Thanks for reading The Caravan. If you find our work valuable, consider subscribing or contributing to The Caravan.
सरकारी संगीत ऐप संगम खोल कर देखें तो उसे उसमें “दुर्गा पूजा” शीर्षक वाला 14 गीतों का संग्रह दिखाई पड़ेगा. इस साल मई में भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने इस ऐप को लॉन्च किया था. मंत्रालय के अनुसार इस ऐप में 24 भारतीय भाषाओं में 2500 से ज्यादा भक्ति गीतों का संकलन है. दुर्गा पूजा वाले गीतों में मार्कण्डेय पुराण और अंबा अष्टकम के सप्तशती से लिए गए गीत हैं. अष्टकम आठ स्तोत्रों की श्रृंख्ला है जिसकी रचना का श्रेय आठवीं सदी के धर्म प्रचारक आदि शंकराचार्य को दिया जाता है. आदि शंकराचार्य ने वेदों की श्रेष्ठता और इनमें समस्त मानवीय ज्ञान के होने का प्रचार किया था. इस साल अगस्त में ऐप के पहले पेज में “श्री अमरनाथ यात्रा” नाम से 95 श्लोकों और भजनों को जोड़ा गया जिन्हें शंकर की शिवशतकम और ऋग्वेद से लिया गया है. इसी तरह कृष्ण जन्माष्टमी और गणेश चतुर्थी के भजनों को भी ऐप में संकलित किया गया है.
इस ऐप को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) ने अपनी विशेष परियोजना राष्ट्रीय संस्कृति ऑडियोवीजूअल आर्काइव (एनसीएए) के तहत तैयार किया है. यह आर्काइव अप्रैल 2014 में शुरू की गई और इसकी वेबसाइट के मुताबिक इसका लक्ष्य देश भर की संस्थाओं में उपलब्ध “भारतीय सांस्कृतिक विरासत की पहचान और उनका संरक्षण करना है” ताकि “लोगों तक इन सामग्रियों को पहुंचाया जा सके.” ऐप की परिकल्पना एनसीएए के “आउटरीच” कार्यक्रम के तहत की गई थी. और इस पर उपलब्ध सामग्री इसी परियोजना के डेटाबेस से ली गईं हैं. आईजीएनसीए के मुताबिक, “संगम ऐप का उद्देश्य भारत और भारत के बाहर रहने वाले करोड़ों भक्तों की दैनिक पूजा का हिस्सा बनना है.” इसका लक्ष्य “टेक-सेवी पीढ़ी को भारतीय संस्कृति की मूल मान्यताओं की ओर आकर्षित करना है जो संस्कृत भाषा के मंत्रों, श्लोकों और हिंदी भाषा के दोहे, चालीसा और आरती की समृद्ध और वृहद विरासत से बनी है.” इस ऐप के बारे में आईजीएनसीए बताती है कि यह “हिंदुस्तानी, कर्नाटिक और लोक संगीत का मंच होने के साथ ही जैन धर्म, बुद्ध धर्म, सिख धर्म और इस्लाम धर्म के भक्ति गीतों, मंत्रों और श्लोकों का आर्काइव भी है.”
आईजीएनसीए और एनसीएए की उपर्युक्त घोषणाओं के बावजूद यह ऐप अपने घोषित उद्देश्य से मेल नहीं खाता. इस ऐप की अधिकांश सामग्री हिंदू धर्म से संबंधित है और केवल 23 गीत सूफी, जैन, बुद्ध और सिख धर्म की श्रेणी में रखे गए हैं. इसके अलावा इसके मेटाडेटा में अन्य धर्मों से संबंधित जानकारियों में बड़ी गलतियां हैं. बुद्ध धर्म की पाली भाषा की प्रार्थना को सोलहवीं शताब्दी के कृष्ण भक्त संत सूरदास के साथ रखा गया है. ऐप में इस्लाम नाम की कोई श्रेणी ही नहीं है और ब्राह्मण परंपराओं और ग्रंथों पर विशेष जोर है. आईजीएनसीए की वेबसाइट के अनुसार, ऐप में वेदों, शंकराचार्य की मोह मुदगरा, जयदेव की गीत गोविंद, तुलसीदास की रामचरितमानस और थ्यागराजा की कीर्ति से संबंधित सामग्री है. लेकिन इस ऐप से भारत के अन्य धर्मों और आदिवासी परंपराओं और लोकगीत नदारद हैं.
