महाराष्ट्र के वर्धा जिले में स्थित महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय ने इस महीने की 9 तारीख को अपने छह छात्रों को निष्कासित कर दिया. इन छात्रों को बहुजन विचारक कांशीराम की बरसी के अवसर पर कार्यक्रम आयोजित करने के कारण निकाला गया है. विश्वविद्यालय प्रशासन ने इन पर बिना अनुमति के आयोजन करने का आरोप लगाया है. निकाले गए सभी छात्र दलित और ओबीसी समुदाय से हैं. निकाले गए छात्र चंदन सरोज ने दावा किया कि जब विश्वविद्यालय प्रशासन हमारी आवाज को नहीं दबा पाया तो “उसने हमें निकाल दिया.”
सरोज दलित हैं और विश्वविद्यालय से एमफिल कर रहे हैं. उनके मुताबिक कांशीराम की पुण्यतिथि के अवसर पर पिछले साल भी एक कार्यक्रम हुआ था लेकिन पहले कभी भी अनुमति लेने को नहीं कहा गया. सरोज ने बताया कि कांशीराम की पुण्यतिथि पर यह कार्यक्रम इसलिए हो रहा था क्योंकि देशभर में हुई लिंचिंग की सभी घटनाओं में दलित और बहुजनों को निशाना बनाया गया है. सरोज ने दावा किया, “जिन लोगों ने हमें कार्यक्रम करने से रोका उन पर संघ और सरकार का दबाव है.” उल्लेखनीय है कि विश्वविद्यालय के वर्तमान उपकुलपति आरएसएस से जुड़े हैं.
निकाले गए छात्र सरोज, नीरज कुमार, रजनीश अंबेडकर, पंकज वेला और वैभव पिंपलकर ने 49 हस्तियों पर बिहार पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज करने के खिलाफ प्रदर्शन भी किया था. अक्टूबर माह में इन हस्तियों ने भारत में बढ़ते मॉब लिंचिंग के मामलों के बारे में प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखा था. जब विश्वविद्यालय प्रशासन को इस बारे में पता चला तो उसने छात्रों को कार्यक्रम करने की अनुमति नहीं दी. सरोज का कहना था, “जब हमने प्रशासन से कहा कि प्रधानमंत्री को पत्र लिखना लोगों का संवैधानिक अधिकार है तो उनका जवाब था कि छात्रों को भी इसके लिए औपचारिक अनुमति लेनी होगी.
7 अक्टूबर को छात्रों ने इस प्रदर्शन के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन से अनुमति मांगी थी लेकिन प्रशासन ने इसे तुरंत खारिज कर दिया. रजिस्ट्रार कार्यालय ने अपने नोटिस में कहा था कि विश्वविद्यालय परिसर के अंदर प्रदर्शन निषेध है. दो दिन बाद कांशीराम की पुण्यतिथि पर छात्रों ने प्रदर्शन करने की दुबारा अनुमति मांगी. विश्वविद्यालय प्रशासन ने नोटिस निकालकर इसकी अनुमति देने से इनकार कर दिया. दूसरे दिन तकरीबन डेढ़ सौ छात्रों ने विश्वविद्यालय के गांधी हिल में इकट्ठा होकर विरोध प्रदर्शन किया. जब छात्र उस जगह जाने लगे जहां वे पहले प्रदर्शन करना चाहते थे, तब वहां तैनात सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें रोक लिया. छात्रों ने गांधी हिल पर बैठकर ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पोस्ट कार्ड लिखे.
छात्रों ने दलितों और मुस्लिमों की लिंचिंग, कश्मीर में संचार व्यवस्था पर जारी रोक और एनआरसी के नाम पर हो रही मनमानी सहित अन्य विषयों पर प्रधानमंत्री को पोस्ट कार्ड लिखे. विश्वविद्यालय में पहले मीडिया प्रबंधन के छात्र रहे राजेश सारथी उस दिन अपना माइग्रेशन प्रमाणपत्र लेने वहां आए थे. लेकिन वह भी प्रदर्शन में शामिल हो गए. बाद में विश्वविद्यालय परिसर प्रशासन ने नोटिस निकालकर सारथी और पांच अन्य छात्रों को चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करने के आरोप में निष्कासित कर दिया. महाराष्ट्र में चुनाव आचार संहिता 21 सितंबर से लागू है और वहां अक्टूबर के अंत में राज्य विधान सभा के चुनाव होने हैं.
