भारत के जलवायु आंदोलन को राह दिखाते युवा पर्यावरण संगठन

20 सितंबर 2019 को दिल्ली में "फ्राइडे फॉर फ्यूचर" आंदोलन के वैश्विक प्रदर्शनों के भाग के रूप में जलवायु परिवर्तन पर सरकारी निष्क्रियता के विरोध में युवा पर्यावरणविद एक हड़ताल में भाग लेते हुए. के आसिफ/ इंडिया टुडे ग्रुप/ गैटी इमेजिस

चेन्नई के एक लेखक और शोधकर्ता नित्यानंद जयारमन ने 19 जनवरी को अडाणी वॉच नाम की एक वेबसाइट पर दुनिया भर में युवाओं द्वारा चलाए जा रहे 25 से अधिक पर्यावरणीय संगठनों की अडाणी समूह के खिलाफ हफ्ते भर के विरोध प्रदर्शन की घोषणा की. जयरामन की पोस्ट का शीर्षक था : "अडाणी को रोकने के लिए युवाओं की योजना (वाईएएसटीए), 27 जनवरी से 2 फरवरी". इसमें आगे लिखा था, "वाईएएसटीए अडाणी के लोकतंत्र को नष्ट करने, सामूदायिक आवाजों को दाबने और उनकी आलोचना करने वालों को परेशान करने से रोकने के लिए दुनिया भर के युवाओं द्वारा चलाए जा रहे संगठनों का आह्वान है." इसके चार दिन बाद अडाणी समूह ने अपने आधिकारिक फेसबुक पेज पर एक खुला पत्र लिख कर दावा किया कि उसे कुप्रचार का निशाना बनाया जा रहा है. स्पष्ट है कि भारत में युवाओं द्वारा चलाए जा रहे पर्यावरण समूहों ने देश में जलवायु आंदोलन की प्रकृति को लेकर एक अमिट छाप छोड़ी है.

वाईएएसटीए को कई अन्य समूहों का भी समर्थन मिला. इनमें फ्राइडे फॉर फ्यूचर इंडिया, चेन्नई क्लाइमेट एक्शन ग्रुप, एक्स्टेंशन रिबेलियन इंडिया, लैट इंडिया ब्रीथ और युगम नेटवर्क शामिल हैं. इन संगठनों ने विरोध के लिए निर्धारित तारीख से पहले कई हफ्तों तक लोगों का समर्थन जुटाया और लोगों से उनके सोशल मीडिया पेज के जरिए इस वैश्विक आंदोलन से जुड़ने की अपील की. सप्ताह भर चले विरोध में सोशल मीडिया पर अनेक कार्यक्रम भी चलाए गए जिनमें भारत और ऑस्ट्रेलिया में अडाणी की परियोजनाओं से प्रभावित लोगों के बयानों के वीडियो प्रसारण सहित दुनिया भर के प्रतिरोध और उम्मीद के गीतों की प्लेलिस्ट, कला और आंदोलन पर मास्टरक्लास, कॉरपोरेट के अपराधों पर डॉक्यूमेंट्री फिल्म महोत्सव और जलवायु मुद्दे पर लेखक अमिताभ घोष के साथ एक प्रश्नोत्तर सत्र का भी आयोजन किया गया था.

हाल के वर्षों में युवाओं के नेतृत्व में जलवायु न्याय और पर्यावरण केंद्रित आंदोलनों की लहर ने पर्यावरण में आई गिरावट के खिलाफ चल रहे संघर्ष में सोशल मीडिया पर सक्रियता और समर्थन प्राप्त करने की तकनीक, जैसे नए उपकरण और ताकत को बढ़ाया है. वाईएएसटीए (यास्टा) अभियान में शामिल एक कार्यकर्ता ने नाम न उजागर करने की शर्त पर मुझे बताया, "अडाणी समूह को ऐसा बयान देना पड़ा, इससे पता चलता है कि उन्हें हमारे कामों के बारे में जानकारी है." चेन्नई स्थित वैटिवर कलेक्टिव नामक एक पर्यावरण संगठन के सदस्य जयारामन ने मुझे बताया, “हाल के वर्षों में देश भर में राजनीतिक रूप से मुखर युवा वर्ग कोयला खनन, वनों की कटाई और आर्द्रभूमि के विनाश के खिलाफ संघर्ष कर रहे लोगों के साथ तेजी से जुड़ा है."

उन्होंने आगे कहा, "युवाओं ने उनकी आवाजों को मजबूत करने में मदद की है और यही बात है जो सरकार को असहज करती है." जैसा कि देश में युवाओं के नेतृत्व में हुए विभिन्न आंदोलनों से भी दिखाई पड़ता है कि युवा जलवायु कार्यकर्ता राज्य और केंद्र सरकारों के साथ-साथ कॉरपोरेट दिग्गजों पर भी आसानी से दबाव बना लेते हैं.

