अजय मिश्रा टेनी के दामन में कितने दाग : छात्र नेता प्रभात गुप्ता की हत्या से लेकर किसान हत्याकांड तक

गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी अक्टूबर 2021 में लखनऊ में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के आधिकारिक आवास पर एक बैठक में भाग लेने जाते हुए. एएनआई/हिंदुस्तान टाइम्स

"हाल ही में संपन्न पंचायत चुनाव से अजय मिश्रा उर्फ टेनी की मेरे लड़के राजू (प्रभात गुप्ता) से रंजिश चल रही थी”, संतोष गुप्ता ने उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले के तिकुनिया पुलिस स्टेशन में 8 जुलाई 2000 को दर्ज अपनी शिकायत में लिखा था. प्रभात संतोष का सबसे बड़ा बेटा था. संतोष ने लिखा कि उस दिन टेनी ने प्रभात के एक भाई संजीव गुप्ता औप अन्य लोगों के सामने “मेरे लड़के राजू के कनपटी पर गोली मार दी और तुरंत दूसरी गोली सुभाष उर्फ मामा ने सीने और पेट के बीच गोली मार दी. मेरा लड़का तत्काल मौके पर ही गिर गया और उसकी मौत हो गई.” संतोष ने लिखा कि टेनी और तीन अन्य ने फिर हवा में अपनी बंदूकें लहारते हुए कहा, "साला राजू बचने न पाए."

फिर लगभग इक्कीस साल बाद 7 जुलाई 2021 को टेनी ने भारतीय जनता पार्टी सरकार में राज्य मंत्री के रूप में शपथ ली.

तीन महीने बाद टेनी तब सुर्खियों में आए जब एक काफिले ने लखीमपुर खीरी में विरोध कर रहे किसानों को कुचल दिया. मौके पर मौजूद प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि काफिले को टेनी का बेटा आशीष लीड कर रहा था. राज्य पुलिस ने 4 अक्टूबर को घटना की प्राथमिकी दर्ज की लेकिन आशीष को "15-20 अज्ञात व्यक्तियों" के साथ एक आरोपी के रूप में नामित किया गया. मंत्री के बेटे को गिरफ्तार करने में पांच दिन लग गए.

बता दें कि 14 दिसंबर को घटना की जांच के लिए सरकार द्वारा गठित एसआईटी ने खुलासा किया है कि किसानों को मारने के मकसद से ही गाड़ी चढ़ाई गई थी और वह हादसा नहीं था.

प्रभात के परिवार की माने तो टेनी की प्रतिष्ठा ही थी जिसके कारण सन 2000 की हत्या के मामले में वह बरी हो गए. सतोश, संजीव और एक अन्य गवाह की गवाही के आधार पर एक पुलिस रिपोर्ट में कहा गया है कि “आतंक और डर के कारण क्षेत्र से कोई भी सही और सच कहने का साहस नहीं जुटा पाता है." चार्जशीट में पुलिस की टिप्पणी में कहा गया है कि मामले में चारों आरोपियों के खिलाफ हत्या के आरोप "सच पाए गए हैं." टेनी महीनों तक गिरफ्तारी से बचते रहे और जून 2001 में उन्हें जमानत मिल गई. उस वर्ष जिला सरकार के वकील ने जिला मजिस्ट्रेट को एक पत्र लिखा था जिसमें बताया गया था कि राज्य को टेनी की जमानत के लिए अपील क्यों करनी चाहिए. उन्होंने लिखा कि जमानत "कानून और न्यायिक प्रक्रिया के खिलाफ है." फिर भी 2004 में टेनी को जेल में एक भी रात बिताए बिना बरी कर दिया गया.

61 वर्षीय मंत्री लखीमपुर खीरी के निघासन प्रखंड के बनवीर पुर गांव के हैं. प्रभात की हत्या उनके खिलाफ पहला आपराधिक आरोप नहीं है. खबरों के मु​ताबिक 1996 में तिकुनिया पुलिस स्टेशन में उनका नाम बतौर हिस्ट्री सीटर दर्ज था.

