नांदेड़ बम धमाकों की जांच में आरएसएस नेता को शामिल करने से बचती सीबीआई

23 जुलाई 2010 को नांदेड़ धमाके और मालेगांव धमाकों के आरोपी राकेश धवाडे (बाएं से तीसरे) को सत्र अदालत में ले जाते हुए पुलिस. आरएसएस के पूर्व सदस्य यशवंत शिंदे के यह दावा करते हुए हलफनामा दाखिल करने के बावजूद कि उन्होंने धवड़े के साथ बम बनाने में प्रशिक्षण लिया था, सीबीआई ने नांदेड़ मामले में शिंदे को गवाह बनाने से इनकार कर दिया. गणेश शिरसेकर/एक्सप्रेस फोटो
30 September, 2022

22 सितंबर को हुई एक सुनवाई में केंद्रीय जांच ब्यूरो ने महाराष्ट्र की नांदेड़ जिला अदालत से अप्रैल 2006 के नांदेड़ बम ब्लास्ट से संबंधित एक मामले में यशवंत शिंदे द्वारा गवाह बनने के एक आवेदन को खारिज करने के लिए कहा. शिंदे साल 1990 से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे हैं. 29 अगस्त को उन्होंने नांदेड़ अदालत में एक शपथ पत्र दायर किया था जिसमें दावा किया गया था कि वह उन कई बैठकों में शामिल थे जिसमें आरएसएस और उसके सहयोगी संगठन विश्व हिंदू परिषद के सदस्यों और मिलिंद परांडे जो वर्तमान में वीएचपी के महासचिव हैं, ने मिलकर देश भर में सिलसिलेवार बम धमाके करने की एक योजना बनाई थी. उन्होंने 2003 में लगभग बीस अन्य लोगों के साथ परांडे के मार्गदर्शन में बम बनाने का प्रशिक्षण लेने का भी दावा किया. 2006 में लक्ष्मण गुंडय्या राजकोंडावर के आवास पर एक जोरदार विस्फोट हुआ था, जिसमें उनके बेटे और उनके बेटे के दोस्त की मौत हो गई थी और चार अन्य घायल हो गए थे. बाद में इस विस्फोट को एक बड़ी साजिश से जोड़ा गया जिसमें 2003 और 2004 में जालना, पूर्णा और परभणी में मस्जिदों में हुए विस्फोट शामिल थे. शिंदे का दावा है कि यह धमाके उन्हीं लोगों के समूह ने किए थे जिनके साथ उन्होंने प्रशिक्षण लिया था. शिंदे के निवेदन के बाद अदालत ने मामले को लेकर सीबीआई और अन्य आरोपियों से जवाब तलब किया था.

शिंदे द्वारा हलफनामे में किए गए सभी दावें सीबीआई की जांच और महाराष्ट्र आतंकवाद विरोधी दस्ते द्वारा इसी मामले में पहले की गई जांच के बाद अदालत में जमा रिपोर्ट से मेल खाते हैं. और फिर भी सीबीआई ने मामले में अभियुक्तों के साथ जो सुनवाई में जांच एजेंसी से सहमत थे, शिंदे को एक गवाह बनाने का विरोध किया, यह दावा करते हुए कि उनकी दलील न तो कानून के अनुसार है और न ही तथ्यों के." सीबीआई का तर्क मुख्य रूप से इस बात पर आधारित है कि शिंदे ने धमाकों के बाद पिछले 16 वर्षों से जांच एजेंसियों से कोई संपर्क नहीं किया. सीबीआई ने यह भी दावा किया कि चल रहे मुकदमे में शिंदे की कोई भूमिका नहीं है.

