“आत्मनिर्भर” मॉडल के लिए अधिक वित्त पोषण की जरूरत : पूर्व वित्त सचिव सुभाष गर्ग

साभार : सुभाष गर्ग

13 मई को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कोविड-19 महामारी से लड़खड़ा रहे देश के अर्थतंत्र को थामने के लिए 15 उपायों वाले राहत पैकज की घोषणा की. यह पैकज 20 लाख करोड़ रुपए के उस बड़े राहत पैकज का हिस्सा है जिसकी घोषणा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक दिन पहले 12 मई को की थी.

वित्त मंत्री के इस राहत पैकज के बारे में कारवां के रिपोर्टिंग फेलो तुषार धारा ने पूर्व वित्त सचिव सुभाष गर्ग से बात की. पिछले साल अक्टूबर में गर्ग ने स्वैच्छिक  अवकाश ले लिया था और अब वह आर्थिक नीति विश्लेषक हैं.

तुषार धारा : कोरोना संकट से निपटने के लिए लिए 13 मई को वित्त मंत्री ने जिन उपायों की घोषणा की है, उन्हें कैसे देखते हैं?

सुभाष गर्ग :इन उपायों को दो श्रेणियों में रख सकते हैं. उन्होंने भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा पहले दी गई मदद को शामिल किया है, सात लाख करोड़ रुपए के आसपास हैं. मैं इसे 20 लाख करोड़ रुपए का हिस्सा मान रहा हूं. दूसरे भाग में कुल छह लाख करोड़ रुपए के उपाय ही हैं.

तुषार धारा : दूसरे भाग में क्या है?

सुभाष गर्ग : इस पैकेज की कुछ बहुत जरूरी खासियतें हैं. पहली यह कि इस पैकेज का उद्देश्य सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को तीन लाख करोड़ रुपए के ऋण और आंशिक क्रेडिट गारंटी के माध्यम से कार्यशील पूंजी (रोजमर्रा के खर्चों और किराए तथा मजदूरी जैसी मदों के लिए जरूरी नकदी) उपलब्ध कराना है. इस पैकेज की दूसरी मुख्य बात है कि यह लगभग पूरी तरह से क्रेडिट तंत्र उपाय हावी है. यह राजकोषीय सहायता नहीं है. इसलिए इसे बैंकों के माध्यम से दिया गया है कि वह तीन लाख करोड़ रुपए का भुगतान करें, 90000 करोड़ रुपए पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन, ग्रामीण विद्युतीकरण निगम वगैरह सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के लिए दिया गया है. (13 मई को सरकार ने बिजली वितरण कंपनियों के लिए 90000 करोड़ रुपए की नकद मदद की घोषणा की थी.)

तीसरी बात, वर्तमान में राजकोषीय उत्पादन बहुत कम है. तीन लाख करोड़ रुपए के पैकेज में चार साल की अवधि के लिए वो कर्ज हैं जो भारत सरकार द्वारा गारंटीकृत और (मूल राशि के पुनर्भुगतान पर) एक वर्ष के लिए निषेध (अधिस्थगन) हैं. मतलब कि चार साल बाद ही इसका प्रभाव सरकारी खजाने पर पड़ेगा. वास्तव में कितना ऋण वितरित किया जाता है और एक वर्ष के बाद चुकाने वाले ऋणों की मात्रा के आधार पर, आपको यह निर्धारित करने के लिए चार साल के अंत तक इंतजार करना होगा कि ऋण गैर-निष्पादित हैं या नहीं. यह (चार साल) के बाद ही पता इसका प्रभाव (सरकारी खजाने से कितना निकला) पता चलेगा.

चौथा, कुछ ऐसी आकांक्षी चीजें हैं जो शायद कभी पूरी ही ना हों. उदाहरण के लिए, एमएसएमई में इक्विटी के लिए (निधियों के कोष के लिए) 50000 करोड़ रुपए हैं. इसमें सरकार निधियों के कोष में निवेश करती है. इस कोष से एमएसएमई कोष में निवेश होता है जो छोटे और मध्यम उद्यमों को सहायता प्रदान करता है. लेकिन एसएमई इकाइयों में निवेश के लिए लगभग 600 करोड़ रुपए हैं. इसलिए आप इसे बढ़ाकर 50000 करोड़ रुपए नहीं कर सकते. इसके लिए आप एक साल में 1000 करोड़ रुपए भी नहीं जुटा सकते. यह होना संभव नहीं लगता. इसी तरह, एक साल हो गया है और आंशिक क्रेडिट-गारंटी योजना अब तक शुरू नहीं हुई है.

तुषार धारा : क्रेडिट प्रोत्साहन और राजकोषीय प्रोत्साहन के बीच क्या अंतर है?

सुभाष गर्ग : अर्थव्यवस्था में प्रोत्साहन का उद्देश्य मांग को पैदा करना होता है. ये मांगें दो तरह की होती हैं. उपभोग की मांग का मतलब है अधिक सामान और सेवाओं को खरीदने के लिए लोगों के हाथों में अधिक पैसा होना और निवेश की मांग का मतलब है व्यवसायों का नए निवेश करने में सक्षम होना, उत्पादन का विस्तार करना, वगैरह-वगैरह. ये दो बुनियादी प्रकार के प्रोत्साहन हैं और ये दो स्रोतों से आते हैं. सरकार व्यवसायों और परिवारों को आयकर कम करके या सब्सिडी प्रदान करके अतिरिक्त आय उपलब्ध करा सकती है. यह राजकोषीय प्रोत्साहन है. क्रेडिट प्रोत्साहन वह है जहां बैंक व्यवसायों को अधिक निवेश सुविधा प्रदान करने के लिए अधिक क्रेडिट प्रदान करते हैं.

