नमामि गंगे परियोजना के काम में मैला ढोने से हुई मौत लेकिन न मिला मुआवजा, न हुआ मामला दर्ज

18 वर्षीय मोहम्मद इकबाल हुसैन के माता-पिता. मई 2021 में बिहार के बेउर में नमानी गंगे साइट पर एक सीवर की सफाई के दौरान इकबाल की मौत हो गई. परियोजना को पूरा करने की जल्दबाजी में अधिकारियों ने कानूनी रूप से आवश्यक सुरक्षा सावधानियों के बिना ही मोहम्मद इकबाल और सद्दाम को गटर में उतार दिया. सौजन्य : महबूब आलम

इस साल मई में पटना के बेउर इलाके में केंद्र सरकार की नमामि गंगे परियोजना में काम करते हुए दो मजदूरों की गटर में घुसने के बाद मौत हो गई. वहां काम करने वाले तीन मजदूरों के मुताबिक उन्हें आवश्यक बचाव उपकरणों के बिना ही गटर में घुसने को कहा गया था. एक मजदूर ने मुझे बताया कि लार्सन एंड टुब्रो, जिसके पास बेउर साइट का ठेका है, के इंजीनियर ने उन्हें “बहुत जरूरी काम” है कह कर सुरक्षा सावधानियों के बिना ही गटर के अंदर भेज दिया.

इस परियोजना को 5 अप्रैल 2020 तक पूरा होना था और परियोजना में तेजी लाने के लिए अधिकारी कानूनी रूप से आवश्यक सुरक्षा सावधानियों का अनादर करते रहे. मई में हुई इस घटना के बावजूद सितंबर के मध्य तक मामला दर्ज नहीं हुआ है. मृतक 20 साल के सद्दाम हुसैन और 18 साल के मोहम्मद इकबाल हुसैन के परिवारों को मुआवजा भी नहीं मिला है.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का नमामि गंगे कार्यक्रम जून 2014 में शुरू हुआ था. इसमें सीवेज के बुनियादी ढांचे में सुधार और मरम्मत, नदी के पास श्मशान घाटों की देखरेख, कीचड़ निकालना, नदी के प्राकृतिक प्रवाह को बहाल रखना शामिल है. 27 दिसंबर 2018 को तत्कालीन केंद्रीय जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी ने वादा किया था कि तीन महीनों के भीतर 70 से 80 प्रतिशत गंगा साफ हो जाएगी और 2020 तक गंगा पूरी तरह से साफ बना दी जाएगी. जल संसाधन मंत्रालय ने प्रदूषण को रोकने, नदी के कायाकल्प और संरक्षण के लिए 20000 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं.

लेकिन कार्यक्रम की प्रगति अविश्वसनीय रूप से धीमी रही है और इसके तहत की अधिकांश परियोजनाएं, खासकर बिहार में, अधूरी हैं. जल शक्ति मंत्रालय का एक जुलाई 2021 का प्रेस नोट बताता है कि 30 जून 2021 तक नमामि गंगे के तहत स्वीकृत 346 परियोजनाओं में से केवल 158 ही पूरी हुई हैं जबकि बिहार के लिए स्वीकृत 53 परियोजनाओं में से केवल 11 ही पूरी हो पाई हैं.

हाथ से मैला ढोना भारत में अवैध है. इसके बावजूद हाथ से मैला ढोने जारी है और भारत भर में इससे मौतें हो रही हैं. 30 जुलाई को संसद में सामाजिक न्याय मंत्री रामदास अठावले ने इस बात से इनकार किया कि पिछले पांच वर्षों में हाथ से मैला ढोने से कोई मौत हुई है. गौरतलब है कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस अवधि में कम से कम ऐसी 472 मौतें हुई हैं. इन मामलों में पुलिस इंजीनियरों या ओवरसियर के खिलाफ गैर इरादतन हत्या के मामले दर्ज नहीं करती ज​बकि कानूनी तौर ऐसा करना होता है. पीड़ितों के परिवारों को कानूनी रूप से अनिवार्य मुआवजा भी नहीं दिया जाता.

