इस साल फरवरी के आखिर में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा की तमाम रिपोर्टिंगों से एक प्रमुख बात जो गायब रही वह है हिंदू भीड़ द्वारा बमों का बहुतायत में विध्वंसकारी इस्तेमाल. इन इलाकों के मुस्लिम निवासियों द्वारा दिल्ली पुलिस में दर्ज ढेरों शिकायतों में हिंदुत्ववादी नारे लगाने वाली और संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाली भीड़ पर बमों का इस्तेमाल करने के आरोप है. विस्फोटक के इस्तेमाल की बस एक खबर मीडिया ने दिखाई थी जिसमें आम आदमी पार्टी के काउंसलर ताहिर हुसैन के छत पर मिले बमों का उल्लेख है. ताहिर हुसैन पर गुप्तचर विभाग के अधिकारी अंकित शर्मा की हत्या का आरोप है. कारवां के पास जो शिकायतें हैं उनमें मुस्तफाबाद, चांदबाग और करावल नगर में विस्फोटकों से हमले की बात कही गई है.
अपनी रिपोर्टिंग के दौरान मैंने देखा कि पुलिस अधिकारी एक शिकायतकर्ता को हिंसा में बम के इस्तेमाल की शिकायत ना करने का दबाव डाल रहे थे. संभव है कि इसी वजह से हिंसा में बम के इस्तेमाल की बात की रिपोर्टिंग बहुत कम हुई है. दो अन्य शिकायतकर्ताओं ने मुझे बताया कि उन्होंने हिंसा के तुरंत बाद शिकायत दर्ज कराई थी. पुलिस ने इन शिकायतों के आधार पर जो एफआईआर दर्ज की उनमें आरोपियों के नाम नहीं थे और विस्फोटकों की जानकारी भी नहीं रखी गई थी. इसका नतीजा यह हुआ कि शिकायतकर्ताओं को मुस्तफाबाद के ईदगाह मैदान में बनाए गए राहत शिविर में पुलिस सहायता डेस्क में नई शिकायतें दर्ज करानी पड़ीं. लेकिन नई शिकायतों के बाद भी ऐसा नहीं लगता कि हिंसा में विस्फोटक के इस्तेमाल की पड़ताल की गई.
मुस्तफाबाद के इलियास ने अपनी शिकायत में लिखा है, “25 फरवरी रात तकरीबन 11 बजे मेरे बेटे के फोन पर कॉल आया कि तुम्हारे मकान व दुकान पर हमला हो गया है और लूटपाट की जा रही है.” इलियास ने यह शिकायत 19 मार्च को गोकलपुरी पुलिस स्टेशन में दर्ज कराई थी. इलियास ने बताया कि यह सुनते ही वह अपनी दुकान की तरफ भागे और वहां एक भीड़ को खड़ा पाया. उस शिकायत में उन्होंने 7 लोगों का नाम लिया है जिनके हाथों में हथियार थे और वे लोग उनकी दुकान से सामान लूट कर एक टेंपो में भर रहे थे. इलियास ने लिखा है, “तभी मैंने देखा कि अनिल स्वीट वाला एक बम हाथ में लेकर आया. उसने सबसे पीछे होने को कहा और पहले जगदीश प्रधान जिंदाबाद, नंदकिशोर गुर्जर जिंदाबाद, सत्यपाल सांसद जिंदाबाद के नारे लगाए और फिर एक बम मेरे मकान पर फेंक दिया जिसके बाद बहुत जोर से धमाका हुआ और आसपास मेरे मकान की छत उड़ती दिखाई दी और मेरे कान तक सुन्न हो गए.'' इलियास ने शिकायत में लिखा है कि वह डर गए थे इसलिए अपने घर भाग कर आ गए. हमले के तुरंत बाद उन्होंने गोकलपुरी थाने में पहली शिकायत दर्ज कराई थी. अपनी दूसरी शिकायत में इलियास ने बताया है कि पहली शिकायत पर एफआईआर दर्ज होने के बावजूद उन्होंने क्यों दूसरी शिकायत की.
