“पहले मंदिर के ऊपर से भीड़ पर हुआ पथराव”, रांची हिंसा के प्रत्यक्षदर्शियों और मृतक के परिजनों का आरोप

रांची के कर्बला चौक स्थित मोहम्मद साहिल का घर. झारखंड की राजधानी रांची में शुक्रवार 10 जून को नमाज के बाद मेनरोड में हुए पथराव व गोलीबारी से जिन दो युवक की मौत हुई है उसमें एक मुद्दसीर आलम है और दूसरा 22 वर्षीय मोहम्मद साहिल. सौजन्य : मो. असग़र खान
15 June, 2022

रांची में भड़की हिंसा के मृतक 16 साल के मुद्दसीर आलम के हिंदपीढ़ी स्थित किराए के मकान में दो दिनों के बाद भी मातम पसरा हुआ है. पिता परवेज आलम हरेक मुलाकातियों से अपने बेटे के बेगुनाह होने की बात बता रहे हैं. उधर मां निखत बेसुध कुर्सी पर बैठीं बीच-बीच में दहाड़ मार कर रोने लगती हैं. घर पर आए लोगों का हाथ पकड़ कर कहती हैं, “मेरा बाबू कहां चला गया भाई जान, मेरा बाबू कहां चला गया.” तब परवेज दुपट्टे से उनका सिर ढक ढाढस देते हैं और वह चुप हो जाती हैं. आधे घंटे के अंतराल में मातम का यह दृश्य कई बार देखने को मिला.

इन दोनों की हालत देख मैंने मुद्दसीर के चाचा मोहम्मद शाहिद अय्यूबी से बात करना मुनासिब समझा. चाचा ने मुझे बताया, “इसी महीने 15 को उसका दसवीं का रिजल्ट आने वाला था. रोजना की तरह वह अपने पापा की मदद करने के लिए उस दिन भी ठेला गाड़ी के साथ गया था.” वह आगे बताते हैं, “जब जुलूस डेली मार्केट के पास आया तो भीड़ काफी थी. अफरा-तफरी का माहौल था. भीड में वह कब चला गया, उसके वालिद को पता ही नहीं चला. पथराव और गोलीबारी हो रही थी. सब लोग जान बचा कर भाग रहे थे लेकिन मेरा भतीजा गोली का शिकार हो गया. उसके सिर पर गोली लगी थी. पुलिस लोगों पर ऐसे गोली चला रही थी, जैसे वे आंतकवादी या उग्रवादी हों. भीड़ को भगाने के कई उपाय थे लेकिन जान से मारने के नियती गोली चलाई जा रही थी. तभी तो लोगों के कमर, सिर, गर्दन में गोलियां लगी हैं.”

मृतक मुद्दसीर आलम के परिवार वालों की शिकायत है कि अब तक सरकार का कोई भी प्रतिनिधि उनसे मिलने नहीं आया है. उनकी मांग है कि घटना की जांच हो. गोली कहां से और किसके कहने पर चली, इसकी भी निष्पक्ष जांच की जाए. मुद्दसीर अपने घर की इकलौती औलाद था. शाहिद अय्यूबी ने यह भी बताया कि वह पढ़ाई के अलावा वालिद के साथ ठेला लेकर फल बेचने डेली मार्केट में जाया करता था.

परवेज आलम ने बेटे की मौत की शिकायत डेली मार्केट पुलिस स्टेशन में दर्ज कराई है. अपनी शिकायत में उन्होंने लिखा है कि जब मुस्लिम समुदाय के लोग नारेबाजी करते हुए हनुमान मंदिर के पास पहुंचे तो “अचानक मंदिर की छत में मौजूद भैरो सिंह, शशी शरद करण, सोनू सिंह एवं अन्य लोग गोली चलाने लगे और पत्थर भी फेंकने लगे.” शिकायत कहती है कि इसके बाद मुस्लिम पक्ष भी पत्थर फेंकने लगा.” आलम ने अपनी शिकायत में यह भी लिखा है कि “अफरा-तफरी मच गई, भगदड़ का माहौल बन गया. इसी क्रम में वहां मौजूद पुलिस के लोग एके-47 और पिस्टल से मुस्लिम पक्ष को लक्षित कर अंधाधुन फायरिंग करने लगे. एक तरफ से मंदिर के छत से और दूसरी तरफ रोड में उपस्थित पुलिसकर्मियों के तरफ से लगातार फायरिंग के कारण मची भगदड़ में एक गोली मेरे पुत्र के सिर में लगी और वह लहूलुहान होकर सड़क पर गिर पड़ा.”

राजधानी रांची में शुक्रवार को जुमे की नमाज के बाद मेनरोड में हुए पथराव व गोलीबारी से जिन दो युवक की मौत हुई है उसमें एक मुद्दसीर आलम है और दूसरा 22 वर्षीय मोहम्मद साहिल जिसका घर हिंदपीढ़ी से आधा किलीमीटर की दूरी पर कर्बला चौक में है.