सरोज ने बताया कि प्रदर्शनकारी छात्र किसी राजनीतिक संगठन से नहीं जुड़े थे, हालांकि वे खुद ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन से जुड़े हैं जो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) का छात्र संगठन है. एक अन्य निष्कासित छात्र पंकज वेला ने बताया कि प्रशासन द्वारा पहले जारी किए गए दो नोटिसों में चुनाव आचार संहिता का उल्लेख नहीं था. यदि प्रशासन नोटिस में इस बात का उल्लेख करता कि चुनावी आचार संहिता के चलते प्रदर्शन की अनुमति नहीं दी जा सकती है तो छात्र प्रदर्शन नहीं करते. वह कहते हैं, “जब हमें विश्वविद्यालय से निष्कासित किया गया तब प्रशासन ने चुनावी आचार संहिता को निष्कासन का कारण बताया.”
जब मैंने सरोज से पूछा कि डेढ़ सौ प्रदर्शनकारी छात्रों में से केवल पांच को ही क्यों निष्कासित किया गया तो उनका कहना था, “यह हमसे बदला लेने के लिए किया गया है क्योंकि हम छात्रों से जुड़े मुद्दों को उठाते रहते हैं.” वहीं सारथी को भी लगता है कि छात्र आंदोलन से जुड़े होने के उनके इतिहास के चलते उन्हें निष्कासन का नोटिस भेजा गया है. वह कहते हैं, “खासकर इसलिए क्योंकि हम आरएसएस के खिलाफ बोलते हैं.” सारथी ने बताया, “कल तक मैं विश्वविद्यालय में पढ़ने वाला एक छात्र भर था, लेकिन आज मुझे बदनाम कर दिया गया है. ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि मैं जब तक यहां पढ़ता रहा, मैंने हमेशा आरएसएस की विचारधारा का विरोध किया.”
हालांकि निष्कासित छात्रों ने प्रदर्शन के पीछे राजनीतिक मकसद होने से इनकार किया, लेकिन इन छात्रों ने आरोप लगाया है कि अप्रैल में रजनीश कुमार शुक्ला के उपकुलपति बनने के बाद से ही विश्वविद्यालय के भगवाकरण के प्रयास हो रहे हैं. वेला ने बताया, “जब से रजनीश कुमार शुक्ला उपकुलपति बने हैं तभी से उन्होंने यहां नए नियम लागू कर दिए हैं. बीते दो महीनों से आरएसएस हर शनिवार और इतवार को विश्वविद्यालय परिसर में शाखाएं लगा रहा है. इन लोगों ने विश्वविद्यालय पर कब्जा कर लिया है.”
शुक्ला की नियुक्ति के 10 दिन पहले लखनऊ के रहने वाले चंद्रपाल सिंह ने भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिख शुक्ला पर थीसिस चोरी का आरोप लगाया था. पत्र में चंद्रपाल सिंह में लिखा था कि शुक्ला ने किसी दूसरे की पीएचडी थीसिस अपने नाम से जमा की है. इसके बावजूद केंद्र सरकार ने शुक्ला को क्लीन चिट दे दी.
वेला के अनुसार, “उपकुलपति बनने के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने यूनिवर्सिटी परिसर में हर जगह कैमरे लगा दिए हैं. वेला बताते हैं कि फिलहाल विश्वविद्यालय में ऐसी कोई जगह नहीं है जहां छात्र डिबेट या रायजनी कर सकते हैं. “यहां एक सेमिनार हॉल है लेकिन हम कोई कार्यक्रम नहीं कर सकते लेकिन जबसे शुक्ला कुलपति बने हैं तभी से शाखा सदस्यों ने हमारे विरोध के बावजूद 10 से 15 बार कार्यक्रमों का आयोजन किया है.”