"जिस जगह पर मेरे भाई को गोली मारी गई वह हमारे घर से 100-120 मीटर दूर है," प्रभात के छोटे भाई राजीव गुप्ता ने हमें बताया. राजीव उस वक्त 22 साल के थे. उन्होंने कहा कि उनका घर उस इलाके से महज 200-250 मीटर की दूरी पर है जहां इस साल टेनी से जुड़े काफिले ने किसानों को रौंदा था.

प्रभात के परिवार ने आरोप लगाया है कि टेनी को प्रभात के बढ़ते राजनीतिक प्रभाव से खतरा था. प्रभात अपनी मृत्यु के समय लखनऊ विश्वविद्यालय में 29 वर्षीय छात्र नेता थे. राजीव ने हमें बताया, "लखनऊ विश्वविद्यालय के एक लोकप्रिय छात्र नेता होने के अलावा मेरे भाई समाजवादी युवाजन सभा के राज्य सचिव भी थे. उन्होंने 2000 में जिला पंचायत चुनावों के लिए नामांकन पत्र दाखिल किया था. टेनी, जो बीजेपी के साथ थे और जिला सहकारी बैंक के उपाध्यक्ष थे, ने अपनी लोकप्रियता और रुतबे के लिए एक झटका माना.” राजीव के मुताबिक हत्या से पहले आरोपियों ने प्रभात को दो बार धमकाया था. राजीव ने कहा, "टेनी ने मेरे भाई के साथ तीखी बहस की और उसे जान से मारने की धमकी दी." उन्होंने कहा कि सुभाष ने भी प्रभात को धमकी दी थी कि वह टेनी से कहलवा कर जान से मारवा देंगे.

प्रभात हत्याकांड के चार आरोपियों में टेनी का नाम भी है. अन्य तीन आरोपी सुभाष उर्फ ​​मामा, राकेश उर्फ ​​डालू, शशि भूषण उर्फ ​​पिंकी हैं. उन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत हत्या का मामला दर्ज किया गया था. मामले में 13 दिसंबर 2000 को आरोप पत्र दायर किया गया था.

संतोष, संजीव गुप्ता और विनोद गुप्ता नाम के एक व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों के आधार पर "जांच का विवरण" शीर्षक वाला एक दस्तावेज चार्जशीट से जुड़ा हुआ था, जिसमें इसी तरह की टिप्पणियों का उल्लेख किया गया था. इसमें उल्लेख किया गया है कि प्रभात “राजू के समाजवादी पार्टी में पदाधिकारी बनने और उनकी बढ़ती छवि के कारण अजय मिश्रा की छवि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा था और वह अपना समर्थन आधार खो रहे थे. इस प्रकार, अपना प्रभाव और स्थान बनाए रखने के लिए, प्रभात को रास्ते से हटा दिया गया और उसकी हत्या कर दी गई.”

दस्तावेज में आरोप लगाया गया कि टेनी मामले में गवाहों को प्रभावित कर रहे थे. उसमें लिखा है, “टेनी के समर्थन में दी गई गवाहियां कमजोर हैं और उसके डर से दी गई हैं." इसमें उल्लेख किया गया है कि टेनी बीजेपी नेता होने के अलावा स्थानीय विधायक और यूपी सरकार के सहकारिता मंत्री राम कुमार वर्मा के करीबी सहयोगी थे. दस्तावेज में उल्लेख किया गया है, "वह कुछ लोगों पर गवाह के रूप में हलफनामे के जरिए बयान देने के लिए दबाव बना रहे हैं फिर भले ही वे घटना के समय मौजूद नहीं थे. मिश्रा ने गवाहों को मजबूर किया और उनके साथ छेड़छाड़ की, “इससे स्पष्ट होता है कि अजय मिश्रा आदि के खिलाफ कोई व्यक्ति मुंह नहीं खोल सकता है.”

चार्जशीट में कहा गया है कि चश्मदीदों के बयान, आरोपी के बयान, पोस्टमार्टम रिपोर्ट और प्राथमिकी जैसे दस्तावेजों की समीक्षा करने के बाद, "यह ज्ञात है कि आरोपी व्यक्तियों ने ... प्रभात को गोली मार दी." इसमें कहा गया है कि "आईपीसी की धारा 302 के तहत हत्या का आरोप सही पाया गया." आरोप पत्र में उल्लेख किया गया है कि "आरोपियों द्वारा दबाव में हलफनामा प्रस्तुत करने का आरोप सही पाया गया." इसमें कहा गया है, "सबूत तलब फरमाकर दंडित करने की कृपा करें.”