अदालत में किए गए सीबीआई के दावे विरोधाभासी थे. एक तरफ एजेंसी ने अदालत में पेश की हालिया रिपोर्ट में तर्क दिया था कि वे उस व्यक्ति की पहचान और ठिकाने का पता नहीं लगा पाए जिसने प्रशिक्षण दिया और धमाकों के लिए धन उपलब्ध कराया. नतीजतन सीबीआई ने 31 दिसंबर 2020 को मामले में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी थी. शिंदे के हलफनामे देने से पहले यह बात सार्वजनिक रूप से सामने नहीं आई थी कि मामला बंद कर दिया गया था. सीबीआई ने अपनी बात दोहराई कि जब भी अपराध में शामिल प्रोफेसर देव सहित किसी भी व्यक्ति की पहचान के बारे में कोई नया, ताजा, उपयोगी और निश्चित सुराग प्राप्त होगा तो मामले को फिर से खोलकर जांच की जा सकती है.

वहीं दूसरी तरफ सीबीआई अदालत से शिंदे के आवेदन को खारिज करने के लिए कह रही थी, जिसमें न केवल उस व्यक्ति की पहचान हो रही थी गई जिसने प्रशिक्षण दिया था, बल्कि विहिप के मुंबई कार्यालय में रवि देव के साथ बैठक का विस्तृत विवरण भी दिया था. शिंदे ने मुझे दावे के साथ बताया किया कि रवि देव वही व्यक्ति है जिसे सीबीआई प्रोफ़ेसर देव के नाम से जानती है. अपने हलफनामे में उन्होंने प्रशिक्षण के समय उनके साथी रहे राकेश धवाडे का भी नाम लिया, जिसे सीबीआई पहले ही मामले की चार्जशीट में शामिल कर चुकी है और जिस पर 2008 के मालेगांव बम धमाके के मामले में मुकदमे चल रहा है.

अदालत में सीबीआई की रिपोर्ट का मुख्य उद्देश्य परांडे को मामले में आरोपी बनाने से रोकना था. अगर वह आरोपी बनते तो वह संघ परिवार के सबसे वरिष्ठ पदाधिकारियों में से एक होते जिन पर आतंकवाद से जुड़े मामले पर जांच की तरवार लटकी होती. सीबीआई ने कहा कि, "जांच के दौरान सीबीआई द्वारा पूछताछ किए गए किसी भी गवाह ने परांडे का नाम नहीं लिया. और न ही जांच में उनकी संलिप्तता सामने आई है." इसे एक अच्छा रणनीतिक झूठ बताने वाले उस समय सेवा में मौजूद एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि मिलिंद परांडे का नाम महाराष्ट्र एटीएस द्वारा की गई धमाकों की जांच में सामने आया था. महाराष्ट्र पुलिस के एक पूर्व महानिरीक्षक एसएम मुश्रीफ ने अपनी किताब हू किल्ड करकरे में नांदेड़ बम धमाकों की महाराष्ट्र एटीएस द्वारा की गई जांच का वर्णन किया है. मुश्रीफ लिखते हैं कि एटीएस ने धमाकों की जांच करते समय मर्चेंट नेवी के पूर्व कप्तान संतकुमार भाटे को ढूंढ निकाला और भाटे ने अप्रैल मई 2006 में एटीएस को दो बयान दर्ज कराए. भाटे ने अपने बयानों में बताया कि परांडे ने उन्हें संघ के कई कार्यकर्ताओं को जिलेटिन की छड़ियों को इस्तेमाल करना सिखाने के लिए कहा. भाटे ने यह भी बताया कि परांडे उन्हें एक अन्य प्रशिक्षण शिविर में ले गए जहां दो पूर्व सैनिकों और एक पूर्व खुफिया ब्यूरो अधिकारी संघ के कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित कर रहे थे.

मुश्रीफ ने मुझे बताया कि उनकी जानकारी पूरी तरह से मामले पर की गई महाराष्ट्र एटीएस की चार्जशीट पर आधारित थी. भाटे की बातों से यह स्पष्ट है कि एटीएस की जांच में पता चला है कि परांडे ने हिंदू चरमपंथियों के लिए बम प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. सीबीआई के लिए यह दावा करना कि परांडे कभी मामले मे शामिल नहीं था, पूरी तरह से गलत है.