सारथी ने बताया कि पोस्टकार्ड लिखने के बाद विश्वविद्यालय के कार्यकारी रजिस्ट्रार के के सिंह से छात्रों की तू-तू मैं-मैं हुई थी. जब छात्रों ने विश्वविद्यालय परिसर और कक्षाओं में आरएसएस के कार्यक्रमों के बारे में सवाल किए तो रजिस्ट्रार सिंह छात्रों की अकादमिक क्षमता पर सवाल उठाने लगे. सारथी ने बताया कि प्रदर्शन में भाग लेने वाले छात्र पीएचडी कर रहे हैं और उनमें से कोई छात्र पढ़ाई में कमजोर नहीं है. “हम बहुजन समाज की बात करने वाले लोग हैं.”
ओबीसी छात्र नीरज का दावा है कि विश्वविद्यालय प्रशासन दलित और ओबीसी छात्रों को अपना निशाना बना रहा है. कुमार ने बताया कि जबसे शुक्ला उपकुलपति बने हैं तभी से यहां आरएसएस से जुड़े कार्यक्रम होने लगे हैं. “दलित और ओबीसी समुदाय के छात्रों को जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है और उन्हें पीएचडी और एमफिल कोर्सों से बाहर रखा जा रहा है. एमफिल और पीएचडी कोर्सों में इन समुदायों की उपस्थिति बहुत कम है.”
सारथी ने भी बताया कि ओबीसी होने के कारण प्रशासन उनके प्रति पूर्वाग्रह का भाव रखता है. वह कहते हैं, “मैंने इस विश्वविद्यालय में मीडिया प्रबंधन में बैचलर और मास्टर्स की पढ़ाई की है लेकिन मुझे इस साल एमफिल में प्रवेश नहीं दिया गया. कोर्स की दो सीटों में से एक सीट ओबीसी के लिए आरक्षित है. जनसंचार विभाग में आरएसएस और एबीवीपी की विचारधारा को न मानने वाले छात्रों को प्रवेश नहीं दिया जाता.”
निकाले गए दलित छात्र रजनीश अंबेडकर ने बताया कि जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है तभी से छात्रों का दमन किया जा रहा है. वह बताते हैं, “छात्रों का दमन शुक्ला के उपकुलपति बनने से पहले भी होता रहा है.” वह कहते हैं कि जो लोग संविधान पर विश्वास करते हैं, सामाजिक न्याय की बात करते हैं और वैज्ञानिक और तार्किक सोच रखते हैं उनका दमन हो रहा है. “यह सिर्फ वर्धा तक सीमित नहीं है बल्कि देशभर के विश्वविद्यालयों में बहुजन समाज के छात्रों को प्रताड़ित किया जा रहा है.” गौरतलब है कि हाल के दिनों में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय और केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय में छात्रों पर राजनीति से दूर रहने का दबाव बनाया जा रहा है और छात्रों द्वारा सरकार पर उठाए जाने वाले सवालों को दरकिनार किया जाता रहा है.
अंबेडकर ने जानना चाहा कि कांशीराम की पुण्यतिथि के अवसर पर होने वाला आयोजन किस तरह चुनावी आचार संहिता का उल्लंघन है? “यदि ऐसा है तो गांधी जयंती और शास्त्री जयंती से जुड़े कार्यक्रमों को क्यों होने दिया गया?” ये दोनों कार्यक्रम 2 अक्टूबर को हुए थे. वह कहते हैं, “हम गांधी जयंती या लाल बहादुर शास्त्री जयंती के खिलाफ नहीं हैं लेकिन एक ऐसे नेता की पुण्यतिथि को मनाने से क्यों रोका गया जिसने बहुजन राजनीति का चेहरा बदल दिया. हमें प्रधानमंत्री को पोस्ट कार्ड लिखने से क्यों मना किया गया?”
