असम के निलेपारा गांव के परेश नाथ ने 27 फरवरी को मुझे घनी बस्ती से निकलने वाली वह सकरी सड़क दिखाई जिस पर से दो रात पहले तीन हाथी गुजरे थे.. नाथ ने तंजिया लहजे में कहा, "2022 से हाथी यहां घूम रहे हैं और हमारे साथ बिहू मनाने के लिए अब तक यहीं रुके हुए हैं. "
नाथ ने बताया कि लेकिन "रंगमती के बुजुर्ग से यदि आप पूछें तो वे कहेंगे कि उन्होंने पहले कभी हाथी को यहां आते नहीं देखा." लोअर असम डिवीजन में कामरूप जिले के दक्षिणी भाग रंगमती के निवासी हाथियों के आने से खुश नहीं हैं क्योंकि हाथी उन्हें बहुत अधिक आर्थिक नुकसान पहुंचाते हैं. लेकिन ऐसा लगता है कि उनके पास इलाके में जंगली हाथियों की मौजूदगी को कम करने का कोई तरीका नहीं है बावजूद इसके कि हाल के महीनों में उनकी आवाजाही और बढ़ गई है.
पिछले कुछ सालों में हाथी असम-मेघालय सीमा में स्थित रानी क्षेत्र के नजदीकी इलाकों से रंगमती और बिजयनगर एवं मिर्जा शहर आने लगे है. ये इलाके जिले के महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र हैं. गर्भंगा वन्यजीव अभयारण्य, जिसे पहले गर्भंगा और रानी रिजर्व वन कहा जाता था, से जुड़ा हुआ है रानी. बताते हैं कि फरवरी 2022 तक यह लगभग 200 हाथियों का घर था.
स्थानीय लोगों के अनुसार हाथी खासतौर पर कटाई के मौसम में धान के खेतों से होते हुए उत्तर-पश्चिम की ओर यात्रा करते हैं. रानी लौटने से पहले वे उन इलाकों में धान खाते हैं. हालांकि, दो साल पहले कुछ हाथी मिर्जा के बगल में एक छोटे से आरक्षित जंगल, जिसे मालियाता वन या स्थानीय तौर पर मिर्जा पहाड़ी कहा जाता है, में ठहर गए और वापस नहीं लौटे. स्थानीय लोगों के मुताबिक इनकी संख्या 3 से बढ़ कर 7 या 11 हो गई है, इनमें एक शावक भी है.
रंगमती के पंकज लोचन गोस्वामी ने मुझे बताया, “दो-तीन दिन पहले एक प्रमुख जंक्शन मिर्जा तिनिआली में वे भीड़ भरे बाजार के बीच से गुजरे. हाथियों के झुंड ने अब इसे अपना इलाका बना लिया है. वे दीवारें तोड़ कर इधर-उधर चले जाते हैं. दीवारें उनके लिए दीवारें नहीं हैं. मामूली अड़न भर हैं.” कुछ लोग दीवारों की मरम्मत नहीं करते क्योंकि वे जानते हैं कि हाथी आएंगे और फिर से तोड़ देंगे.
कमेंट