20 दिसंबर को प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने नागरिकता (संशोधन) कानून, 2019 और राष्ट्रीय नागरिक पंजिका के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे देश भर के छात्रों से लोकतांत्रिक तरीके से प्रदर्शन करने की अपील की. मोदी ने छात्रों से आग्रह किया कि वे "अपनी जिम्मेदारियों और कीमती समय को समझें और उन संस्थानों के महत्व को भी समझें जिनमें वे पढ़ रहे हैं." मोदी झारखंड में एक चुनावी रैली को संबोधित कर रहे थे. मोदी ने कहा, "छात्रों को यह भी समझने की जरूरत है कि बुद्धिजीवियों की आड़ में उन्हें कुछ राजनीतिक दलों और तथाकथित 'शहरी नक्सलियों' को राजनीतिक लाभ लेने के लिए अपने कंधे पर बंदूक रखकर नहीं चलाने देनी चाहिए." उन्होंने दावा किया कि उनकी सरकार "छात्रों द्वारा उठाए गए हर मुद्दे को स्वीकार करती है."
जब मोदी यह कह रहे थे तब दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया और उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में सीएए का विरोध कर रहे छात्रों पर पुलिस की बर्बर कार्रवाई के पांच दिन बीत चुके थे. मोदी के भाषण के दिन उत्तर प्रदेश पुलिस राज्य भर में सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों का हिंसक दमन कर रही थी. पुलिसिया कार्रवाई में 18 लोग मारे गए और हजारों को हिरासत में लिया गया. इन दो विश्वविद्यालयों में हुई पुलिसिया कार्रवाई और उत्तर प्रदेश में कई शहरों और कस्बों में प्रदर्शनकारियों के खिलाफ पुलिस की बर्बरता के बाद देश भर के कई कॉलेजों में सीएए विरोधी प्रदर्शन होने शुरू हो गए. इस बीच भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व ने एक बयान दिया कि विरोध करने वालों को गलत सूचना दी गई और उन्हें निहित स्वार्थों के कारण उकसाया गया है. जामिया में पुलिस की कार्रवाई के एक दिन बाद गृह मंत्री अमित शाह ने ट्वीट किया, "कुछ दल अफवाहें फैला रहे हैं और अपने राजनीतिक हितों के लिए हिंसा भड़का रहे हैं" और छात्रों को विरोध करने से पहले कानून का अध्ययन करने को कहा. रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी कहा कि छात्रों का विरोध "जिहादियों, माओवादियों, अलगाववादियों" द्वारा उकसाया गया है.
जैसे-जैसे देशव्यापी विरोध बढ़ा बीजेपी ने छात्र प्रदर्शनकारियों को बदनाम करने की अपनी रणनीति तीव्र कर दी और प्रदर्शनकारियों को काबू में करने के लिए सुरक्षा बल का इस्तेमाल बढ़ा दिया. छात्रों के नेतृत्व वाले विरोध प्रदर्शनों को खत्म करने के बीजेपी के प्रयासों को छात्रों और उनके संबंधित विश्वविद्यालय प्रशासन के बीच झड़पों में देखा जा सकता है. 29 दिसंबर को मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ने दिल्ली में पार्टी के मुख्यालय में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सीएए और एनआरसी के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे छात्रों को लेकर बीजेपी की स्थिति को स्पष्ट किया. "शिक्षा मंत्री के रूप में मैं बार-बार युवाओं से अपील कर रहा हूं कि वे शिक्षण संस्थानों को राजनीति के अड्डों में न बदलें. जो लोग राजनीति करना चाहते हैं उन्हें करने दें.'' पोखरियाल ने छात्रों को चेतावनी दी कि "मोदीजी की सरकार इसे बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेगी."
पिछले दो महीनों में देश भर के कई विश्वविद्यालयों के प्रशासन ने विरोध प्रदर्शनों पर रोक लगा दी है. इन विश्वविद्यालयों ने विरोध प्रदर्शन में भाग लेने वाले छात्रों के खिलाफ कार्रवाई की या विवादास्पद कानून पर केंद्र के रुख का समर्थन किया.
