ज्वार-भाटा

डूबते सुंदरवन में मौसुनी द्वीपवासियों के जीवन का संघर्ष

लंबे समय तक बाढ़ वाले क्षेत्र में डूबे रहने के बाद पेड़ की जड़ें दिखाई देने लगती हैं, जिसके परिणामस्वरूप जमीन की मिट्टी का क्षरण होता है.
उच्च ज्वार के दौरान अलग दिखाई देता एक जलमग्न पेड़.
मौसुनी द्वीप पर छप्पर की छतें नीची रखी जाती हैं, ताकि तेज चक्रवाती हवाएं उसे उड़ाकर न ले जाएं.
मौसुनी द्वीप बंगाल की खाड़ी के किनारे स्थित सीमावर्ती द्वीपों में से एक है और अक्सर समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण पारिस्थितिक आपदाओं से घिरा रहता है.
गिरी हुई टहनियों और शाखाओं का उपयोग मिट्टी से बनी झोंपड़ी की दीवारों की बाड़ लगाने के लिए किया जाता है.
सुंदरवन के लोगों के लिए जीवन अनिवार्य रूप से समुद्र से जुड़ा हुआ है, मछली पकड़ना उनकी आजीविका का मुख्य स्रोत है.
मौसुनी द्वीप में बलियारा के अत्यंत संवेदनशील तट पर ज्वार की लहरों द्वारा नष्ट किए गए निर्माण स्थलों को देखता एक बूढ़ा व्यक्ति.
मौसुनी द्वीप में अपने पिता से बाल कटवाते हुए एक लड़का.
एक दैनिक मजदूर घर में उपयोग किए जाने वाले जल की तलाश में अपने खेत में गहरा नलकूप लगाने के लिए कड़ी मेहनत करता है.
बलियारा में समुद्र तट लकड़ी के तख्तों और बालू की बोरियों से भरा हुआ है ताकि तटीय भूमि में खारे पानी को आने से रोका जा सके.
बागडंगा घाट पर लकड़ी का बांध जो पश्चिम बंगाल में मौसुनी द्वीप को निकटतम गांव नामखाना से जोड़ता है.
पानी की बोतल के साथ मिट्टी के तटबंधों के पास से गुजरती एक महिला. खारे पानी की बाढ़ की प्रमुख समस्याओं में से एक यह है कि पीने योग्य पानी की कमी हो जाती है.
मौसुनी में ज्यादातर फूस या मिट्टी की खपरैल वाली छतों से बनी मिट्टी की झोपड़ियां हैं, जो चक्रवाती हवाओं और ज्वार की लहरों के लिए बेहद नाजुक हैं.
वर्षों से बाढ़ को रोकने के लिए प्रभावी तटबंध बनाने के बार-बार प्रयास ज्वार की लहरों की तीव्रता और पानी के बढ़ते स्तर के कारण विफल रहे हैं.
शाम के समय एक नौका दक्षिण दुर्गापुर फेरी घाट से निकलकर मौसुनी द्वीप की ओर बढ़ती हुई.

लकड़ी का एक छोटी सी जेटी पानी के ऊपर तैर रही थी, जो आखिरकार आंशिक रूप से डूबी हुई थी. लैंडिंग के लिए बनाई गई कामचलाऊ मचान के ठीक सामने लोग लकड़ी की देशी नाव के किनारे लगने का इंतजार करते हैं. मौसुनी द्वीपवासियों के लिए मुख्य भूमि तक आने-जाने का यही एकमात्र साधन है. तटीय तटबंध टूट चके थे और हर नुक्कड़ पर पानी भर गया था. 2018 में बारिश के मौसम की शुरुआत के दौरान जब मैं लकड़ी की नाव पर सवार होकर गंगा डेल्टा में स्थित पश्चिम बंगाल में नामखाना के पास एक छोटे से द्वीप पर पहुंचा, तो यह उन पहली तस्वीरों में से एक थी जो मैंने ली थी. जहां तक मुझे पता था कि मानसून पिछले दशक के सबसे प्रचंड मानसून में से एक होगा और मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरा जीवन भी इस उतार-चढ़ाव और बाढ़ के प्रवाह से जुड़ा होगा. मैं 2018 और 2019 के बीच हर महीने दो बार सुंदरबन जाता, कभी-कभी कोई नई जगह खोजने के लिए रास्ता भटक जाता था.

बागडंगा घाट पर बना लकड़ी का बांध जो पश्चिम बंगाल में मौसुनी द्वीप को निकटतम गांव नामखाना से जोड़ता है.
मौसुनी द्वीप बंगाल की खाड़ी के किनारे स्थित सीमावर्ती द्वीपों में से एक है और अक्सर समुद्र के जल स्तर में वृद्धि के कारण पारिस्थितिक आपदाओं की चपेट में रहता है.