19 मार्च को दर्ज अपनी दूसरी शिकायत में इलियास ने लिखा है, “मैंने साफ तौर पर बताया था कि एक बैग से अनिल स्वीट वाले ने बम निकाल कर मेरे घर पर मारा है और उसने मकान उड़ाया है. इसके बाद मैंने कई बार आशीष गर्ग जी से विनती करी थी भाई यह एफआईआर जो मैंने बताई थी वह है ही नहीं, तो वह बोला कि चुपचाप बैठ जा नहीं तो तुझे भी अभी 302 के मुकदमे में पैक कर दूंगा सारी अकल ठिकाने आ जाएगी.” दिल्ली पुलिस ने दूसरी शिकायत पर एफआईआर दर्ज नहीं की है.
3 मार्च को इलियास की शिकायत पर गोकुलपुरी पुलिस ने एफआईआर दर्ज की. एफआईआर में शिकायत है कि दंगाइयों ने दुकान लूटी और उसमें आग लगा दी. एफआईआर बताती है कि इसमें इलियास को तकरीबन आठ से नौ लाख रुपए का नुकसान हुआ. लेकिन इस एफआईआर में उन व्यक्तियों के नाम नहीं हैं जिनके नाम इलियास ने अपनी शिकायत में लिए थे और यह भी दर्ज नहीं है कि इलियास विस्फोटक का इस्तेमाल कर उनकी संपत्ति को उड़ा देने वाले शख्स को पहचानते हैं.
इलियास ने अपनी दूसरी शिकायत में लिखा है, “जब मेरे बेटे ने मुझे एफआईआर पढ़कर सुनाई तो मैं हैरान हो गया क्योंकि उसमें किसी दोषी का नाम नहीं लिखा था और हद तो यह थी कि सिर्फ यह लिखा था कि “दो मंजिला मकान पूरा उड़ा दिया” जबकि मैंने साफ तौर पर बताया था कि एक बैग से अनिल स्वीट वाले ने बम निकाल कर मेरे घर पर मारा है और उसने मकान उड़ाया है. इसके बाद मैंने कई बार आशीष गर्ग जी से विनती करी कि भाई यह एफआईआर जो मैंने बताई थी वह है ही नहीं तो वह बोला कि चुपचाप बैठ जा नहीं तो तुझे भी अभी 302 के मुकदमे में पैक कर दूंगा. सारी अकल ठिकाने आ जाएगी.”
दिल्ली पुलिस ने इस दूसरी शिकायत पर एफआईआर दर्ज नहीं की है. गर्ग ने मुझसे कहा कि वह मेडिकल लीव पर है और जवाब देने से इंकार कर दिया, लेकिन गोकलपुरी पुलिस स्टेशन के एसएचओ प्रमोद जोशी ने इस मामले पर मुझसे बातचीत की. जोशी ने मुझे बताया कि इलियास पड़ताल में सहयोग नहीं दे रहे हैं और उन्होंने अपनी शिकायत में लोगों को झूठा फंसाया है. उन्होंने कहा, “शिकायतकर्ता को खुद ही नहीं पता की दुकान में आग किसने लगाई थी. जब मैंने उनसे विस्फोटक के इस्तेमाल के आरोपों के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, “यहां बम का इस्तेमाल कैसे हो सकता है?”
इलियास मुझे अपनी दुकान लेकर गए जो खंडहर हो चुकी थी. दुकान की छत पूरी तरह से उड़ी हुई थी. जब मैंने इलियास से एसएचओ के उस आरोप के बारे में पूछा जिसमें उन्होंने कहा है कि इलियास पड़ताल में सहयोग नहीं दे रहे हैं तो इलियास ने कहा कि पुलिस के बुलाने पर वह दो बार पुलिस थाने गए थे और दोनों ही बार तीन-तीन घंटे की पूछताछ में उन्होंने बताया था कि किन-किन लोगों ने उनकी दुकान पर हमला किया था. इलियास ने कहा, “लेकिन मैंने तब जाना बंद कर दिया जब वे लोग मुझे धमकी देने लगे. वे लोग मुझे रात को 11-11 बजे फोन करने लगे और धमकी देने लगे कि अगर मैं पुलिस स्टेशन नहीं आया तो वे मुझे उठा लेंगे. जब वे लोग मुझे धमकी दे रहे थे, तो मैं वहां कैसे जा सकता था. मैंने अपने वकील को यह बता दिया था और उन्होंने भी मुझे वहां नहीं जाने के लिए कहा था.” इलियास ने बताया कि एक रात वह इतने डर गए थे कि अपने पड़ोसी के घर में जाकर सोए. अपनी शिकायत में जिन लोगों की पहचान इलियास ने की है उनके बारे में उन्होंने बताया, “ये लोग अब भी खुलेआम घूम रहे हैं और इस मामले को आगे नहीं बढ़ाने के लिए मुझे धमका रहे हैं.”