बेहद तंग गलियों से होते हुए जब मैं साहिल के घर पहुंचा तो उसके वालिद नहीं थे और वालिदा की तबियत खराब थी. स्थानीय लोगों ने बताया कि उनसे साहिल के बारे में बात करना मुनासिब नहीं है क्योंकि वालिदा सदमे में हैं. उनके पेट का हाल ही में ऑपरेशन हुआ है और हार्ट की भी शिकायत है. इतने में साहिल के सबसे बड़े भाई मोहम्मद साकिब, जो 25 साल के हैं, बाहर आ गए. उन्होंने कारवां से बातचीत में कहा, “मैं घर पर नहीं था, काम पर  गया हुआ था. मेरे भाई के साथ जो लोग थे उन्होंने मुझे बताया कि जुमे की नमाज पढ़ने के बाद वे लोग जुलूस में शांति से जा रहे थे. जब डेली मार्केट के पास जुलूस पहुंचा तो उस वक्त मंदिर से कुछ लोग पथराव करने लगे. इस कारण भगदड़ मच गई. सब लोग भागने लगे और जुलूस में शामिल नौजवानों ने जवाब में पथराव किया. इस दौरान पुलिस बिना चेतावनी दिए फायरिंग करने लगी. इसी में मेरे भाई को गोली लगी. जैसे मुझे फोन पर घटना के बारे पता चला मैं हॉस्पिटल गया, जहां मेरा भाई सिर्फ ढाई घंटा जिंदा रहा. मेरे भाई को जिसने गोली मारी है उसको सजा मिलनी चाहिए.”

तीन भाई, एक बहन में साहिल घर में मंझला था. वह रांची के न्यू डेली मार्केट में बैटरी की दुकान पर काम किया करता था. उसके पिता मोहम्मद अफजल ऑटो चलाते हैं. उसके परिवार में बीमार मां के अलावा छोटा भाई अर्श और बहन सोनी हैं. इन दोनों के परिवार के मुताबिक काफी मशक्कत करने के बाद ही डेली मार्केट थाना ने इन लोगों की शिकायत दर्ज की है.

11 जून को दर्ज हुई दूसरी शिकायत में मोहम्मद अफजल ने बताया है कि उनका बेटा पुलिस की गोली से मरा है तथा उस पुलिस वाले के खिलाफ कार्रवाई की जाए. साथ ही उन्होंने एक अन्य आवेदन में मुख्यमंत्री से अनुरोध किया है कि उन्हें 20 लाख रुपया मुआवजा और एक बेटे को सरकारी नौकरी दी जाए.

दोनों मृतक बीजेपी से निलांबित नेत्री नूपुर शर्मा के द्वारा इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद पर दिए गए विवादास्पद बयान के विरोध में 10 जून को निकाले गए जुलूस पर हुई फायरिंग में मारे गए हैं.

उस दिन जुमे (शुक्रवार) की नमाज के बाद इकरा मस्सिद के पास भारी भीड़ जुटी थी. यह भीड़ जुलूस की शक्ल में डेली मार्केट पहुंची. जहां पर, प्रदर्शनकारियों के मुताबिक, मंदिर के ऊपर से उन पर पथराव हुआ और गोलियां चलीं. जिसके बाद भीड़ ने भी जवाब में पथराव किया. स्थानीय अखबारों के अनुसार, भीड़ ने आगजनी की, वाहानों और समानों को तोड़ा. इसके बाद पुलिस की ओर से कई राउंड गोलीबारी हुई. इन दोनों को इसी दौरान गोली लगी, जिसके बाद राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस, रांची (रिम्स) में भर्ती कराया गया, जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई. जिला प्रशासन इनकी मौत की पुष्टि की है. खबर के मुताबिक विरोध प्रदर्शन और पथराव के दौरान हुई पुलिस फायरिंग में 12 लोग और घायल हुए हैं और रिम्स में उनका इलाज चल रहा है. इनमें से कइयों को गोली लगी है और दो-तीन की हालत गंभीर बताई जा रही है. वहीं एक अन्य खबर की माने तो पुलिस कर्मी सहित 50 लोग घायल हुए हैं.

12 जून को घटना के बारे में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रांची एसएसपी सुरेंद्र कुमार झा और डीसी छवि रंजन की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक, “स्थिति नियंत्रण में है. जिला प्रशासन की ओर से निगरानी रखी जा रही है. शहर के छह थाना क्षेत्रों में सीआरपीसी की धारा 144 लागू है. घटना को लेकर जिले में 25 एफआईआर हुई हैं. कुल 22 लोग नामजाद हैं और सैकड़ों अज्ञात लोगों पर केस हुआ है. मामले की उच्च स्तरीय जांच के लिए एसआईटी गठित की गई है, जिसे एक हफ्ते के भीतर जांच रिपोर्ट देनी है.” हालांकि प्रेस कॉन्फ्रेंस के मुतालिक मीडिया कर्मियों को कोई प्रेस रिलीज नहीं दी गई. जबकि 13 जून को प्रकाशित अखबारों में कहा गया है कि दस हजार अज्ञात लोगों पर प्रथामिकी दर्ज की गई है.

बाहरहाल, इसके अलावा कई तरह की खबरें चल रही हैं. घटना से संबंधित वीडियो वायरल हो रहे जिनको लोग अपने अपने हिसाब से परिभाषित कर रहे हैं. कारवां ने इनमें से कई वीडियो की पड़ताल की और इस मामले में एक दर्जन से अधिक लोगों से बात की.

स्थानीय लोगों और जुलूस के प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक 10 जून को यानी शुक्रवार के दिन जुलूस या बंद को किसी मुस्लिम संगठन ने नहीं बुलाया था. लेकिन इसके वाबजूद भारी भीड़ जुटी थी. भीड़ की संख्या तीन हजार से पांच हजार तक बताई गई है. हालांकि दूसरे पक्ष संख्या को लेकर अलग दावा करते हैं.