प्रभात के परिवार के मुताबिक, गवाहों के साथ-साथ उनको भी मामला वापस लेने की धमकी दी गई. 20 अक्टूबर 2000 को राजीव ने मुख्यमंत्री के मुख्य सचिव को पत्र लिखा कि उनके परिवार को "जानमाल का खतरा" है, उनको धमकी मिल रही है. यह पत्र गृह विभाग के मुख्य सचिव को भेज दिया गया.

मुख्य सचिव ने गृह विभाग को मामले की प्रभावी जांच तुरंत सुनिश्चित करने और “श्री गुप्ता के परिवार को पूर्ण सुरक्षा प्रदान करने” के लिए कहा. प्रभात के परिवार को मिली दो धमकियों के बारे में लखीमपुर खीरी के तत्कालीन जिला सरकार वकील मोहम्मद अजीज सिद्दीकी ने 2 अगस्त 2001 को जिला मजिस्ट्रेट को लिखा था. सिद्दीकी ने लिखा है कि 25 जनवरी 2001 को टेनी के दो सहयोगियों ने एक दुकान से अपने घर जा रहे संजीव को जान-माल की धमकी दी. सिद्दीकी के पत्र में कहा गया है, "संजीव ने इसके खिलाफ तिकुनिया पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई है. संतोष गुप्ता को एक अंतर्देशीय पत्र भी मिला, जिसमें उन्हें धमकी दी गई थी कि वह मामले को आगे बढ़ाना बंद करें नहीं तो उनके पूरे परिवार को उनके बेटे की तरह ही मार दिया जाएगा."

उस साल 10 मई को पारित एक आदेश में अदालत ने कहा, "यह तर्क दिया जाता है कि बचाव पक्ष नंबर 3 को इस आधार पर हिरासत में नहीं लिया जा रहा है कि फाइल उपलब्ध नहीं थी और टेनी देरी की रणनीति का इस्तेमाल कर रहे थे और हिरासत में लिए जाने से बचने के लिए छूट मांग रहे थे." राजीव ने मुझे बताया कि मामले में बचाव पक्ष नंबर 3 टेनी को कहा गया है. उच्च न्यायालय के 10 मई के आदेश ने मामले में दूसरे प्रतिवादी, लखीमपुर खीरी के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया, "फाइल को उनके सामने उपलब्ध कराएं और कानूनन मामले में आगे बढ़ें और बचाव पक्षकार नं. 3 के उपस्थित होने की और हिरासत में लेने के संबंध में कानून की उचित प्रक्रिया में देरी की अनुमति न दें."

बाबजूद टेनी ने एक दिन भी जेल में नहीं गुजारा.

सिद्दीकी ने 2 अगस्त 2001 को अपने पत्र में जिला मजिस्ट्रेट को बताया कि प्रभात की हत्या के मामले में "नामित होने के उपरान्त भी अभियुक्त अजय मिश्रा 11 माह तक गिरफ्तार नहीं किया जा सका.” सिद्दीकी आगे लिखते हैं, “विवेचना अधिकारी द्वारा उसकी गिरफ्तारी हेतु गैर जमानती वारंट व धारा 82-83 सीआरपीसी की कार्यवाही हेतु आदेश मांगे जाने के प्रार्थना पत्र पर न्यायालय जे.एम. खीरी ने दिनांक 27 फरवरी 2001 को आदेश दिया था कि अभियुक्त दिनांक 28 मार्च 2001 को अदालत उपस्थित हो अन्यथा उसकी उपस्थति हेतु दंडात्मक कार्यवाही जारी होगी."

सिद्दीकी ने लिखा कि 28 मार्च को टेनी अदालत में पेश नहीं हुए. "उसकी ओर से अधिवक्ता द्वारा हाजिरी माफी की दरख्वास्त दी गई कि वह बीमार है परंतु पिछला आदेश हो चुकने के बाद भी अभियुक्त की गिरफ्तारी हेतु कोई कारगर कदम उठाने के आदेश पारित नहीं किया गया.” मामले की अगली सुनवाई 27 अप्रैल को निर्धारित की गई लेकिन 27 अप्रैल 2001 को भी अजय मिश्रा टेनी ने कोर्ट के सामने सरेंडर नहीं किया.

