6 मई 2020 को आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में एलजी पॉलिमर की एक फैक्ट्री में गैस रिसाव से 13 लोगों की मौत हो गई और 1000 से अधिक लोग घायल हो गए. कई मीडिया रिपोर्टों ने इसे 1984 में भोपाल रासायनिक आपदा के बाद भारत का सबसे बुरा गैस रिसाव बताया. कंपनी ने 1997 में कारखाने का अधिग्रहण किया लेकिन रिसाव के समय तक उसे पर्यावरणीय मंजूरी नहीं मिली थी. केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और राज्य के पर्यावरण विभाग के दस्तावेज बताते हैं कि एलजी पॉलिमर अपने बारे में विरोधाभासी जानकारी देकर और सामान्य कागजी कार्रवाई में देर कर कारखाने के लिए पर्यावरणीय मंजूरी को लगातार टालती रही. आंध्र प्रदेश सरकार के साथ-साथ पर्यावरण मंत्रालय की राज्य और केंद्रीय स्तर की एजेंसियों के वरिष्ठ अधिकारियों को इसकी जानकारी थी लेकिन उन्होंने सवाल नहीं उठाए. आखिरकार, पर्यावरण मंत्रालय में मंजूरी आवेदन को रोक दिया गया जहां यह दुर्घटना के तुरंत बाद से गायब है.
एलजी पॉलिमर एक दक्षिण कोरियाई रासायनिक-निर्माण कंपनी की भारतीय सहायक कंपनी है जिसे एलजी केम कहा जाता है. विशाखापट्टनम रिसाव के कुछ दिनों के भीतर मीडिया ने बताया कि एलजी पॉलिमर के एक अधिकारी ने 2019 में दायर एक हलफनामे में स्वीकार किया था कि कारखाना पर्यावरणीय मंजूरी के बिना चल रहा है. यह पर्यावरण मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध है. जुलाई 2020 में आंध्र प्रदेश पुलिस ने कारखाने के प्रमुख और आंध्र प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दो कनिष्ठ कर्मचारियों को बिना पर्यावरणीय मंजूरी के संयंत्र चलाने के आरोप में गिरफ्तार किया था. इस प्रकरण की जांच जारी है. घटना का मीडिया कवरेज काफी हद तक यहां खत्म हो जाता है लेकिन कारवां के पास जो दस्तावेज हैं उनसे पता चलता है कि कंपनी ने पर्यावरण संबंधी मंजूरी को टालने या चकमा देने के लिए कई बार अधिकारियों को विरोधाभासी जानकारी दी थी और अक्सर राज्य और केंद्र सरकार के अधिकारियों को कोई आपत्ति भी नहीं होती थी.
1986 का पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम औद्योगिक नियमन में कानूनी खामियों को दूर करने के लिए भोपाल गैस त्रासदी के बाद पारित कई कानूनों में से एक था. 1994 में और बाद में 2006 में, केंद्र सरकार ने ईपीए के तहत पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना जारी की, जिससे पहले पर्यावरणीय मंजूरी लेना नए और मौजूदा उद्योगों लिए अनिवार्य हो गया. निकासी प्रक्रिया के लिए कंपनी को एक प्रस्तावित परियोजना के पर्यावरणीय प्रभाव पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने, सार्वजनिक सुनवाई करने और विशेषज्ञों के सरकार द्वारा नियुक्त पैनल द्वारा अपना मूल्यांकन करने की आवश्यकता होती है. इस प्रक्रिया में जोखिम आकलन करना और आपदा प्रबंधन योजना तैयार करना भी शामिल है.