इस बाबत मैंने झारखंड एदार-ए-शरीया के नाजिमे आला मौलाना कुतुबुद्दीन रिजवी से बात की. उन्होंने कारवां से बातचीत करते हुए कहा, “जो भी घटना हुई दुर्भाग्यपूर्ण है. लेकिन जिस तरह से प्रशासन ने बैगर चेतावनी दिए भीड़ को कंट्रोल किया वह उचित नहीं है. भीड़ को कंट्रोल करने के और भी उपाए थे लेकिन उनका प्रयोग पुलिस ने नहीं किया और उसने सीधे गोलियां चलाई. यह बहुत ही दुखद है. ऐसी कार्रवाई तो आतंकवादियों के विरूद्ध होती है, सिविलियन के विरुद्ध नहीं. आप देखिए, एक लड़के को दोनों पैर में छह गोलियां लगी हैं. सोचिए, एक गोली लगने के बाद वह गिर गया लेकिन फिर पांच गोलियां क्यों मारी गईं? इससे अंदाजा लगता है कि पुलिस की मंशा ठीक नहीं थी. हजारों की भीड़ में इस तरह से एके-47 का इस्तेमाल करना अपने आप में बहुत दुखद घटना है. जिन्होंने गोली चलाई है उनको भी सजा मिलनी चाहिए और जिन्होंने गोली चलाने का आर्डर दिया उनको भी सजा मिलनी चाहिए.”

वह आगे कहते हैं, “दूसरी बात यह है कि इतने दिन हो गए बीजेपी प्रवक्ता के बयान के लेकिन नूपुर शर्मा की गिरफ्तारी नहीं हुई है. स्वाभाविक है कि जब धार्मिक भावनाएं भड़कती हैं तो आम जनता सड़क पर उतरती है. ये आम जनता थी सड़क पर. इसको कंट्रोल करने की जिम्मेदारी प्रशासन की थी. और जिस तरह से घटना का वीडियो वायरल हुआ है उसको देखने पर प्रतीत होता है कि नूपुर शर्मा के पुतला दहन के बाद इनको (प्रदर्शनकारियों) वापस चले जाना था लेकिन उसी बीच भीड़ पर पत्थर चलाए गए. मैं पूछता हूं वे पत्थर कहां से आए इसकी भी जांच होनी चाहिए. मुद्दसीर को सिर में गोली लगती है. ऊपर से उसको गोली मारी गई है, वह गोली कहां से चली?”

भीड़ बिना बुलाए कैसे सड़क पर आ गई? इस सवाल के जवाब में कहते हैं, “मैं समझता हूं भावना को ठेस पहुंचती है तो दो-चार हजार नहीं, बल्कि दो-चार लाख की भीड़ आ सकती है. और अगर भीड़ गलत थी, तो क्या उस पर गोली चलाना क्या ठीक था? सबकी मांग थी कि नूपुर शर्मा की गिरफ्तारी हो लेकिन नहीं हुई. गम और गुस्से के कारण भीड़ सड़क पर आ गई.”

मैंने फिर सवाल किया कि क्या यह आलिम और उलेमाओं की जिम्मेदारी नहीं थी कि भीड़ को नियंत्रित रखा जाए? जवाब में मौलाना ने कहा, “देखिए धार्मिक मामले में हरेक की व्यक्तिगत राय होती है. जुलूस निकलाना या नहीं निकालना सही है कि नहीं है, उससे मेरा मतलब नहीं है. लेकिन मैं कह रहा हूं कि सिविलियन अगर किसी भी मामले में सड़क पर आते हैं तो सरकार की जिम्मेदारी है कि वह उनकी सुरक्षा करे, और सुनिश्चित करे कि कहीं भी तोड़फोड़ की घटना न हो. यहां पर प्रशासन फेल रहा है. जब भीड़ पर पहला पथराव हुआ तो स्वाभाविक है कि भीड़ उत्तेजित हो गई होगी.”

मौलाना कुतुबुद्दीन यह भी कहते हैं कि किसी भी समस्या का समाधान लड़ाई नहीं है. किसी के बहकावे में न आएं और आपस में मिल-जुल कर रहें.

इकरा मस्जिद राजधानी रांची की बड़ी और नामी मस्जिदों में गिनी जाती है. इसके आसपास का इलाका काफी संवेदनशील रहता है. पूर्व में यहां पर कई बार धार्मिक जुलूस के दौरान दो समुदायों के बीच माहौल बिगड़ा है. 10 जून को सबसे पहले इसी मस्जिद के पास लोगों इकट्ठा हुए थे. इसलिए हमने इस मस्जिद के इमाम मौलाना ओबेदुल्लाह कासमी से बात की. उन्होंने बताया, “देखिए, किसी भी छोटे बड़े तंजीम, धार्मिक-समाजिक संगठन या लीडर की तरफ से बंद या जुलूस प्रदर्शन करने का कोई ऐलान नहीं था. यह सिर्फ फेसबुक में किसी ने डाला था. मैंने इसका गुरुवार को ही, जुलूस के एक दिन पहले, लिख कर खंडन कर दिया था. जुमा के दिन भी इस पर बयान दिया. मैंने कहा, ‘मुल्क या रियासती तौर पर कोई तंजीम या इदारे से न ही बंद का आयोजन किया गया और न धरना प्रदर्शन का कोई ऐलान. इसलिए न कोई बंद करे और न कोई प्रदर्शन करे, और कोई ऐसा काम न करे जिससे शांति और अमन भंग हो. और रही बात नुपूर शर्मा की तो उसके खिलाफ हमारे बड़े बुजुर्ग कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं. इसलिए शहर की अमन को बनाए रखें.’”

मौलाना के मुताबिक जुमे की नमाज में यह ऐलान शहर की सभी मस्जिदों से किया गया था. साथ ही यह मैसेज जिला प्रशासन को भी भेजा गया था और लोगों से अपील की गई थी कि नमाज पढ़ कर घर लौट जाएं. ओबेदुल्ला कासमी का दावा है उनका यह बयान और अपील फेसबुक और यूट्यूब पर मौजूद है.