द्वीप की मेरी कुछ पहली तस्वीरों में एक महिला अपनी बेटी को बाढ़ वाली सड़कों से स्कूल ले जाती हुई दिखती है, जो तब मुझे पूरी तरह से अवास्तविक लगती थी. आपदा के प्रति द्वीपवासियों की प्रतिक्रिया, मेरे जैसे एक शहरवासी की कल्पना से बिल्कुल विपरीत होने के कारण, मैं चौंक गया और मुझे सुंदरबन में ग्रामीण लोगों के दैनिक जीवन में अपनाए जाने वाले तरीकों की सराहना करनी पड़ी. मैंने बाद में सुंदरबन में भूमि, लोगों और पानी के बीच गहरे अंतर्संबंध और इस नाजुक संतुलन की अनिश्चितता के बारे में बताने के लिए फोटो प्रोजेक्ट का शीर्षक "द टाइड कंट्री" रखा.

आपदा के समय किसी समुदाए की तस्वीरें लेते समय आपदा ही मुख्य विषय वस्तु बन जाती है, लेकिन मैं इससे आगे देखना चाहता था. यह मेरे पिछले प्रोजेक्ट ‘द हंग्री टाइड प्रोजेक्ट’ जिसे मैंने 2014 से 2017 के बीच डेल्टा में किया था, से अलग था. मैंने पहले की तरह एक ही रास्ता चुनने के बजाए इसे अधिक सहजता से किया.

उच्च ज्वार के दौरान अलग दिखाई देता एक जलमग्न पेड़.

फोटो खींचने की पूरी प्रक्रिया पर भरोसा करने का मतलब सुखद और अप्रिय दोनों दुर्घटनाओं की संभावनाओं से वाकिफ होना है. कभी-कभी पूरे दिन की योजना ज्वार के कारण विफल हो जाती. या मेरी कोई नाव छूट सकती और अगले कई घंटों तक ज्वार के उतार-चढ़ाव में अगली नाव का इंतजार करना पड़ सकता. कुछ ऐसे क्षण थे जहां यह और मुश्किल हो गया. इन्हीं क्षणों में मुझे ज्वार की ताकत का पता चला, मैंने देखा कि यह कैसे समय को नियंत्रित कर सकता है और मुझे फेरी घाट के पास एक चाय की दुकान पर फंसा सकता है और मेरे अधिक चलने-फिरने, अधिक कहानियां इकट्ठा करने और अधिक लोगों के साथ बातचीत करने का कारण बन सकता है.

मौसुनी द्वीप पर छप्पर की छतें नीची रखी जाती हैं, ताकि तेज चक्रवाती हवाएं उसे उड़ाकर नहीं ले जाएं.
मौसुनी द्वीप में अपने पिता से बाल कटवाते हुए एक लड़का.
एक दैनिक मजदूर घर में उपयोग किए जाने वाले जल की तलाश में अपने खेत में गहरा नलकूप लगाने के लिए कड़ी मेहनत करता है.
गिरी हुई टहनियों और शाखाओं का उपयोग मिट्टी की झोंपड़ी की दीवारों की बाड़ लगाने के लिए किया गया है.

मैंने अपनी ली गई तस्वीरों की लगातार समीक्षा से बचने के लिए एक स्नैपशॉट एनालॉग कैमरे का उपयोग किया, ताकि मैं एक अलग तेजी से काम कर सकूं. यह काफी संगठित था और जब सभी फिल्म रोल दिल्ली से वापस आए, तो मेरे पिछले काम से अलग मैं मुख्य रूप से ऊर्ध्वाधर और केवल कुछ क्षैतिज में ली गई तस्वीरों को देख रहा था. मैंने एक ही तस्वीर में बहुत सारी जानकारी दिखाने की कोशिश छोड़ दी, जैसे कि रिपोर्ताज में होता है, उसकी जगह अकेले विवरण वाली शांत व्यक्तिगत तस्वीरें ली.

पानी की बोतल के साथ मिट्टी के तटबंधों के पास से गुजरती एक महिला. खारे पानी की बाढ़ की प्रमुख समस्याओं में से एक यह है कि पीने योग्य पानी की कमी हो जाती है.
मौसुनी में ज्यादातर फूस या मिट्टी की टाइल वाली छतों से बनी मिट्टी की झोपड़ियां हैं, जो चक्रवाती हवाओं और ज्वार की लहरों के लिए बेहद नाजुक हैं.
वर्षों से बाढ़ को रोकने के लिए प्रभावी तटबंध बनाने के बार-बार प्रयास ज्वार की लहरों की तीव्रता और पानी के बढ़ते स्तर के कारण विफल रहे हैं.