1997 में एलजी पॉलिमर ने विशाखापट्टनम संयंत्र शुरू किया. उस समय संयंत्र के पास पर्यावरणीय मंजूरी नहीं थी. 2019 के हलफनामे के अनुसार, सन 2000 के सालों में एलजी पॉलिमर ने लगभग एक दर्जन बार विस्तार किया. 2017 तक संयंत्र ने अपनी उत्पादन क्षमता को लगभग दोगुना कर दिया था. प्रत्येक विस्तारीकरण के लिए एक पर्यावरण मंजूरी की आवश्यकता होती है लेकिन हलफनामे के अनुसार, कंपनी को दिसंबर 2017 के अंत तक एक भी मंजूरी नहीं मिली थी. यह इस तथ्य के बावजूद था कि विनिर्माण प्रक्रिया में स्टाइरीन नाम के खतरनाक रसायन का इस्तेमाल भी होता है, जो सामान्य तापमान में विस्फोटक हो सकता है. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की प्रदूषणकारी उद्योगों की "रेड" श्रेणी के अनुसार इस रसायन का उपयोग करने वाले कारखाने उच्चतम श्रेणी में आते हैं. एलजी पॉलिमर अपने बहुलक संस्करणों, पॉलीस्टाइन या पीएस और विस्तार योग्य पॉलीस्टाइनिन या ईपीएस में स्टाइरीन को परिवर्तित करता है. ये कुछ सबसे अधिक उपयोग किए जाने वाले पॉलिमर हैं और पैकेजिंग इलेक्ट्रॉनिक्स और स्टायरोफोम कप में उपयोग किए जाते हैं.
कंपनी की पर्यावरण मंजूरी प्रक्रिया से जुड़े आंध्र प्रदेश सरकार के एक शीर्ष अधिकारी ने मुझे बताया कि राज्य सरकार को 2017 से पहले पता था कि कारखाने को पर्यावरणीय मंजूरी की जरूरत है. अधिकारी अपना नाम नहीं बताना चाहते थे क्योंकि उन्हें रिसाव के बारे में चल रही जांच में फंसाए जाने की आशंका है. अधिकारी के अनुसार, कंपनी ने तर्क दिया कि उसे मंजूरी की आवश्यकता नहीं थी. "कंपनी ने दावा किया कि यह एक सरल पॉलीमराइजेशन प्रक्रिया है इसलिए निकासी आवश्यक नहीं थी." अधिकारी ने मुझे बताया कि एक बार, एक नियमित निरीक्षण के दौरान केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों ने कारखाने का दौरा किया था लेकिन निकासी की कमी के बारे में कोई सवाल नहीं उठाया. उन्होंने सुझाव दिया कि राज्य सरकार पर्यावरण मंजूरी की कमी से असंतुष्ट थी क्योंकि सीपीसीबी ने भी इस मुद्दे को नहीं उठाया था.
कंपनी ने अंत में दिसंबर 2017 में पर्यावरणीय मंजूरी के लिए एक आवेदन किया लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि उन्हें ऐसा करने के लिए किसने प्रेरित किया था क्योंकि कंपनी 20 सालों तक कानूनी मंजूरी की अनदेखी करती रही थी. कंपनी के आवेदन फॉर्म से पता चलता है कि एलजी पॉलिमर एक बार में ही अपनी उत्पादन क्षमता पीएस और ईपीएस को दोगुना करना चाहती थी. लेकिन आवेदन मंजूरी जल्द ही देरी और तबादलों में फंस गई.
ईआईए अधिसूचना उद्योगों को उनके संभावित पर्यावरणीय प्रभाव के आधार पर दो श्रेणियों में वर्गीकृत करती है. एलजी पॉलिमर जैसे पेट्रोकेमिकल आधारित कारखाने, यदि वे स्वतंत्र इकाइयां हैं और केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा मूल्यांकन किया जाना है, तो उच्च श्रेणी "ए" के अंतर्गत आते हैं . केंद्रीय मंत्रालय में श्रेणी "ए" परियोजनाओं का मूल्यांकन कोयला खनन, गैर-कोयला खनन और नदी घाटी परियोजनाएं जैसे क्षेत्र विशिष्ट से सदस्यों की विशेषज्ञ समितियों द्वारा किया जाता है. एलजी पॉलिमर जैसी परियोजनाओं का मूल्यांकन "औद्योगिक परियोजना-2" समिति द्वारा किया जाना चाहिए जो पेट्रोकेमिकल उद्योगों से संबंधित है.