सभी मस्जिदों से अपील और ऐलान के बाद भी इतनी बड़ी संख्या में भीड़ कैसे जुट गई?  जवाब में मौलाना कहते हैं, “यह प्रशासनिक चूक है. प्रशासन ने इसे सीरियसली नहीं लिया. सोशल मीडिया पर जुलूस-बंद के मुतालिक पोस्ट वायरल हो रहा था और यह आईबी की भी जिम्मेदारी थी. प्रशासन को भी पता था इस बारे में. फिर क्यों लोगों को निकलने दिया गया?”

जुलूस की पोस्टें कौन लोग वायरल कर रहे थे? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, “यह तो जांच का विषय है. पुलिस  इसकी जांच करे, और हमारी मांग है कि सरकार उच्च स्तरीय जांच करे और दोषी चाहे जो भी हो उसके खिलाफ कार्रवाई हो. प्रशासन ने जो अपने दायरे से ऊपर उठ कर गोलीबारी की है, पुलिस की गोली से इतने लोग जख्मी हुए, मारे गए, उसकी भी जांच हो.” 

भीड़ के दो प्रत्यक्षदर्शियों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर मुझे बताया कहा, “देखिए, उस दिन भीड़ में कोई भी बड़ा-बुजुर्ग नहीं था. हमको नहीं लगता है कि उसमें कोई 25 साल का भी होगा. उसमें शामिल लड़के कह रहे थे कि चलो फिरायलाल चौक की तरफ. जब हम लोग मना किए कि मत जाओ, तब भीड़ से कुछ लोग बुरा-भला बोलने लगे. इकरा मस्जिद के पास नमाज के लिए काफी संख्या में लोग जमा हुआ थे. ईद-बकरीद में भी इतनी भीड़ नहीं होती, जितनी उस दिन थी. तीन हजार की भीड़ होगी. और इतनी भीड़ पर एक थाने से सिर्फ छह-सात पुलिस कर्मी ही नजर आ रहे थे. सोचिए, इकरा मस्जिद के पास का इलाका संवेदनशील रहता है. अगर उस दिन फोर्स होती तो ये घटना नहीं होती. जबकि प्रशासन को पता था कि कल ऐसा होने वाला है. लेकिन प्रशासन ने किसी तरह का कोई एक्शन नहीं लिया.”

वह आगे कहते हैं, “नमाज खत्म होते ही चारों तरफ से भीड़ आ गई- डोरंडा, हिंदपीढ़ी से. फिर लोग नारा लगाने लगे. फिर फिरायलाल चौक की तरफ भीड़ जाने लगी. पुलिस ने बेरिकेडिंग करके रोका लेकिन भीड़ उन्हें धकेलते हुए आगे बढ़ गई. डेली मार्केट टैक्सी स्टैंड के पास पहुंची और जैसे ही मंदिर के ऊपर से पथराव हुआ, तब जवाब में भीड़ ने पथराव शुरू किया. आप वीडियो भी देख लीजिए. पथराव का.”

भीड़ कोई अचानक नहीं जुटी थी. इनके मुताबिक पांच से छह ऐसे जिम्मेदार लोग जो सामाजिक संगठन चलाते हैं उन्होंने कुछ दिन पहले से ही बंद और जुलूस निकाले जाने को लेकर लोगों से कह रहे थे. इन लोगों ने यहां तक कहा कि हर हाल में जुलूस निकाला जाना चाहिए. इससे जुलूस निकाले जाने को लेकर नौजवानों का मिजाज बन गया.

खबर है कि जुलूस निकाले जाने के लिए पर्चे भी बांटे गए थे लेकिन पर्चों पर किसी भी संगठन का नाम नहीं था. इसके अलावा दूकान-दूकान अनाउंसमेंट भी किया गया.  

कारवां को एक व्यक्ति ने नाम न उजागर करने की शर्त पर बताया कि व्हाट्सएप और फेसबुक  पर एक पोस्ट वायरल हुई थी, जिसमें लिखा हुआ था कि 10 को भारत बंद रहेगा. उन्होंने कहा, “सच है कि इसके बाद हम लोगों ने एक बैठक की और दुकानदारों से अनुरोध किया है आप लोग 10 तारीख को दुकानें बंद रखें. हमने लोगों से दुकाने-दुकान जा कर कहा कि इस बंद का समर्थन करें. अगर नहीं करते हैं तो भी ठीक है. सभी दुकानदारों ने एकमत से कहा कि हम लोग बंद का सर्मथन करेंगे. दूसरे दिन सारे दुकानदारों ने बंद रखा. एक दिन पहले हमने माइक से अनाउंसमेंट किया था कि नूपुर शर्मा ने पैगंबर मोहम्मद साहब पर जो विवादित बयान दिया है इसी को लेकर कल भारत बंद आह्वान किया गया है. आप तमाम हजरात से अनुरोध है कि अगर मोहम्मद साहब से सच्ची मोहब्बत करते हैं तो आप अपनी इच्छा से दुकान बंद रखें. बस इतना ही कहा था. हमने जुलूस निकाले जाने की कोई अपील नहीं की थी.”

वह आगे कहते हैं कि फेसबुक और व्हाट्सएप पर एक और पत्र वायरल हो रहा था जिसमें लिखा था कि इकरा मस्जिद के पास से जुलूस निकलेगा और फिरायलाल चौक तक जाएगा. लेकिन इसकी कोई तस्दीक नहीं थी.

“क्या वह पत्र आपको मिला था?”, मैंने पूछा.  इसके जवाब में उन्होंने कहा, “हम लोगों को नहीं मिला था इसलिए हम लोग जुलूस में नहीं गए. मिलता तो शायद हम लोग भी जाते. लोगों से पता चला कि फेसबुक पर वह वायरल हो रहा है.”