हिंदू भीड़ के बम के इस्तेमाल की एक भयानक कहानी सलीम कस्सार ने सुनाई. वह करावल नगर में रहते और दुकान करते हैं. उस घटना में उनकी आंखों के सामने उनके भाई को भीड़ ने मार डाला था.
कस्सार ने अपनी शिकायत में लिखा है, “25 फरवरी को सुबह 9 बजे मैं अपने दुकान पर आया. अचानक सामने से भीड़ आती हुई नजर आई जो ‘देश के गद्दारों को गोली मारो सालों को’, ‘कपिल मिश्रा जिंदाबाद’ और ‘जगदीश प्रधान जिंदाबाद’ के नारे लगा रहे थे. दंगाइयों के हाथों में लोहे की रॉड, तलवारें, पेट्रोल बम, हथियार थे. दंगाई जब मेरी दुकान और मकान के करीब आए तो उन्होंने मेरी दुकान तोड़ना शुरू कर दिया. मेरा भाई अनवर कासिम उन दंगाइयों को रोकने लगा तो उन्होंने मेरे भाई को मारना शुरू कर दिया. यह देख कर मैं डर गया और घर पर आ गया जहां मेरे बच्चे और बीवी रो रहे थे और घबरा कर बोल रही थी कि ‘यह दंगाई हमें मार डालेंगे, चलो भाग चलें’.” कस्सार ने लिखा है कि जब दंगाई उसके भाई को मार रहे थे तो वह और उसके परिवार वाले हिंदू पड़ोसी के घर में चले गए. कस्सार अपने पड़ोसी की छत से देखने लगे कि उनके भाई के साथ क्या हो रहा है.
कस्सार ने शिकायत में लिखा है कि उनके भाई को कुछ दंगाइयों ने पकड़ रखा था और अन्य उनकी दुकान और मकान को लूट रहे थे और उनके घर के पास खड़ी गाड़ियों को आग लगा रहे थे. हमलावरों ने उनके भाई को दो बार गोली मारी. उन्होंने लिखा है, “उन्होंने प्लास्टिक के बैग से बम निकाला और मेरे भाई की बॉडी के ऊपर डाल दिया फिर दूर भाग गए जिसके बाद बम फटा और मेरे भाई के परखच्चे उड़ गए.”
कस्सार से जून में हुई बातचीत में उन्होंने बताया था कि पुलिस में विस्फोटक की शिकायत उन्होंने फरवरी में ही की थी. "मैंने अपनी आंखों से देखा था कि जब वे लोग उसके पैर में बम बांध रहे थे तो वह हाथ जोड़कर उनसे विनती कर रहा था. वह उन लोगों से विनती कर ही रहा था कि हेलमेट पहने एक आदमी ने उस पर गोली चला दी था. मेरा भाई गिर पड़ा और जब वह उठने लगा तो दूसरे आदमी ने उस पर गोली चला दी. मेरा भाई गिर गया और वे लोग उसे लातों से मारने लगे. वह दर्द से छटपटा रहा था. फिर तकरीबन 15 लोगों की भीड़ ने उसे उठाया और आग में फेंक दिया. एक बड़ा धमाका हुआ. बंदूक से ऐसी आवाज नहीं आ सकती. तब मुझे एहसास हुआ कि उन लोगों ने उसके पैरों में जो बांधा था वह बम था.”
