जेएनयू और शिक्षा के बारे में आंबेडकर के विचार

10 दिसंबर 2019
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में जारी छात्रों के प्रदर्शन, भारत में जातीय भेदभाव के मामले और शिक्षा के निजीकरण से होने वाले इसके व्यवसायीकरण से जुड़े हैं जो सीमांत समुदायों को और ज्यादा पृथक कर देगा.
शाहिद तांत्रे/कारवां
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में जारी छात्रों के प्रदर्शन, भारत में जातीय भेदभाव के मामले और शिक्षा के निजीकरण से होने वाले इसके व्यवसायीकरण से जुड़े हैं जो सीमांत समुदायों को और ज्यादा पृथक कर देगा.
शाहिद तांत्रे/कारवां

भारत में जन शिक्षा का मतलब क्या है? इस सवाल का जवाब देने से पहले यह समझना होगा कि जनता क्या है. भारत में जनता को परिभाषित करना बेहद जरूरी है क्योंकि भारतीय समाज अपनी प्रकृति में दमनकारी और विभेदकारी है. यह ऐसा समाज है जो जन्म के आधार पर लोगों में अंतर करता है, जहां सामाजिक भेदभाव और आर्थिक वंचना है. भेदभाव और बहिष्कार जाति व्यवस्था के परिणामस्वरूप हैं जो आज भी व्यापक है, इसलिए सार्वजनिक शिक्षा पर होने वाली किसी भी बहस में संरचनागत अन्याय पर ध्यान दिया जाना चाहिए जो पृथ्कीकरण करने वाली व्यवस्था में पैदा होती है.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में जारी छात्रों के प्रदर्शन, भारत में जातीय भेदभाव के मामले और शिक्षा के निजीकरण से होने वाले इसके व्यवसायीकरण से जुड़े हैं जो सीमांत समुदायों को और ज्यादा पृथक कर देगा. हालांकि छात्रों का आंदोलन विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा फीस वृद्धि के खिलाफ शुरू हुआ था लेकिन इसका उद्देश्य सार्वजनिक विश्वविद्यालय के विचार को बचाना है. आंदोलन को जाति और व्यावसायीकरण के संदर्भ में समझने के लिए भारत में सार्वजनिक शिक्षा की शुरुआत को समझना जरूरी है.

ऐतिहासिक तौर पर शिक्षा और ज्ञान पर द्विजों का कब्जा था. विशेष तौर पर इस पर ब्राह्मणों का नियंत्रण रहा. ब्राह्मणवादी दर्शन के अनुसार, अलग-अलग समुदाय के लिए अलग-अलग कर्तव्य और अधिकार तय हैं. इससे यह हुआ कि शूद्र समुदाय को शिक्षा से वंचित रखा गया, जो वर्ण व्यवस्था में सबसे निचले पायदान में आते हैं. चार स्तर वाली इस व्यवस्था के बाहर अतिशूद्र और महिलाएं हैं. मनुस्मृति में इन समुदायों के शिक्षा ग्रहण करने पर कठोर दंड का प्रावधान है.

सार्वजनिक शिक्षा संरचना पर ब्राह्मणों और ऊंची जातियों के समुदायों का एकाधिकार रहा. ज्ञान पर इनका एकाधिकार इन्हें सम्मान, शक्ति और आर्थिक हैसियत देता है. आजादी के बाद बने संविधान ने इस पुरानी व्यवस्था को निर्णायक चोट दी. चाहे यह चोट व्यापारिक न भी रही हो तो भी प्रतीकात्मक तो थी ही. सभी लोगों के लिए शिक्षा का अधिकार संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांतों में उल्लेखित है जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट ने जीवन के मौलिक अधिकार के रूप में परिभाषित किया. इस संबंध में दो लोगों ज्योतिराव फुले और बीआर आंबेडकर की भूमिका महत्वपूर्ण है.

“जो भी व्यक्ति किसी व्यक्ति को आवास, सुविधा, अवसर, होटलों में प्रवेश, शैक्षिक संस्थान, सड़क से वंचित करता है उसके कार्य को अपराध माना जाना चाहिए.”

जादुमणि महानंद जेएनयू में पीएचडी के छात्र हैं.

Keywords: JNU Right to Education caste caste discrimination BR Ambedkar BJP
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