फीस वृद्धि के खिलाफ जेएनयू के बाद आईआईएमसी के छात्रों का धरना

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09 December, 2019

दिल्ली में सर्दियों की एक शाम चाय ​पीते हुए मोहम्मद अनीस ने कहा, "जो छात्र दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू, लेडी श्रीराम और सेंट स्टीफन जैसे कॉलेजों से यहां आते हैं, वे पूरे आत्मविश्वास से अंग्रेजी बोलते हैं, हम ग्रामीण छात्र हिंदी में तो बढ़िया हैं, लेकिन अंग्रेजी में हमें बहुत जूझना पड़ता है." अनीस भारतीय जनसंचार संस्थान के छात्र हैं. आईआईएमसी पत्रकारिता, विज्ञापन और जनसंपर्क में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के लिए भारत के सबसे लोकप्रिय स्कूलों में से एक है. संस्थान का दिल्ली केंद्र, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के परिसर में स्थित है. फीस बढ़ोतरी के खिलाफ जेएनयू में चल रहे विरोध प्रदर्शनों ने आईआईएमसी को भी प्रभावित किया है. जब मैं आईआईएमसी कैंपस में अनीस से बात कर रहा था, पास में ही बैठे छात्रों के एक समूह ने एक लोकप्रिय विरोध गीत गाना शुरू कर दिया: "तू जिंदा है तो जिंदगी की जीत पर यकीन कर. अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर.”

आईआईएमसी में कुल 274 छात्र हैं इनमें से लगभग 50 छात्र "महंगी शिक्षा" के खिलाफ 3 दिसंबर से धरने पर बैठे हैं. ये छात्र "सेविंग मीडिया एजुकेशन" नाम का फेसबुक पेज भी चला रहे हैं. प्रदर्शनकारी समूह के पांच छात्रों ने सभी कक्षाओं का बहिष्कार करने का फैसला किया है. हालांकि इसका औपचारिक आह्वान अभी नहीं किया गया है. इससे एक दिन पहले, जेएनयू छात्र संघ ने घोषणा की थी कि प्रस्तावित छात्रावास शुल्क वृद्धि के विरोध में विश्वविद्यालय भर के 14 केंद्रों के छात्र अपने अंतिम सेमेस्टर की परीक्षा का बहिष्कार करेंगे.

आईआईएमसी में पढ़ाए जाने वाले सभी पांच पाठ्यक्रमों की फीस में पिछले दो सालों में 27 प्रतिशत से लेकर 41 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है. आईआईएमसी में 10 महीने का डिप्लोमा कोर्स होता है. 2019-20 के प्रोस्पेक्टस के अनुसार, हिंदी और अंग्रेजी पत्रकारिता के छात्र ट्यूशन फीस के तौर पर 95500 रुपए का और उर्दू पत्रकारिता के छात्र 55000 रुपए का भुगतान करते हैं. द्विभाषी "रेडियो और टेलीविजन पत्रकारिता" पाठ्यक्रम की फीस 1 लाख 68 हजार पांच सौ रुपए है, वहीं "विज्ञापन और पीआर" की फीस 1 लाख 31 हजार पांच सौ रुपए है. इसके अलावा, छात्रावास और मेस का शुल्क लड़कियों के लिए प्रति माह 6500 रुपए और लड़कों के लिए 4750 रुपए है. लड़कों के लिए छात्रावास की सीमित सुविधा है और जिन्हें परिसर में छात्रावास नहीं मिल पाता है उन्हें आसपास के क्षेत्रों में कमरा किराए पर लेना पड़ता है. दक्षिण-दिल्ली के किसी भी इलाके में रहना बहुत खर्चीला है. आईआईएमसी में सबसे कमजोर आर्थिक स्थिति के छात्र हिंदी और उर्दू पत्रकारिता पाठ्यक्रमों में हैं जो मुख्य रूप से अर्ध-शहरी और ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं.

नतीजतन, छात्रों की मुख्य मांग ट्यूशन फीस कम करने और सभी के लिए छात्रावास सुविधा उपलब्ध कराने की है. छात्रों की दो अन्य मांगे भी थीं कि पुस्तकालय को चौबीस घंटे खोला जाए और रात 10 बजे के कर्फ्यू समय को हटाया जाए. आईआईएमसी प्रशासन पहले ही इन दोनों मांगों को स्वीकार कर चुका है. आईआईएमसी में अकादमिक समंवयक राधविंदर कुमार चावला ने मुझे बताया कि संस्थान की कार्यकारी परिषद ने निर्णय लिया है कि अगले शैक्षणिक वर्ष से अगले एक दशक तक स्वचलित वार्षिक दस प्रतिशत शुल्क वृद्धि की नीति को रोक दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि चूंकि आईआईएमसी दिल्ली रिज क्षेत्र में स्थित है, इसलिए एक नए छात्रावास के निर्माण के लिए विशेष अनुमति लेनी होगी.

