कोरोना संकट के बीच राज्यों की आपसी तकरार से बढ़ सकती है महंगाई

लॉकडाउन की घोषणा के बाद आंध्र प्रदेश-तमिलनाडु सीमा पर वाहनों को रोकते स्वास्थ्य कर्मी और पुलिस. अरुण शंकर/एएफपी/गैटी इमेजिस

कोविड-19 महामारी के दौरान केरल के दो पड़ोसी राज्य- कर्नाटक और तमिलनाडु- के साथ संबंध दो तरह के उदहारण पेश करते हैं. एक तरफ हमें राज्य सरकारों के मिलकर काम करने से होने वाले फादये नजर आते हैं तो दूसरी तरफ ऐसा न करने से होने वाली मानवीय और आर्थिक क्षति. केरल और कर्नाटक के बीच 21 मार्च से विवाद चल रहा है. उस दिन कर्नाटक ने घोषणा की थी कि वह अन्य राज्यों को जोड़ने वाली अपनी सभी सड़कें बंद कर रहा है. इस निर्णय ने उत्तर केरल के कासरगोड जिले के लोगों का मंगलुरु जाना अवरुद्ध कर दिया. यह कासरगोड के पास अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं वाली जगह है. इसके गंभीर परिणाम सामने आए और कम से कम दस मरीजो की बेकारण मौत हो गई क्योंकि उन्हें आवश्यक इलाज नहीं मिला.

दोनों राज्यों के बीच विवाद से व्यापार भी पूरी तरह रुक गया जिसके चलते किसानों और उपभोक्ताओं को नुकसान पहुंचा है. राज्यों के बीच व्यापार और परिवहन को अवरुद्ध करने के परिणामस्वरूप अन्य दूरगामी परिणाम भी हो सकते हैं, जैसे कि मुक्त व्यापार पर प्रतिबंध के कारण खाद्य सामग्री का महंगा होना. इस बीच केरल और तमिलनाडु सरकारों के बीच जारी सहयोग ने देशव्यापी लॉकडाउन में केरल में फंसे प्रवासी कामगारों को लाभ पहुंचाया है और व्यापार को सुचारू बनाए रखा है.

21 मार्च को कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिला प्रशासन ने मंगलुरु और केरल के कासरगोड के बीच तलपडी चेकपोस्ट पर सड़क पर मिट्टी से भरे ट्रक खड़े करके राष्ट्रीय राजमार्ग 66 को अवरुद्ध कर दिया. कसारगोड में छह रोगियों का कोविड-19 परीक्षण सकारात्मक आने के बाद राज्य सरकार ने यह निर्णय लिया. कासरगोड को तब केंद्र सरकार द्वारा महामारी के 10 हॉटस्पॉट में से एक घोषित किया गया था. केरल से कर्नाटक में घुसने के दो दर्जन अन्य स्थानों को भी ऐसे ही बंद कर दिया गया. 28 मार्च को मंगलुरु के एक अस्पताल में कासरगोड के एक बीमार रोगी की एम्बुलैंस को रोक देने से मृत्यु हो गई. उसी दिन केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर केंद्र सरकार से सड़क अवरोध खत्म करने के लिए हस्तक्षेप की मांग की.

1 अप्रैल को केरल उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को "यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि कर्नाटक द्वारा खड़े किए गए अवरोधक हटा दिए जाएं." अदालत का विचार था कि "किसी भी तरह की देरी से हमारे नागरिकों के बहुमूल्य जीवन की हानि हो सकती है." तब तक मंगलुरु तक पहुंचने की कोशिश में 7 मरीजों की मौत सड़क अवरोध के कारण हो गई थी, केरल में कोविड-19 से हुई कुल मौतों की संख्या अब तक दो हो चुकी थी. यह सब इसके बावजूद है कि 30 जनवरी तक ही राज्य में भारत का पहला कोविड-19 मामला दर्ज किया गया था.

कर्नाटक सरकार ने नाकाबंदी को उठाने से इनकार कर दिया. राज्य के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने कहा ऐसा करने का अर्थ "मौत को गले लगाना" होगा. येदियुरप्पा ने यह टिप्पणी इस घबराहट में की थी कि केरल के लोग दक्षिणी कर्नाटक की सीमित चिकित्सा सुविधाओं को भर रहे हैं. कर्नाटक सरकार ने केरल उच्च न्यायालय के आदेश को उच्चतम न्यायालय के समक्ष चुनौती दी. 7 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने महाधिवक्ता तुषार मेहता के यह कहने के बाद मामले का निपटारा हुआ कि केंद्र सरकार ने दोनों राज्यों के मुख्य सचिवों की बातचीत कराई है और इस मुद्दे को हल कर लिया है.

8 अप्रैल को तालापडी चेक पोस्ट एंबुलैंस के लिए खोला दिया गया लेकिन यह केरल के सीमावर्ती जिले के मरीजों को ज्यादा राहत नहीं दे सका. सीमा पर तैनात केरल पुलिस अधिकारी सुमेश राज ने बताया, "कर्नाटक सरकार ने अब राज्य में प्रवेश के लिए कुछ सख्त शर्तें तय की हैं. इसमें से एक शर्त है कि रोगी को कोविड-19 संक्रमित न होने का प्रमाणपत्र दिखाना होगा. उन्हें यह प्रमाणपत्र भी देना होगा कि रोगी का इलाज कसारगोड में नहीं हो सकता.”