नांदेड़ अदालत में सीबीआई ने शिंदे के आवेदन को अस्वीकार करने के लिए दो तकनीकी कारण खोजे. पहला है आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 173 (8), जो अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद भी आगे की जांच करने के लिए पुलिस की शक्ति को निर्धारित करता है. सीबीआई का तर्क था कि शिंदे जांच आगे बढ़ाने के लिए कभी भी जांच एजेंसी के सामने खुद पेश नहीं हुए, जो कि सच है. अदालत का दरवाजा खटखटाने से पहले शिंदे ने हाल ही में राष्ट्रीय जांच एजेंसी और मुंबई पुलिस को इसी मामले पर एक पत्र भी लिखा था. सीबीआई ने शिंदे की याचिका को खारिज करने के लिए सीआरपीसी की धारा 311 का भी उल्लेख किया है जिसमें कहा गया है कि, "कोई भी अदालत, इस संहिता के तहत किसी भी जांच, मुकदमे या अन्य कार्यवाही के किसी भी चरण में किसी भी व्यक्ति को गवाह के रूप में बुला सकती है या किसी भी व्यक्ति की जांच कर सकती है." सीबीआई ने तर्क दिया कि शिंदे न तो शिकायतकर्ता थे और न ही मामले में आरोपी थे इसलिए धारा 311 का फायदा नहीं उठा सकते.

मैंने एक सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली की जिला अदालत में वकालत करने वाले दो वकीलों से बात की जो अपनी पहचान गुमनाम रखना चाहते थे. दोनों वकीलों ने कहा कि अगर कानून के  अनुसार चला चाए तो सीआरपीसी की धारा 311 लागू होती है और शिंदे को गवाह के रूप में लिया जाना चाहिए था. सुप्रीम कोर्ट के वकील ने मुझे बताया, "इस धारा के तहत अदालत के पास विशेष शक्तियां है. मुकदमे से किसी व्यक्ति का लंबे समय तक अनुपस्थित रहना उसे एक नए गवाह के रूप में जोड़े जाने के लिए अयोग्य नहीं ठहराता."

हालांकि, उन्होंने यह भी बताया कि एक निचली अदालत के न्यायाधीशों द्वारा इस धारा की शक्ति का प्रयोग करने की संभावना कम होती है क्योंकि इससे ऐसे मामलों में नए गवाहों की बाढ़ आने की संभावना बढ़ जाती है. जिला अदालत के वकील ने कहा कि इस मामले में शिंदे के अनुरोध को तरजीह दी गई है. बॉम्बे हाई कोर्ट ने 2020 में न्यूज एंकर अर्नब गोस्वामी को 2018 में आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में दायर चार्जशीट को चुनौती देने और केस बंद होने के बाद भी चार्जशीट में संशोधन करने की अनुमति दी थी.

पिछले कुछ हफ्तों में मैंने बम धमाकों को लेकर साजिश, संघ के भीतर उनके सहयोगियों और प्रचारक के रूप में शिंदे के जीवन के बारे में उनके साथ कई साक्षात्कार किए. 2003 में पड़ोसी जिलों जालना, पूर्णा और परभणी की मस्जिदों में हुए तीन बम धमाकों के बारे में उनके अधिकांश दावे तथ्यात्मक रूप से मीडिया रिपोर्टों के साथ-साथ इन मामलों के अदालती रिकॉर्ड से मेल खाते हैं. शिंदे के दावों को कानूनी रूप से सत्यापित करना तब तक संभव नहीं है जब तक कि उनका परीक्षण टेलीफोन कॉल रिकॉर्ड, प्रशिक्षण शिविर रजिस्टर, फोरेंसिक, वीडियो और अपराध स्थल से तस्वीरें जैसे सबूतों से मिलाकर नहीं किया जाता, जो 2008 में महाराष्ट्र एटीएस से केस लिए जाने का बाद से सीबीआई के कब्जे में हैं. शिंदे ने 2006 में राज्य पुलिस द्वारा दायर किए गए सबूतों और चार्जशीट हासिल करने के लिए और आवेदन दायर किए हैं.

