही थीं, तो उन्होंने "तीन महिलाओं और दो-तीन आदमियों की भीड़ देखी, जो मेरी ओर इशारा कर रही थी और मेरी तरफ बढ़ रही थी. मैं भागने लगी. दौड़ते-दौड़ते मैं गिर गई और भीड़ ने मुझे पकड़ लिया. हमलावरों ने उनकी पिटाई करते हुए तुरंत उन्हें इधर-उधर धक्का देना शुरू कर दिया. "उन सभी ने मेरे सिर, हाथ, छाती, कूल्हों पर मारना शुरू कर दिया." उन्होंने भगवा कुर्ते वाले आदमी को उसकी बांह पर बंधी पट्टी से पहचाना. उन्होंने पहले भी उसे भीड़ में देखा था.
जब भीड़ लगातार उन पर हमला कर रही थी तो महिला पत्रकार ने एक पुलिसकर्मी को देखा और उसके पास पहुंची. "इस पुलिस वाले ने स्थिति को हल्का बनाने की कोशिश की और हमसे बातचीत करके झगड़ा निपटाने को कहा.” जब वह पुलिस वाले से मदद की गुहार लगा रहीं थीं तो एक अन्य अधिकारी मौके पर पहुंचा. दूसरा पुलिसकर्मी उन्हें भजनपुरा पुलिस स्टेशन ले गया, जहां उन्होंने शिकायत दर्ज की.
तीनों पत्रकार दिल्ली हिंसा से जुड़े एक मामले में शिकायतकर्ता महिला के बारे में सिंह और तांत्रे के हालिया लेख की फॉलोअप रिपोर्टिंग कर रहे थे. इस रिपोर्ट में 8 अगस्त की रात को भजनपुरा पुलिस स्टेशन में दिल्ली हिंसा की शिकायतकर्ता और उनकी 17 साल की नाबालिग बेटी के साथ पुलिस अधिकारियों द्वारा पिटाई और यौन उत्पीड़न का आरोप है. शिकायतकर्ता दो दिन पहले दर्ज की गई शिकायत के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग करने के लिए उस रात पुलिस स्टेशन गईं थीं. 5 और 6 अगस्त की दरमियानी रात में इलाके के हिंदुओं ने सांप्रदायिक नारे लगाए थे और अयोध्या में राम मंदिर शिलान्यास समारोह के बाद पड़ोस के मुस्लिम तरफ के गेट पर आरएसएस का झंडा लगाया था. पुलिस ने महिलाओं को शिकायत की एक हस्ताक्षरित प्रति दी लेकिन जब महिलाओं ने एफआईआर मांगी तो पुलिस वालों ने शिकायतकर्ता, उनकी बेटी और एक अन्य महिला की पिटाई की और यौन उत्पीड़न किया.
हिंसा के बाद से और कोरोनोवायरस राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान भी कारवां दिल्ली हिंसा के दौरान मुसलमानों पर लक्षित हमलों और उसमें पुलिस की मिलीभगत की रिपोर्टिंग करने में सबसे आगे रहा है. जून और जुलाई में प्रकाशित सिंह की खोजी रिपोर्टों में स्थानीय मुस्लिमों ने शिकायत की थी कि पुलिस ने उनकी शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं की. सिंह ने अपनी रिपोर्टों में बताया है कि बीजेपी नेताओं और पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों पर हिंसा में भाग लेने या उसका संचालन करने का आरोप लगा है. एक वीडियो स्टोरी में, तांत्रे ने एक अन्य पत्रकार के साथ, एक हिंदू दंगाई की गवाही दर्ज की, जिसने हिंसा के दौरान मुसलमानों पर आगजनी और हमले पर खुलकर बात की और कहा कि पुलिस ने हिंदू दंगाइयों को मुसलमानों पर हमला करने के लिए उकसाया था. कारवां की एक अन्य रिपोर्ट में तांत्रे और एक अन्य सहकर्मी ने एक मुस्लिम व्यक्ति की कहानी बताई है जिसने हिंसा में गोली लगने से आंख खो दी है और मामले में दिल्ली पुलिस ने कमजोर जांच की है. हम उत्तर पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा पर अपना कवरेज जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं.