पूर्वोत्तर भारतीयों की पारंपरिक पोशाकों पर सांस्कृतिक कब्जेदारी कर कमाई कर रहे प्रमुख ब्रांड और शेष भारत

08 दिसंबर 2020
एक बुनकर मणिपुर के लिरुम फे को दिखाते हुए. पूर्वोत्तर राज्यों के कई लोगों ने कहा कि शेष भारत के लोग अक्सर उनकी पारंपरिक पोशाकों को गलत तरीके से पेश करते हैं और यहां तक कि बिना किसी डर के उनसे मुनाफा भी कमाते हैं. इस तरह की घटनाएं न केवल अपमानजनक हैं बल्कि पारंपरिक बुनकरों की आजीविका के लिए भी खतरा बन सकती हैं.
गूटम राज थॅडाम
एक बुनकर मणिपुर के लिरुम फे को दिखाते हुए. पूर्वोत्तर राज्यों के कई लोगों ने कहा कि शेष भारत के लोग अक्सर उनकी पारंपरिक पोशाकों को गलत तरीके से पेश करते हैं और यहां तक कि बिना किसी डर के उनसे मुनाफा भी कमाते हैं. इस तरह की घटनाएं न केवल अपमानजनक हैं बल्कि पारंपरिक बुनकरों की आजीविका के लिए भी खतरा बन सकती हैं.
गूटम राज थॅडाम

27 सितंबर को विश्व पर्यटन दिवस के अवसर पर पारले-जी बिस्कुट ने अपने इंस्टाग्राम पेज पर एक अभियान चलाया जिसमें कई पोस्टें थीं और प्रत्येक में किसी एक भारतीय राज्य को चित्रित किया गया था. पारले-जी गर्ल को प्रत्येक पोस्ट में राज्य विशेष की पृष्ठभूमि के साथ उस राज्य की पारंपरिक पोशाक पर दिखाया गया. लेकिन "असम" वाले चित्रण में कई पूर्वोत्तर भारतीय राज्यों की पहचानों की मिलावट थी. पारले-जी गर्ल ने क्रमशः एक काजेंग्ली और एक कवचरी पहना था जो मणिपुरी हेडड्रेस और टॉप है लेकिन पृष्ठभूमि मेघालय से मिलती-जुलती थी.

पोस्ट 27 सितंबर को अपलोड किया गया था. इन राज्यों के कई लोगों ने जब कमेंट बॉक्स में पारले-जी की आलोचना शुरू की तो पोस्ट को हटा दिया गया. उसके स्थान पर 28 सितंबर को पारले-जी ने असम, मणिपुर और मिजोरम को दर्शाते हुए तीन फोटो अपलोड किए. लेकिन पिछली पोस्ट के लिए माफी नहीं मांगी.

दिल्ली विधानसभा अनुसंधान केंद्र में शोध सहयोगी चिचबनेनी किथन कहना है, “पूर्वोत्तर के बाहर के लोगों में हमारे बारे में सीमित समझ और सभी समुदायों को एक ही मानने वाली प्रवृत्ति है.” किथन नागा समुदाय से हैं. पूर्वोत्तर राज्यों के कई लोगों ने मुझे बताया कि कैसे शेष भारत के लोग अक्सर उनकी पारंपरिक पोशाक को गलत ढंग से प्रस्तुत करते हैं और ऐसा करने को सांस्कृतिक रूप से उपयुक्त मानते हैं. उन्होंने मुझे इस साल के कुछ ऐसे मामलों के बारे में बताया जो न सिर्फ अपमानजनक हैं बल्कि पारंपरिक बुनकरों की आजीविका के लिए भी खतरा बन सकती हैं.

एक घटना एक अमेरिकी वस्त्र कंपनी लेवी स्ट्रॉस एंड कंपनी से संबंधित है जिसने मिजोरमवासियों के बीच सनसनी पैदा कर दी थी. 11 सितंबर को एक फेसबुक यूजर ने तीन लाख से अधिक सदस्यों वाले एक फेसबुक ग्रुप मिजो स्पेशल रिपोर्ट पर लेवी की एक शर्ट की तस्वीर पोस्ट की. उपयोगकर्ता ने बताया कि शर्ट में एक पैटर्न था जो कि सिर पर बांधे जाने वाले मिजोरम के एक पारंपरिक वस्त्र थंगछुआ दियार पर इस्तेमाल किया जाता है. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के आईडीसी स्कूल ऑफ डिजाइन के रिसर्च स्कॉलर फेलनुमांवी ने कहा, "यह हमारी पहचान चुराने के जैसा है. मेरा मानना ​​है कि अगर यह मिजो थंगछुआ पैटर्न की नकल नहीं भी है तो यह उससे प्रेरित जरूर है जो सांस्कृतिक कब्जेदारी का मामला है."

फेलनुनमावी और मिजो भाषा में मास्टर और लेखक त्सा खुपचोंग ने मुझे स्थानीय मिजो लोगों के पैटर्न के महत्व के बारे में बताया. “थंगछुआ दियार गरिमा का प्रतीक था. पुरुष जब एक तय संख्या में जनवरों का शिकार कर लेते थे तब वे इसे पहनने का सम्मान अर्जित करते थे," फेलुनमुमावी ने कहा. उन्होंने कहा, “यह सम्मान उन्हें सामाज में ऊंचा स्थान दिलाता था. इस सम्मान के साथ सामाजिक व्यवस्था और शौर्य तथा 'तलावमंगैहना’ यानी दूसरों या समाज के लिए निस्वार्थ सेवा जैसी आचार संहिता को बनाए रखने का कर्तव्य भी आया. यह परंपरा कब शुरू हुई स्पष्ट नहीं है लेकिन खूपचोंग के अनुसार, यह धीरे-धीरे औपनिवेशिक काल के दौरान मर गई. उन्होंने कहा, "जब हम ईसाई बन गए तब हमारी मान्यताएं बदल गईं और थंगछुआ और खंगचवी जैसी परंपराएं धीरे-धीरे खत्म हो गईं." हाल के वर्षों में राज्य में ही इस तरह की शर्ट बनने लगीं और मिजो पुरुषों के बीच यह एक जरूरी पोशाक सी हो गई.

किमी कॉलनी कारवां की रिपोर्टिंग फेलो हैं.

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