सिद्दीकी ने लिखा था कि अजय मिश्रा उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच में सीआरपीसी की धारा 482 के तहत बार-बार अलग-अलग रिट याचिकाएं दाखिल करते रहे और और गिरफ्तारी से बचते रहे. इस संबंध में उच्च न्यायालय ने उनके खिलाफ झूठे बयान देने पर नोटिस भी जारी किया. (धारा 482 के तहत एफआईआर रद्द करने की मांग वाली याचिकाएं दायर की जाती हैं.)

सिद्दीकी ने लिखा कि टेनी जमानत याचिका दायर करने और आत्मसमर्पण करने के लिए सही वक्त के इंतजार में थे. 25 जून 2001 को जब जिला न्यायाधीश गर्मी की छुट्टी पर थे टेनी ने जमानत के लिए और न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत के सामने पेश होने की प्रार्थना लगाई. और उसी दिन जिला सत्र न्यायालय में जमानत अर्जी दाखिल की. “मेरी जानकारी के अनुसार जमानत याचिकाओं का निपटारा दोपहर 1 बजे न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में शुरू होता है और जिला सत्र अदालत में दोपहर 12 बजे से पहले जमानत याचिकाओं का निपटारा किया जाता है. फिर भी उसी दिन जिला सत्र अदालत ने उसकी जमानत याचिका कैसे सुनी?”

सिद्दीकी ने विस्तार से बताया कि जिला अदालत में क्या हुआ. सिद्दीकी ने लिखा, "दोपहर 3 बजे सरकारी वकील को अपना जवाब दाखिल करने के लिए बिना किसी पूर्व सूचना के बुलाया गया था. सरकारी अभियोजक से असहमति के बाद, उन्हें अतिरिक्त जिला सत्र न्यायाधीश द्वारा सिर्फ एक रात का समय दिया गया था और अगले दिन यानी 26 जून 2001 को सुबह 11 बजे तक अपना जवाब दाखिल करने के लिए कहा गया. न्यायाधीश ने टेनी को जेल भेजने के बजाए जिला अस्पताल भेजने का निर्देश दिया.” बहस के अगले दिन टेनी को जमानत मिल गई. सिद्दीकी के अनुसार, टेनी एक वीआईपी की तरह न्यायिक हिरासत में गए बिना ही जमानत पर रिहा हो गया."

सिद्दीकी ने जिला मजिस्ट्रेट से टेनी की जमानत रद्द करने के लिए सरकारी वकील को निर्देशित करने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का अनुरोध किया. राजीव ने मुझे बताया कि वह राज्य सरकार के अधिकारियों से भी कई बार मिले, उनसे राज्य की ओर से जमानत के खिलाफ अपील दायर करने का अनुरोध किया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

29 मार्च 2004 को एक जिला सत्र अदालत ने टेनी को बरी कर दिया.

प्रभात गुप्ता 2000 में लखनऊ विश्वविद्यालय में 29 वर्षीय छात्र नेता थे. उनके परिवार ने आरोप लगाया है कि अजय मिश्रा टेनी और उनके सहयोगियों ने उस वर्ष 8 जुलाई को उनकी हत्या कर दी थी क्योंकि टेनी को प्रभात के बढ़ते राजनीतिक प्रभाव से खतरा महसूस हो रहा था. साभार : जतिंदर कौर तुर

राजीव कहते हैं, “हमें फैसले की कॉपी तक नहीं मिल सकी.” राजीव ने बरी किए जाने के खिलाफ राज्य सरकार की अपील के कुछ अंश साझा किए. इसमें कुछ बिंदु शामिल थे जिनके आधार पर जिला सत्र अदालत ने टेनी को बरी कर दिया.

राज्य सरकार ने 18 जून 2004 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में टेनी के बरी होने के खिलाफ अपील दायर की. संतोष ने उसी वर्ष अदालत में एक पुनरीक्षण अपील भी दायर की. इसके बाद हाईकोर्ट ने टेनी समेत सभी आरोपियों के खिलाफ जमानती वारंट जारी किया.

