जनवरी के पहले सप्ताह में त्रिपुरा के कमलकांत पारा गांव में एक 32 वर्षीय पूर्व शिक्षक अपने घर में मृत पाए गए. मीडिया के अनुसार, अंतिम संसकार के वक्त उनकी पत्नी ने खुद को जलती चिता पर फेंकने की कोशिश की. पत्नी का कहना है कि पूर्व शिक्षक ने खुदकुशी की है. समाचार रिपोर्टों के अनुसार, 32 वर्षीय शिक्षक की 31 मार्च 2020 को नौकरी चली गई थी जिसके बाद वह कर्ज में डूब गए थे और परेशान थे.
31 मार्च को त्रिपुरा के हजारों सरकारी शिक्षकों को नौकरी से निकाल दिया गया था. इसकी वजह मई 2014 के त्रिपुरा उच्च न्यायालय का वह फैसला है जिसमें 2010 से 2014 के बीच राज्य में हुईं 10323 शिक्षक भर्तियों को रद्ध कर दिया गया था. अपनी नौकरी गंवाने वाले शिक्षकों ने मुझे बताया कि नौकरी जाने का असर सीधे उनके जीवन पर पड़ा है और उनकी मांग है कि उन्हें फिर से बहाल किया जाए.
मई 2014 में उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि 10323 शिक्षकों का चयन पूरी तरह से अनुचित और अपारदर्शी था. न्यायालय ने राज्य सरकार को दो महीने के भीतर एक नई रोजगार नीति तैयार करने और फिर 31 दिसंबर तक एक नई चयन प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया था. लेकिन उसने स्कूली छात्रों के हितों के मद्देनजर शिक्षकों की चयन प्रक्रिया पूरी होने तक अपदस्थ शिक्षकों को काम करते रहने के लिए कहा.
उच्च न्यायालय के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई और उसी साल 8 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने मामले की आखिरी सुनवाई तक शिक्षकों को निकाले जाने के आदेश पर रोक लगा दी थी. मार्च 2017 में सर्वोच्च अदालत ने उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए शिक्षकों को साल के आखिर तक अपने पदों पर काम करते रहने की अनुमति दी. दिसंबर 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षकों को जून 2018 तक तदर्थ तौर पर नौकरी करते रहने की अनुमति दी. लेकिन इसके कुछ महीनों के बाद भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली राज्य सरकार ने शिक्षकों की नौकरी की अवधि को और बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की. उसी साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने 2019-2020 का शैक्षणिक सत्र के पूरा होने तक शिक्षकों की नौकरी की अवधि को आखिरी बार बढ़ाया.
राज्य सरकार के अनुसार उस समय अवधि के समाप्त होने तक 1441 शिक्षकों ने अपने लिए नई नौकरियां ढूंढ ली थीं लेकिन 31 मार्च 2020 का दिन 8882 शिक्षकों के लिए नौकरी का आखिरी दिन साबित हुआ. संयुक्त आंदोलन समिति के कार्यकारी सदस्य गौतम देबबर्मा के अनुसार अधिकतर शिक्षकों ने 2014 में आए उस फैसले के बाद नई नौकरी की तलाश नहीं की. जेएमसी शिक्षकों की बहाली की मांग करने वाले तीन बड़े समूहों- 10323 के लिए न्याय, ऑल त्रिपुरा एडहॉक टीचर्स एसोसिएशन और अमरा 10323- का संयुक्त समूह है. गौतम ने कहा कि शिक्षकों को उम्मीद थी कि सरकार उन्हें नौकरी से नहीं निकालेगी. उन्होंने बताया, "हमने सोचा कि सरकार हमारे लिए जरूर कुछ करेगी क्योंकि यह एक सरकारी नौकरी है और हमें सरकारी नियमों और प्रक्रियाओं के तहत चुना गया है.”
नौकरी गंवाने वाले शिक्षकों में उत्तरी त्रिपुरा जिले के जाम्पुई हिल्स में रहने वाली 34 वर्षीय महिला भी हैं. उस महिला ने कहा कि उन्होंने 2010 में एडहॉक शिक्षक के तौर पर जम्पुई में सैल्यूट सीनियर बेसिक स्कूल में पढ़ाना शुरू किया था और पांच साल बाद उनकी नौकरी को नियमित कर दिया गया. उन्होंने बताया, “जब मुझे अपना नियुक्ति पत्र मिला तब मैं बहुत खुश थी. मेरे पूरे परिवार ने इसका जश्न मनाया था लेकिन अब घर वाले उदास हैं. बिना वेतन के जीवन गुजारना बहुत मुश्किल हो जाता है.”
34 वर्षीय महिला ने कहा कि वह अपने परिवार में अकेली कमाने वाली सदस्य है. उन्होंने बताया, "मेरे ऊपर मेरे पति, दो बच्चों और ससुर की जिम्मेदारी है. अभी तक मैं 29000 रुपए कमा रही थी और आज मेरे पास कोई आय नहीं है.” महिला ने बताया कि उनके परिवार के पास एक खेत है लेकिन इससे मुश्किल से ही जरूरतें पूरी हो पाती हैं. उन्होंने कहा, "इससे मेरे बच्चों की स्कूल की फीस भी नहीं दी जा सकती. हमारे साथ जो हुआ है वह अविश्वसनीय है. कम से कम हमारे पास खेती करने के लिए कुछ जमीन तो है लेकिन बाकी लोगों का क्या? वे क्या करेंगे?"