जैसा कि विविध पृष्ठभूमि के छात्र सस्ती शिक्षा के पक्ष में विरोध में शामिल थे, मैंने वर्तमान बैच के छात्रों के साथ समय बिताया जो आईआईएमसी में विरोध प्रदर्शन का हिस्सा हैं. उन्होंने मुझे अपनी मांगों, आकांक्षाओं और चिंताओं के बारे में बताया.

उत्तरी राजस्थान के चूरू जिले से आने वाले 23 वर्षीय मोहम्मद अनीस रेडियो और टीवी पत्रकारिता पाठ्यक्रम के छात्र हैं. उनके माता-पिता इस बात से अनजान हैं कि वह पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे हैं - उनका मानना ​​है कि वह दिल्ली में काम कर रहे हैं. "मेरा परिवार एक रूढ़िवादी मुस्लिम परिवार है और हमारे विचार कई मुद्दों पर अलग-अलग हैं". उन्होंने मुझे बताया कि उनकी बड़ी बहन फैशन डिजाइन का कोर्स करना चाहती थी, लेकिन परिवार ने उनकी शादी करना और उनके बजाय बेटे को पढ़ाने का फैसला किया. उन्होंने ​क​हा कि परिवार के फैसले से वे अभी भी खुश नहीं हैं. अनीस ने जयपुर से बीटेक किया और एक हिंदी अखबार समाचार जगत और एक अन्य हिंदी समाचार पोर्टल में इंटर्नशिप की है. जब मैंने उनसे पूछा कि वह अपनी पढ़ाई की फीस भर रहे हैं, तो उन्होंने कहा, "मैं दोस्तों से पैसे उधार लेता हूं और कुछ बचत करता हूं." वह "दिल्ली केंद्रित" मीडिया से नाराज हैं. “वे इस शहर से बाहर कदम नहीं रखते हैं. चूरू जैसी जगहों के बारे में कुछ रिपोर्ट नहीं होती हैं,” उन्होंने मुझे बताया. वे आगे सामाजिक मुद्दों पर डाक्यूमेंट्री बनाना चाहते हैं. “दहेज या पितृसत्ता की जकड़न, दोनों ही मेरे क्षेत्र में काफी प्रचलित हैं. मैं एक वीडियो कैमरा उठाकर एक राजस्थानी शादी और दुल्हन पक्ष की तरफ से दूल्हे को दिए जाने वाले दहेज को शूट करना चाहता हूं. "अनीस आईआईएमसी के छात्रों के विरोध का तहे दिल से समर्थन करता है.”

अजहर अंसार ने आईआईएमसी के हिंदी पत्रकारिता पाठ्यक्रम में दाखिला लेने से पहले दो स्नातक पाठ्यक्रम पूरे किए. राजस्थान के बारां जिले के एक छोटे से शहर मांगरोल के 22 वर्षीय अजहर ने केरल के मल्लापुरम के एक इस्लामिक विश्वविद्यालय, अल जामिया अल इस्लामिया से इस्लामी धर्मशास्त्र का अध्ययन किया. उन्होंने दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से समाजशास्त्र में भी स्नातक की डिग्री हासिल की है. अंसार ने मुझे बताया कि वह इस्लाम का अध्ययन करने के लिए केरल गए थे क्योंकि "उत्तर भारत में मदरसों में केवल धार्मिक शिक्षा मिलती है जबकि केरल में वे धर्म और धर्मनिरपेक्ष दोनों तरह की शिक्षा देते हैं, और मुझे यही चाहिए था." उनके पिता, जमील अहमद की एक छोटी सी किराने की दुकान है जिससे वे अंसार की पत्रकारिता की फीस नहीं भर सकते. ह्यूमन वेलफेयर फाउंडेशन नामक दिल्ली स्थित एक एनजीओ ने अंसार की ट्यूशन फीस का 25 प्रतिशत का भुगतान किया, जबकि परिवार ने मिलकर बाकी फीस भरी. अंसार ने कहा कि, “मीडिया में मुसलमानों का लगभग कोई प्रतिनिधित्व नहीं है. मैं अपने समुदाय से संबंधित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहता हूं. उच्च शिक्षा में, मुसलमान वास्तव में अनुपस्थित हैं. हमारी सामाजिक स्थिति भी काफी अच्छी नहीं है. मैं इन मुद्दों को उजागर करना चाहता हूं.”अंसार डिजिटल हिंदी न्यूज पोर्टल ‘छात्र विमर्ष' के लिए कभी-कभार फ्रीलांस काम करते हैं उन्होंने जेएनयू की फीस वृद्धि के विरोध में हुए आंदोलन को कवर किया है. "मैं छात्रों के विरोध का समर्थन करता हूं क्योंकि मुझे लगता है कि उठाई गई मांगें वैध हैं," उन्होंने कहा.