इंग्लिश एंड फॉरेन लैंग्वेजज यूनिवर्सिर्टी, हैदराबाद
झारखंड में मोदी के भाषण के एक हफ्ते से भी कम समय बाद हैदराबाद में इंग्लिश एंड फॉरेन लैंग्वेजज यूनिवर्सिर्टी (इफ्लू) के कुलपति ई सुरेश कुमार ने इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख लिखा. जिसमें सीएए और उसके समर्थकों की प्रशंसा की गई थी. "नागरिकता संशोधन कानून युगांतरकारी उपायों की एक श्रृंखला में नवीनतम है जो न केवल अच्छे नेतृत्व की बल्कि राजकीय कौशल की विशेषता, क्षमता, समझ, दृष्टि और दृढ़ संकल्प को दर्शाता है. प्रधान मंत्री और उनके सलाहकारों के बारे में कहा जा सकता है कि वे समय की जरूरत हैं." कुमार का विचार था कि सीएए भारत की सदियों पुरानी भावना और जबरदस्त धैर्य का संयोजन है. यह एक ऐसा कानून है जो परिभाषित करता है कि हम वास्तव में एक राष्ट्र और एक व्यक्ति के रूप में कौन हैं.”
उसी दिन इफ्लू छात्र संघ ने एक बयान जारी किया जिसमें कुमार के लेख की निंदा की गई थी. बयान में कहा गया है, "वह भूल गए कि प्रधानमंत्री कैसे... लोगों के एक विशेष वर्ग को 'घुसपैठियों' की संज्ञा देते हैं और कहते है कि उन्हें उनके कपड़ों से पहचाना जा सकता है. वीसी को इस बात पर आत्मनिरीक्षण करना चाहिए कि वह किस आधार पर कहते हैं कि “इस्लाम का पालन करने वाले भारतीयों को अपनी पैदाइश साबित करने के लिए नहीं कहा जाएगा, जबकि गृहमंत्री अमित शाह खुद बार-बार कह चुके हैं कि पूरे देश में राष्ट्रीय नागरिक पंजिका लागू की जाएगी." छात्र संघ ने अपने बयान में कुमार की आलोचना करते हुए कहा कि वह, ''एक पाकिस्तानी गायक को नागरिकता देने की तो बात करते हैं लेकिन भारत में पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के परिवार के मामले को, जिसे असम एनआरसी में शामिल नहीं किया गया, नजरअंदाज कर देते हैं."
पोखरियाल की प्रेस कॉन्फ्रेंस के अगले दिन 30 दिसंबर को इफ्लू के रजिस्ट्रार ने एक नोटिस जारी किया कि कॉलेज ने शीतकालीन अवकाश को 17 जनवरी तक बढ़ाने का फैसला किया है - परिसर को 31 दिसंबर को फिर से शुरू होना था. सर्कुलर में कहा गया, "छात्रावास 17 जनवरी से फिर से खुलेंगे तब तक किसी भी छात्र को हॉस्टल में रहने की अनुमति नहीं है.'' प्रशासन के अनुसार छुट्टियां इसलिए बढ़ाई गईं ताकि छात्रावासों में मरम्मत कार्य किया जा सके. अगले दिन छात्र संघ ने छात्रों से छुट्टियां बढ़ाने का विरोध करने के लिए परिसर में आने का आह्वान किया. छात्र संघ के महासचिव समर अली ने मुझे बताया कि "अधिकांश छात्रों का मानना है कि छुट्टियां विरोध प्रदर्शनों से बचने के लिए बढ़ाई गई हैं." अली ने कहा कि कुमार ने एक लेख लिखा था "इस कानून का गुणगान करते हुए और हमने इसका विरोध किया था.... छात्रों ने एक खुला पत्र भी जारी किया था जिसमें वीसी को इस मुद्दे पर छात्रों के साथ सार्वजनिक बहस के लिए आमंत्रित किया गया था.” अली के अनुसार छात्र नागरिकता के मुद्दों पर सेमिनार और परिचर्चा की योजना बना रहे थे और छुट्टियां बढ़ाना ऐसी सभी गतिविधियों को रोकने की एक चाल थी.