6 अप्रैल 2017 को जल शक्ति मंत्रालय ने बेउर में सीवेज के ढांचे, नदी के मोड़ और नदी के किनारे सौंदर्यीकरण परियोजनाओं के लिए 398 करोड़ रुपए मंजूर किए थे. मंत्रालय ने राज्य सरकार के स्वामित्व वाली इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी बिहार अर्बन इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड को परियोजना के लिए निष्पादन एजेंसी बनाया है. इस कंपनी ने 2017 को बहुराष्ट्रीय कंपनी लार्सन एंड टुब्रो को परियोजना का अनुबंध दिया.

मई के मध्य में पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के एक ठेकेदार नयन रजा सीवेज लाइन में काम के लिए सद्दाम और इकबाल सहित 25 मजदूरों को बेउर लाए. साइट पर काम करने वाले मजदूरों ने मुझे बताया कि मई भर लार्सन एंड टुब्रो का इंजीनियर काम ​जल्दी पूरा करने का दबाव डालता रहा. 36 वर्षीय मजदूर रजीबुल हक रेत और सिमेंट मिलाने का काम करते हैं. उन्होंन बताया, "काम करने की स्थिति अच्छी नहीं थी और घायल हो जाने का भारी खतरा था इसलिए मैंने काम बीच में ही छोड़ दिया और घर लौट आया.” लेकिन ठेकेदार रजा ने मुझे बताया कि उन्होंने किसी भी मजदूर पर तेजी से काम करने का दबाव नहीं डाला और ना ही लार्सन एंड टुब्रो ने ऐसा कहा.

रजा की टीम के एक अधेड़ उम्र के मजदूर ने मुझे बताया, “31 मई को मौके पर दो इंजीनियर मौजूद थे. एक इंजीनियर ने साफ तौर पर कहा कि सीवर में जाने के लिए जरूरी सुरक्षा उपकरण नहीं है इसलिए मजदूरों को सीवर-सफाई के काम में लगाना सही नहीं होगा. लेकिन उसके जाने के बाद दूसरे इंजीनियर ने कहा कि सीवर साफ करना ही होगा क्योंकि यह बहुत जरूरी काम है. फिर उसने उन्हें जबरदस्ती सीवर में भेज दिया.” उस मजदूर ने बताया कि पहले सद्दाम को सीवर के नीचे भेजा गया लेकिन जब वह बाहर नहीं आया तो इकबाल को अंदर भेजा गया.” न तो अधेड़ उम्र के उस मजदूर को और ना ही उस परियोजना के अन्य मजदूरों को, जिनसे मैंने बात की थी, लार्सन एंड टुब्रो के उन दो इंजीनियरों के नाम पता थे.

लार्सन एंड टुब्रो के जनसंपर्क अधिकारी केतन बोंड्रे और अमित बिस्वास ने घटना के संबंध में पूछे गए मेरे सवालों का जवाब नहीं दिया. पुलिस दोनों इंजीनियरों की पहचान नहीं होने का दावा कर रही है. बेउर थाने के थाना प्रभारी अमित कुमार ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया था कि सद्दाम और इकबाल की मौत के बाद लार्सन एंड टुब्रो के इंजीनियर मौके से फरार हो गए हैं.

सद्दाम के बड़े भाई नैरू हुसैन भी इसी प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे. "मुझे ठेकेदार ने बुलाया और बताया कि दो मजदूरों की सीवर में दम घुटने से मौत हो गई है. जब मैं वहां पहुंचा तो मैंने देखा कि मेरा भाई उनमें से एक है. मैं पक्के तौर पर कह सकता हूं कि इंजीनियर ने ही मेरे भाई को जबरन सीवर में भेजा था. यह हत्या है."