कस्सार ने बताया कि उन्होंने 27 फरवरी को अपनी पहली शिकायत में पुलिस को उपरोक्त जानकारी दी थी लेकिन उन्होंने शिकायत में जिन लोगों का नाम लिया था और विस्फोट होने की जो बात कही थी वह एफआईआर में दर्ज नहीं की गई. इसके कई दिनों बाद तक पुलिस ने कस्सार को कुछ नहीं बताया. परेशान और बेचैन होकर उन्होंने 9 मार्च को सहायता डेस्क में दुबारा शिकायत की. उस शिकायत में प्रधानमंत्री कार्यालय, गृह मंत्रालय, दिल्ली पुलिस कमिश्नर के कार्यालय और करावल नगर पुलिस स्टेशन की मोहरें हैं.
कस्सार ने बताया कि जिस वकील ने उनकी शिकायत ड्राफ्ट की थी उसने एक बड़ी गलती की. उस शिकायत में गलत आदमी का नाम भाई पर गोली चलाने वाले के रूप में दिया गया है. शिकायत में लिखा है कि इलाके के रहने वाले संजू ने कस्सार के भाई पर गोली चलाई. कस्सार के अनुसार, उन्होंने वकील को बताया था कि संजू के हाथ में बंदूक थी और वह भीड़ का हिस्सा था लेकिन भाई पर गोली संजू ने नहीं इलाके के दूसरे आदमी लखपत ने चलाई थी. उन्होंने लखपत को गोली चलाते देखा था.
इस नई शिकायत के बाद जांच शुरू हुई. कस्सार ने बताया कि 25 मार्च को देशव्यापी लॉकडाउन शुरू होने के बाद उन्हें जांच अधिकारी का फोन आया था. अधिकारी ने उन्हें बताया कि मामले में पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया है. गिरफ्तार किए गए लोगों में लखपत भी था. कस्सार ने मुझे बताया कि दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच के इंस्पेक्टर राजीव रंजन ने गिरफ्तार पांच लोगों के फोटों उन्हें भेजे थे और उन्होंने पुलिस अधिकारी से इन लोगों की पुष्टि की थी कि ये लोग घटना की जगह पर मौजूद थे.
कस्सार ने बताया कि उन्होंने संजू को भाई पर गोली चलाते नहीं देखा था लेकिन संजू भीड़ में जरूर था. कस्सार ने मुझसे कहा, “वहां तकरीबन 15 हत्यारे थे जिन्होंने मेरे भाई को पकड़ा और मार डाला और फिर उसके शरीर के परखच्चे उड़ा दिए. सारे आरोपी अभी गिरफ्तार नहीं हुए हैं.” कस्सार ने कहा, “मुझे क्राइम ब्रांच के अधिकारी राजीव रंजन पर भरोसा है.”
शिकायतकर्ताओं ने 25 फरवरी को चांदबाग में नागरिक संशोधन कानून का विरोध करने वाली औरतों और मर्दों पर भी बम फेंके जाने की बात कही है. चांदबाग में रहने वाली रुबीना बानो और रहमत ने अपनी-अपनी शिकायतों में लिखा है कि उन्होंने भारी तादाद में पुलिस के जवानों को उन दंगाइयों के साथ खड़े देखा था जिनके हाथों में छड़ी, तलवारें, बंदूकें और बम थे. बानो ने अपनी शिकायत में लिखा है कि दंगाई मोहन नर्सिंग होम और अस्पताल की छत से सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के ऊपर बम फेंक रहे थे. रहमत और उसी इलाके की दूसरी शिकायतकर्ता इमराना परवीन ने अपनी शिकायतों में लिखा है कि उनकी आखों के सामने दंगाइयों ने प्रदर्शनकारियों के टेंट के भीतर बम फेंका था जिससे उसमें आग लग गई. पुलिस ने इनमें से किसी शिकायत पर एफआईआर दर्ज नहीं की है.