अली ने बताया कि “छात्रावासों को 1 जनवरी को फिर से खोला जाना था और कक्षाएं 6 जनवरी से शुरू होनी थीं. 31 दिसंबर की रात को प्रशासन ने छुट्टियां बढ़ाने का नोटिस जारी कर दिया. प्रशासन ने लगभग 20 पीएचडी शोध छात्रों सहित सभी छात्रों से 3 जनवरी तक हॉस्टल खाली कर देने के लिए कहा. अधिकांश छात्रों ने परिसर में लौटने के लिए पहले से ही अपने टिकट बुक करा लिए थे और उनमें से कुछ पहले ही परिसर में पहुंच गए थे और कुछ रास्ते में थे.” उन्होंने कहा कि छात्र संघ ने प्रशासन से सेमेस्टर के अंत तक मरम्मत कार्य को स्थगित करने का अनुरोध किया था लेकिन प्रशासन ने मना कर दिया.
“हमने उन्हें बताया कि बहुत सारे छात्र असम, कश्मीर और उत्तर प्रदेश जैसे अशांत स्थानों से हैं जिनमें से कुछ के इलाकों में कर्फ्यू लगा है. हमने इन छात्रों के लिए वैकल्पिक आवास मांगा था,” अली ने कहा. लगभग तीस छात्रों द्वारा दो दिनों के विरोध प्रदर्शन के बाद प्रशासन वैकल्पिक आवास और यात्रा भत्ता देने पर सहमत हुआ. विश्वविद्यालय के डॉक्टरेट छात्रों को 15 जनवरी तक यूजीसी छात्रवृत्ति के लिए आवेदन जमा करना था. यह एक जरूरी और आकस्मिक मुद्दा था जिसके बारे में प्रशासन ने "जल्दबाजी में काम" करते हुए योजना नहीं बनाई थी. विरोध के बाद प्रशासन ने सबमिशन प्रक्रिया को ऑनलाइन करने का फैसला किया. लेकिन अपने शोधपत्र पर काम करने वाले लगभग सत्तर अंतिम वर्ष के पीएचडी शोधार्थी अभी भी परिसर में पुस्तकालय सुविधाओं से वंचित हैं.
अली ने कहा कि प्रशासन ने छात्रों के प्रतिनिधियों के साथ अपनी बातचीत में शत्रुतापूर्ण रवैया अपनाया. "वह धमकी देने लगा. प्रशासन ने कहा कि उसके पास उन छात्रों के स्क्रीनशॉट हैं जो विश्वविद्यालय के खिलाफ पोस्ट कर रहे थे. छुट्टी के दौरान जब एक छात्र नंदू पार्वती ने 'नो एनआरसी, सीएए #सिविलडिसओबिडिएंस' कहते हुए तख्तियां पकड़ कर विरोध किया था तो उसे प्रॉक्टर और गार्ड ने चेतावनी दी थी.'' उसने मुझे बताया कि कैंपस में भारी निगरानी है और "जब भी छात्र परिसर में कहीं इकट्ठा होते हैं तो गार्ड आकर पूछताछ करने लगते हैं."
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़
शीतकालीन अवकाश के बाद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय 6 जनवरी को फिर से खोला जाना था लेकिन 15 दिसंबर को प्रदर्शनकारियों पर हुई पुलिस की हिंसक कार्रवाई के बाद शीतकालीन अवकाश को बढ़ा दिया गया. प्रशासन ने कहा कि समीक्षा के बाद परिसर को "चरणबद्ध तरीके" से फिर से खोल दिया जाएगा. लेकिन छात्र संघ ने कहा कि छात्रों को बिना किसी जानकारी के हॉस्टल खाली करने के लिए कहा गया था और यह भी नहीं बताया कि वे कब लौट सकते हैं. संघ के अध्यक्ष सलमान इम्तियाज ने मुझे बताया, "वे विरोध प्रदर्शन को खत्म करने के लिए परिसर को बंद कर रहे हैं."