औद्योगिक क्षेत्र और औद्योगिक संपदा के अंदर के वर्ग "बी" श्रेणी के अंतर्गत आते हैं और राज्य स्तरीय पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन प्राधिकरण (एसईआईएए) द्वारा संसाधित होते हैं जो केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत भी आते हैं. राज्य स्तर पर केवल एक विशेषज्ञ समिति है जो हर आवेदन को देखती है और इसमें विषय विशेषज्ञ नहीं हो सकते हैं. "हालांकि, दोनों श्रेणियों के बीच विभाजन के बारे में ईआईए अधिसूचना स्पष्ट है, कंपनियां अक्सर राज्य में आवेदन करने का विकल्प चुनती हैं या यदि अनुकूल हो तो केंद्र के समक्ष आवेदन करती हैं,” एसईआईएए का उल्लेख करते हुए ऋत्विक दत्ता ने मुझे बताया. दत्ता पर्यावरण संबंधी वकील हैं और वन और पर्यावरण के लिए दिल्ली स्थित कानूनी पहल के संस्थापक हैं.
अपने आवेदन पत्र के अनुसार, एलजी पॉलिमर ने शुरू में "ए" परियोजना के रूप में मंत्रालय को पर्यावरणीय मंजूरी के लिए आवेदन किया था. ऐसा इसलिए था क्योंकि यह 200 एकड़ में फैला कारखाना है. लेकिन चार महीने बाद, अप्रैल 2018 में कंपनी ने मंत्रालय को अपना आवेदन वापस ले लिया. यह स्पष्ट नहीं है कि ऐसा क्यों किया. उसी दिन, उसने आंध्र प्रदेश एसईआईएए में यही आवेदन दायर किया. इस बार इसने खुद को श्रेणी "बी" घोषित कर दिया. अपने आवेदन में इसने "औद्योगिक क्षेत्र" शब्द को अपना डाक पता बताया.
यह आवेदन तथ्यों के साथ खिलवाड़ करता प्रतीत होता है. आंध्र प्रदेश सरकार की राज्य में औद्योगिक क्षेत्रों की सूची में वह क्षेत्र शामिल नहीं है जिसमें एलजी पॉलिमर संचालित होता है. 65 वर्षीय नागेश्वर आदिर्थी जो संयंत्र से एक किलोमीटर की दूरी पर रहते हैं और वहीं पले-बढ़े हैं, ने बताया, "यहां कोई औद्योगिक क्षेत्र नहीं है.” उन्होंने बताया कि 1961 में जब संयंत्र स्थापित किया गया था तो "वहां कुछ नहीं था" बस कुछ घर थे. "अब भी यहां एलजी पॉलिमर के अलावा कोई कारखाना नहीं है."
लेकिन आंध्र प्रदेश एसईआईएए ने श्रेणी "बी" परियोजना के रूप में इसकी पात्रता के बारे में सवाल नहीं उठाया. इसने अप्रैल 2018 में आवेदन स्वीकार कर लिया और इसे आगे की प्रक्रिया के आगे बढ़ा दिया. नाम न प्रकाशित करने का अनुरोध करने वाले अधिकारी के अनुसार, कंपनी ने एसईआईएए को बताया कि 1950 के दशक में राज्य सरकार ने एक फैक्टरी अधिसूचना जारी की थी, जिसमें कारखाने को औद्योगिक क्षेत्र घोषित किया गया था. लेकिन कंपनी नोटिफिकेशन नहीं दे पाई. मैंने इस अधिसूचना को पाने की कोशिश की लेकिन नहीं मिली. कंपनी ने उन सवालों का भी जवाब नहीं दिया जो मैंने अधिसूचना के संबंध में उन्हें ईमेल किए थे.
मार्च 2017 में पर्यावरण मंत्रालय ने बिना पर्यावरण मंजूरी के संचालित होने वाले उद्योगों के लिए एक माफी योजना शुरू की. मंत्रालय ने ऐसे "उल्लंघन के मामलों” में कंपनियों को “पूर्व” मंजूरी देने की पेशकश की यदि वे कानून के तहत दंड का भुगतान करने को तैयार हों तो और ईआईए अधिसूचना के तहत पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन प्रक्रिया के लिए आवेदन किया है. "अभी भी ईपीए के अनुपालन के बिना भारत में कई उद्योग चल रहे हैं," व्यावसायिक और पर्यावरण पीड़ितों के अधिकारों के लिए एशियाई नेटवर्क के नेपाल स्थित समन्वयक राम चरित्र साह ने मुझे बताया. “इसने श्रमिकों और इन उद्योगों के आसपास रहने वाले लोगों की औद्योगिक सुरक्षा से समझौता किया. इसलिए सरकार द्वारा पर्यावरण अनुपालन के तहत कंपनियों को लाने के लिए एमनेस्टी योजना एक अच्छा कदम था. इसने यह बताया कि कंपनियों और सरकार दोनों की तरफ से लापरवाही हुई है.”