चांदबाग में हुए बम हमलों में घायल लोगों में ओल्ड मुस्तफाबाद की अकरम खान भी हैं. 15 मार्च की अपनी शिकायत में, जिसमें दयालपुर पुलिस स्टेशन की मोहर है और स्टेशन डायरी में 55 नंबर की एंट्री है, खान ने लिखा है कि हिंसा में उन्होंने अपना हाथ गुमाया है. खान ने लिखा है कि सुबह जब वह प्रदर्शन कर रहे थे तो मोहन नर्सिंग होम से फेंका गया एक बम उनके हाथ पर आकर गिरा. उन्होंने लिखा है कि आसपास के साथी मुसलमानों ने उन्हें किसी तरह बचाया और पास के मेहर अस्पताल लेकर गए जहां से बाद में उन्हें गुरु तेग बहादुर अस्पताल में भर्ती कराया गया.
“डॉक्टरों ने 25 फरवरी 2020 को मेरा ऑपरेशन करके एक हाथ काट दिया है. मेरे चाचा ने जीटीबी अस्पताल के पास मौजूद पुलिसवालों से मेरे बारे में रिपोर्ट दर्ज करने के लिए कहा पर पुलिस वालों ने मेरे चाचा को ही धमकाया कि ‘अगर इस घटना की शिकायत करोगे तो तुझे और तेरे भतीजे को ही जेल में डाल देंगे और जमानत भी नहीं होने देंगे.’''
अपनी शिकायत में खान ने कहा है, “मेरे दूसरे हाथ में भी सेप्टिक फैल गया है. मुझे डॉक्टर बता रहे हैं कि कभी भी कुछ भी हो सकता है इसलिए मैंने अपने चाचा को बता कर अपने बयान लिखवाए जिसे चाचा टाइपिंग करा कर लाए हैं और मैंने उसे पढ़कर अपना अंगूठा लगाया है क्योंकि मैं हस्ताक्षर नहीं कर सकता हूं.” दिल्ली पुलिस ने खान की शिकायत पर कोई एफआईआर दर्ज नहीं की.
जब मैंने दिल्ली पुलिस के जनसंपर्क अधिकारी एमएस रंधावा से इस बारे में सवाल पूछे तो उन्होंने दावा किया कि मेरे सवालों में “बदनियती है.” रंधावा ने दावा किया कि शिकायतों को हिंसा के कई दिनों बाद दर्ज कराया गया था. लेकिन उन्होंने इस बात पर गौर नहीं किया कि शिकायतों को इसलिए दुबारा दर्ज कराना पड़ा था क्योंकि पुलिस की पहले की एफआईआरों में कई जानकारियां छूटी हुई थीं. रंधावा ने इस तथ्य की भी अनदेखी की की संज्ञेय अपराधों में पुलिस यह सवाल नहीं कर सकती कि शिकायत करने में देरी हुई है या नहीं. कानून का यह एक स्थापित सिद्धांत है कि इस बारे में फैसला अदालत लेती है. इसके अलावा अपने तर्कों के लिए साक्ष्य दिए या सोच-विचार किए बिना उन्होंने दावा किया कि शिकायतकर्ताओं ने "कहानियां बनाई हैं" और "निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच को प्रभावित करने के लिए ऐसा किया गया है."
ताज्जुब की बात है कि मेरे सवाल भेजने से पहले तक पुलिस ने खान के मामले की जांच की ही नहीं थी. रंधावा ने मुझे लिखा कि खान अपने बताए पते पर मौजूद नहीं थे लेकिन खान ने बताया कि पुलिस ने उनसे संपर्क करने का प्रयास कभी नहीं किया. 29 जून को, दिल्ली पुलिस को सवाल भेजने के दूसरे दिन मैं खान से मिलने, उनका हालचाल लेने और उनकी शिकायत की जांच के स्टेटस के बारे में जानने के लिए उनके घर पहुंचा तो देखा कि उसी दिन खान के घर पर सादी वर्दी में पुलिस अधिकारी सिंह बयान लेने के लिए मौजूद हैं. मैंने रंधावा को सवाल एक रात पहले ही भेजे थे.