निरमा विश्वविद्यालय, अहमदाबाद
अहमदाबाद में निरमा विश्वविद्यालय में प्रशासन ने उन छात्रों की पहचान की जिन्होंने विरोध प्रदर्शन में भाग लिया था और उनके माता-पिता को संदेश भेजकर अपने बच्चों को इस तरह की गतिविधियों में भाग लेने से रोकने के लिए कहा. 17 दिसंबर को विश्वविद्यालय के कानून के छात्रों ने साबरमती आश्रम के सामने एक विरोध प्रदर्शन में भाग लिया. एक पूर्व छात्र अभिषेक खंडेलवाल ने कहा, "यह एक बिल्कुल शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन था जिसमें छात्रों सहित लगभग पंद्रह सौ लोग शामिल हुए थे. विरोध प्रदर्शन खत्म होने के बाद मैं जिला पुलिस आयुक्त से मिला था जिन्होंने कहा था कि सब कुछ ठीक था."
खंडेलवाल यंग इंडिया अगेंस्ट सीएए-एनआरसी-एनपीआर के संयोजक हैं. उन्होंने मुझे बताया कि निरमा प्रशासन ने "मीडिया में प्रकाशित विरोध प्रदर्शनों की तस्वीरों से" कम से कम आठ छात्रों की पहचान की जिन्होंने विरोध प्रदर्शन में भाग लिया था. इन छात्रों से एक इकरारनामे पर हस्ताक्षर करवाए गए, जिसमें कहा गया था कि उन्होंने व्यक्तिगत तौर पर विरोध प्रदर्शन में भाग लिया था और वे भविष्य में इस तरह के किसी भी विरोध प्रदर्शन में भाग नहीं लेंगे.” एक हफ्ते बाद 24 दिसंबर को इन आठ छात्रों के माता-पिता को प्रशासन से एक संदेश प्राप्त हुआ : “हमारे संज्ञान में यह आया है कि आपका बच्चा हाल के मुद्दों पर हुए विरोध प्रदर्शन में शामिल था. पुलिस और इंटेलिजेंस ब्यूरो ने आपके बच्चे का ब्योरा हमसे लिया है. हमने अपनी ओर से छात्रों को ऐसी किसी भी घटना से बचने की सलाह दी है और हम आपकी तरफ से भी समर्थन की उम्मीद करते हैं. यह आपको सूचित करने के लिए भी है कि अगर आपका बच्चा विरोध प्रदर्शनों में भाग लेना जारी रखता है तो पुलिस उसके खिलाफ मामला दर्ज कर सकती है.
खंडेवाल ने मुझे बताया कि "देश भर के कई शिक्षण संस्थान छात्रों को विरोध प्रदर्शन में भाग लेने के कारण डरा रहे हैं और उन्हें शामिल होने से रोक रहे हैं." उन्होंने कहा कि इनमें से कुछ मामले "सार्वजनिक रूप से सामने नहीं आ रहे हैं क्योंकि छात्र इसके चलते निष्कासित होना या निशाना बनना नहीं चाहते."