अदालत के दस्तावेजों के अनुसार, प्रभात के परिवार ने आरोप लगाया कि टेनी उन्हें सालों तक धमकाता रहा. 11 सितंबर 2012 के उच्च न्यायालय के एक आदेश में कहा गया है कि संतोष के वकील ने अदालत को बताया है कि "आरोपियों में से एक विधायक है और वह धमकी दे रहा है." टेनी 2012 में विधायक चुने गए थे. दोनों अपीलें अभी भी अदालत के समक्ष लंबित हैं.

कोर्ट की वेबसाइट के मुताबिक 12 मार्च 2018 को हाईकोर्ट ने राज्य की ओर से दायर मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था. हालांकि, ऑनलाइन रिकॉर्ड बताते हैं कि फैसला सुनाया नहीं गया था. राजीव ने मुझे बताया कि उन्होंने 24 नवंबर 2000 को इस मामले पर कार्रवाई करने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय को एक पत्र भी लिखा था. हालांकि राजीव के पास पत्र की प्रति नहीं थी उन्होंने मुझे पीएमओ के जवाब की रसीद दिखाई. उन्हें मिले जवाब में जिक्र किया गया है कि राजीव द्वारा एक पत्र उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव को उपयुक्त कार्रवाई के लिए भेजा जाना था. लेकिन राजीव ने कहा, "उसका दबदबा ऐसा था कि टेनी खुलेआम घूमता रहा." अक्टूबर 2021 में लखीमपुर खीरी की घटना के बाद राजीव ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के समक्ष एक याचिका दायर कर राज्य सरकार को दो बंदूकधारियों की सुरक्षा प्रदान करने की मांग की क्योंकि टेनी के खिलाफ अपील अभी भी लंबित थी. याचिका में कहा गया है कि “याचिकाकर्ता को एसपी खेरी के कार्यालय से 16-09-2021 को 10 प्रतिशत खर्च जमा करने के बाद एक गनर दिया गया है.” 

सितंबर 2021 में टेनी ने एक कार्यक्रम में एक भाषण प्रदर्शन कर रहे किसानों के लिए चेतावनी जारी की थी. इसका एक वीडियो अक्टूबर में लखीमपुर खीरी की घटना के बाद वायरल हुआ था. “सुधर जाओ नहीं तो सुधार दूंगा. बस दो मिनट लगेंगे” - टेनी ने एक कार्यक्रम में कहा था. "मैं सिर्फ एक मंत्री या सांसद नहीं हूं. जो लोग जानते हैं कि मेरे चुने जाने से पहले मैं कौन था, वे जानते हैं कि मैं कभी चुनौती से नहीं भागता.'' टेनी ने यह नहीं बताया कि इस बयान से उनका क्या मतलब है. टेनी ने कहा, “जिस दिन मैं उस चुनौती को स्वीकार कर लूंगा, वे पल्लिया और लखीमपुर से भागने के लिए मजबूर हो जाएंगे. मेरी बात याद रखना."

3 अक्टूबर को घटनास्थल पर मौजूद प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि टेनी के बेटे आशीष और उसके आदमियों ने किसानों को अपनी एसयूवी से रौंद दिया. हमले से नाराज किसानों ने उन दो गाड़ियों में आग लगा दी जिनसे उन्हें कुचला था. हिंसा में कुल आठ लोग मारे गए- चार किसान, दो बीजेपी कार्यकर्ता, एक कार का ड्राइवर और एक पत्रकार. राज्य पुलिस ने इस घटना पर 4 अक्टूबर को प्राथमिकी दर्ज की जिसमें आशीष को आरोपी बनाया गया. लापरवाही के चलते मौत को लेकर आईपीसी की धारा 302 और धारा 304-ए सहित आठ धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई. 7 अक्टूबर को पुलिस ने आशीष को सीआरपीसी की धारा 160 के तहत नोटिस जारी किया और उसे अगले दिन तिकुनिया पुलिस स्टेशन में पेश होने के लिए कहा. आशीष नहीं आया. इसके बाद पुलिस ने 8 अक्टूबर को भी ऐसा ही नोटिस जारी किया और आशीष को अगले दिन पेश होने को कहा. 9 अक्टूबर को आशीष कई पुलिस अधिकारियों के साथ तिकुनिया स्टेशन पर पूछताछ के लिए पहुंचा. उसके बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया. विरोध कर रहे किसानों ने दावा किया कि आशीष और उसके साथ के अन्य लोगों ने गोलियां चलाईं, यहां तक ​​कि एक किसान की भी गोली मारकर हत्या कर दी. लखीमपुर खीरी कांड की जांच कर रहे विशेष जांच दल द्वारा सौंपी गई एक रिपोर्ट के अनुसार, आशीष मिश्रा की एक राइफल और एक रिवॉल्वर सहित आरोपियों के पास से चार हथियार जब्त किए गए. जिला सरकार के एक वकील ने कथित तौर पर कहा, "फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (एफएसएल) की रिपोर्ट में कहा गया है कि इसकी जांच के दौरान जब्त हथियारों से फायरिंग के सबूत हैं ."