उनके साथ मेरे साक्षात्कार में उन्होंने आरोपी के साथ काम करने के अपने अनुभव से मामले से जुड़े कई विवरणों का जिक्र किया. उनका भी मामले के आरोपियों से गहरा संबध था. वह मुझे हिमांशु पांसे के आवास तक लेकर गए. पांसे परिवार वहां से चला गया है लेकिन पड़ोसियों के साथ-साथ घर के वर्तमान निवासियों ने घर के मालिक को पांसे का पिता बताया. शिंदे का दावा है कि पांसे भी ट्रेनिंग कैंप में मौजूद था.

पांसे की 2006 में राजकोंडावर स्थित आवास पर हुए विस्फोट में मौत हो गई थी. 2006 के विस्फोट में लक्ष्मण के बेटे नरेश राजकोंडावर की मौत हो गई थी. घायल होने वाले चार अन्य लोग मारुति केशव वाघ, योगेश देशपांडे, गुरुराज जयराम तुपतेवार और राहुल मनोहर पांडे थे. शुरूआत में, राज्य पुलिस ने माना कि यह कोई अनजान स्थानीय घटना थी, एक पटाखा विस्फोट जिसका कोई अखिल भारतीय प्रभाव नहीं था. बाद में, महाराष्ट्र एटीएस ने पांच अन्य लोगों के साथ विस्फोट के सभी छह पीड़ितों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया. एक आरोपी पांडे के नार्को विश्लेषण से पता चला कि विस्फोट उसी साजिश का हिस्सा था, जो जालना, पूर्णा और परभणी में हुए बम विस्फोटों का था. जबकि नार्को विश्लेषण काफी हद तक सटीक जानकारी नहीं देने के लिए सिद्ध हुआ है, और अक्सर जांच एजेंसियों द्वारा इसका दुरुपयोग किया जाता है, एटीएस द्वारा एकत्र किए गए अन्य सबूत भी इन विस्फोटों की साजिश के तार जोड़ते हैं.

इसके तुरंत बाद, सीबीआई ने मामले को अपने हाथ में ले लिया और तब से मीडिया में इसे कमजोर करने के आरोपों से घिरी हुई है. अदालत में सीबीआई की हालिया दलील स्पष्ट करती है कि एजेंसी ने भारतीय दंड संहिता के तहत “साजिश” के आरोपों और शस्त्र अधिनियम के तहत कई आरोपों को हटा दिया था. ये आरोप मामले से जुड़े महाराष्ट्र एटीएस के चार्जशीट में मौजूद थे. सीबीआई के खाते में, राकेश धवाडे-जिसके साथी शिंदे का नाम था-ने हिरासत में पूछताछ में खुलासा किया था कि "एक प्रो. देव ने ऑपरेशन को वित्तपोषित किया और उन्हें बम विस्फोट के लिए प्रशिक्षित किया." एजेंसी ने अदालत को बताया कि, "प्रो. देव का स्केच भी तैयार किया गया था और गेस्ट हाउस के मालिक, गवाहों आदि सहित विभिन्न व्यक्तियों को दिखाया गया था. हालांकि, प्रो. देव की पहचान आज तक स्थापित नहीं की जा सकी है." इसने अदालत से वादा किया कि मामले में सभी फाइनेंसरों और प्रशिक्षकों की पहचान स्थापित करने के बाद एक और रिपोर्ट पेश की जाएगी. इससे मोटे तौर पर पता चलता है कि सीबीआई देव की खोज को उनके मामले में एकमात्र संभावित लीड के रूप में देखती है.

