बक्सवाहा : जो जंगल सरकार का नहीं है उसकी नीलामी कैसे हो सकती है?

मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के संरक्षित बक्सवाहा वन में माइनिंग लीज क्षेत्र का लोकेशन नक्शा.
मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के संरक्षित बक्सवाहा वन में माइनिंग लीज क्षेत्र का लोकेशन नक्शा.

बहुत कम समय में मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले का बक्सवाहा जंगल सोशल मीडिया के जरिए न केवल देशव्यापी मुद्दा बन गया बल्कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया का भी ध्यान अपनी तरफ खींचा है. कोरोना की भयावह त्रासदी के दौर में ऑक्सीजन, पेड़ों, जंगलों और कुल मिलाकर स्वस्थ और समृद्ध पर्यावरण की अहमियत लोगों को समझ में आई है. विशेष रूप से युवाओं की चेतना और सरोकारों में यह मुद्दा जुड़ गया है. सेव बक्सवाहा फॉरेस्ट अभियान में युवाओं की सक्रिय भागीदारी उल्लेखनीय है. इस अभियान की शुरुआत करने वाले युवाओं में से एक संकल्प जैन जो नजदीक के एक कस्बे बड़ामलहरा में रहते हैं और सागर केंद्रीय विश्वविद्यालय के छात्र हैं, बताते हैं, “हमने देखा कि कोरोना की दूसरी लहर में मरीजों को ऑक्सीजन की भारी किल्लत हुई. हमें इस दौरान ऑक्सीजन की अहमियत समझ में आई. ऐसे में ऑक्सीजन के मुख्य स्रोत पेड़ों की इतनी बड़ी तादात में कटाई ने हमें प्रेरित किया कि इन्हें बचाया जाना चाहिए”.  

हालांकि यहां स्पष्ट करना जरूरी है कि पेड़ों से प्राप्त होने वाली ऑक्सीजन और मरीजों को दी जाने वाली कृत्रिम ऑक्सीजन के बीच कोई सीधा ताल्लुक नहीं है लेकिन कोरोना की दूसरी लहर में बनी परिस्थितियों ने पेड़ों और पर्यावरण को लेकर आम लोगों में जागरूकता और चेतना तो बढ़ी है और इससे कई पुराने मुद्दे फिर से सतह पर आए हैं.

बक्सवाहा में हीरे के भंडार की खोज 2004 में आस्ट्रेलियाई हीरा कंपनी रियो टिंटों ने की थी. कंपनी ने 2002 से 2017 तक आवीक्षण और  पूर्वेक्षण पट्टों के तौर पर आधिकारिक रूप से काम किया था. 2014 से इस कंपनी ने खनन लीज के लिए आवेदन किया था लेकिन औपचारिकताएं पूरी न हो पाने के कारण अंतत: 2017 में रियो टिंटों ने यह डायमंड ब्लॉक मध्य प्रदेश सरकार के सुपुर्द कर दिया था.

हीरा उत्पादन के क्षेत्र में दुनिया की शीर्ष कंपनियों में शुमार आस्ट्रेलियाई कंपनी रियो टिंटों जैसी बड़ी कंपनी का इस तरह बैरंग लौटना हालांकि सामान्य बात नहीं थी. इसके पीछे के कारणों को लेकर पुख्ता और प्रामाणिक जानकारियां अभी भी सार्वजनिक नहीं हैं. लेकिन यह आम चर्चा है कि रियो टिंटों को महज औपचारिक स्वीकृतियां हासिल नहीं कर पाने के कारण बक्सवाहा में नियमित खनन लीज नहीं मिल सकी बल्कि कई जटिल पहलू इसके पीछे हैं. इस दौरान चर्चा में आईं कई खबरों से यह भी सामने आया कि रियो टिंटों ने हीरा खनन के लिए लगभग 991 वर्ग हेक्टेयर के जंगल की लीज चाही थी. चूंकि यह जंगल वन्य जीवों के परिवास के लिए आरक्षित पन्ना टाइगर रिजर्व और नौरदेही अभयारण्य के बीच एक प्रकृतिक बफर जोन है इसलिए इतने बड़े क्षेत्रफल को लीज पर देने से वन्य जीवों पर प्रतिकूल असर होते. इस दौरान वन्य जीव संरक्षणवादियों ने भी रियो टिंटों के इरादों के खिलाफ प्रतिक्रियाएं दीं. लेकिन एक बड़ी वजह यह भी मानी जाती है कि रियो टिंटों और मध्य प्रदेश सरकार के बीच की समझदारी न बन पाने की वजह से कई गतिरोध पैदा हुए.

भोपाल की पत्रकार और सूचना अधिकार कार्यकर्ता सेहला मसूद की हत्या के पीछे भी रियो टिंटों की भूमिका संदिग्ध मानी गई और इस मामले ने भी इस कंपनी के खिलाफ राजनैतिक महौल बनाया. हालांकि जिस दौरान रियो टिंटों नियमित खनन लीज आबंटन के लिए आवेदन कर रही थी तब देश के सर्वोच्च न्यायालय ने कोयला खनन की आबंटन नीति पर सख्त रवैया अपनाया हुआ था और 214 कोल ब्लॉक्स रद्द कर दिए थे. बाद में भारत सरकार ने नई खनन नीति के तहत आबंटन की जगह पारदर्शी खनन नीलामी प्रक्रिया अपनाई.

सत्यम श्रीवास्तव भारत सरकार के आदिवासी मंत्रालय के मामलों द्वारा गठित हैबिटेट राइट्स व सामुदायिक अधिकारों से संबंधित समितियों में नामित विषय विशेषज्ञ के तौर पर सदस्य हैं.

Keywords: environmental damage environment Madhya Pradesh forest rights act Deforestation
कमेंट