आंध्र प्रदेश एसईआईएए ने फिर एक गलती की. उसने पर्यावरण मंजूरी के आवेदन को रोक दिया. जब एलजी पॉलिमर ने दिसंबर 2017 में पर्यावरण मंजूरी के लिए आवेदन किया, तो उसने कहा कि यह "उल्लंघन" का मामला नहीं है. मंत्रालय ने अपने निकासी आवेदन पत्र में एक "हां / नहीं" प्रश्न जोड़ा था, जिसमें पूछा गया था कि क्या आवेदन माफी योजना के तहत है. हालांकि, अप्रैल 2018 में आंध्र प्रदेश एसईआईएए को दिए गए अपने आवेदन में, कंपनी ने "हां," में निशान लगाया था. आंध्र प्रदेश एसईआईएए ने अगस्त 2018 में कंपनी को पत्र लिखकर यह कहते हुए एक हलफनामा दाखिल करने को कहा कि उसने पर्यावरणीय मंजूरी नहीं ली है और इसके लिए परिणाम भुगतने को तैयार है. यह असामान्य था क्योंकि एमनेस्टी योजना के लिए पर्यावरण मंत्रालय के नियमों को इस तरह के हलफनामे की आवश्यकता नहीं थी. राज्य सरकार ने हलफनामा मांगने के लिए 2017 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दिया था लेकिन यह आदेश केवल खनन परियोजनाओं पर लागू होता है.
हलफनामा दाखिल करने में कंपनी को नौ महीने लगे. यह वह हलफनामा है जो मई 2019 में दायर किया गया था, जिसके बाद गैस रिसाव की सूचना मिली थी. हलफनामा दाखिल करने में देरी ने पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन और आपदा प्रबंधन अध्ययनों रोक दिया. हलफनामा पेश करने के बाद, आंध्र प्रदेश एसईआईएए ने अंततः राज्य विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति, एसईआईएए के विशेषज्ञों के एक पैनल को आवेदन भेजा, जो ईआईए को तैयार करने के आदेश जारी करता है. समिति ने जून 2019 में अपनी मासिक बैठक में एलजी पॉलिमर का आवेदन स्वीकार किया. बैठक के मिनट बताते हैं कि इसमें हैदराबाद की एक कंपनी और टीम लैब्स के प्रतिनिधि शामिल थे. यह स्पष्ट नहीं है कि मूल्यांकन समिति ने टीम लैब्स को एलजी पॉलिमर के साथ बैठकों में जाने की अनुमति दी क्योंकि कंपनी पेट्रोकेमिकल परियोजनाओं के लिए सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त सलाहकारों की सूची में नहीं है. यह ईआईए नोटिफिकेशन का उल्लंघन है.
बैठक के मिनट से संकेत मिलता है कि समिति द्वारा आवेदन पर चर्चा करने से पहले एलजी पॉलीमर्स जिस श्रेणी के लिए फिर से आवेदन कर रहा था उसमें पलटी मार गया. कंपनी ने समिति को बताया कि उसका आवेदन वास्तव में श्रेणी "ए" के लिए पर्यावरण मंत्रालय के पास दायर किया जाना चाहिए था. इसने समिति से प्रस्ताव को मंत्रालय को हस्तांतरित करने का अनुरोध किया. बैठक के दौरान, एलजी पॉलिमर के प्रतिनिधि ने यह नहीं बताया कि एक साल पहले ही उसने केंद्र से अपना आवेदन वापस ले लिया था. बैठक के मिनट से पता चलता है कि समिति ने भी मामले के बारे में कोई सवाल नहीं उठाया और स्थानांतरण को मंजूरी दे दी.
उस समय के समिति के चेयरपर्सन वीएसआरके प्रसाद ने मुझे फोन पर बताया कि एलजी पॉलिमर स्पष्ट रूप से श्रेणी ए के तहत आती है, बी के तहत नहीं. ''वैसे भी हमने इसे पर्यावरण मंत्रालय को हस्तांतरित करना होता है.'' प्रसाद विशाखापट्टनम के पास ही एक इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रिंसिपल हैं. उन्होंने कहा कि पैनल के आवेदन भेजने के लिए आंध्र प्रदेश एसईआईएए जिम्मेदार था और उसे इस बात की जानकारी नहीं थी कि इसने केंद्रीय मंत्रालय को स्वयं आवेदन क्यों हस्तांतरित नहीं किया.
