दुनिया भर के देशों में हुए हाल के अध्ययनों में कोविड-19 महामारी के महिलाओं के जीवन पर पड़े विषम प्रभावों का पता चलता है. हालांकि पुरुषों और महिलाओं, दोनों के ही लिए रोजगार के अवसर कम हुए हैं और रोजगार की क्वालिटी भी गिरी है, लेकिन श्रम बाजार में महिलाओं की स्थिति मर्दों के मुकाबले पहले से कहीं अधिक असुरक्षित हुई है. विश्व आर्थिक मंच की “दि ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2021” के अनुसार, महामारी के चलते पुरुषों और महिलाओं के बीच श्रम भागीदारी असमानता में एक से चार प्रतिशत का अंतर आया है.
अधिकांश विकसित और विकासशील देशों के मुकाबले भारत में महिला श्रम भागीदारी दर हमेशा खराब ही रही है इसलिए माना जा रहा था कि गिरावट के बावजूद विश्व स्तर पर यह दर भारत के करीब पहुंच जाएगी. लेकिन महामारी के दूसरे साल अथवा जानलेवा दूसरी लहर के ठीक बाद आई भारत सरकार की ‘तिमाही रोजगार सर्वेक्षण रिपोर्ट’ के दावे अचरज में डालते हैं. इस साल जनवरी में केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्री भूपेंद्र यादव ने यह रिपोर्ट जारी की थी.
रिपोर्ट में में बताया गया है कि पिछली तिमाहियों की तुलना में जुलाई-सितंबर 2021 तिमाही में देश में अधिक नौकरियां पैदा हुईं और रोजगार में महिलाओं की हिस्सेदारी भी बढ़ी है. तिमाही रोजगार सर्वेक्षण दस या अधिक श्रमिकों वाले संस्थानों में रोजगार की स्थिति का आंकलन करता है. इसमें विनिर्माण, निर्माण, परिवहन, स्वास्थ्य और शिक्षा सहित गैर-कृषि क्षेत्र के 9 क्षेत्र शामिल हैं. घरेलू सर्वेक्षणों पर आधारित डेटा एकत्र करने के अन्य तरीकों के उलट इस सर्वेक्षण की खामियों में से एक यह है कि यह केवल काम करने वाली आबादी का डेटा उपलब्ध करता है. बेरोजगारों को इस सर्वेक्षण से बाहर रखा जाता है. इसके अलाव रिपोर्ट में दस से कम कर्मचारियों वाले छोटे संस्थानों में काम करने वालों का हिसाब नहीं रखा जाता. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें भारतीय श्रमशक्ति में 90 प्रतिशत हिस्सादारी रखने वाले अनौपचारिक क्षेत्र के कामगार शामिल नहीं हैं.
रिपोर्ट के अनुसार महिला श्रमिकों का आंकड़ा 32.1 प्रतिशत था जो 2021 में तिमाही रोजगार सर्वेक्षण के पहले दौर की रिपोर्ट में बताए गए 29.3 प्रतिशत से अधिक था. तिमाही रोजगार सर्वेक्षण श्रम बाजार में महत्वपूर्ण मांग आधारित आंकड़े प्रदान करता है जिसमें रिक्त पदों की संख्या, कौशल विकास, भर्ती किए गए व्यक्तियों, नौकरी छोड़ने वाले और छंटनी वाले व्यक्तियों की संख्या के बारे में जानकारी शामिल होती है. लेकिन महिला कामगारों की संख्या में 2.8 प्रतिशत की कुल वृद्धि बहुत कम है. अगर हम तिमाही रोजगार सर्वेक्षण के आंकड़ों को श्रमशक्ति में महिलाओं की भागीदारी की बेहतर स्थिति का एक विश्वसनीय संकेतक मान भी लें तो भी ये आंकड़े उत्साहजनक नहीं माने जा सकते. महिलाएं आमतौर पर स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे कुछ चुनिंदा क्षेत्रों तक ही सीमित रहती हैं. और ताजा आंकड़ों में भी यह बात सामने आती है क्योंकि इन दोनों क्षेत्रों में कार्यरत महिलाओं की कुल हिस्सेदारी 40 प्रतिशत से अधिक है. कुल 3.1 करोड़ नौकरियों में से 1.21 करोड़ नौकरियां विनिर्माण उद्योगों द्वारा सृजित की जाती हैं, इस क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी मात्र 22.6 प्रतिशत है. रिपोर्ट में इस वृद्धि के लिए सरकार के मेक इन इंडिया अभियान को श्रेय दिया गया है. 25 मार्च और 30 जून 2020 के बीच की अवधि से संबंधित पहले दौर की रिपोर्ट में कहा गया कि महामारी के कारण अधिकांश आंकड़े फोन पर एकत्र किए गए थे और किसी भी ऐसे मामले में रिकॉर्ड सत्यापित नहीं किए गए हैं.
दूसरी तिमाही रोजगार सर्वेक्षण रिपोर्ट यह साफ करने में विफल रही कि इन रिकॉर्ड की पुष्टि की गई थी या नहीं और कितने लोगों का साक्षात्कार किया गया था. इसके अलावा यह आंकड़ा राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय एवं आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण और सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी जैसी सरकारी और निजी श्रम सर्वेक्षणों द्वारा जारी बेरोजगारी के डेटा से मेल नहीं खाता. आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण घरेलू मामलों पर सर्वेक्षण करता है. हालांकि इसकी विश्वसनीयता सीमित है लेकिन यह देश में बेरोजगारी की स्थिति को लेकर एक व्यापक तस्वीर प्रदान करता है. आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण का त्रैमासिक गजट शहरी क्षेत्रों में हर तीन महीने के अंतराल पर श्रमिक जनसंख्या अनुपात, श्रम बल भागीदारी दर और बेरोजगारी दर जैसे रोजगार और बेरोजगारी दर्शाने वाल संकेतकों का डेटा प्रदान करता है.
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