सुमेश ने मुझे बताया कि केरल सरकार ने सीमा पर डॉक्टरों, पैरामेडिक्स और एम्बुलैंस को मुस्तैद रखकर स्थिति से निपटने के लिए सावधानी बरतने की कोशिश की थी. इसका मतलब यह होगा कि जो लोग आपातकालीन परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं वे इन प्रमाणपत्रों को जल्दी से बना सकते हैं. सुमेश ने कहा कि भले ही मरीजों को सीमा पार जाने की अनुमति दी गई थी, लेकिन कई को मंगलुरु के अस्पतालों में प्रवेश पाने की अनुमति नहीं मिली. कर्नाटक के साथ केरल के तंग संबंधों से प्रतीत होता है कि कोविड-19 महामारी और उसके बाद के लॉकडाउन ने अपनी सीमाओं के साथ शत्रुता की दीवारें खड़ी की हैं, जो भारत के संघीय ढांचे के सुचारू संचालन के लिए नई बाधाएं पैदा कर रही हैं.

दूसरी ओर तमिलनाडु के साथ केरल का संबंध स्पष्ट रूप से भिन्न है. जब 4 अप्रैल को इन अफवाहों से तनाव बढ़ गया कि केरल जल्द ही तमिलनाडु के साथ अपनी उन सीमाओं को बंद कर देगा जो कोविड-19 के नए हॉटस्पॉट हैं, तो विजयन ने खुद मामले को शांत कराया. अपनी दैनिक प्रेस वार्ता में विजयन ने कहा कि सीमा को बंद करने का विचार "हमारे दिमाग में कभी नहीं आया." हम अपने बगल में रहने वाले भाइयों को सहोदर भाई-बहन के रूप में देखते हैं.” तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के पलानीस्वामी ने एक ट्वीट में जवाब दिया, “मुझे गर्व महसूस होता है कि केरल ने तमिलनाडु के लोगों के साथ भाई—बहन की तरह व्यवहार किया है. मैं गर्मजोशी से घोषणा करता हूं कि खुशी और संकट की हर घड़ी में तमिलनाडु केरल राज्य के भाइयों और बहनों के साथ होगा. यह दोस्ती और भाईचारा हमेशा इसी तरह बढ़ता रहे.” विजयन ने प्यार से जवाब देते हुए ट्वीट किया, "केरल और तमिलनाडु का रिश्ता प्यार, भाईचारे, इतिहास, भाषा और संस्कृति में बंधा है ... साथ मिलकर हम चुनौतियों से पार पा लेंगे."

खोखली बयानबाजी से परे अंतरराज्यीय सहयोग लॉकडाउन के कारण आर्थिक संकट का सामना करने वालों की मदद करने में महत्वपूर्ण रहा है. जब केरल की दुग्ध विपणन सहकारी संस्था, मिल्मा, नियमित रूप से दूध की आपूर्ति करने में विफल रही क्योंकि होटल और रेस्तरां के बंद होने से इसकी बिक्री में बाधा आई थी तो इससे केरल के पलक्कड़ जिले में दुग्ध उत्पादकों के लिए गंभीर संकट पैदा हो गया था. तमिल नाडु सहकारी दुग्ध उत्पादक महासंघ, जिसे आमतौर पर आविन कहा जाता है, और तेलंगाना की डोडला डेयरी के सहयोग से अतिरिक्त दूध का पाउडर बना लेने से 3 अप्रैल से सामान्य रूप से खरीद शुरू हो गई.

राज्यों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने के लिए केरल के प्रयासों से राज्य में काम करने वाले तमिल प्रवासी कामगारों की पहचान करने और उन्हें शिविर एवं भोजन उपलब्ध कराने में मदद मिली है. लेकिन ऐसी रिपोर्टें भी प्रकाश में आई हैं कि लॉकडाउन की अवधि की अनिश्चितता के कारण प्रवासी तमिल कामगार तमिल नाडु की सीमा की ओर जा रहे हैं. दोनों सरकारों के बीच सहयोग होने से ऐसे मामलों में दोनों राज्य सरकारें सूचना साझा करने और प्रवासी कामगारों की समस्याओं का तत्परता से समाधान कर पा रही हैं.

इस तरह तत्परता से चीजों को संबोधन करने वाली बात राष्ट्रीय स्तर पर नहीं दिखाई देती. खाद्य उद्योग से जुड़े किसान, कारोबारी और उद्योगपति लॉकडाउन की वजह से अभूतपूर्व संकट में हैं और इसके चलते श्रम, खरीद और आपूर्ति चेन में वाधा पड़ रही है.