जुलाई 2019 में आंध्र प्रदेश एसईआईएए ने आवेदन के हस्तांतरण को मंजूरी दी. लेकिन उसके बाद इसका कोई सुराग नहीं मिलता है. पर्यावरण मंत्रालय के पोर्टल पर इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है. दत्ता ने मुझे बताया, "वेबसाइट हर दिन अपडेट होती है और एलजी पॉलिमर के रिकॉर्ड को वेबसाइट पर दिखाई देना चाहिए. यह इसलिए भी असामान्य है क्योंकि आंध्र प्रदेश एसईआईएए पर्यावरण मंत्रालय का राज्य स्तरीय निकाय है." एमनेस्टी या माफी योजना के लिए मंत्रालय के नियमों के तहत मंत्रालय को उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई करने की भी आवश्यकता थी लेकिन एलजी पॉलिमर के खिलाफ ऐसी कोई कार्रवाई नहीं हुई है.
गैस रिसाव के बाद 19 मई 2020 को मंत्रालय की वेबसाइट पर विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति की बैठक के एजेंडे में आवेदन दिखाई दिया. परियोजना की फाइल संख्या से पता चलता है कि इसे 2020 में शुरू किया गया था. प्रत्येक पर्यावरण मंजूरी आवेदन को एक फाइल संख्या और एक प्रस्ताव संख्या दी जाती है. प्रत्येक परियोजना के लिए परिवेश पोर्टल में एक प्रविष्टि बनाई जाती है, जो आवेदन पत्र और संलग्नक में भरी गई सभी सूचनाओं का खुलासा करती है. एलजी पॉलिमर एप्लिकेशन के लिए एक फाइल नंबर होता लेकिन 12 जनवरी 2021 तक परिवेश पोर्टल में कोई रिकॉर्ड नहीं है. पोर्टल पर एलजी पॉलीमर्स की तलाश उसी आवेदन की प्रविष्टि तक ले जाती है जिसे कंपनी ने 2018 में वापस ले लिया था.
केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय में एक पूर्व सचिव ईएएस शर्मा ने मुझे बताया कि एलजी पॉलिमर के आवेदन पर न तो केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और न ही आंध्र प्रदेश की एजेंसियों ने "ध्यान" दिया. शर्मा ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को एक याचिका दायर की है जिसमें गैस रिसाव के पीड़ितों की ओर से एलजी पॉलिमर के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग की गई है. शर्मा ने कहा, "स्पष्ट रुख नहीं अपनाने के नतीजतन यह भीषण दुर्घटना हुई है."
एशियन नेटवर्क फॉर ऑक्यूपेशनल एंड एनवायरनमेंटल विक्टिम्स के समन्वयक चारित्र साह ने मुझे बताया कि एलजी पॉलिमर दुर्घटना से पता चलता है कि कैसे कमजोर नियामक एजेंसियों के कारण पर्यावरणीय खतरा पैदा होता है. एएनआरओवीई 14 एशियाई देशों में मौजूद एक गठबंधन है. साह ने कहा, "हमारे आंकड़ों से पता चलता है कि भारत अन्य दक्षिण एशियाई देशों के ही समान है. फिर भी यह आश्चर्यजनक हौ कि एलजी पॉलिमर जैसी एक बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी जांच से बच गई. "यह एक छोटी कंपनी नहीं है जो विनियमन से बच सकती है. यह एक वैश्विक कंपनी है. यह कोरिया की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है. यह उस देश में पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के अनुपालन के बिना कैसे चल रही थी जहां अतीत में बहुत बड़ी दुर्घटनाएं हुई हैं? यह न केवल कंपनी की बल्कि राज्य और केंद्र सरकारों की भी लापरवाही को दिखाता है.”