बंद का आह्वान किसने  किया था और कहां से हुआ था?  इसके जवाब में वह कहते हैं, “कहां से हुआ था अभी तक न हमको पता है और न आलिम और उलेमाओं को पता चला है. लेकिन चूंकि मामला नबी का तो सब इसमें डूब गए.”

“उसमें क्या आप भी डूब गए?” इस सावल के जवाब में उन्होंने कहा कि “आह्वान की तस्दीक तो नहीं की गई है लेकिन यह तस्दीक हो चुका था कि नूपुर शर्मा ने नबी पर अभद्र टिप्पणी की थी, और यह सच है.”

एक और मैसेज व्हाट्सएप पर वायरल हो रहा था. इसमें बाजाब्ता एक जन के नाम और नंबर से 10 जून को जुमे के बाद होने वाले प्रोटेस्ट को कवरेज करने हेतु प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से निवेदन किया गया है. इसमें लिखा है : “दस जून को जुमे की नमाज के बाद दोपहर 1.45 बजे स्थान इकरा मस्जिद मेन रोड के पास मुस्लिम समुदाय के लोग सड़क पर उतर कर केंद्र सरकार से नूपुर शर्मा की गिरफ्तारी को लेकर मांग करेंगे. अपने पैगंबर साहब के अपमान पर मुसलमान समुदाय के लोग देश विदेश में एक होकर जगह-जगह पर आंदोलन और एफआईआर करा रहे हैं.”

कारवां ने इनसे संपर्क किया तो उन्होंने मीडिया के नाम से वायरल निमंत्रण की पुष्टि करते हुए कहा, “मैं जुमे की नमाज इकरा मस्जिद में पढ़ने गया था. तो लोगों को बात करते हुए सुना कि जुलूस निकलेगा, तो एक प्रेस में काम करने वाले अपने एक परिचत को मैंने कॉल किया और कहा कि क्या आप लोगों को भी ऐसी सूचना मिली है. मैंने उनको विरोध प्रदर्शन के बारे में बताया तो उन्होंने कहा कि हम लोगों के पास कोई सूचना नहीं है. फिर मैंने उन्हें कवरेज के लिए एक सूचना लिख कर दे दी और उसे ही व्हाट्सएप ग्रुप में डाल दिया. उसी को लेकर लोग मुझे टारगेट कर रहे हैं.”

मैंने उनसे पूछा कि इकरा मस्जिद के पास संभावित जुलूस और प्रदर्शन की चर्चा की बिना छानबीन किए आपने कैसे मीडिया को सूचना दे दी, तो उन्होंने कहा, “व्हाट्सएप ग्रुप में तो चल रहा था कि भारत बंद है और इसका एक स्टीकर बना कर भी लोग वायरल कर रहे थे.”

क्या वह वायरल या स्टीकर किसी तंजीम या संगठन के हवाले से वायरल हो रहा था? इसके जवाब में वह कहते हैं, “हमसे गलती हुई है. मैंने तस्दीक किए बिना ही मीडिया को भेज दिया. यही गलती है हमारी.”

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डेली मार्केट स्थित हनुमान मंदिर, जहां से भीड़ पर पहले पथराव और गोली चलाए जाने का आरोप प्रत्यक्षदर्शी लगा रहे हैं, के पुजारी के मुताबिक 10 जून को प्रदर्शनकारियों ने मंदिर पर पत्थर चलाए और उसे चारों तरफ से घेर लिया. इसकी खबर दूसरे दिन प्रकाशित सभी प्रमुख अखबारों में भी थी लेकिन उसी दिन लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर अपर बजार स्थित हांडा मस्जिद में हुए पथराव की खबर अखबारों में देखने को नहीं मिलती है.

हांडा मस्जिद के नायब इमाम के मुताबिक मस्जिद में पथराव हुआ और उनके साथ मारपीट की गई. मैंने इस बारे में मस्जिद के इमाम मोहम्मद फहीम अख्तर से बात की. उन्होंने मुझे उस घटना के बारे में बताया, “जुमे की नमाज के बाद अचानक बाहर हल्ला होने लगा और नारे लगने लगे. चारों तरफ से मस्जिद में पथराव होने लगा तो हम लोगों ने मस्जिद के गेट बंद कर ताला लगा दिया. मस्जिद के अंदर मेरे अलावा पांच-छह दुकानदार और थे जो घर नहीं जा पाए थे. मैंने हिंदपीढ़ी में अपने जानने वालों को फोन लगाया, तो उन्होंने प्रशासन को फोन किया. 15 मिनट बाद जब मस्जिद के पास पुलिस आई तो हंगामा शांत हो गया और पत्थर चलना बंद हुआ. मस्जिद के पास ही के श्यामा प्रसाद गुप्ता जी यहां पहुंचे. वही मुझे बाहर लेकर निकले. लेकिन जैसे ही हम लोग मस्जिद से थोड़ा आगे बढ़े, महाबीर चौक के पास, तो वहां पर इकट्ठा लोगों ने हमला कर दिया. मुझे सिर पर हैलमेट से मारा गया. पीछे पीठ पर कोई किसी चीज से हमला कर रहा था जिससे मेरी पीठ कट गई और खून निकलने लगा.” इमाम के मुताबिक श्याम लाल गुप्ता ने उन्हें किसी तरह बचा कर कोतवाली थाना पहुंचाया जिसके बाद उनके परिचित थाने आकर उन्हें ले गए.