विश्वविद्यालय परिसर का भगवाकरण केवल राजनीतिक कार्यक्रमों को रोकने तक सीमित नहीं है. विश्वविद्यालय के हॉस्टल और कैंटीन में मांसाहार निषेध कर दिया गया है. वेला ने मुझे बताया कि एक-डेढ़ महीना पहले विश्वविद्यालय की कैंटीन और मेस में मांसाहारी भोजन पकाने पर रोक लगा दी गई है. उनका कहना था कि विश्वविद्यालय ने धमकी दी है कि यदि कोई छात्र मांसाहार पकाते पकड़ा गया तो उसे हॉस्टल से निकाल दिया जाएगा.
छात्रों को विश्वविद्यालय के भीतर भी प्रशासन की अनुमति से जाना पड़ रहा है. वेला ने कहा, “हम विश्वविद्यालय के किसी भी विभाग में नहीं जा सकते. हमसे लाइब्रेरी की सदस्यता और इंटरनेट कनेक्शन वापस ले लिया गया है.” छात्रों ने बताया कि इन लोगों ने शुक्ला से फोन पर बात करने की कई बार कोशिशें कीं लेकिन उपकुलपति 9 अक्टूबर से ही छुट्टी पर चले गए हैं. अब इन छात्रों का इरादा 14 अक्टूबर तक इंतजार करने का है जिस दिन यूनिवर्सिटी में कामकाज फिर शुरू होगा.
सारथी और निकाले गए अन्य छात्रों ने बताया कि वे लोग निष्कासन के आदेश को चुनौती देंगे और उन्हें इस मामले में अन्य छात्रों का समर्थन मिलने का भरोसा है. 11 अक्टूबर को सारथी ने मुझे बताया था कि वे लोग उस दिन प्रशासन से निष्कासन के अलोकतांत्रिक फैसले पर पुनर्विचार करने को कहेंगे और यदि प्रशासन उनसे लिखित में इस फैसले पर पुनर्विचार करने का वादा नहीं करता है तो वे अन्य छात्रों के साथ तब तक प्रदर्शन करेंगे जब तक निष्कासन का आदेश वापस नहीं ले लिया जाता. कुमार पूछते हैं कि यदि ऐसे कार्यक्रम विश्वविद्यालय में नहीं किए जा सकते तो फिर और कहां किए जाएंगे. “इसका जवाब उपकुलपति को देना ही होगा.”
रजिस्ट्रार सिंह ने इस संबंध में मेरे ईमेल का जवाब नहीं दिया. रजिस्ट्रार के ऑफिस से मुझे पता चला कि वह 14 अक्टूबर को विश्वविद्यालय आएंगे. उपकुलपति शुक्ला भी उस दिन तक छुट्टी पर हैं. 11 अक्टूबर को विश्वविद्यालय ने अपने आधिकारिक फेसबुक पेज पर लिखा था :
हमारे संज्ञान में आया है कि कुछ असभ्य और असामाजिक लोगों ने असंवैधानिक तरीकों और गलत कृत्यों से विश्वविद्यालय की छवि धूमिल करने का काम किया है. देश के एक महान व्यक्ति की पुण्यतिथि के अवसर पर कार्यक्रम करने के बहाने इन लोगों ने गलत काम किया है. यह विश्वविद्यालय महात्मा गांधी के विचारों को मानने वाला है. विश्वविद्यालय प्रशासन सभी लोगों से अपील करता है कि फेक न्यूज के भुलावे पर न आएं और विश्वविद्यालय में शांतिपूर्ण माहौल बनाए रखने में मदद करें. यह पोस्ट वर्धा के पुलिस अधीक्षक के निर्देश पर जारी की गई है. आप सभी से सहयोग की आशा है.
कुमार कहते हैं, “विश्वविद्यालय एक ऐसी जगह होती है जहां आपका ज्ञान समाज निर्माण में मदद करता है और आपकी राजनीतिक विचारधारा तैयार होती है. यदि विश्वविद्यालय भी राज्यसत्ता की तरह बर्ताव करेगा तो हमारे समाज का क्या हश्र होगा? यहां स्वतंत्रता की जड़ें काटी जा रही हैं.”