घटना के बाद पुलिस कर्मी अर्थमूवर लेकर मौके पर पहुंचे लेकिन उनके साथ कोई रेस्क्यू टीम नहीं थी. 40 वर्षीय स्थानीय निवासी ध्रुव कुमार ठाकुर, जिन्होंने सद्दाम और इकबाल के शवों को बाहर निकालने में मदद की, ने मुझसे कहा, "मैं एक दुकान से कुछ सामान खरीद रहा था कि तभी मैंने शोर सुना और मौके पर पहुंच गया. मैं रस्सी से सीवर में उतरा और एक मिनट तक सांस रोक कर पहले एक लाश रस्सी से बांधी और फिर बाहर आ गया." पुलिस की मौजूदगी के बावजूद ठाकुर को भी कोई सुरक्षा उपकरण नहीं दिया गया. उन्होंने आगे कहा, ''बाहर मौजूद दर्जन भर मजदूरों ने रस्सी खींच कर शव को बाहर निकाला. इसके बाद मैं फिर सीवर में उतरा और इस बार भी सांस रोक कर दूसरे शव को रस्सी से बांधकर तुरंत बाहर आ गया. अंदर भयानक जहरीली गैस थी.” उन्होंने कहा कि सीवर तीन-चार साल से बंद है और उसमें जहरीली गैसें जमा हो रही हैं. "यह सरासर लापरवाही है और वैसे भी इतनी मौतों के बाद भी मजदूरों को बिना सुरक्षा उपकरणों के सीवर के काम में लगाया जा रहा है." सद्दाम और इकबाल को पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल ले जाया गया जहां पहुंचने पर उन्हें मृत घोषित कर दिया गया.

हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 स्पष्ट रूप से कहता है कि कोई भी व्यक्ति, स्थानीय प्राधिकरण या कोई एजेंसी किसी भी व्यक्ति को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, सीवर या सेप्टिक टैंक की खतरनाक सफाई के लिए नियुक्त या नियोजित नहीं करेगी. धारा 8 में दंड के प्रावधानों के अनुसार, "उल्लंघन होने पर ऐसा कराने वाले को जेल भेजा जा सकता है जिसकी अवधि एक वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है या 50 हजार रुपए का जुर्माना या दोनों. दुबारा उल्लंघन करने पर कारावास को दो साल तक बढ़ाया जा सकता है या एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया जा सकता है, या दोनों.”

अधिनियम यह निर्दिष्ट नहीं करता है कि भारतीय दंड संहिता की किस धारा के तहत ऐसी गिरफ्तारी की जानी चाहिए. हालांकि बाद में कोर्ट ने इसे स्पष्ट किया है. न्यायपालिका ने उन प्रक्रियाओं पर स्पष्ट दिशा-निर्देश निर्धारित किए हैं जिनका पालन पुलिस द्वारा हाथ से मैला ढोने से होने वाली मौत के बाद किया जाना चाहिए. सितंबर 2019 में एक ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "अगर कोई कर्मचारी जहरीली गैस के कारण मैनहोल में मर जाता है तो पर्यवेक्षक और अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया जाना चाहिए." पिछले मामलों में इसका मतलब था कि ठेकेदारों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 304 के तहत मामला दर्ज होना होता है जो गैर-जमानती अपराध है जिसमें गैर इरादतन हत्या का का मामला बनाता है.

हाथ से मैला ढोने की कुप्रथा पर एक किताब की लेखिका एवं वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने मुझे बताया, "तब से कानून और फैसले दोनों बिल्कुल स्पष्ट हैं. लापरवाही नहीं बल्कि गैर इरादतन हत्या का मामला बनता है." उन्होंने आगे कहा, “मजदूरों को बिना सुरक्षा उपकरणों के जबरन मैनहोल में डालने के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जानी चाहिए. जब तक इस तरह की घटनाओं के दोषियों के खिलाफ मामला दर्ज नहीं होता यह सिलसिला नहीं रुकने वाला है.”