मैंने ने श्याम लाल गुप्ता से घटना की जानकारी के लिए संपर्क किया. उन्होंने इमाम फहीम अख्तर के साथ घटी घटना की पुष्टि करते हुए कहा, “मैं इमाम साहब को मस्जिद से निकाल कर भेजना चाहा तभी वहां हुड़दंग करती हुई भीड़ आ गई. वे 100-200 लोग थे. इसलिए मैं चाह रहा था कि इन्हें साइड से सुरक्षित निकाल कर उनके एरिया में भेज दूं. (इमाम के साथ छह और मुस्लिम दुकानदार थे.) जैसे मैंने इनको बोला कि आगे आप दहिने होकर जाइएगा, तभी तक उन पर मॉब ने हमला बोल दिया. वह टोपी पहने हुए थे इसलिए उन पर पथराव करने लगे. मैं दौड़ा कर बीच में आ गया. मैंने मॉब से कहा कि भाई इंसानियत के नाते इन्हें छोड़ दो. इतने में पुलिस भी आ गई. तब वे लोग भागे. इसके बाद इन लोगों (इमाम के अलावा छह मुस्लिम दुकानदार) को कोतवाली थाना ले गए. मैं भी साथ गया था. फिर इमाम साहब के जानने वाले लोग आए और उनको लेकर चले गए.”

श्याम लाल गुप्ता के घर से तीन घर बाद हांडा मस्जिद है. वह कहते हैं कि उन्हें 40 साल हो गए होश संभाले हुए लेकिन “आज तक मैंने मस्जिद में कभी पथराव होते नहीं देखा. यह बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है.” श्याम के मुताबिक उनकी नजर में इंसानियत सबसे बड़ी चीज है. उन्होंने यह सब इसी इंसानियत के नाते किया.

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रांची में हुई हिंसा की घटना से संबंधित कई वीडियो वायरल हो रहे हैं. उन्हीं में से एक वायरल वीडियो को पत्रकार मीर फैसल ने ट्वीट किया है. वीडियो को खबर लिखे जाने तक 8817 बार रिट्वीट और 1272 बार कोट के साथ रिट्वीट हो चुका है और 12 लाख लोग इसे देख चुके हैं.

47 सेकंड के इस वीडियो में दिख रहा है पुलिस एक लड़के को रोड के एक किनारे से दूसरी तरफ पार करा कर सुराक्षित जगह पर भेजने के लिए ले जा रही है. लेकिन जैसे वह लड़का बीच रोड पर पहुंचता है उस पर तीन-चार पुलिस के जवान अचानक से लाठी चलाने लगते हैं. जब लड़का भागने लगता है, तो पुलिस का एक जवान सड़क पर पड़ा एक पत्थर उठा कर उस पर चलाता हुआ दिख रहा है.

मैंने इस लड़के से बात की. इस लड़के का नाम मोहम्मद अम्मार है. यह हिंदपीढ़ी स्थित अपनी नानी के घर रह कर पढ़ाई करता है. 13 साल के अम्मार ने चोट का निशान दिखाते हुए उस दिन के बारे में बताया, “हम नमाज पढ़ कर आ रहे थे. गोली चल रही थी तो हम डर के मारे छिप गए. पुलिस वाला आया और मुझसे कहने लगा, “चलो बाबू तुमको आगे तक छोड़ देते हैं. फिर आगे ले जाकर मारने लगा. हम किसी तरह छुड़ा कर भागे.” यह बताते हुए अम्मार का बदन कांप रहा था. तभी अम्मार की नानी सफीना कहती हैं, “हंगामा हुआ और गोली चली तो यह डर गया. हर जगह से गोली चल रहा थी. यह डर के मारे छिपा हुआ था. पुलिस वाले ने इसे देखा और बोला कि ‘चलो, डरो मत’. आपस में तीन चार पुलिस वाले कहने लगे कि इसको जाना है, भेज दो. लेकिन तभी तीन-चार पुलिस वाले मिल कर पीटने लगे. इसके बाद इसके बालों को नोचा.”

इसके अलावा और भी वीडियो वायरल हैं जिनमें पुलिस को हवाई और टार्गेटिंग फायरिंग करते हुए देखा जा सकता है. उनमें से एक वीडियो में गाली-गलौज और पुलिस को उकसाए जाने जैसी बातें कही जा रही हैं. मैंने अपनी पड़ताल पाया है कि अशोक गोप नाम के एक पत्रकार ने अपनी फेसबुक आईडी से 10 जून वाली घटना को लेकर लाइव रिपोर्टिंग की. लाइव रिपोर्टिंग में उसे कई जगहों पर पुलिस को उकसाते सुना जा सकता है. वीडियो में वह बीच-बीच में कहता है, “यह तस्वीर रांची की है, जो कश्मीर की याद दिलाती है, जहां पत्थरबाज पत्थरबाजी करते थे. इस्लाम के नाम पर कहर हो रहा है, गुंडागर्दी की जा रही है. यह तस्वीर इस्लाम की है. इस्लाम के नाम पर आंतक फैल रहा है तो इसके लिए जिम्मेवार कौन है?” फिर गोप जोर से चिल्लाते हुए कहता है, “मारो... नया इस्लाम में खून खराबा हो रहा है.”

लगातार पुलिस की फायरिंग की आ रही आवाजों के बीच गोप वीडियो में कह रहा है, “अरे इधर चलाइए. क्या कर रहे हैं, आप लोग महाराज? कोई फायदा नहीं है. पूरा सब उतर जाएगा, खत्म हो जाएगा. मारिए उधर आगे जाके.” इस दौरान दूसरी आवाजें भी आ रही हैं जिसमें गोली मारने के लिए उकसाया जा रहा है. गाली दी जा रही है. फिर गोप चिल्लाते हुए कहता है, “चलो, आगे चलो. डेली मार्केट के इलाको में लगता है कि पाकिस्तानी लोग रह रहे हैं. गोली दागिए, मारिए.” गोप चिल्लाते हुए गाली देता है और कहता है, “इनकी दुकान तोड़िए”.