हालांकि, टेनी ने दावा किया है कि उनका बेटा घटना स्थल पर मौजूद नहीं था. "मैं इतना कमजोर नहीं हूं. यह मेरे परिवार के खिलाफ एक साजिश है,” टेनी ने इंडिया टुडे को दिए एक साक्षात्कार में दावा किया. जब उनसे हिस्ट्रीशीटर होने के बारे में पूछा गया, तो टेनी ने कहा, “यह सब मेरे खिलाफ साजिश का हिस्सा है. लखीमपुर खीरी जिले में तैनात एक पुलिस अधीक्षक ने मेरे खिलाफ दुर्भावना से मामला दर्ज किया था लेकिन हाईकोर्ट के आदेश के बाद सभी मामले वापस ले लिए गए. मैं कभी पुलिस लॉकअप में नहीं रहा और न ही मैं कभी जेल गया. विपक्षी नेताओं ने मेरे खिलाफ द्वेष के कारण मामले दर्ज कराना शुरू कर दिए. मुझे अपने परिवार की सुरक्षा के लिए राजनीति में आना पड़ा. 2005 में मैं रिकॉर्ड वोटों के साथ जिला पंचायत सदस्य बना.  

कई लोगों ने आरोप लगाया है कि टेनी नेपाल से व्यापार और तस्करी में शामिल थे. नेपाल सीमा निघासन ब्लॉक के ठीक बगल में है. हालांकि अभी तक इन दावों का कोई सबूत नहीं मिला है लेकिन साल 2000 की चार्जशीट के एक दस्तावेज में उल्लेख है, "विश्वसनीय जानकारी के अनुसार इलाके की नेपाल से निकटता के कारण वह तस्करी में शामिल है जिसके चलते उसकी वित्तीय स्थिति बहुत अच्छी है." 1980 से लखीमपुर खीरी में रह रहे और टेनी को जानने वाले एक वरिष्ठ शिक्षाविद ने नाम न छापने की शर्त पर हमसे बात करते हुए कहा, "वह नेपाल से लाए गए सस्ते मसाले भारत में बहुत अधिक दरों पर बेचते थे और सीमा पार यूरिया और सब्जियां भेजते थे." (प्रभात की हत्या के मामले में फैसले का जिक्र करते हुए, शिक्षाविद ने कहा, "लोग इसका बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं.")

किसान नेता राकेश टिकैत ने भी 26 अक्टूबर को इसी तरह की टिप्पणी की थी. लखीमपुर खीरी हिंसा में मारे गए किसानों को श्रद्धांजलि कार्यक्रम में एक भाषण के दौरान उन्होंने कहा कि टेनी एक "चंदन तस्कर था और काली मिर्च, लौंग और इलायची सहित अन्य वस्तुओं की नेपाल से तस्करी करता था." टिकैत ने कहा कि टेनी को कैबिनेट में शामिल किए जाने से पहले वह एक "गुंडा" था. उन्होंने कहा, ''आज इतनी गंभीर घटना के बावजूद कोई भी उसके खिलाफ बयान देने को तैयार नहीं है. ऐसा आतंक है उसका.”

कारवां ने टेनी को अपने ऊपर लगे आरोपों के बारे में ईमेल और व्हाट्सएप पर सवाल भेजे. लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.


जतिंदर कौर तुड़ वरिष्ठ पत्रकार हैं और पिछले दो दशकों से इंडियन एक्सप्रेस, टाइम्स ऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स और डेक्कन क्रॉनिकल सहित विभिन्न राष्ट्रीय अखबारों में लिख रही हैं.
सुनील कश्यप कारवां के स्टाफ राइटर हैं.