जलवायु संकट पर अमीर देशों और भारत के ताकतवर लोगों के भरोसे रहना बड़ी भूल

10 दिसंबर 2021
भारत उन चंद देशों में है जहां जलवायु परिवर्तन से संबंधित कोई कानून नहीं है और देश की नीतियां प्रशासनिक आदेशों के भरोसे ही गैर-जवाबदेह तरीके से चलाई जा रही हैं. यह एक बड़ी समस्या है क्योंकि जलवायु परिवर्तन से प्रभावी तौर पर मुकाबला करने के लिए भारत को ऊर्जा, यातायात और पूरी अर्थव्यवस्था में आमूलचूल ढांचागत परिवर्तन लाने होंगे.
कियारा वर्थ / यूएनएफसीसीसी
भारत उन चंद देशों में है जहां जलवायु परिवर्तन से संबंधित कोई कानून नहीं है और देश की नीतियां प्रशासनिक आदेशों के भरोसे ही गैर-जवाबदेह तरीके से चलाई जा रही हैं. यह एक बड़ी समस्या है क्योंकि जलवायु परिवर्तन से प्रभावी तौर पर मुकाबला करने के लिए भारत को ऊर्जा, यातायात और पूरी अर्थव्यवस्था में आमूलचूल ढांचागत परिवर्तन लाने होंगे.
कियारा वर्थ / यूएनएफसीसीसी

हाल ही में 31 अक्टूबर और 12 नवंबर के बीच ग्लासगो में संपन्न हुई जलवायु परिवर्तन की 26वीं अंतर्राष्ट्रीय वार्ता में भारत सहित कई विकासशील देशों ने जलवायु न्याय का मुद्दा उठाया. इन देशों की मांग वाजिब है क्योंकि बैंगलुरु के राष्ट्रीय प्रगत अध्ययन संस्थान की डॉक्टर तेजल कानिटकर के अनुसार, विश्व के सबसे धनी देश 1990 में अंतर्राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन के समझौतों पर चर्चा शुरू होने तक जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार कुल जमा गैसों के उत्सर्जन के 71 प्रतिशत हिस्से के लिए जिम्मेदार हैं. 

अहम बात यह कि दुनिया के सबसे धनी देश उत्सर्जन कम करने और विकाशशील देशों में जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले नुकसान की भरपाई करने के अपने ही वादों पर बार बार मुकर जाते हैं. इसलिए जलवायु परिवर्तन निश्चित रूप से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जलवायु न्याय का मुद्दा है और रहेगा. इस सबके बावजूद जलवायु परिवर्तन से जुड़े अन्याय अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर ही खत्म नहीं होते. भारत में जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों और लगातार बढ़ती जा रही अमीर-गरीब के बीच की खाई को देखते हुए देश के भीतर होने वाले जलवायु व पर्यावरण सम्बंधित अन्यायों के बारे में गंभीरता से सोचना आवश्यक है.

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आपने पढ़ा होगा की दिल्ली में वर्ष 2021 में ‘आक्सीजन बार’ खोले गए जहां आप पैसा देकर शुद्ध वायु का सेवन कर सकते हैं. सुनने में यह बड़ा अटपटा लगता है लेकिन हकीकत तो यह है कि वायु प्रदूषण एक बहुत गंभीर समस्या बन गई है. भारत में सालाना 16 लाख से ज्यादा लोग वायु प्रदूषण के कारण अकाल मौत का शिकार होते हैं. शहरों में वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण मोटर वाहन होते हैं लेकिन उसका सबसे ज्यादा नुकसान रिक्शा चालकों, दिहाड़ी मजदूरों, और फुटपाथ पर अपनी रोजी रोटी जुटाने को मजबूर गरीब महिलाओं और पुरुषों को उठाना पड़ता है. जहां अमीर लोग अपने घरों में एयर-कंडीश्नर और एयर-प्यूरीफायर जैसे यंत्र लगा रहे हैं, शहरों में रहने वाले एक बड़े वर्ग को दिन रात वायु प्रदूषण का सामना करना पड़ता है. उन परिस्थितियों में प्रदूषण के लिए सबसे कम जिम्मेदार लोगों पर उसका सबसे ज्यादा असर देखने को मिलता है. यह पर्यावरणीय अन्याय का एक बड़ा उदाहरण है.

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सर्दियों की शुरुआत में पंजाब और हरियाणा के खेतों में डंठल जलाने के कारण दिल्ली में कोहरे की समस्या और ज्यादा गंभीर हो जाती है. हालांकि यह समस्या वर्ष में कुछ समय के लिए ही रहती है, कई बार इस बहाने दिल्ली में प्रदूषण का पूरा दोष किसानों पर डाल दिया जाता है. यह भी ध्यान देने की बात है कि डंठल जलाने की समस्या पंजाब और हरियाणा में खेती के पूर्ण मशीनीकरण के कारण ज्यादा बढ़ी है. कंबाइंड हार्विस्टर मशीन, जो फसल काटने के साथ साथ धान निकालने का काम भी करती है, खेतों में नुकेले और बड़े डंठल पीछे छोड़ देती है जिनको जलाने के अलावा किसानों के पास और कोई किफायती रास्ता नहीं है. इस समस्या को सुलझाने के प्रयास जारी हैं लेकिन जिन इलाकों में डंठल जलाने की समस्या इतनी गंभीर नहीं है उन ग्रामीण इलाकों में भी वायु प्रदूषण एक बड़ी समस्या है.

डॉ. प्रकाश कसवां यूनिवर्सिटी ऑफ कनेक्टिकट में राजनैतिक विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर और यूनिवर्सिटी के मानव अधिकार संस्थान के आर्थिक और सामाजिक अधिकार शोध कार्यक्रम (इकनॉमिक एंड सोशल राइट्स रिसर्च प्रोग्राम) के सह-निदेशक हैं. उनकी पहली किताब डेमोक्रेसी इन दी वुड्स, ऑक्सफॉर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस द्वारा 2017 में प्रकाशित की गई. डॉ. कसवां के द्वारा संपादित किताब “भारत में जलवायु न्याय” केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस द्वारा 2022 में प्रकाशित की जाएगी.

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