इसकी एक मिसाल है वैटिवर कलेक्टिव जो उत्तरी चेन्नई में 30 किलोमीटर दूर स्थित कट्टुपल्ली बंदरगाह के पास एन्नोर पुलिकट क्षेत्र में अडाणी समूह द्वारा किए गए विस्तार के कारण आर्द्रभूमि के विनाश और आजीविका को होने वाले नुकसान पर रोशनी डालता है. जयरामन ने कहा, "एन्नोर पुलिकट में आर्द्रभूमि संरक्षण के संघर्ष में युवाओं की भागीदारी हाशिए के समूहों के दृष्टिकोण से की गई थी. औद्योगीकरण को बढ़ाने के लिए बनाए गए क्षेत्र, उत्तरी चेन्नई के रतुआ इलाके का आद्रभूमि और समुद्री मार्ग वाला मुख्य हिस्सा अडाणी-कट्टुपल्ली बंदरगाह के लिए निर्धारित किया गया है जिसका स्थानीय समुदायों द्वारा विरोध किया जा रहा था." उन्होंने आगे कहा कि तमिलनाडु के कुछ राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया पर्यावरणीय चिंताओं के महत्व को समझने वाली रही हैं.

नवंबर 2020 में यहां के राजनीतिक दल द्रविड़ मुनेत्र कड़गम ने अपनी पर्यावरण शाखा की स्थापना की. पार्टी के नेताओं ने संसद के अंदर और बाहर कट्टुपल्ली बंदरगाह का मुद्दा उठाया है. डीएमके की एक वरिष्ठ नेता और सांसद के कनिमोझी ने कहा कि कंपनी द्वारा प्रस्तुत परियोजना में कुछ बड़े मुद्दे हैं और ऐसा विकास पर्यावरण की कीमत पर नहीं हो सकता. दो अन्य डीएमके सांसदों कलानिधि वीरस्वामी और थमिजाची थंगपांडियन ने भी यह मुद्दा संसद में उठाया है.

जलवायु के मुद्दे पर काम करने वाले इन संगठनों द्वारा की गई लामबंदी का पैमाना पहली बार 2020 में पर्यावरणीय प्रभाव आकलन अधिसूचना के मसौदे के खिलाफ चलाए गए उनके अभियान में साफ नजर आया. मसौदा कानून में 2006 की अधिसूचना को हटाने का प्रस्ताव रखा गया था, जो वर्तमान में ईआईए प्रक्रिया को नियंत्रित करता है और यह किसी भी विकास परियोजना से पहले पर्यावरणीय मंजूरी प्राप्त करने के लिए आवश्यक है. कानून में प्रत्याभूत की गई पर्यावरणीय सुरक्षा को कमजोर करने के लिए 2020 की अधिसूचना को भारी आलोचना का सामना करना पड़ा. अन्य प्रावधानों के अलावा, मसौदा कानून ने सार्वजनिक विमर्श से परियोजनाओं की एक लंबी सूची को मुक्त कर दिया- जिसमें अंतर्देशीय जलमार्ग और राष्ट्रीय राजमार्गों का विस्तार शामिल है- और कुछ मामलों में परियोजनाओं की वास्तविक स्वीकृति की अनुमति दी.

फ्राइडे फॉर फ्यूचर इंडिया और लेट इंडिया ब्रीथ जैसे संगठनों के नेतृत्व में इसके विरोध में चलाए गए अभियान में सार्वजनिक विचार—विमर्श के दौरान प्राप्त की गई 20 लाख से अधिक प्रतिक्रियाएं संगठनों ने पर्यावरण मंत्रालय को सौंपी थी. केंद्र सरकार ने बावजूद इसके अभी तक कानून में कोई नया बदलाव नहीं किया है. लेकिन एक तीव्र प्रतिक्रिया के रूप में दिल्ली पुलिस ने जुलाई की शुरुआत में फ्राइडे फॉर फ्यूचर इंडिया के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत एक नोटिस जारी किया और लेट इंडिया ब्रीथ और इज नो अर्थ बी सहित उसकी वेबसाइट को ब्लॉक कर दिया था. लेकिन उसके कुछ ही समय बाद दिल्ली पुलिस ने यूएपीए नोटिस गलती से भेजे जाने की बात कही और दावा किया कि नया नोटिस सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत भेजा गया था.