परियोजना की रिपोर्ट के अनुसार, एनसीएए ने 15 सरकारी और इतनी ही गैर सरकारी संस्थाओं के साथ साझेदारी कर इस आर्काइव का डिजीटल डेटाबेस तैयार किया है और इसका प्रारंभिक लक्ष्य 30 हजार घंटों का ऑडियो-वीजूअल रिकार्ड तैयार करना है. यह एक पायलट परियोजना थी जिसे 31 मार्च 2018 तक पूरा किया जाना था लेकिन एनसीएए ने इसे तय तरीख से पहले पूरा कर लिया. इसका अनुमानित खर्च 10 करोड़ रुपए बताया गया है.
अक्टूबर 2018 में एनसीएए की सात सदस्यीय टीम ने संगम ऐप पर काम शुरू किया. एनसीएए की इस परियोजना के मैनेजर इरफान जुबेरी के मुताबिक संस्कृति मंत्रालय इस ऐप को 2019 के कुंभ मेले के अवसर पर जारी करना चाहता था. उन्होंने बताया, “मंत्रालय का इरादा कुंभ में हिस्सा लेने वाले लोगों और देशभर में कुंभ से संबंधित पूजा-पाठ में भाग ले रहे लोगों को भक्ति संगीत उपलब्ध कराना था.” जनवरी से ही ऐप स्टोर पर मौजूद इस ऐप को मई में आधिकारिक तौर पर लॉन्च किया गया.
जुबेरी ने बताया कि ऐप कि “यूएसपी आर्काइव और अप्रकाशित सामग्री का संग्रह है.” उन्होंने कहा कि इसमें संपूर्ण वेदों का संग्रह है. वह बताते हैं, “इनका संग्रह पारंपरिक वेद पाठिकों ने किया है.” जुबेरी ने बताया कि ऐप में वेदों को पारंपरिक तरीके से रिकार्ड किया गया है. “यह व्यवसायिक संगीत उद्योग की तरह नहीं है जो चालू संगीत के जरिए इसे फैशनेबल बनाता है. हमने इसकी पारंपरिक शुद्धता का ख्याल रखा है.”
जब मैंने जुबेरी से जानना चाहा कि इस ऐप के लिए सामग्री के चयन की प्रक्रिया क्या थी तो उनका कहना था कि संगीतकारों और अकादमिक जगत के लोगों की एक टीम ने संगम ऐप के लिए सामग्री के संकलन में मदद की है. जुबेरी बताते हैं, “संकलन पूरी तरह से संस्थाओं की रुचि पर निर्भर था.” उन्होंने बताया कि कॉपी राइट के उल्लंघन जैसी चीजों का ध्यान रखा गया है. वह बताते हैं, “साझेदार संगठनों को हमारे द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक संगीत का चयन करने को कहा गया था और बाद में हमने सामग्री का संपादन किया.” लेकिन परियोजना रिपोर्ट जुबेरी के इस दावे से अलग तस्वीर पेश करती है. इस रिपोर्ट में ऐप के लिए प्रारंभिक तौर पर चयनित 2500 गीतों की थीमों को स्पष्ट परिभाषित किया गया है, जो हैं : मंत्र, भगवान विष्णु और उनके विभिन्न अवतार, भगवान शिव, भगवान गणेश, देवी दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती सहित अन्य हिंदू देवियां.”