लेकिन सद्दाम और इकबाल की मौत के बाद बेउर पुलिस ने गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज नहीं किया. 1 जून को पुलिस ने मौत का संज्ञान लिया और अप्राकृतिक मौत का मामला दर्ज किया लेकिन उन इंजीनियरों का कोई उल्लेख नहीं किया जिन पर दो मजदूरों को सीवर में घुसने के लिए मजबूर करने का आरोप है. हालांकि एसएचओ कुमार ने माना कि इसे गैर इरादतन हत्या के मामले के रूप में दर्ज किया जाना चाहिए था लेकिन दावा किया कि उनके पास उन आरोपों के तहत मामला दर्ज करने की शक्ति नहीं है. उन्होंने मुझसे कहा, "गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया जाना चाहिए लेकिन हम स्वत: संज्ञान लेकर प्राथमिकी दर्ज नहीं कर सकते. मैं अभी भी किसी के आगे आकर गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज कराने का इंतजार कर रहा हूं. हम इसकी जांच करेंगे. घटना के बाद कई एनजीओ आए तथा पटना हाईकोर्ट की कमेटी भी आई लेकिन किसी ने शिकायत नहीं की. अगर मृतक के परिजन भी आकर शिकायत करते हैं तो हम शिकायत दर्ज कराएंगे.”

1 जून को एक आदिवासी और दलित-अधिकार संगठन, दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच और पटना स्थित मानवाधिकार संगठन लोकतांत्रिक जन पहल के कार्यकर्ताओं की एक फैक्ट फाइंडिग टीम ने सद्दाम और इकबाल की मौतों की जांच की. उनकी रिपोर्ट बताती है कि पुलिस ने मामले की जांच में कमजोरी दिखाई है.

रिपोर्ट कहती है, “परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर हमारी टीम का मानना ​​है कि मजदूरों की मौत के लिए सीधे तौर पर कंपनी और ठेकेदार जिम्मेदार हैं. इसलिए यह संज्ञेय अपराध का मामला है; पुलिस को संज्ञान लेना चाहिए था और कंपनी और ठेकेदार के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करनी चाहिए थी. पुलिस ने जैसा मामला दर्ज किया है वह सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के विपरीत है कि अगर गटर में काम करने के कारण किसी की मृत्यु हो जाती है, तो इसे हत्या माना जाएगा."

रिपोर्ट आगे कहती है, चूंकि मजदूर बाहरी थे इसलिए कोई स्थानीय दबाव नहीं था जिसने पुलिस को कंपनी के पक्ष में मामले को यथासंभव हल्का करने की छूट दी. इस तरह टीम इस नतीजे पर पहुंची है कि पुलिस कंपनी और ठेकेदार के इशारे पर काम कर रही है. दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 174 पुलिस को मौत का कारण निर्धारित करने का अधिकार देती है. इस धारा के तहत पुलिस मौत के कारणों की जांच करती है और प्रत्यक्षदर्शियों से इसकी पुष्टि करती है. इसके बाद पुलिस के पास गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज करने का अधिकार है. एसएचओ कुमार ने भी मुझे बताया कि उन्होंने पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट देखी थी और इससे संकेत मिलता है कि मौत का कारण "गैस के कारण दम घुटना" था.

2014 के सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश में कहा गया है कि सीवर या सेप्टिक टैंक की सफाई में लगे व्यक्ति की मौत होने पर उसका परिवार 10 लाख रुपए के मुआवजे का हकदार है. सद्दाम और इकबाल दोनों के परिवारों ने मुझे बताया कि उन्हें अब तक कोई मुआवजा नहीं मिला है. इकबाल 55 वर्षीय समयन हुसैन के इकलौता बेटे थे. समयन की तीन बेटियां भी हैं.