34 वर्षीय महिला की तरह ही धालई जिले में रहने वाले 32 वर्षीय पूर्व शिक्षक हरि देबबर्मा भी अपने परिवार में अकेले कमाने वाले व्यक्ति थे. हरि की 27 वर्षीय पत्नी मोहारानी देबबर्मा ने मुझे बताया कि पिछले साल नवंबर में दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई. मोहारानी ने बताया कि उन्हें लगता है कि नौकरी जाने और बेरोजगार होने के तनाव ने ही उनके पति की जान चली गई जबकि वह बहुत स्वस्थ आदमी थे. मोहरानी ने मुझे बताया कि उनका परिवार पूरी तरह से हरि की आय पर ही निर्भर था. उन्होंने बताया, "हमारे दो बच्चे हैं, एक साढ़े दस साल और दूसरा छह साल का है. मेरे ससुर और मेरी सास बहुत बूढ़े हैं. वे काम नहीं कर सकते. अब मेरे लिए बहुत मुश्किल समय है क्योंकि बच्चों की आर्थिक जरूरतें पूरी करने वाला और उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है.”
गौतम ने मुझे बताया कि नौकरी जाने के कारण पैदा हुई कठिनाइयों में सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि कुछ शिक्षक भारी कर्ज में डूबे हुए हैं. उन्होंने मुझे बताया कि जेएमसी ने कुछ बैंकों से अनुरोध किया है कि नई नौकरी मिलने तक वे पीड़ित शिक्षकों से कर्ज वापस करने की मांग न करें. उदाहरण के लिए 4 जनवरी 2021 को जेएमसी ने त्रिपुरा ग्रामीण बैंक को पत्र लिखा जिसमें उस 32 वर्षीय पूर्व शिक्षक के मामले का उल्लेख किया गया है जिनकी जनवरी के पहले सप्ताह में मृत्यु हो गई थी. पत्र में लिखा गया, "हमारे दुख और चिंता के इस समय में बिना हमारी चिंता और निराशा के मूल कारण को जाने 10323 शिक्षकों को लगातार कर्ज वापसी के नोटिस भेजे जा रहे हैं."
शिक्षकों ने कहा कि सत्तारूढ़ पार्टी ने भी उनके साथ धोखा किया है. 2018 के विधानसभा चुनावों से पहले बीजेपी ने 10323 शिक्षकों को अपना समर्थन दिया था और सत्ता में आने पर उनकी मदद करने का भरोसा दिलाया था. यहां तक कि तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा जारी त्रिपुरा के लिए पार्टी के “विजन डॉक्यूमेंट" में भी उल्लेख था कि निलंबित किए गए शिक्षकों के मुद्दों को मानवीय आधार पर हल किया जाएगा. शिक्षकों ने मुझे बताया कि उस समय त्रिपुरा में बीजेपी के चुनाव प्रभारी हिमंत बिस्वा सरमा ने भी उन्हें न्याय दिलाने का वादा किया था.
लेकिन बीजेपी के सत्ता में आने के बाद भी उन्हें बहाल नहीं किया गया. अप्रैल 2020 में इन्होंने नौकरी से निकाले गए शिक्षकों के लिए 35000 रुपए की एक वित्तीय सहायता की घोषणा की थी. इसके बाद 5 नवंबर को जारी की गई एक अधिसूचना में राज्य सरकार ने निकाले गए शिक्षकों को शिक्षकों, ग्रुप-सी के गैर-तकनीकी रिक्त पदों और ग्रुप-डी की नौकरियों में 31 मार्च 2023 तक आवेदन करने की उम्र सीमा में राहत प्रदान की. लेकिन शिक्षकों ने कहा कि ये उपाय उनके लिए पर्याप्त नहीं हैं. कोमलपुर गवर्नमेंट इंग्लिश मीडियम स्कूल के पूर्व शिक्षक दीपांकर देबबर्मा ने मुझे बताया कि शिक्षकों ने यह नहीं सोचा था कि उन्हें ग्रुप सी और ग्रुप डी की नौकरी मिलेगी. उन्होंने कहा, "इस नई पीढ़ी के साथ प्रतिस्पर्धा करने में उन्हें बहुत मुश्किल होगी.”
गौतम ने मुझे बताया कि कोविड-19 महामारी के दौरान शिक्षकों ने अपनी इस नौकरी की समस्या को लेकर मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब से दो बार मुलाकात की. 3 अक्टूबर 2020 को हुई दूसरी बैठक में देब ने उन्हें दो महीनों के भीतर उनकी समस्या का समाधान करने का आश्वासन दिया था. गौतम ने कहा, "लेकिन दो महीने बीत जाने के बाद भी कोई समाधान नहीं किया गया." उनके अनुसार, मामले को लेकर मुख्यमंत्री की उदासीनता के कारण उन्होंने आंदोलन शुरू किया. उन्होंने आगे कहा, “हमें उम्मीद थी कि सीएम हमारे लिए कुछ करेंगे."