अमरनाथ संकलन में ब्राह्मण परंपरा पर जोर साफ दिखाई देता है. इसमें यजुर्वेद का पुरुष सूक्त शामिल है. इस सूक्त में शामिल एक श्लोक इस प्रकार है : “ब्राह्मणः अस्य मुखम् आसीत् बाहू राजन्यः कृतः ऊरू तत्-अस्य यत्-वैश्यः पद्भ्याम् शूद्रः अजायतः” यानी सृष्टि के मूल उस परम ब्रह्म का मुख ब्राह्ण था, बाहु क्षत्रिय के कारण बने, उसकी जंघाएं वैश्य बने और पैरों से शूद्र उत्पन्न हुआ.
बीआर आंबेडकर सहित कई विद्वानों का दावा है कि पुरुष सूक्त ने हिंदू समाज को चार श्रेणियों में विभाजित कर हिंदू समाज की कट्टर वर्ग श्रेणी तैयार की. आंबेडकर ने लिखा था, “पुरुष सूक्त का सिद्धांत आपराधिक भावना से प्रेरित है और यह समाजद्रोही है क्योंकि इसका उद्देश्य एक वर्ग द्वारा अनैतिक तरीके से हासिल लाभ को बचाए रखना और अन्य वर्ग पर अन्यायपूर्ण व्यवस्था थोपना है.”
आईएनसीए की स्थापना 1985 में हुई थी और यह आदिवासी, लोक और समसामयिक कला की जानकारी के संप्रेषण के लिए संसाधन और शोध केंद्र के रूप में काम करती है. लेकिन 2014 में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार के गठन के बाद से ही संस्कृति और पर्यटन मंत्रालयों की परियोजनाओं ने धार्मिक रंग लेना शुरू कर दिया. ये मंत्रालय आध्यात्मिक और तीर्थ स्थानों के विकास जैसी परियोजनाओं पर ज्यादा ध्यान देने लगे हैं और संस्कृति मंत्रालय की अन्य संस्थाओं की तरह, संघ परिवार ने आईजीएनसीए पर भी अपना कब्जा जमा लिया है.
सरकार बनाने के एक साल के अंदर ही मोदी सरकार ने आईजीएनसीए बोर्ड का पुनर्गठन कर इसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े लोगों को शामिल कर लिया. पूर्व पत्रकार और आरएसएस के एजेंडे के तहत संविधान को बदलने की वकालत करने वाले राम बहादुर राय को इस संस्था का प्रमुख बना दिया गया. इसके अन्य सदस्यों में आरएसएस की शिक्षा केंद्रित शाखा “भारतीय शिक्षण मंडल” के अध्यक्ष सच्चिदानंद जोशी, आरएसएस की सांस्कृतिक शाखा “संस्कार भारती” के पूर्व अध्यक्ष वासुदेव कामथ और आरएसएस के दीनदयाल उपाध्याय के दर्शन पर आधारित थिंक टैंक “एकात्म मानवतावाद के लिए संसाधन और विकास न्यास” के अध्यक्ष महेश चंद्र शर्मा शामिल हैं.
नए बोर्ड के गठन के बाद अपने पहले आयोजनों में आईजीएनसीए ने एग्रीकल्चर एटलस ऑफ मध्य प्रदेश नाम की किताब का विमोचन किया. इस किताब को आरएसएस से जुड़े थिंक टैंक “सेंटर फॉर पॉलिसी स्टडीज” (सीपीएस) ने प्रकाशित किया था. किताब को सीपीएस के निदेशक जे के बजाज ने लिखा था. आजकल आरएसएस से संबंधित कार्यक्रमों का आयोजन आईजीएनसीए में आम बात है.