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, मुंबई
कुछ विश्वविद्यालय परिसरों ने हालिया विरोध प्रदर्शनों पर रोक लगाने के लिए पिछली अदालत के फैसलों का उपयोग करने का सहारा लिया था जिसने परिसरों पर विशिष्ट विरोध प्रदर्शनों पर प्रतिबंध लगा दिया था. टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, मुंबई भी ऐसा ही एक संस्थान है. 19 दिसंबर को, टिस के छात्र संघ ने एकजुटता हड़ताल की घोषणा की. संघ ने कहा, "टिस का छात्र समुदाय शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के खिलाफ राज्य द्वारा की गई बर्बर हिंसा से बेहद परेशान है और देश भर में विरोध कर रहे लोगों के साथ अपनी एकजुटता जाहिर करता है." छात्रसंघ की कोषाध्यक्ष मैत्रेयी ने बताया, "कैंपस में उपस्थिति जैसे अनुशासनात्मक नियमों से ऐसा माहौल बना है कि इस तरह के आयोजन करने के लिए बहुत कम जगह बचती है. तो, हमने अपने संकाय का समर्थन मांगा था." उन्होंने कहा कि शिक्षक संघ ने "छात्रों के विरोध प्रदर्शन का समर्थन करते हुए एक पत्र जारी कर दिया."
उसी दिन टिस के कार्यवाहक रजिस्ट्रार ने एक सर्कुलर जारी कर संकाय और कर्मचारियों को विरोध प्रदर्शन में भाग लेने से रोक दिया. सर्कुलर में कहा गया, ''भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित एक संस्थान होने के नाते कर्मचारी और संकाय ड्यूटी पर रहते हुए किसी भी तरह के विरोध में शामिल नहीं हो सकते. यह नियमों के खिलाफ है और विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए ड्यूटी से उनकी अनुपस्थिति को अनधिकृत माना जाएगा." यह मार्च 2018 में एक पिछली अदालत के फैसले पर आधारित था. उस वक्त छात्र पोस्ट-मेट्रीकुलेट स्कॉलर्स की हॉस्टल और मेस शुल्क के खिलाफ विरोध कर रहे थे जिस पर टिस प्रशासन छात्रों के विरोध को रोकने के लिए बॉम्बे सिटी सिविल कोर्ट चला गया था. प्रशासन के इस तर्क के आधार पर कि छात्र संस्थान के दैनिक कामकाज को बाधित कर रहे थे, अदालत ने छात्रों को कैंपस के मुख्य गेट के 100 मीटर के दायरे में विरोध प्रदर्शन करने से रोकने के लिए एक अंतरिम आदेश जारी किया.
टिस ने सीएए विरोधी प्रदर्शनों में अपने संकाय की भागीदारी को प्रतिबंधित करने के लिए इसी आदेश का सहारा लिया. "यह आदेश एक बड़ी बाधा है," टिस के एक छात्र ने नाम न छापने की शर्त पर मुझे बताया. “नारे लगाने के लिए भी वे हमें कारण बताओ नोटिस जारी करने की धमकी देते हैं. अतीत में हमने देखा है कि अगर पचास छात्र प्रदर्शन में भाग लेते हैं तो वे कुछ छात्रों को छांट लेते हैं और कारण बताओ नोटिस भेज देते हैं ताकि छात्र आपस में बंट जाएं."
मैत्रेयी के अनुसार राज्य की हिंसक घटनाओं और प्रशासन द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद छात्र आंदोलनों में एक नया उभार आया है. उन्होंने बताया कि "पहले, छात्र भाग लेने से डरते थे. लेकिन अब देश भर में चल रही बड़ी लड़ाई और शक्तिशाली छात्र एकजुटता के चलते जो पिछले कुछ महीनों में सामने आई है हम अपने परिसरों के भीतर छोटी-छोटी लड़ाई लड़ने में भी सक्षम हैं. अब हम शहर भर में हर जगह विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.”
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दिल्ली
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के प्रशासन ने 19 दिसंबर को कैंपस में कैंडललाइट मार्च और काव्य पाठ में भाग लेने के लिए छात्रों, रेजीडेंट डॉक्टरों, फैकल्टी और कर्मचारियों को चेतावनी दी. उसी दिन एम्स के रजिस्ट्रार ने एक ज्ञापन जारी किया. "एम्स में या उसके आसपास हड़ताल, धरना, प्रदर्शन या घेराव की कोई गतिविधि नहीं होनी चाहिए." रजिस्ट्रार ने दिल्ली उच्च न्यायालय के 20 मई 2002 के एक आदेश के आधार पर ज्ञापन जारी किया था जिसने परिसर के 500 मीटर के दायरे में हड़तालों और प्रदर्शनों पर प्रतिबंध लगा दिया. रजिस्ट्रार की चेतावनी के बावजूद, छात्रों, रेजीडेंट डॉक्टरों और संकाय सदस्यों ने मार्च में भाग लिया.