इत्तेफाक से हुई इस मुलाकात ने मुझे बताया कि शिकायतों में लगाए गए आरोपों को, कि पुलिस अधिकारी जानबूझकर शिकायतकर्ताओं की बातों को नहीं लिखती, कैसे अंजाम दिया जाता है. मेरे सामने ही सिंह ने खान के उस आरोप को शिकायत में दर्ज नहीं किया कि मोहन नर्सिंग होम की छत से गोलियां चल रही थीं. जब खान ने इस पर दुबारा जोर दिया तो सिंह ने जवाब दिया, “भजनपुरा साइड से लिख दिया है, एक ही बात है.” सिंह के इस प्रयास से समझ में आ रहा था कि चांदबाग से मिली सभी शिकायतों में जिस हॉस्पिटल का नाम है, उसे पड़ताल के दायरे से बाहर रखने की कोशिश की जा रही है.
खान ने इस बात पर भी जोर दिया कि अनिल स्वीट वाला भीड़ की अगवाई कर रहा था लेकिन बयान दर्ज करने वाले अधिकारी ने इस पर ध्यान नहीं दिया और अपने ही तरीके से शिकायत लिखता रहा, जिसमें ये जानकारियां शामिल नहीं थीं. इस बात को खान ने भी महसूस किया. खान ने पुलिस वाले से बहस करनी बंद कर दी, लेकिन वह प्रताड़ित नजरों से पुलिस वालों को देखते रहे. खान ने कहा, “जब मैं गिर पड़ा, तो एक बम मोहन नर्सिंग होम से नीचे गिरा” इस पर सिंह ने खान को टोका और कहा, “यह सब जांच में आ जाएगा” और बयान में इसे दर्ज नहीं किया.
जब मैंने सिंह से पूछा कि वह बयान दर्ज करते हुए इन चीजों को क्यों छोड़ रहे हैं तो उन्होंने मुझे सीधे-साधे शब्दों में कहा,"सुनिये, सुनिये या शिकायत झूठी है. 24 फरवरी को शास्त्री पार्क मेन रोड में पुलिस स्टेशन के पास एक एक्सीडेंट हुआ था. एक कार ने इसे टक्कर मारी थी और इसे जीटीवी अस्पताल ले जाकर भर्ती किया गया था. इलाज के दौरान इसका हाथ काटना पड़ा और इस एक्सीडेंट के बारे में एफआईआर दर्ज की गई. शास्त्री पार्क पुलिस स्टेशन के परवेश कुमार इस मामले के जांच अधिकारी हैं और यह 2020 की एफआईआर नंबर 60 है."
खान का बयान दर्ज करते हुए कहीं भी सिंह ने इन जानकारियों के बारे में सवाल नहीं किया. दिल्ली पुलिस के जनसंपर्क अधिकारी ने भी अपने जवाब में इनका उल्लेख नहीं किया था. सिंह के मुताबिक, खान ने अपनी कहानी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा हिंसा में घायल लोगों को मुआवजा देने की घोषणा के बाद बदल ली. "यह सब ड्रामा कर रहे हैं कि हमारे साथ यह हो गया. बात ही खत्म हो गई इसकी कंप्लेंट की.
उस एफआईआर में खान को टक्कर मारने वाली गाड़ी, गाड़ी चलाने वाले चालक, दुर्घटना की परिस्थिति और यहां तक की खान को कैसे अस्पताल ले जाया गया, जैसी बातों की जानकारी नहीं है. उसमें दर्ज है कि एक मेडिको-लीगल मामला दर्ज है लेकिन खान ने मुझे बताया कि उन्हें एमएलसी रिपोर्ट की कॉपी कभी नहीं दी गई है. जब बयान दर्ज हो रहा था तो खान ने सिंह से एमएलसी की कॉपी मांगी तो उन्होंने खान से कहा कि वह स्टेशन आकर कॉपी ले जाएं.
मैंने जांच अधिकारी प्रवेश कुमार से एक्सीडेंट की जानकारी मांगी. उन्होंने कहा, “कुछ पता नहीं चला है इसलिए मैं इसे ‘अनट्रेस्ड’ रिपोर्ट करूंगा. शास्त्री पार्क रेड लाइट की सीसीटीवी फुटेज में भी कुछ नहीं मिला.” कुमार और सिंह दोनों ही पुलिस वालों ने अकरम की शिकायत को भी यही कहकर खारिज किया था कि केजरीवाल की वित्तीय मुआवजे की घोषणा के बाद खान ने अपनी कहानी बदली है.