अगर ऐसा होता, तो यह स्पष्ट नहीं होता कि सीबीआई शिंदे को गवाह के रूप में लेने को तैयार क्यों नहीं है. सीबीआई की प्रतिक्रिया शिंदे के हलफनामे से सहमत थी कि देव ने बम विस्फोट करने वाले लोगों को प्रशिक्षित किया था. शिंदे की देव को लेकर याद ज्यादातर 2003 में आयोजित प्रशिक्षण शिविर से हैं. "देव जब शिविर में आए तो पहले ही वह अपने 60 के दशक में थे," शिंदे ने मुझे बताया. "शिविर का आयोजन सिंहगढ़ किले के पास दो मंजिला रिसॉर्ट में किया गया था," पुणे से लगभग चालीस किलोमीटर दूर. "सभी पुरुष भूतल पर खाना खाते, टहलते और समय बिताते, जबकि प्रशिक्षण पहली मंजिल पर होता." शिंदे ने बम बनाने के प्रशिक्षण का वर्णन किया. "वे एक घेरे में बैठते, जबकि देव उन्हें दिखाते कि सामग्री को कैसे मिलाया जाता है," उन्होंने कहा. "उनके प्रशिक्षण में भगवा रंग और सफेद रंग के पाउडर इस्तेमाल किया गया था." वह उन रसायनों का नाम नहीं जानते थे जिनका वे उपयोग करते थे.

शिंदे ने देव को औसत कद का आदमी, लगभग पांच फीट और पांच इंच लंबा और तेज नाक और गेहुंआ रंग वाला बताया. उन्होंने मुझे बताया कि उनका मानना ​​है कि देव उत्तर भारत से थे क्योंकि उन्होंने "शुद्ध" हिंदी में बात की थी. शिंदे निश्चित नहीं थे, लेकिन उन्होंने कहा कि उन्हें याद है कि देव ने अपने सिर के पीछे लंबे बालों का एक गुच्छा रखा था - जो आमतौर पर ब्राह्मणों से जुड़ा होता है. शिंदे ने कहा कि, प्रशिक्षण के समय, उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि देव ने संघ परिवार में क्या विशिष्ट भूमिका निभाई है. उन्होंने कहा कि धवड़े देव को बाइक से ट्रेनिंग सेंटर ले आते थे और फिर घर वापस ले जाते थे. शिंदे ने कहा कि यह धवड़े थे जिन्होंने रिसॉर्ट में उनके ठहरने, उनके भोजन और अन्य खर्चों का ध्यान रखा, उन्होंने कहा कि देव का वित्तपोषण से कोई लेना-देना नहीं था. अपने हलफनामे में शिंदे ने एक फोन नंबर भी साझा किया, जिसके बारे में उनका दावा है कि देव ने इसका इस्तेमाल किया था.

उन्होंने कहा कि देव उस समय मिथुन चक्रवर्ती के नाम से जाने जाते थे. शिंदे ने अपने हलफनामे में दावा किया है कि प्रशिक्षण शिविर के चार साल बाद, वह फिर से मुंबई में विश्व हिंदू परिषद के कार्यालय, जिसे फिरोजा हवेली के नाम से जाना जाता है, में चक्रवर्ती से मिले. शिंदे ने कहा कि यहीं उन्हें पता चला कि चक्रवर्ती का असली नाम रवि देव था. शिंदे ने इससे पहले 1999 में फिरोजा हवेली में प्रचारक के रूप में छह महीने बिताए थे, इसलिए वहां के कर्मचारियों से अच्छी तरह परिचित थे. कार्यालय के एक स्टाफ सदस्य ने उन्हें बताया कि देव विहिप की युवा शाखा बजरंग दल के सह संयोजक-अतिरिक्त समन्वयक के रूप में काम कर रहे थे. जब शिंदे ने देव को उनके असली नाम से पुकारा, तो उन्होंने दावा किया कि देव डर के मारे भाग गए. शिंदे ने मुझे बताया कि देव “परांडे की ओर भागा, जबकि मैं उसका पीछा कर रहा था. भूतल पर, उन्होंने मेरी खोज के बारे में परांडे के कान में फुसफुसाया.