रेडियो और टीवी पत्रकारिता के छात्र गौतम कुमार ने अपनी बड़ी बहन से आईआईएमसी का अपना खर्च चलाने के लिए कर्ज लिया. उन्हें छात्रावास में कमरा नहीं मिला और फिलहाल वे बेर सराय के पास के इलाके में अपने एक बैचमेट के साथ रहते हैं. पटना के पास एक गांव के रहने वाले 24 वर्षीय गौतम के पास कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की डिग्री है और वह पहले नुक्कड़ नाटक करते थे. वह संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में शामिल हुए थे, लेकिन असफल रहे. बाद में उन्होंने आईआईएमसी में पढ़ने का फैसला लिया. उन्होंने कहा, "मैं सभी अखबारों को पढ़ता था और करंट अफेयर्स के बारे में जानकारी रखता था, इसलिए मैंने पत्रकारिता करने का फैसला किया." कुमार ने यूट्यूब और फेसबुक पर डिजिटल समाचार सेवा, इम्पैक्टिकल मीडिया के लिए जेएनयू विरोध प्रदर्शन को कवर किया. उन्होंने कहा, “ऊंची फीस पर बहस जेएनयू से शुरू हुई थी और यहां भी विरोध प्रदर्शनों को बढ़ावा दिया गया था, लेकिन यहां के छात्रों भी बढ़ती फीस से परेशान हैं.” कुमार ने अनुमान लगाया कि अपने पाठ्यक्रम के अंत तक, उन्होंने ट्यूशन, भोजन और किराए पर कुल 253800 रुपए खर्च किए होंगे. "सभी को छात्रावास मिलना चाहिए," उन्होंने कहा. प्रदर्शनकारी छात्रों द्वारा आईआईएमसी प्रशासन के साथ बातचीत के लिए गौतम को प्रतिनिधि के रूप में चुना गया है. वर्तमान फीस कई छात्रों के लिए सस्ती नहीं है और कुछ को दूसरे सेमेस्टर में छोड़ना पड़ सकता है. हम चाहते हैं कि प्रशासन दूसरी किस्त कम करे, जिसका छात्रों को अभी भुगतान करना है.

22 वर्षीय सानिका वहाल आईआईएमसी में विज्ञापन और पीआर की छात्रा है. वहाल कानपुर की रहने वाली हैं और उनके माता-पिता उनकी फीस का खर्च उठा सकते हैं. वह पाठ्यक्रम के कुछ छात्रों में से एक हैं जो विरोध का समर्थन कर रहे हैं. उन्होंने कहा "मैं उन लोगों के साथ खड़ी हूं जो फीस नहीं भर सकते. मेरे अधिकांश सहपाठी प्रशासन से उलझना नहीं चाहते और वे प्रशासन से बातचीत करने के पक्ष में हैं."

सौरभ वर्मा, आईआईएमसी में रेडियो और टीवी पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे हैं. उन्होंने कंप्यूटर साइंस में लखनऊ से बीसीए किया है. उन्होंने पीपुल्स मीडिया एडवोकेसी एंड रिसोर्स सेंटर के साथ काम किया है, जो दलित मुद्दों पर केंद्रित एक मीडिया पहल है. उनके पिता भारतीय सेना में कार्यरत हैं और अपने बेटे की शिक्षा का खर्च वहन कर सकते हैं. वर्मा फिल्म बनाना चाहते हैं और उन्होंने फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, पुणे और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी ऑफ लॉस एंजिल्स में फिल्म मेकिंग कोर्स के लिए आवेदन किया था. उन्होंने अंततः आईआईएमसी में दाखिला लिया. उन्होंने बताया कि, “यूसीएलए ने मुझे 50 लाख रुपए वापस कर दिए, इसलिए मैं निश्चित रूप से आईआईएमसी का खर्च उठा सकता हूं. लेकिन सार्वजनिक शिक्षा सस्ती या मुफ्त होनी चाहिए.


तुषार धारा कारवां में रिपोर्टिंग फेलो हैं. तुषार ने ब्लूमबर्ग न्यूज, इंडियन एक्सप्रेस और फर्स्टपोस्ट के साथ काम किया है और राजस्थान में मजदूर किसान शक्ति संगठन के साथ रहे हैं.