उस 40 मिनट के वीडियो में उक्त बातें गोप ने सिर्फ सात मिनट के लाइव में कही हैं. बाकि के बचे वीडियो में भी उसे इस तरह की बातें करते सुना जा सकता है. गोप ने इस पूरे वीडियो को अपने यूट्यूब चैनल मुखर संवाद के पेज से भी शेयर किया है. मैंने उसकी इस रिपोर्टिंग के बाबत जानने के लिए पिछले 36 घंटों में लगभग 20 कॉल किए लेकिन उसने एक बार भी कॉल रिसीव नहीं किया. दो बार उसे मैसेज किया कि “आप कॉल उठाएं” लेकिन कोई रिप्लाई नहीं मिला. इस दौरान उसने एक बार मैसेज किया जिसमें बताया कि “आपका कॉल नहीं लग रहा है.” इस कॉल के बाद भी मैंने लगभग दस बार कॉल किया लेकिन फिर उसने कॉलें रिसीव नहीं की.  

कुछ और वायरल वीडियो को आधार बनाते हुए मुस्लिम समुदाय का कहना है कि डेली मार्केट स्थित मंदिर के ऊपर से जुलूस पर गोली और पत्थर चलाए जा रहे थे. यह बात मुद्दसीर के परिवार वालों की तरफ से दर्ज एफआईआर में भी कही गई है. उसी शिकायत में पत्थर और गोली चलाने वालों में हिंदूवादी नेता भैरो सिंह का नाम भी बताया गया है. आपको बता दें कि भैरो सिंह वही हैं जो पिछले साल मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के काफिले पर हमला किए जाने के प्रमुख आरोपित हैं. वह इस मामले में जेल भी जा चुके हैं. इसके अलावा उन पर भड़काऊ भाषण देने के भी आरोप है.

10 जून की घटना को लेकर उनके ऊपर लगे आरोपों पर भैरो सिंह ने मुझसे कहा, “मैं उस घटना के दौरान पूरे समय घर पर था. मैं वहां नहीं था. मेरी लोकेशन (फोन से) निकाल कर देख लीजिए. मुझे स्थानीय लोग पहचानते हैं. अगर मैं वहां उपस्थित होता तो मंदिर में घुसने और निकलने का मेरा कहीं न कहीं वीडियो फुटेज या फोटो जरूर होता. आप सीसीटीवी फुटेज निकाल कर जांच कर लीजिए. मेरे ऊपर झूठा आरोप है. असामाजिक तत्व के लोग मेरी छवि को धूमिल करने का प्रयास कर रहे हैं.”

भैरो सिंह के मुताबिक, उल्टा घटना के दिन उनके घर पर हमला किया गया. हिंदपीढ़ी स्थित उनके घर के दरवाजे को तोड़ने का प्रयास किया गया और घर के बाहर गोली भी चलाई गई. भैरो सिंह ने मुझे बताया कि इस बाबत उन्होंने एफआईआर भी दर्ज कराई है.

मैंने डेली मार्केट स्थित मंदिर के पुजारी श्यामानंद पांडे से भी बात की. इसी मंदिर के ऊपर से गोलियां चालाए जाने का आरोप लोग लगा रहे हैं. पांडे ने घटना को लेकर कहा, “मैं मंदिर में ही था. यहां पर भीड़ ने पुतला दहन किया. एकाएक पांच-दस हजार की संख्या में ये (मुस्लिम) लोग जमा हो गए और पुलिस की संख्या उस वक्त 40 के आसपास थी. उस वक्त पुलिस बहुत कम थी. प्रशासन भीड़ को कंट्रोल नहीं कर पाया. भीड़ ने मंदिर पर काफी पथराव किया. मंदिर को चारों तरफ से घेर लिया. बहुत सारे लोगों ने तो मंदिर के अंदर घुस कर जान बचाई है. पुलिस तो खुद जान बचा कर भाग रही थी. किसी जुलूस में इतनी भीड़ नहीं होती थी.”

मैंने पांडे से पूछा कि कहा जा रहा है मंदिर के ऊपर से पहले भीड़ पर पथराव किया गया, क्या मंदिर के ऊपर से एक भी पत्थर नहीं चला? इसके जवाब में पुजारी ने कहा, “यह गलत बात है. हम लोगों ने एक भी पत्थर नहीं चलाया है. देखिए, मंदिर के अंदर पुलिस भी घुसी हुई थी. पत्रकार भी घुसे हुए थे, जान बाचने के लिए. हो सकता है कि ये (पुलिस, पत्रकार) उनका (भीड़ का) पत्थर उठा कर उन्हीं पत्थरों से रिप्लाई किए होंगे.”

मैंने पांडे से पूछा कि क्या उस वक्त मंदिर के भीतर कोई सिविलियन मौजूद था, और यह भी पूछा कि उस वक्त मिंदर में कितने लोग थे. इसके जवाब में पुजारी ने कहा, “जुलूस निकलने के दौरान मंदिर में 12-13 लोग थे. उसके बाद पुलिस और पत्रकार आ गए तो संख्या बढ़ गई.”

क्या उस वक्त भैरो सिंह भी मंदिर में थे? इसके जवाब में पुजारी ने कहा, “हमारे पास मंदिर आने और जाने वाली दोनों जगह पर कैमरा लगा है और बाहर भी कैमरा लगा है. मेरे पास पुख्ता प्रमाण है कि मंदिर में बाहर से कोई नहीं आया. और हम यह भी कहते हैं कि पहले फ्लोर से तो किसी ने भी पत्थर नहीं चलाया.”