तुषार धारा : उपायों की पहली किश्त में पैसों का बाहर की ओर बहाव का क्या अर्थ है?

सुभाष गर्ग : चालू वर्ष के लिए बहुत मामूली खर्च को छोड़कर कोई प्रत्यक्ष राजकोषीय निहितार्थ नहीं हैं. केंद्र सरकार की ओर से किया गया कोई सीधा खर्च नहीं है, सिवाय तीन महीने के लिए कर्मचारी भविष्य निधि के योगदान का भुगतान करने की घोषणा करने के. (उपायों में तीन महीने की अवधि के लिए ईपीएफ खातों में भुगतान शामिल है, जो 2500 करोड़ रुपए होगा.)

तुषार धारा : तो क्या अन्य उपाय मौजूदा बैंक ऋण के विस्तार पर निर्भर करते हैं?

सुभाष गर्ग : जी.

तुषार धारा : राजकोषीय प्रोत्साहन की वास्तविक राशि क्या है?

सुभाष गर्ग : बहुत कम. मेरा अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में यह 25000 करोड़ रुपए से कम है.

तुषार धारा : और इस क्रेडिट का उपयोग किया जा सकता है या नहीं किया जा सकता? यह सरकारी खजाने से सीधे तौर पर मिलने वाला धन नहीं है?

सुभाष गर्ग : हां, भविष्य में यह देखना होगा कि इसका क्या प्रभाव होता है. यह एक क्रेडिट प्रोत्साहन जैसा है. बैंकों के पास हमेशा नकदी होती है. यह पैसे का नया सृजन नहीं है क्योंकि बैंक पहले से ही पर्याप्त मात्रा में बिना क्रेडिट के बैठे हैं.

तुषार धारा : ऐसा क्यों है?

सुभाष गर्ग : अभी अर्थव्यवस्था में क्रेडिट की कोई जरूरत नहीं है. बैंक अपने धन को अर्थव्यवस्था चलाने के लिए व्यवसायों और व्यक्तियों को देने के बजाय आरबीआई को दे रहे हैं. नकदी उधार देने की क्षमता है. आप ऋण प्रदान करने के लिए इसका उपयोग करते हैं. बहुत अधिक नकदी उपलब्ध है लेकिन इसे क्रेडिट के रूप में वितरित करना कठिन होता जा रहा है. (लॉकडाउन शुरू होने के चार सप्ताह की अवधि में बैंक) क्रेडिट की लगभग एक लाख करोड़ रुपए की कमी हुई और यह इसलिए था क्योंकि बैंक पैसे उधार नहीं दे रहे थे लेकिन इसे कम ब्याज दर पर आरबीआई को दे रहे थे.

तुषार धारा : आप एनबीएफसी, माइक्रोफाइनेंस संस्थानों और हाउसिंग-फाइनेंस कंपनियों के लिए किए गए उपायों के बारे में क्या सोचते हैं? 

सुभाष गर्ग : भारतीय रिजर्व बैंक ने एनबीएफसी निवेश श्रेणी के लिए लगभग 50000 करोड़ रुपए का सहायता धन उपलब्ध कराया था. (निवेश ग्रेड स्टॉक, बॉन्ड और कंपनियों के लिए क्रेडिट रेटिंग का एक स्तर है जो न्यूनतम दिवालिया जोखिम को दर्शाता है.) बैंकों ने केवल एएए-रेटेड कंपनियों को चुना. अब सरकार अन्य निवेश श्रेणी की एनबीएफसी और एचएफसी को समर्थन देने का इरादा कर रही है जो एएए नहीं हो सकते है. सरकार प्रभावी रूप से बैंकों को अतिरिक्त सुविधा प्रदान करने के लिए कह रही है, "कृपया गारंटी दें. यदि आपके ऋणों का भुगतान एनबीएफसी या एचएफसी द्वारा नहीं किया जाता है तो हम आपको वापस भुगतान करेंगे". यह गारंटी दी जा रही है. यह बैंक पर निर्भर करता है कि वे इस ऑफर का लाभ उठाएंगे या नहीं. अभिप्राय यह है कि बैंक वित्त को एनबीएफसी तक पहुंचना चाहिए जो निवेश श्रेणी हैं, लेकिन पैमाने में कम है.

तुषार धारा : क्रेडिट प्रोत्साहन की तुलना में राजकोषीय प्रोत्साहन की अब अधिक आवश्यकता क्यों है?

सुभाष गर्ग : लोगों की आय बहुत कम हो गई है. अर्थव्यवस्था का 70 प्रतिशत हिस्सा बंद है, कंपनियां उत्पादन या बिक्री नहीं कर रही हैं. 10 करोड़ से अधिक श्रमिकों का काम छिन गया है और इससे उनकी आय प्रभावित हुई है. जब इतना नुकसान होता है तो आपको नुकसान उठाने के लिए राजकोषीय बढ़ावा की जरूरत होती है. यह इतना बड़ा झटका है कि सरकार से मिलने वाले प्रोत्साहन या समर्थन की जरूरत बहुत बड़ी है.

अनुवाद : अंकिता