उन्होंने बताया, "इकबाल ने इस साल मैट्रिक की परीक्षा पास की थी और 11वीं में दाखिला लिया था लेकिन लॉकडाउन के कारण हमारे परिवार की आय बुरी तरह प्रभावित हुई है तो इकबाल ने पढ़ाई रोक दी. वह उन स्थानीय युवकों के समूह में शामिल हो गया, जिन्हें नयन रजा पटना ले जा रहे थे. ठेकेदार उसे यह कहकर ले गया कि पटना में फाउंड्री का काम है लेकिन मजबूरन उसे सीवर में घुसना पड़ा. उन्होंने आगे कहा, “मेरे बेटे ने कभी सीवर का काम नहीं किया था. इससे पहले भी उसने दो हफ्ते पटना में काम किया था लेकिन यह पाइपलाइन का काम था. सीवर तीन-चार साल पुराना था और जहरीली गैस से भरा हुआ था. इंजीनियरों को मेरे बेटे को सीवर साफ करने के लिए मजबूर नहीं करना चाहिए था. वह उनकी गलती से मारा गया."

समयन ने मुझे बताया कि इकबाल की मौत के बाद परिवार भुखमरी के कगार पर है. “मेरा एक ही बेटा था और घर उसकी ही कमाई से चलता था. उसकी मौत के बाद से मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि हमारा जीवन कैसा होगा. मेरी तीसरी बेटी की शादी कैसे होगी? मेरे पास खेती की जमीन भी नहीं है जिससे मैं अपने परिवार का पेट भर सकूं.

सद्दाम की मां नायसन बीबी ने मुझे फोन पर बताया कि सद्दाम की कमाई पर ही उनका परिवार चलता था. "सद्दाम की मौत के बाद से पड़ोस के लोग हमें खाने के लिए कुछ दे देते हैं और जो थोड़ा पैसा हमने पहले बचाया था वह हमें किसी तरह जिंदा रखे हुए है लेकिन हमारा बाकी जिंदगी कैसे गुजरेगी, मुझे नहीं पता. मेरा बेटा सरकारी काम करते-करते मर गया इसलिए सरकार को हमारे बारे में सोचना चाहिए. सरकार को हमारी आजीविका सुनिश्चित करनी चाहिए.”

सद्दाम और इकबाल की मौत के बाद बिहार शहरी बुनियादी ढांचा विकास निगम के प्रबंध निदेशक रमन कुमार ने मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया. इसमें नमामि गंगे परियोजना के मुख्य अभियंता एनके तिवारी, निगम के अधीक्षण अभियंता सत्येंद्र कुमार और लता चौधरी, निगम की पर्यावरण और सुरक्षा अधिकारी शामिल थे. समिति ने एक सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन को सौंप दी लेकिन इसके तीनों सदस्यों ने रिपोर्ट में क्या सिफारिश की या कैसी कार्रवाई की बात की, कुछ भी बताने से इनकार किया.

जब मैंने सिफारिशों के बारे में पूछा तो चौधरी ने मुझसे कहा, "आप एक पत्रकार हैं इसलिए आपको पता होना चाहिए कि हर कार्यालय की एक मर्यादा होती है. मैं मीडिया के सामने कोई बयान देने के लिए अधिकृत नहीं हूं. मैं एक तकनीकी व्यक्ति हूं. यह परियोजना स्वच्छ गंगा राष्ट्रीय मिशन का हिस्सा है इसलिए हमने उन्हें जांच रिपोर्ट भेज दी है.” पटना जिला मजिस्ट्रेट राजेश्वर सिंह और निगम के प्रबंध निदेशक कुमार ने मेरे सवालों का जवाब नहीं दिया.

जब मैंने 13 जुलाई को घटनास्थल का दौरा किया, तो मैंने पाया कि सीवर को मिट्टी से ढका दिया गया है. जिस अस्थायी कॉलोनी में पहले मजदूर रह रहे थे वह खाली पड़ी थी. पास की एक कॉलोनी के सुरक्षा गार्ड ने मुझे बताया कि वे दस दिन पहले यहां से चले गए. गार्ड ने बताया कि ''वहां का काम पूरा हो गया था. ठेकेदार रजा ने मुझे बताया कि काम 13 जुलाई से पहले पूरा हो गया था.

लेकिन नमामि गंगे वेबसाइट पर उल्लेखित परियोजनाओं की मोटी सूची से इस काम को हटा दिया गया है जबकि इसे तो रिकॉर्ड 45 दिनों में पूरा कर लिया गया था.