वन क्षेत्र के आंकड़ों पर देश को गुमराह कर रही केंद्र सरकार

सौरभ सांवत/विकिमीडिया कॉमन्स
सौरभ सांवत/विकिमीडिया कॉमन्स

26 जुलाई को राज्यसभा में बीजेपी सांसद राकेश सिन्हा ने वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव से वनभूमि से जुड़े हुए पांच महत्वपूर्ण सवाल पूछे. जिनके जवाब में नव नियुक्त मंत्री ने भ्रामक और तथ्यहीन जवाब प्रस्तुत किए.

इन जवाबों को भ्रामक कहने के पीछे कुछ बुनियादी स्थापनाओं को समझना जरूरी है. देश में वनों के क्षेत्रफल को लेकर हमेशा से विवाद रहा है. इसकी वजह वन क्षेत्रों का विवादित इतिहास रहा है. ये आजादी से पहले से ही चले आ रहे हैं.इन विवादों के पीछे न केवल औपनिवेशिक विरासत है बल्कि आजादी के बाद हिंदुस्तान में वनों को लेकर कोई स्वतंत्र और संवेदनशील नीति न अपनाया जाना भी रहा.

हालांकि बीजेपी सांसद राकेश सिन्हा ने अपने सवालों के माध्यम से उन विमर्शों को पुन: सतह पर ला दिया है जो 2006 में वन अधिकार कानून वजूद में आने के बाद से इतिहास की कंदराओं में दफन हो गए थे. राकेश सिन्हा ने कुल पांच सवाल पूछे थे जिनमें,(क) वन को किस प्रकार से परिभाषित किया जाता है? और उसका कोई विनिदृष्ट मानदंड है?(ख) देश में राज्यवार कुल वन क्षेत्र तथा बंजर भूमि क्षेत्र कितना-कितना है?(ग) भारतीय वन अधिनियम,1927 की धारा धारा-4 के अधीन भूमि का राज्यवार क्षेत्रफल कितना है?(घ) वन भूमि का कितना क्षेत्रफल विवाद ग्रस्त है? और उन पर व्यक्तियों या गांवों द्वारा दावा किया जा रहा है? और ड.) ऐसे विवाद का निपटारा करने हेतु क्या कदम उठाए गए हैं?

गौरतलब है कि ये सभी सवाल उस वक्त उठाए जा रहे हैं जब देश में वनधिकार कानून को लागू हुए 13 साल बीत चुके हैं. संविधान के 73वें व 74वें संशोधन को 30 साल होने जा रहे हैं.5वींअनुसूचीक्षेत्रों में लागू पेसा कानून इस वर्ष दिसंबर में 25 साल पूरे करने जा रहा है. संविधान की 9वींअनुसूची, 5वींअनुसूची और 11वीं अनुसूची 1950 से देश में लागू हैं. संविधान के अभिन्न हिस्सों, और संसद द्वारा पारित कानूनों का जिक्र यहां इसलिए करना प्रासंगिक है क्योंकि इन तमाम सांवैधानिक व कानूनी प्रावधानों का सीधा ताल्लुक राकेश सिन्हा द्वारा पूछे गए सवालों से है.ये समस्त प्रावधान किसी ने किसी रूप में वन क्षेत्रों में बसे स्थानीय समुदायों के सामुदायिक अधिकारों को मान्यता देते हैं. विशेष रूप से वन अधिकार कानून, 2006 का मूल उद्देश्य ही स्थानीय समुदायों को वन क्षेत्रों में उनके ऐतिहासिक अधिकारों को मान्यता देना है.

राकेश सिन्हा के सवालों के जवाब में भूपेंद्र यादव ने जो जवाब देश की संसद को दिए हैं उनमें सबसे उल्लेखनीय बात है कि कहीं भी वन अधिकार या पेसा कानून का जिक्र नहीं है. कम से कम राकेश सिन्हा के अंतिम सवाल का जवाब बिना वनाधिकार कानून का जिक्र किए पूरा नहीं हो सकता था. इसकी वजह यह है कि इस कानून में वन भूमि को वजफ्ता परिभाषित किया गया है. इस कानून के अनुसार,“वन भूमि से किसी वन क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली किसी प्रकार की भूमि अभिप्रेत है और उसके अंतर्गत वर्गीकृत वन, असीमांकित विद्यमान वन या समझे गए वन, संरक्षित वन, आरक्षित वन, अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान भी हैं”.

सत्यम श्रीवास्तव भारत सरकार के आदिवासी मंत्रालय के मामलों द्वारा गठित हैबिटेट राइट्स व सामुदायिक अधिकारों से संबंधित समितियों में नामित विषय विशेषज्ञ के तौर पर सदस्य हैं.

Keywords: Deforestation forests Ministry of Environment, Forest and Climate Change environmental damage Rakesh Sinha
कमेंट