शिंदे ने मुझे बताया कि "देव पर सीबीआई का ध्यान मिलिंद परांडे से ध्यान भटकाता है, जो साजिश का असली मास्टरमाइंड था." उनके हलफनामे में दावा किया गया है कि नांदेड़ विस्फोट का शिकार पांसे, जिसने साजिश के लिए बम बनाना जारी रखा था- ने उन्हें बताया था कि मिलिंद परांडे देशव्यापी बम विस्फोटों की योजना का मास्टर माइंड था. भले ही देव साजिश के केंद्र में हों, शिंदे ने मुझे बताया कि सीबीआई उनके साथ परांडे के संबंधों की जांच करके उनके बारे में और पता लगा सकती है.

शिंदे ने कहा कि जम्मू-कश्मीर और बाद में उत्तर पूर्व की यात्रा करने के बाद वह विहिप के महाराष्ट्र नेतृत्व से दूर हो गए. उन्होंने दावा किया कि जुलाई 2003 में ही परांडे के दो करीबी सहयोगियों ने प्रशिक्षण में भाग लेने के लिए दक्षिण मुंबई के एक मंदिर में उनसे संपर्क किया था. शिंदे ने कहा, "मैं अदालत के सामने सही समय पर दो सहयोगियों के नाम उजागर करूंगा."

शिंदे के साथ मेरे साक्षात्कार से यह भी स्पष्ट हो गया था कि उनके और परांडे के बीच अच्छे संबंध नहीं थे. शिंदे ने बताया कि परांडे 1990 के दशक के अंत में मुंबई में बजरंग दल के साथ अपने कार्यकाल के दौरान उनके कामकाज के तरीकों से खुश नहीं थे. ऐसी ही एक घटना में शिंदे ने मुझे बताया कि आरएसएस के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने उन्हें कुछ स्थानीय गुंडों से निपटने में मदद के लिए बुलाया था. उन्होंने कहा कि वह तुरंत स्थान पर गए और गुंडों को "उनकी भाषा में" सबक सिखाया. परांडे ने घटना के बाद शिंदे पर निराशा व्यक्त की. शिंदे का मानना ​​​​था कि परांडे उससे नाराज थे क्योंकि उन्हें लगा कि उनके अधिकार को कम किया जा रहा है. शिंदे ने कहा कि परांडे ने संगठन में सम्मान केवल इसलिए मिला क्योंकि उन्हें विहिप के पूर्व अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल ने "लाया" था, जो बाबरी मस्जिद के खिलाफ अभियान का नेतृत्व करने के प्रभारी थे. शिंदे ने यह भी कहा कि परांडे पहले विदेश में कार्यरत थे.

मैंने परांडे से बात करने के लिए दिल्ली में विहिप के मुख्यालय को फोन किया. उस तरफ से मुझे बताया गया कि परांडे विदेश चले गए हैं और मुझे इसके बजाए एक वकील और विहिप के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार से बात करने के लिए कहा गया. कुमार ने मुझे बताया कि शिंदे के दावे कुछ और नहीं बल्कि “सुनी बातें” हैं. "वह [शिंदे] कहते हैं कि किसी ने उन्हें कुछ ऐसा बताया जो अफवाह है. उनके पास बनाने के लिए कोई आधार नहीं है." कुमार ने यह भी कहा कि शिंदे ने "मिलिंद परांडे द्वारा चर्चा की गई सभी बातों का कोई विवरण नहीं दिया है." जब मैंने पूछा कि क्या विहिप ने शिंदे को अपना माना है, तो कुमार ने कहा, "हमें ऐसा कोई व्यक्ति नहीं मिला है." सीबीआई के प्रवक्ता ने किसी कॉल या संदेश का जवाब नहीं दिया.

नांदेड़ कोर्ट ने मामले में अगली सुनवाई 4 नवंबर को तय की है. उस दिन शिंदे को अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाएगा. सीबीआई और आरोपी भी बहस करेंगे.