तीस साल के श्यामानंद पांडे कहते हैं कि वह इस मंदिर में 12 साल से हैं. लेकिन आज तक जुलूस में उन्होंने कभी ऐसी भीड़ नहीं देखी थी. पुजारी यह भी कहते हैं कि शांति बनाए रखने की जरूरत है और रांची का जो सौहार्द बिगड़ा है, उसे कायम किया जाना चाहिए.

धर्मगुरुओं, स्थानीय लोग के अलावा प्रमुख अखबारों में भी कहा गया है कि रांची की हिंसा जिला प्रशासन की एक बड़ी चूक और जुलूस के दौरान पर्याप्त पुलिस बल को तैनात नहीं किया गया था. लेकिन इस बारे में रांची एसएसपी सुरेंद्र कुमार झा ने कहा, “प्रशासन की तरफ से कोई चूक नहीं हुई है. हमारी तैयारी अच्छी थी. जो वीभत्स स्थिति हो सकती थी, उसे टाल दिया गया.  उनके (प्रदर्शनकारियों) मंसूबे को कामयाब नहीं होने दिया गया और अगर फोर्स की कमी रहती तो आज हम यहां बैठ कर प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं कर रहे होते. हमारे पास फोर्स की कोई कमी नहीं थी.”

प्रेस कॉन्फेंस में जब पूछा गया कि गोली चलाने की नौबत क्यों आई, तो एएसपी सुरेंद्र कुमार झा ने कहा, “इसका अनालिसिस या इंटरप्रिटेशन यहां पर बैठ कर नहीं कर सकते. क्यों नौबत आ गई, जब आप इसकी समीक्षा करेंगे तो आप भी बहुत सारी चीज समझेंगे, जानेंगे. हम लोगों का एक्शन कितना सही था, कितना लॉजिकल था, इस पर अब हमारा कहना उचति नहीं होगा. मामले की जांच हो रही है.”

प्रदर्शनकारियों पर फायरिंग किए जाने को लेकर पुलिस प्रशासन पर कांग्रेस विधायक और झारखंड राज्य हज कमेटी के अध्यक्ष इरफान अंसारी ने सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने इसे लेकर ट्वीट कर कहा, “प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का आदेश किसके कहने पर दिया गया. रांची के सिटी एसपी पहले से ही संदेह के घेरे में रहे हैं. इनके कण-कण में नफरत और भेदभाव बसा है. रांची की घटना उसी का परिणाम है. रांची की घटना शर्मसार करने वाली है. पुलिस का काम रक्षा करना है, गोली चलाना नहीं.” इरफान अंसारी ने मुख्यमंत्री से मृतकों के परिवार को 50 लाख रूपया मुआवजा और सरकारी नौकरी देने की मांग की है.

राज्य पुलिस आईजी अभियान अमोल वी. होमकर ने कहा कि पूरे मामले में अब तक की जांच में जवाबी फायरिंग की बात सामने आई है. हालांकि इस संबंध में कुछ सवालों के जवाबों के लिए रांची एसएसपी और झारखंड पुलिस के प्रवक्ता से संपर्क किया लेकिन बात नहीं हो पाई. इस बीच, एक खबर के मुतबिक 14 जून को रांची डीसी ने 10 जून की हिंसा को लेकर सरकार को अपनी रिपोर्ट भेज दी है. खबर के अनुसार, डीसी ने रिपोर्ट में कहा है कि बिना किसी पूर्व सूचना के 10 जून को रांची में 8000-10000 लोग जमा हो गए थे और स्थिति नहीं संभलते देख अंतिम विकल्प के रुप में पुलिस को गोली चलनी पड़ी.

इस बीच कानून व्यावस्था को लेकर राज्यपाल रमेश बैस ने जिला प्रशासन और राज्य के पुलिस महकमे पर नाराजगी जाहिर की है. शहर में बिगड़ती कानून व्यावस्था पर उन्होंने डीजीपी नीरज सिन्हा से सवाल पूछा है कि प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने से पहले वाटर कैनन, रबर बुलेट और आंसू गैस का इस्तेमाल क्यों नहीं किया गया? ये सभी चीजें उस वक्त वहां उपलब्ध क्यों नहीं थीं? बैस ने यह भी पूछा है कि जुलूस और धरना प्रदर्शन के बारे में प्रशासन को क्या-क्या जानकारियां थीं? इस बारे में जांच एजेंसियों ने क्या इनपुट दिए थे? उन्होंने आदेश दिया है कि हाल की घटना के बारे में विस्तृत रिपोर्ट उन्हें अविलंब उपलब्ध कराई जाए.

राजपाल बैस के निर्देश पर रांची पुलिस ने मंगलवार 14 जून को प्रदर्शनकारियों के पोस्टर को रांची के जाकिर हुसैन पार्क के पास के चौक पर लगाया लेकिन कुछ ही देर में सत्ताधारी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा के महासचिव सुप्रिया भट्टाचार्य की आपत्ति के बाद पोस्टर उतार लिया गया. सुप्रियो भट्टाचार्य ने पोस्टर को लेकर कहा है कि इससे उत्तर प्रदेश और झारखंड का फर्क मिट जाएगा. पुलिस चिन्हित कर कार्रवाई करे, सार्वजानिक तौर पर बदनाम करना सही नहीं है. वहीं, रांची सिटी एसपी ने कहा है कि जारी पोस्टर में कुछ संशोधन किया जाना है इस वजह से पोस्टर को हटाया गया है. फिर से पोस्टर को तैयार किया जाएगा.

हाल तक हिंसा के मामले में रांची के अलग-अलग इलाकों से 29 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. लेकिन दोनों मृतकों के परिजनों की शिकायत पर पुलिस ने कोई कार्रवाई अब तक नहीं की है.