इस बीच खान ने मुझसे बताया कि वह शास्त्री पार्क जा रहे थे लेकिन जब उन्हें सड़क पर हिंसा होती दिखाई दी तो लौटने लगे और चांदबाग से लौटते हुए वह घायल हो गए. उन्होंने कहा कि शुरू में पुलिस और अस्पताल के अधिकारियों को उन्होंने इसलिए बताया था कि यह एक दुर्घटना है क्योंकि उन्हें ऐसा कहने को कहा गया था. उन्हें याद है कि किसी ने उनसे कहा था कि “अगर तुम इसे एक्सीडेंट बताओगे तो तुम्हारा जल्दी इलाज होगा. मुझे याद नहीं कि ऐसा मुझसे किसने कहा था लेकिन मैं इतनी खराब हालत में था कि मैंने ऐसा कह दिया.” खान ने बताया कि उन्होंने बिना सोचे-समझे ऐसा कहा था क्योंकि वह लगभग बेसुध और डरे हुए थे. “मैं अपने इलाज को लेकर डरा हुआ था. मुझे पता नहीं था कि मेरा इलाज होगा कि नहीं. इस बात से मैं बहुत डर गया था और इसलिए मैंने वह कह दिया जो मुझसे कहने के लिए कहा गया.” उन्होंने कहा कि उनको लगता है कि डॉक्टरों को उनकी बात पर विश्वास नहीं हुआ क्योंकि वे लोग बार-बार उनसे पूछ रहे थे कि ‘सच-सच बताओ क्या हुआ था क्योंकि तुम्हारी चोट से नहीं लगता कि यह एक्सीडेंट से लगी है.’ इसके बाद मैंने उन्हें सच बता दिया.”
24 फरवरी को जीटीवी अस्पताल में भर्ती किए जाने से पहले खान को मेहर नर्सिंग होम, जो न्यू मुस्तफाबाद में है, में भर्ती किया गया था. यह तथ्य पुलिस के दावे की पोल खोलता है. मेहर नर्सिंग होम में खान की उपस्थिति की पुष्टि खून से लथपथ अस्पताल में उनकी फोटो और फोटो लेने वाले एक दोस्त और वहां उनका इलाज करने वाले एक एक स्वास्थ्यकर्मी के साथ उनकी बातचीत से होती है. जब हमने खान की तस्वीर स्वास्थ्यकर्मी को दिखाई तो उन्होंने कहा, “हां मैंने उनके हाथ में पट्टी बांधी थी.” स्वास्थ्यकर्मी ने अपना नाम रिपोर्ट में उल्लेख ना करने का अनुरोध किया क्योंकि उन्हें डर था कि दिल्ली पुलिस उनके खिलाफ बदले की कार्रवाई कर सकती है. स्वास्थ्यकर्मी ने मुझसे कहा, “मैं इस लड़के की शक्ल पहचानता हूं” और उन्होंने यह भी बताया कि खान की हालत बहुत खराब थी इसलिए उसे जीटीबी अस्पताल भेज दिया गया था. यदि पुलिस के दावे के अनुसार खान शास्त्री पार्क में घायल हुए थे तो यह संभव नहीं है कि उन्हें मेहर नर्सिंग होम और जीटीवी अस्पताल दोनों जगह ले जाया जाता क्योंकि दोनों विपरीत दिशाओं में 6 किलोमीटर की दूरी पर हैं. पुलिस ने इस बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है.
इन तीनों शिकायतों में एक बात समान है कि दिल्ली पुलिस ने विस्फोटकों के इस्तेमाल की पड़ताल नहीं की है. हमारी बातचीत के आखिर में मैंने कस्सार से पूछा कि क्या ऐसी कोई बात है जो वह कहना चाहते हैं, तो उन्होंने असहास आवाज में कहा, “मैं क्या कह सकता हूं? मैं बहुत चिंतित हूं. मैं अपने भाई के लिए इंसाफ चाहता हूं. ब सिर्फ मेरा एक ही मकसद है. जैसे भी हो मैं अपने भाई को इंसाफ दिलाना चाहता हूं.”