7 दिसंबर को अगरतला के सिटी सेंटर शॉपिंग मॉल के सामने लगभग पांच हजार शिक्षकों ने शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन शुरू किया. यह प्रदर्शन पश्चिम त्रिपुरा जिला प्रशासन द्वारा प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 के तहत जारी किए गए आदेश के बाद 27 जनवरी को समाप्त हो गया. गौतम ने मुझे बताया कि सुबह 4.30 बजे के करीब पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को जबरन धरना स्थल से हटाना शुरू कर दिया. प्रदर्शनकारियों ने बताया कि पुलिस ने उन पर लाठियां चलाईं और आंसू गैस के गोले भी दागे. प्रदर्शनकारियों में शामिल दीपांकर ने कहा, “पानी की बौछैरों, आंसू गैस के गोलो और लाठियों का जमकर इस्तेमाल किया गया. पुरुष पुलिस वालों ने महिला शिक्षकों पर भी लाठीचार्ज किया. इस पूरी घटना में लगभग साठ शिक्षक घायल हुए."
दक्षिण त्रिपुरा में स्थित ईस्ट करबुक गांव की संध्या राम भी उस प्रदर्शन में घायल हुए थे. उन्होंने मुझे बताया कि जब पुलिस ने जगह खाली कराने के लिए उन्हें पीटना शुरू किया, तो प्रदर्शनकारी उस जगह को छोड़कर चले गए थे. उन्होंने कहा, “हम उस जगह को छोड़कर एक गली में चले गए लेकिन पुलिस ने हमें वहां भी पीटा. मेरे हाथों और पीठ पर चोट लगी है. उन्होंने मेरी आंख के ऊपर डंडा मारा और वहां से खून बहने लगा." संध्या ने बताया कि उन्हें अगरतला के एक सरकारी अस्पताल इंदिरा गांधी मेमोरियल अस्पताल में ले जाया गया था. उन्होंने आगे बताया, "प्रारंभिक चिकित्सा जांच के बाद डॉक्टरों की टीम ने हमें वहां से चले जाने के लिए मजबूर किया क्योंकि राज्य प्रशासन यह साबित करना चाहता है कि लाठी चार्ज बेहद मामूली था जिसमें किसी को कोई गहरी चोट नहीं आई थी.” उन्होंने आगे बताया, “मैं ठीक से अपनी आंखे भी नहीं खोल पा रहा था और मुझे छुट्टी दे दी गई.” अगरतला के इंदिरा गांधी मेमोरियल अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक अमिताभ चक्रवर्ती ने आरोप से इनकार करते हुए कहा, “मामले में अत्यंत सावधानी बरती गई और जिस तरह के इलाज की जरूरत थी वह दिया गया.” वॉरेनबरी एसबी स्कूल में काम करने वाली 33 वर्षीय सिमा देबबर्मा ने बताया कि वह भी पुलिल द्वारा किए लाठी चार्ज में घायल हो गईं थीं. उन्होंने कहा, "मैं आंसू गैस के गोलों के कारण बदहवास हो गई थी और मेरे अंदर अस्थमा के लक्षण दिखने शुरू हो गए थे.” सिमा ने मुझे बताया कि उन्हें आगे के इलाज के लिए चेन्नई के अपोलो अस्पताल में जाना पड़ा क्योंकि समय के साथ-साथ उनकी हालत और खराब हो गई थी.
उसी दिन पश्चिमी अगरतला पुलिस स्टेशन में संयुक्त आंदोलन समिति के 12 नेताओं के खिलाफ पहली सूचना रिपोर्ट दर्ज की गई. पुलिस ने उन पर भारतीय दंड संहिता की आठ धाराओं के तहत मामला दर्ज किया, जिसमें दंगा फैलाने, घातक हथियार रखने, आपराधिक साजिश में शामिल होने, आपराधिक रूप से बल का उपयोग करने और लोक सेवक पर हमला करने जैसी धाराएं शामिल हैं. दीपंकर ने इस पूरे मामले को झूठा और ऐसा मामला बताया जो प्रदर्शनकारियों को मानसिक रूप से परेशान करने के लिए दर्ज किया गया है. मैंने पुलिस थाने में फोन और ईमेल किया लेकिन वहां से कोई जवाब नहीं मिला. दीपांकर ने मुझे बताया कि नौकरी जाने के बाद से ही वह अपने परिवार को पालने के लिए संघर्षरत हैं.
उन्होंने आगे बताया, "मुझे सबसे बड़ी कठिनाई अपने परिवार को संभालने में हो रही है. मेरा एक बच्चा, पत्नी और मां हैं. चूंकि समाज ने मुझे इतने सालों तक एक शिक्षक के रूप में जानता रहा है, ऐसे में कोई दूसरा काम शुरू करना मुश्किल है. हम मानसिक रूप से बहुत परेशान हैं."