यह पहली बार नहीं है जब एलजी पॉलिमर ने आंध्र प्रदेश में पर्यावरण नियामकों के साथ चालाकी की है. अप्रैल 2017 में, कंपनी ने आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा प्लास्टिक उत्पादन इकाई के लिए पर्यावरणीय मंजूरी की मांग का विरोध किया, जिसे वह अपने विशाखापट्टनम परिसर में शुरू करना चाहती थी. एपीपीसीबी की अप्रैल 2017 की बैठक के मिनट के अनुसार, बोर्ड ने कंपनी से पर्यावरण मंत्रालय से स्पष्टीकरण मांगा था कि क्या इकाई को पर्यावरणीय मंजूरी की आवश्यकता है. लेकिन कंपनी इस दृष्टिकोण से असहमत थी और अपने प्रतिनिधियों को एपीपीसीबी की बैठकों में यह तर्क देने के लिए भेजा था कि ऐसी प्लास्टिक इकाइयों को पर्यावरणीय मंजूरी से छूट दी गई है. इसने 2006 ईआईए अधिसूचना में 2014 के संशोधन का हवाला दिया, जिसे नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार के सत्ता में आने के एक महीने बाद जारी किया था. अन्य बातों के साथ, संशोधन ने पर्यावरणीय मंजूरी की आवश्यकता से प्लास्टिक दाने के उत्पादों को छूट दी थी.
आंध्र प्रदेश एसईआईएए ने कहा कि यह सुनिश्चित नहीं था कि एलजी पॉलिमर पर यह छूट लागू होती है क्योंकि उसने कुछ अन्य कच्चे माल का उपयोग करने का प्रस्ताव किया था. बोर्ड को आश्वस्त नहीं किया गया था और उसने पर्यावरण मंत्रालय से स्पष्टीकरण की मांग दोहराई थी. 27 जुलाई 2017 को एपीपीसीबी द्वारा आयोजित एक बैठक के मिनट के अनुसार, कंपनी ने कभी भी स्पष्टीकरण नहीं दिया. उस महीने कंपनी के प्रतिनिधी एपीपीसीबी की एक अन्य बैठक में मौजूद रहे और कहा कि वे दिल्ली में पर्यावरण मंत्रालय में "संबंधित प्राधिकरण" से मिले थे और उस व्यक्ति, जिसका उन्होंने नाम नहीं लिया, ने कहा है कि पर्यावरण मंजूरी आवश्यक नहीं है. मिनट में भी एलजी पॉलिमर के प्रतिनिधियों के नाम निर्दिष्ट नहीं हैं. बैठक के मिनट बताते हैं कि कंपनी के प्रतिनिधियों ने दावा किया कि वे मंत्रालय में "बहुत ज्यादा काम होने" के कारण लिखित रूप में इसे प्राप्त करने का प्रबंधन नहीं कर सके. उन्होंने कहा कि लिखित स्पष्टीकरण प्राप्त करने से परियोजना में एक "अयोग्य देरी" हो सकती है, जिसे मूल एलजी समूह नौ महीने में शुरू करना चाहता था. इस बार, बोर्ड ने भरोसा किया और स्पष्टीकरण की अपनी मांग वापस ले ली. एलजी पॉलिमर को अपनी इकाई शुरू करने की अनुमति दे दी गई.
शर्मा ने मुझे बताया कि यह निर्णय हैरान करने वाला है और इसमें कोई वैध कारण भी नहीं दिखता. "जब कंपनी कहती है कि पर्यावरण मंत्रालय आसानी से स्पष्टीकरण नहीं दे रहा, तो बोर्ड खुद मंत्रालय से पूछ सकता था. और अगर बोर्ड छूट पर कंपनी से सहमत था, तो उसे इसके कारणों को दर्ज करना चाहिए था. तथ्य यह है कि एपीपीसीबी ने ऐसा नहीं किया, जिससे अपरिहार्य निष्कर्ष निकाला जा सके कि इस पर कुछ बाहरी दबाव था."
मैंने एलजी पॉलिमर, आंध्र प्रदेश एसईआईएए और पर्यावरण मंत्रालय को एक प्रश्नावली ईमेल की लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. एपीपीसीबी के चेयरपर्सन बीएसएस प्रसाद, जो 2018 में आंध्र प्रदेश एसईआईएए बैठकों में शामिल हुए थे ने मेरे सवालों का जवाब देने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि जांच चल रही है और मामला अदालत में है.