कला संकाय, दिल्ली विश्वविद्यालय
27 दिसंबर को दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रॉक्टर नीता सहगल ने एक नोटिस जारी कर कला संकाय में विरोध प्रदर्शन के आयोजकों से अतिरिक्त जानकारी मांगी. नोटिस में मांग की गई कि छात्र किसी भी विरोध प्रदर्शन से कम से कम 24 घंटे पहले प्रशासन को सूचना दें.
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ने सीएए को लेकर किसी भी तरह के विरोध प्रदर्शन के खिलाफ छात्रों को चेतावनी दी थी. 15 दिसंबर को जैसे-जैसे छात्रों के विरोध प्रदर्शन बढ़ रहे थे उसे देखते हुए बीएचयू प्रशासन ने यह चेतावनी दी थी. रजिस्ट्रार ने एक सर्कुलर जारी किया जिसमें कहा गया कि पुलिस ने प्रशासन को सूचित किया था कि कैंपस में धारा 144 लागू की जा रही है. सर्कुलर में कहा गया है कि "अन्य लोग सांप्रदायिक माहौल को खराब करने के इरादे से इन जुलूसों और धरनों में शामिल हो सकते हैं और कोई भी गंभीर आपराधिक घटना कर सकते हैं."
श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स, दिल्ली विश्वविद्यालय
कई समाचार रिपोर्टों के अनुसार 23 जनवरी को श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स की प्रिंसीपल सिमरित कौर ने "नॉर्थ-ईस्ट में प्रोटेस्ट क्यों?" कार्यक्रम के लिए निर्धारित पैनल चर्चा को दी गई अनुमति वापस ले ली थी. यह कार्यक्रम नॉर्थ-ईस्ट सेल द्वारा आयोजित किया जा रहा था. नॉर्थ-ईस्ट सेल एसआरसीसी के छात्रों का एक समूह जिसमें इसी क्षेत्र से आने वाले लोग शामिल हैं. इसके अलावा इसमें किरोड़ीमल कॉलेज के प्रोफेसर आम्रपाली बसुमतरी, शोधकर्ता लेकी थुंगन, त्रिपुरा के पूर्व महाराजा प्रदीप मणिक्य बर्मन, असम के एक एक्टिविस्ट और स्कॉलर नयन ज्योति और द वायर में डिप्टी एडिटर संगीता बारूहा पिशारोती भी शामिल हैं. एसआरसीसी छात्र संघ के एक पत्र के आधार पर प्रिंसीपल ने कार्यक्रम से एक घंटे पहले इसे रद्द कर दिया. एसआरसीसी छात्र संघ का नेतृत्व अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पास है जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के छात्र संगठन है. द वायर की एक रिपोर्ट के अनुसार छात्र संघ ने एक पत्र जारी किया जिसमें कहा गया था, "यह सेमिनार सीएए कानून के बारे में एकतरफा विचारधाराओं पर आधारित है जो छात्रों के बीच हिंसक और भ्रामक जानकारी फैला सकती है. एक जिम्मेदार संस्थान होने के नाते एसआरसीसी को इस कार्यक्रम को नहीं होने देना चाहिए जो कि सामाजिक कल्याण के मानदंडों के खिलाफ है."
