झारखंड के मंडल बांध से नष्ट होगा पर्यावरण, आजीविका और 3.4 लाख पेड़

19 फ़रवरी 2020
सुष्मिता
सुष्मिता

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 5 जनवरी 2019 को कुटकु मंडल बांध परियोजना की आधारशिला रखने झारखंड पहुंचे. उसी दिन हजारों ग्रामीणों ने परियोजना के विरोध में परियोजना स्थल से उस जगह तक मार्च किया जहां मोदी के विमान को उतरना था. स्थानीय लोग बांध के कारण होने वाले अपने संभावित विस्थापन का विरोध कर रहे थे और उचित पुनर्वास, मुआवजे और नौकरियों की मांग कर रहे थे. हवाई पट्टी पर पहुंचने से पहले ही उनकी रैली को रोक दिया गया.

1970 के दशक की शुरुआत में प्रस्तावित कुटकु मंडल बांध परियोजना, जिसे उत्तरी कोयल बांध परियोजना भी कहा जाता है, पलामू टाइगर रिजर्व (पीटीआर) के भीतर आती है.  यह इलाका झारखंड के लातेहार और पलामू जिलों तक फैला हुआ है. 1990 के दशक से स्थानीय विरोध के बाद परियोजना का काम रोक दिया गया. 2015 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने परियोजना के लिए वन, पर्यावरण और वन्यजीव से संबंधित मंजूरियों को "तेज" करने के लिए एक टास्क फोर्स के गठन की घोषणा की.

पीटीआर बेतला राष्ट्रीय उद्यान का हिस्सा है, जिसे 1947 में भारतीय वन कानून के तहत संरक्षित वन घोषित किया गया था. बेतला को 1973 में वन्यजीव अभयारण्य और 1986 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था. यह भारत के शुरुआती राष्ट्रीय उद्यानों में से एक है. कालांतर में यह भारत में बाघों की यथोचित आबादी को बनाए रखने की सरकारी पहल ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ के तहत बाघ का आरक्षित क्षेत्र बन गया. बाघों का निवास स्थल होने के अलावा, इस रिजर्व में जंगली सूअर, हाथी, काकड़, सुनहरे गीदड़ और भालू भी रहते हैं. यह खेरवारों, चेरो, उरांव, मुंडा, बिरजिया, कोरवा जैसे आदिवासी समुदायों का भी घर है.

लेकिन जब मंडल बांध चालू हो जाएगा, तो यह पीटीआर के कुछ हिस्सों को जलमग्न कर देगा. नवंबर 2018 में, पर्यावरण मंत्रालय ने बांध के लिए आवश्यक अंतिम मंजूरी और पर्यावरणीय मंजूरी दी, जिससे झारखंड सरकार को परियोजना के लिए 1000 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि को नष्ट करने की अनुमति मिल गई. यह भूमि बांध के डूब क्षेत्र में आती है. पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के दस्तावेज यह भी बताते हैं कि इस परियोजना के लिए लगभग 3.4 लाख पेड़ों को गिराया जाना है. पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि बांध के कारण क्षेत्र के पर्यावरण, वन्यजीव और पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा है. यह क्षेत्र में रहने वाले सैकड़ों आदिवासियों को भी विस्थापित करेगा. सरकार नियोजित साइट स्पेसिफिक वाइल्डलाइफ मैनेजमेंट प्लान (स्थल विशेष वन्यजीव प्रबंधन योजना) - एक दस्तावेज जो आसपास की जैवविविधता, वन्य जीवन और क्षेत्र के लोगों पर बांध के प्रभाव का आकलन करती है - के आंकड़ों के अनुसार उत्तर कोयल नदी के पानी से कम से कम 8 गांव जलमग्न हो जाएंगे.

1970 के दशक में जब बांध बनाया जा रहा था, तो बहुतों को इस बात की जानकारी नहीं थी कि बड़ी परियोजनाएं पर्यावरण पर कैसा प्रलय लाती हैं. उनको लगता था कि बांध लोगों के हित में है. लेकिन अनुभव ने सिखाया है कि बांध कैसी-कैसी विपदाएं साथ लाते हैं.

सुष्मिता एक स्वतंत्र शोधकर्ता हैं और वर्तमान में आईआईएसटी, इरास्मस विश्वविद्यालय के साथ काम कर रही हैं. वह वन अधिकारों, कृषि अधिकारों और लैंगिक न्याय के मुद्दों पर काम करती हैं. उनसे @sushmitav1 पर संपर्क किया जा सकता है.

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