कासरगोड के सुपारी और काली मिर्च किसान अलक्कल जोसफ ने मुझे लॉकडाउन से होने वाले नुकसान के बारे में यूं समझाया, “मैं अपनी पैदावार कर्नाटक के सुल्लिया बाजार में बेचता था जो यहां से 20 किलो मीटर दूर है. लेकिन अब चेमपेरी और कल्लापल्ली बॉर्डर बंद हैं. केरल के कई छात्र सुल्लिया में पढ़ाई कर रहे हैं, खासकर वहां के डेंटल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में. इसी तरह कर्नाटक के सीमा क्षेत्र के गांव अपनी रोजाना की जरूरतों के लिए पनाथुर पर निर्भर हैं. कर्नाटक ने जब सड़कों को ब्लॉक किया तो सभी को परेशानी हो रही है.” जोसफ ने बताया कि सब्जी और अन्य जरूरी सामानों का भाव कम से कम 50 प्रतिशत तक महंगा हो गया है. “कुछ सामान तमिल नाडु से आ रहा है लेकिन यातायात खर्च अधिक है.”

कर्नाटक के उडुपी के अनानास किसान सायरियक जी ने मुझे बताया कि सीमा पर आने-जाने की रोक के कारण ट्रक यहां नहीं आ रहे हैं. “कुछ किसानों के ऑर्डर तक कैंसल हो गए हैं.” सायरियक को उम्मीद है कि अप्रैल-मई में मौसम खत्म होने से पहले लॉकडाउन खत्म हो जाएगा और वह अपनी उपज को केरल, महाराष्ट्र, गोवा और राजस्थान भेज सकेंगे. उन्होंने बताया कि थोक बाजार में कीमत गिरने के बावजूद स्थानीय बाजारों में चीजों का दाम बढ़ गया है.

त्रिशूर जिले के वडाकन्नाचेरी के आम के थोक व्यापारी अबदुल समद ने बताया कि राज्य की सीमाओं में हो रही देरी और ट्रकों की कमी से उनके कारोबार पर असर पड़ा है. समद ने बताया, “मैं स्थानीय किस्म के आम-प्रियुर और मूवंदन- सड़क के रास्ते कोलकाता भेजता था जहां से समुद्र मार्ग से उन्हें बंगलादेश भेजा जाता था. मुझे नहीं पता कि मैं आम के इस मौसम में करोबार कर पाऊंगा कि नहीं.”

अंतर राज्यकीय यातायात में अचानक आई कमी कृषि बाजार में मंदी का प्रमुख कारण है. ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस के अध्यक्ष बल मलकीत सिंह का कहना है, “आवश्यक सामग्री के लिए आधिकांश राज्यों की बॉर्डरें खुली हैं लेकिन कारगो की आवाजाही केवल 4 से 5 फीसद है. सरकार ने 29 मार्च को अपने सर्कुलर में आवश्यक सामग्री की संख्या बढ़ा दी है.” उन्होंने बताया, “अधिकतर ड्राइवर अपने राज्यों में लौट गए हैं लेकिन कुछ रास्तें में फंस जाने के डर से काम की जगह रुके हुए हैं.” सिंह ने बताया कि ट्रक मालिकों का रोजाना घाटा 2000 करोड़ रुपए है.

कुछ संगठनों ने खाद्य सामानों की कीमतों में वृद्धि की ओर इशारा किया है. 27 मार्च को भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा था कि आपूर्ति वाधित होने से और घबराहट में की जाने वाली खरीददारी से खाद्य सामग्री की कीमतों में उछाल आ सकता है. 9 अप्रैल को रिजर्व बैंक ने अपनी मौद्रिक नीति रिपोर्ट में पूर्वानुमान व्यक्त किया है कि मांग में गिरावट के चलते 2020-20 की चौथी तिमाही में महंगाई दर 2.4 प्रतिशत हो सकती है. बैंक ने कहा है कि इससे ब्याज दरों में कटौती हो सकती है. साथ ही बैंक ने चेतावनी दी है कि जारी महामारी सभी आंकलनों को बदल भी सकती है.

31 मार्च को जारी एक वक्तव्य में रेटिंग एजेंसी फिच ने कहा है कि राष्ट्र व्यापी लॉकडाउन की वजह से खाद्य दरों में बढ़ोतरी होगी. रिपोर्ट में कहा गया है कि लॉकडाउन, पुलिस के ब्लॉकेड और बाजार में फसलों को पहुंचाने वाले ट्रक ड्राइवरों के न होने से मंगाई बढ़ेगी.

कोविड-19 का आर्थिक नुकसान लंबे समय तक रहने वाला है. इस लड़ाई के अग्रिम मोर्चे पर तैनात राज्यों को, भारत के संघीय ढांचे की सच्ची भावना के साथ एक-दूसरे और केंद्र सरकार के साथ काम करने की जरूरत है.


एंटो टी जोसेफ मुंबई के एक वरिष्ठ पत्रकार और ब्रिटिश शेवनिंग स्कॉलर हैं. उन्होंने लेखक, संपादक और स्तंभकार के रूप में डीएनए, इकोनॉमिक टाइम्स, द गार्डियन (यूके) और डेक्कन क्रॉनिकल ग्रुप के साथ काम किया है.