द वायर के मुताबिक, "प्रिंसीपल ने छात्र संघ के सदस्यों के मौरिस नगर पुलिस स्टेशन से पुलिस कर्मियों और कुछ इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधिकारियों के साथ उनके कार्यालय में आने के बाद इस कार्यक्रम को रद्द करने का फैसला किया. अधिकारियों ने उन्हें बताया कि अगर इस कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति मिल जाती है तो एबीवीपी के सदस्य परिसर के अंदर हिंसा फैला सकते हैं. ”
डॉ. बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली
23 जनवरी को डॉ. बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के पोलित ब्यूरो सदस्य प्रकाश करात को विश्वविद्यालय में आने से रोक दिया. करात को सीएए- एनआरसी और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर पर एक चर्चा के लिए आमंत्रित किया गया था. कार्यक्रम का आयोजन सीपीआई (एम) के छात्र संगठन स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया ने किया था.
कई समाचार रिपोर्टों के अनुसार, जब करात कैंपस के गेट पर खड़े थे. विश्वविद्यालय ने एक बयान जारी किया जिसमें कहा गया था, “दिल्ली में होने वाले चुनावों के कारण, आदर्श आचार संहिता लागू है. जिसके अनुसार, विश्वविद्यालय ने छात्रों को जिला चुनाव अधिकारी (केंद्रीय) से कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति लेने की सलाह दी है.” इंडियन एक्सप्रेस ने बताया कि आयोजन समिति को डीईओ के कार्यालय से आधे घंटे पहले, शाम 5.30 बजे अनुमति प्राप्त करने के लिए कहा गया था. एसएफआई की एयूडी इकाई के प्रमुख एलिजाबेथ अलेक्जेंडर के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है, "हमारा कार्यक्रम किसी भी तरह चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन नहीं कर रहा था क्योंकि वक्ताओं में न तो कोई मंत्री था और न ही आगामी दिल्ली चुनावों का कोई उम्मीदवार." इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, "एबीवीपी के बादल प्रकाश ने कहा कि उन्होंने प्रशासन को लिखा था कि यह आयोजन अवैध है."
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बॉम्बे
कई समाचार रिपोर्टों के अनुसार 28 जनवरी को आईआईटी बॉम्बे प्रशासन ने 15 नियमों का एक आंतरिक ईमेल छात्रों को भेजा. इंडिया टुडे ने बताया कि ईमेल के नियम 10 में कहा गया है, "यहां के रहने वाले किसी भी राष्ट्रविरोधी, असामाजिक और किसी अन्य अवांछनीय गतिविधियों में भाग नहीं लेंगे." द प्रिंट ने बताया कि ईमेल में पहले नियम में कहा गया था, "किसी भी पोस्टर, लीफलेट या पैम्फलेट का कोई वितरण संबंधित छात्रावास परिषद या छात्र मामलों के डीन से अनुमति के बिना छात्रावास में नहीं किया जाएगा." ईमेल में ''नाटक और संगीत या अन्य गतिविधियां जो छात्रावास के वातावरण की शांति को बाधित करती हैं,” उन्हें भी प्रतिबंधित कर दिया गया. आईआईटी बॉम्बे के छात्र 11 दिसंबर से सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.
अब तक जामिया प्रशासन सीएए के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे छात्रों का खुलकर समर्थन करने और परिसर में पुलिस की हिंसा की निंदा करने वाला एकमात्र विश्वविद्यालय है. कुलपति डॉ. नजमा अख्तर ने 15 दिसंबर की देर शाम को जामिया परिसर में हुई हिंसा के बाद मीडिया से कहा, "जिस तरह से छात्रों के साथ बर्ताव किया गया उससे मैं आहत हूं. बिना अनुमति के प्रवेश करने वाली पुलिस और फिर छात्रों को लाठी से पीटना मंजूर नहीं है." जामिया प्रशासन ने दिल्ली पुलिस के खिलाफ छात्रों पर हिंसा करने और संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का मामला दर्ज किया है.
इस तरह की घटनाएं लगातार जारी हैं, जैसे-जैसे और जानकारियां मिलती रहेंगी इस सूची को अपडेट किया जाएगा.