आईजीएनसीए की वैदिक विरासत वेबसाइट के जरिए संस्कृति मंत्रालय सक्रिय रूप से वैदिक सामग्री का प्रचार कर रहा है. वैदिक ग्रंथों के प्रति इसका रुख आस्था से भरा है और यह वेदों को “अपनी पवित्रता और शुद्धता के लिए अनोखा” करार देता है. इस वेबसाइट के अनुसार, “वेद ग्रंथ हजारों साल बाद भी अपने मौलिक रूप में बरकरार हैं और इनसे किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं हुई है.” वेबसाइट में वेदों को “सच्चे ज्ञान का असली भंडार” बताया गया है. वेबसाइट कहती है, “यूनेस्को ने वेदों को मानव की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा घोषित किया है.”
यहां यह बताना जरूरी है कि वैदिक मंत्रों के जाप की परंपरा के अलावा यूनेस्को ने 11 अन्य वस्तुओं को इस श्रेणी में रखा है. इस श्रेणी में केरल का संस्कृत भाषी थिएटर कूडियाट्टम, पंजाब के ठठेरा समुदाय की पीतल और तांबे के बर्तन बनाने की कला, पारसी नववर्ष नवरोज और कुंभ मेला शामिल हैं. लेकिन इन समस्त अमूर्त विरासतों में से मात्र वैदिक मंत्रों के जाप, रामलीला, योग और कुंभ मेला को ही 2014 से राज्य का अतिरेक संरक्षण मिल रहा है.
वित्त वर्ष 2015 में आईजीएनसीए के लिए अनुदान मांग में मंत्रालय का दृष्टिकोण समझ आता है. 2015 में मंत्रालय ने वैदिक विरासत परियोजना के लिए 50 लाख रुपए और विवेकानंद पर आधारित कठपुतली नाटक का आयोजन करने के लिए 25 लाख रुपए की मांग की थी. 2016 में विवेकानंद कठपुतली नाटक के लिए मंत्रालय ने 63 लाख रुपए की मांग की जिसे अब अमेरिका और कनाडा में प्रदर्शित किया जाएगा. इसके बाद वाले वर्ष के बजट प्रस्ताव में बस एक ही आइटम था : वैदिक विरासत वेबसाइट के लिए 50 लाख रुपए.
जब मैंने जुबेरी से पूछा कि ऐप में हिंदू धर्म से संबंधित सामग्री पर अधिक जोर क्यों है तो उनका जवाब था कि ऐसा बिल्कुल नहीं है कि “हम केवल एक ही धर्म पर केंद्रित हैं.” उनके अनुसार, “फिलहाल ऐप की अधिकांश सामग्री हिंदू धर्म से संबंधित है और ऐसा इसलिए है क्योंकि आर्काइव में जो संगीत सामग्री फिलहाल मौजूद है वह इस धर्म से संबंधित है.” जुबेरी ने दावा किया कि ऐसा “इरादतन नहीं किया गया है...एनसीएए विस्तार कर रही है और अगले पांच सालों में अन्य तरह का संगीत भी आएगा जिसे संगम में जगह मिलेगी.”
आईजीएनसीए की योजना मार्च 2020 तक 4500 गीतों को ऐप में डालना है. इसके अतिरिक्त सामग्री में नई रिकॉर्डिंग भी होंगी. जुबेरी ने बताया कि एनसीएए को दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक समिति और आगा खान संस्कृति न्यास जैसे स्रोतों से सहयोग मिलता है और जल्द ही यह ऐप सभी धर्मिक मान्यताओं का प्रतिनिधि ऐप दिखाई देने लगेगा. फिलहाल तो इस ऐप में ब्राह्मण सामग्री पर जोर स्पष्ट दिखाई देता है. जुबेरी कहते हैं, “हमने छह संगीतकारों को भक्ति ग्रंथों और इन सामग्री पर आधारित संगीत रचने का जिम्मा दिया है. यह सामग्री मुख्य रूप से संस्कृत भाषा में है, जैसे मंत्र और सूत्र, जिनके लिए हमें लगता है कि इनकी पुनर्व्याख्या हो सकती है या जो अन्य संगीत ऐपों में उपलब्ध नहीं हैं.”