फरवरी 2023 में बजट सत्र के दौरान कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी ने संसद में कहा कि ''देश में कोयले की कोई कमी नहीं है.'' जोशी ने कहा कि 2022-23 में कोयले का उत्पादन 16 प्रतिशत बढ़कर करीब सात करोड़ टन पहुंच गया. इसके एक महीने बाद जोशी ने घोषणा की कि भारत 2025-26 तक कोयले का निर्यात शुरू कर देगा और थर्मल कोयले का आयात बंद कर देगा. कोयला मंत्रालय के इस आश्वासन के बाद, शायद भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद, या आईसीएफआरई, छत्तीसगढ़ में पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील हसदेव अरंड क्षेत्र में कोयला खनन के लिए और अधिक क्षेत्र खोलने की अपनी सिफारिश की फिर से जांच कर सकता है, जाहिर तौर पर देश में कोयले की कमी को पूरा करने के लिए. हसदेव अरंड कोलफील्ड या एचएसीएफ में खनन क्षेत्र के विस्तार से मुख्य रूप से अडानी समूह को लाभ होगा, जो राजस्थान सरकार के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड के साथ एक संयुक्त उद्यम है.
पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले आईसीएफआरई ने 2021 में क्षेत्र में कोयला खनन पर एक संयुक्त अध्ययन में एचएसीएफ में और खनन की सिफारिश की. इसे राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के आदेश पर आयोजित किया गया था. पर्यावरण मंत्रालय के तहत एक अन्य अनुसंधान और प्रशिक्षण निकाय, भारतीय वन्यजीव संस्थान या डब्ल्यूआईआई इस संयुक्त अध्ययन का एक हिस्सा था, जो हसदेव अरंड के घने जंगलों में खनन परियोजनाओं के पारिस्थितिक प्रभाव को देखने वाला था. डब्ल्यूआईआई की रिपोर्ट एचएसीएफ में खनन के लिए और अधिक क्षेत्रों को खोलने के खिलाफ सिफारिश करती है. डब्ल्यूआईआई और आईसीएफआरई दोनों ने पाया कि खनन के लिए अधिक क्षेत्र खोलने से क्षेत्र में रहने वाले लोगों की जैव विविधता संरक्षण और आजीविका की अनिवार्यता से समझौता होगा.
लेकिन आईसीएफआरई के उप महानिदेशक सुधीर कुमार के नेतृत्व में यह अध्ययन अपने मुख्तारनामे से परे चला गया, इसने कोयले की उपलब्धता के मुद्दों का पता लगाया, चुनिंदा आंकड़ों के आधार पर दावा किया कि कोयले की कमी थी और एचएसीएफ में खनन क्षेत्र के विस्तार की वकालत करने के लिए इसका इस्तेमाल किया. भारतीय वन सेवा के एक अधिकारी, अरुण सिंह रावत की अध्यक्षता वाली आईसीएफआरई ने इसी अध्ययन से सामने अए गंभीर पर्यावरणीय नुकसानों पर चिंताओं को पीछे छोड़ते हुए मानवशास्त्रीय कारणों की अनुमति दी. इसके बाद, आईसीएफआरई के अध्ययन का हवाला देते हुए, केंद्र सरकार और छत्तीसगढ़ और राजस्थान सरकारें हसदेव अरंड में खनन परियोजनाओं के लिए और अधिक क्षेत्रों को खोलने के लिए आगे बढ़ रही हैं.
आईसीएफआरई ने चार कोयला ब्लॉकों में और खनन की अनुमति देने की सिफारिश की क्योंकि वे "पहले से ही चालू हैं या वैधानिक मंजूरी प्राप्त करने के उन्नत चरण में हैं." ये चार ब्लॉक हैं- परसा पूर्व और कांता बसन या पीईकेबी, परसा, केंटे एक्सटेंशन और तारा. पीईकेबी, केंटे एक्सटेंशन और परसा को क्रमशः 2007, 2013 और 2017 में राजस्थान विद्युत वितरण निगम लिमिटेड को आवंटित किया गया था. वर्तमान में, पीईकेबी और चोटिया, जहां बाल्को द्वारा खनन किया जा रहा है और जो वेदांता समूह की सहायक कंपनी है, एचएसीएफ में दो परिचालन खदानें हैं. आईसीएफआरई की सिफारिश के आधार पर तारा ब्लॉक को इस साल मार्च में नीलामी के लिए रखा गया था.
इन खानों के लिए गए नीतिगत फैसले और दी गई परियोजना की मंजूरी सार्वजनिक हितों और प्राकृतिक संसाधनों की कीमत पर ऊर्जा और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में अडानी समूह सहित कॉरपोरेटों को बेहद फायदा पहुंचाने की नीति पर चलती है. 2014 के अंत में कोलगेट घोटाले में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद आरआरवीयूएनएल के साथ अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड के जेवी द्वारा इन तीन कोयला ब्लॉक आवंटन और खनन कार्यों को बंद कर दिया जाना चाहिए था. कारवां ने 2018 में रिपोर्ट दी थी कि आरआरवीयूएनएल और एईएल ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन किया, अब तक बिना किसी परिणाम के खनन जारी रखा है. कारवां की रिपोर्ट के मुताबिक, एक मोटा-मोटी अनुमान के तहत अडानी समूह को 30 साल की लीज अवधि में सात हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का फायदा हुआ.
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