यह तय करना मुश्किल है कि क्या यह कार्य या जलवायु संकट पर केंद्रित कोई भी कार्य द्वीप के भाग्य पर बहुत अधिक प्रभाव डाल सकता है, चाहे वह लोगों और उनके घरों और पानी के संरक्षण से जुड़ी तस्वीरे हों.

मई 2020 के उत्तरार्ध में पश्चिम बंगाल में तबाही मचाने वाले चक्रवात अम्फान के बाद लॉकडाउन के दौरान मैं दूसरी बार पिंटू मोंडल से मिला. अम्फान 2020 में उत्तर हिंद महासागर चक्रवात के मौसम का सबसे मजबूत और विनाशकारी तूफान था. और हर दूसरे चक्रवात की तरह मैंग्रोव डेल्टा ने इसका खामियाजा भुगता. तेज चक्रवाती हवाओं और ज्वार की लहरों ने लगभग पूरी तरह से मौसुनी में बाढ़ ला दी. द्वीप के मध्य में स्थित मोंडल का घर पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था.

मैं उनसे उस तबाह हो चुकी जगह पर मिला जहां कभी उनका घर हुआ करता था. वह पीड़ितों के लिए बनाए गए आश्रय स्थल से अभी-अभी वापस आया था, जिसमें द्वीप के लगभग आधे निवासियों को रखा गया था. उनमें से हजारों लोगों को आश्रय में शरण लेने के लिए बेहद कम समय के नोटिस पर अपने पशुओं सहित और सबसे महत्वपूर्ण, अपने सभी सरकारी दस्तावेजों जैसा सामान बांधना पड़ा.

मौसुनी द्वीप में बलियारा के अत्यंत संवेदनशील तट पर ज्वार की लहरों द्वारा नष्ट किए गए निर्माण स्थलों को देखता एक बूढ़ा व्यक्ति.
सुंदरवन के लोगों के लिए जीवन अनिवार्य रूप से समुद्र से जुड़ा हुआ है, मछली पकड़ना उनकी आजीविका का मुख्य स्रोत है.

वह अपनी गिरी हुई छप्पर की छत से जो भी बचाने योग्य लट्ठे पा सकता था, उसे उठा रहा था. वह अकेले काम कर रहा था, सांस लेने के लिए बीच-बीच में आराम कर लेता था. मैंने उनसे पूछा कि वह शहर या स्थानीय सरकार से राहत मिलने का इंतजार क्यों नहीं करते. काम करना जारी रखते हुए, उन्होंने कहा कि उन्हें आने में बहुत समय लगेगा और तब तक वह अपना घर बना चुका होगा. मैं इस स्थिर और आत्मनिर्भर स्वभाव से प्रभावित हुआ, जो मुझे इस इलाके के लोगों में बार-बार दिखा.

बलियारा में समुद्र तट लकड़ी के तख्तों और बालू की बोरियों से भरा हुआ है ताकि तटीय भूमि में खारे पानी को आने से रोका जा सके.

मैं इनमें से कुछ क्षणभंगुर लेकिन नियमित क्षणों को कैमरे में कैद करने के लिए रुक गया. मैंने तटबंध पर हाथ में पानी का घड़ा लिए एक आदमी की तस्वीर खींची. तस्वीर में, आप देख सकते हैं कि आदमी ज्वार की लहरों को रोकने के लिए ग्रामीणों द्वारा बनाए गए तटबंधों के पास से गुजर रहा है, इस उम्मीद में कि सड़क के नीचे एक नलकूप से कुछ पीने का पानी मिलेगा. पानी के द्वैत को देखना मेरे लिए काफी आश्चर्यजनक था, जो जीवन का रक्षक और विनाशक दोनों है.

शाम के समय की नौका दक्षिण दुर्गापुर फेरी घाट से निकलकर मौसुनी द्वीप की ओर बढ़ती हुई.

ज्वार भूमि में दिन में दो बार बाढ़ लाता है और लोगों के जीवन और पारिस्थितिकी तंत्र को आकार देता है. डेल्टा में यहां हर गतिविधि ज्वार से तय होती है. यहां मनुष्य, वन्य जीवन और समुद्र के बीच जगह को लेकर निरंतर कशमकश की स्थिति बनी रहती है. ऐसे कई द्वीप जो कभी हजारों लोगों के घर थे, उन पर हमेशा के लिए बह जाने या पहले से ही जलमग्न होने का खतरा है.


स्वास्तिक पाल कोलकाता के एक डॉक्यूमेंट्री फोटोग्राफर हैं. वह वर्तमान में न्यूकैसल यूनिवर्सिटी के लिविंग डेल्टास हब के सहयोग से सुंदरबन में अपने तीन खंडों वाले प्रोजेक्ट के अंतिम खंड पर काम कर रहे हैं.