करण कलुचा 9 फरवरी की सुबह जल्दी उठे और कुछ ऐसा किया जो वे शायद ही कभी करते हैं, उन्होंने प्रार्थना की. उनके बेटे का भविष्य दांव पर लगा था. लोधी एस्टेट में कलुचा के ‘‘टारगेट स्कूल’’ सरदार पटेल विद्यालय (एसपीवी) में दाखिले के लिए लॉटरी सुबह 9 बजे तय की गई थी. कलुचा एक घंटा पहले से स्कूल के सभागार में बैठे थे. उससे लगभग बहुत पहले, जब तीन सौ भावी छात्रों के माता-पिता की उत्सुकता के साथ कमरा गुनगुना रहा था, सभी अपने बच्चों की तकदीर का फैसला देखने का इंतजार कर रहे थे. कुछ चेहरों पर उम्मीदें थी बाकियों में नहीं. न होने की वाजिब वजहें थीं. एसपीवी में दाखिले के लिए अर्जी देने वाले 1,844 बच्चों में से 63 को दाखिला दिया गया था जबकि बाकी 310 को लॉटरी के लिए चुना गया था. इनमें से लॉटरी के जरिए 34 को रखा जाना था और उनमें से केवल 11 को ही दाखिला मिलने वाला था. अगर आप उन अभिभावनकों में से हैं जिन्होंने एसपीवी के लिए अर्जी दी थी, तो उम्मीद बहुत कम थी, लगभग पच्चीस में एक.
दोपहर 1 बजे तक फैसला आ गया. कलुचा के बेटे का दाखिला नहीं हुआ. कलुचा निराश थे, लेकिन ऐसा नहीं था कि उन्होंने इस बात का अंदाजा नहीं लगाया था और इसके लिए भी योजना नहीं बनाई थी. नहीं तो वे शहर भर के और 19 स्कूलों में क्यों अर्जी देते? उन्होंने मुझसे कहा, ‘‘सच कहें तो दिल्ली जैसी जगह में, आपके पास अपनी पसंद चुनने का सौभाग्य तब तक नहीं होता जब तक कि आप पूर्व छात्र न हों या निश्चित क्रेडेंशियल्स यानी साख न हो. इसलिए हर कोई यही रणनीति अपनाता है कि ज्यादा से ज्यादा स्कूलों में आवेदन करें, इस बात को अच्छी तरह से जानते हुए भी कि कम अंक होने के कारण कुछ स्कूलों में उनका नाम आ ही नहीं सकता. लेकिन वे फिर भी आवेदन करते हैं, वे मौका आजमाते हैं.’’ कलुचा के बेटे को चार स्कूलों ने चुना था: दिल्ली पब्लिक स्कूल, मथुरा रोड, ग्रेटर कैलाश में केआर मंगलम वर्ल्ड स्कूल, साकेत में एमिटी इंटरनेशनल स्कूल और बिरला विद्या निकेतन, पुष्प विहार. कालुचा ने आखिरकार डीपीएस मथुरा रोड में दाखिला कराने का फैसला किया. अपने घर से महज दो किलोमीटर दूर, सबसे करीब होने के अलावा डीपीएस कलुचा का पुराना स्कूल था इसका अलग से फायदा मिला. कलुचा ने कहा कि इन दोनों ‘‘क्रेडेंशियल्स’’ के चलते उनके बेटे ने दिल्ली की अंक-आधारित प्रवेश प्रणाली में 100 में से 85 अंक हासिल किए, जिससे उनकी ‘‘उम्मीदवारी बहुत मजबूत’’ बन गई.
दिल्ली के कुलीन निजी स्कूल एक धुंधला क्षेत्र हो सकते हैं और इसमें प्रवेश ईर्ष्यापूर्ण रूप से सुरक्षित है. और इस प्रक्रिया को पारदर्शी माना जाता है: यह एक ऐसी प्रणाली को अपनाती है जो सरकार द्वारा अनुमोदित प्रवेश मानदंडों के आधार पर आवेदकों को अंक आवंटित करती है. सबसे ज्यादा वेटेज आमतौर पर निकटता को दिया जाता है. आप स्कूल के जितना ज्यादा करीब रहते हैं उतने ज्यादा अंक आपको मिलते हैं. इसके बाद बोनस अंक दिए जाते हैं अगर आपके माता-पिता में से कोई एक या दोनों स्कूल के पूर्व छात्र रहे हों या अगर आपके भाई-बहन पहले से ही वहां पढ़ रहे हैं. कुछ स्कूल लड़कियों, गोद लिए गए बच्चों, कर्मचारियों के रिश्तेदारों, क्षेत्रीय अल्पसंख्यकों और एकल माता-पिता के बच्चों को अतिरिक्त अंक भी देते हैं. लॉटरी के जरिए फिर दाखिला दिया जाता है.
यह काफी सीधा लगता है, लेकिन चीजें अक्सर इतनी आसानी से काम नहीं करती हैं. बच्चों को उनके घर से एक घंटे की दूरी पर स्कूलों में दाखिला दिया जाता है, लेकिन उन्हें सड़क के उस पार के लिए शॉर्टलिस्ट नहीं किया जाता है. लॉटरी के नतीजे हमेशा सम्मानित नहीं होते हैं. दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा बेजा, बेसबब और धुंधले समझे जाने वाले प्रवेश मानदंड जैसे माता-पिता का पेशा, चाहे फिर उन्होंने राष्ट्रीय पुरस्कार जीते हों और वे परिवहन की क्या व्यवस्था कर सकते हैं, अभी भी चालू हैं. प्रबंधन कोटा के रहस्य का एक तत्व अभी भी बरकरार है. कुछ सीटें ऐसी होती हैं जिन्हें प्रबंधन अपने मनमुताबिक भरता है. जबकि कुछ स्कूल कथित तौर पर दाखिले के बदले दान मांगते रहते हैं.
दूसरी तरफ अभिभावकों के लिए इस गूढ़ प्रणाली में दांव ऊंचे और बेहद निजी होते हैं. इस पर भरमा जाना आसान है कि दाखिले का असली उम्मीदवार कौन है: बच्चा या उनके माता-पिता. आखिरकार, यह अक्सर बच्चे के बारे में कम और उसके माता-पिता के बारे में ज्यादा कहता है. ज्यादातर, यह दिल्ली के समाज में माता-पिता की सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक हैसियत को साफ तौर पर दिखला रहा होता है.
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