फ्राइडे फॉर फ्यूचर के साथ काम करने वाले 23 वर्षीय कार्यकर्ता ने नाम न उजागर करने की शर्त पर कहा, "इस लामबंदी ने एफएफएफ को देश के लोगों की नजरों में ला दिया. हमारी वेबसाइट को बंद कर दिया गया और यह कहना गलत नहीं होगा कि हमने सरकार को हमारी तरफ ध्यान देने के लिए मजबूर कर दिया." मुंबई के रहने वाले फ्राइडे फॉर फ्यूचर के एक दूसरे कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर मुझे बताया कि पिछले साल से इस आंदोलन में इस बात का ध्यान रखा गया है कि इसके बयानों या संदेशों में किसी राजनीतिक दल का नाम नहीं लिया जाए. मुंबई स्थित कार्यकर्ता ने कहा, "हम अपने संदेश को पर्यावरण तक ही सीमित रखते हैं."

शिलांग में फ्राइडे फॉर फ्यूचर इंडिया के 18 वर्षीय कार्यकर्ता जोएल क्यंदी ने मुझे बताया, “ईआईए के नोटिफिकेशन पर हमने जो काम किया है वह आपको एक बार फिर देखना चाहिए. एफएफएफ इंडिया की सभी इकाइयां सोशल मीडिया पर समर्थन जुटाने के काम मे शामिल थीं.'' क्यंदी ने आगे कहा, ''लोग पहले से तैयार किए गए एक ईमेल लिंक पर क्लिक करके इसे पर्यावरण मंत्रालय को भेज सकते हैं. हम सभी ने इस लिंक को अपने सोशल मीडिया पेजों पर पोस्ट किया है.''

फ्राइडे फॉर फ्यूचर इंडिया, युवा पर्यावरणविद ग्रेटा थुनबर्ग के नेतृत्व में जलवायु के मुद्दे पर चलाए जा रहे अंतर्राष्ट्रीय आंदोलन की भारतीय इकाई है. फरवरी महीने में दिल्ली पुलिस ने फ्राइडे फॉर फ्यूचर इंडिया की जलवायु कार्यकर्ता दिशा रवि को बेंगलुरु से गिरफ्तार किया और दिल्ली ले गई. 22 वर्षीय दिशा पर पुलिस ने राजद्रोह, खालिस्तान समर्थकों के साथ संबंध रखने और टूलकिट दस्तावेज तैयार करने का आरोप लगाया. 26 जनवरी को दिल्ली में विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ हुई किसानों की रैली के दौरान हुई हिंसा में टूलकिट की भूमिका को महत्वपूर्ण माना गया है लेकिन जिला अदालत के उन्हें जमानत पर रिहा करने के आदेश के बाद यह साफ हो गया कि रवि पर लगाए गए आरोपों के पक्ष में पुलिस के पास एक भी सबूत नहीं था. (टूलकिट कुछ विशिष्ट मुद्दों की जानकारी और उनसे लड़ने के लिए कुछ संभावित रणनीतियों की जानकारी के लिए होता है जिसे नियमित रूप से कार्यकर्ताओं द्वारा उपयोग किया जाता है.)

रवि के अलावा पुलिस ने एक अन्य जलवायु न्याय संगठन एक्सटिंक्शन रिबेलियन इंडिया के साथ काम करने वाले दो अन्य पर्यावरण कार्यकर्ताओं, निकिता जैकब और शांतनु मुलुक के घर भी छापा मार कर पूछताछ की और दोनों को मामले में आरोपी ठहराया. टूल किट में किसान आंदोलन के विरोध के ऐसे तरीके शामिल थे जिनसे लोग आंदोलन से आसानी से जुड़ सकते थे. मैंने 23 वर्षीय कार्यकर्ता से पूछा कि क्या फ्राइडे फॉर फ्यूचर के भीतर भविष्य में किसानों के आंदोलन का समर्थन करने के लिए कोई चर्चा हुई है. उन्होंने कहा नहीं और आगे कहा, "एफएफएफ एक आंदोलन है. हम में से बहुत से कई दूसरे संगठनों के साथ काम करते हैं. यहां लिए गए निर्णय किसी भी सदस्य के लिए बाध्यकारी नहीं होते हैं और समूह में इकाइयां अपने मुद्दे उठाने के लिए स्वतंत्र हैं.” फ्राइडे फॉर फ्यूचर के कार्यकर्ताओं की औसत आयु 15-20 वर्ष है. उन्होंने आगे कहा, "अधिकतर बच्चे और उनके माता-पिता इस कार्रवाई के बाद डर गए हैं."

एक अनुभवी पर्यावरणविद आशीष कोठारी ने मुझे बताया कि "सरकार ने किसानों के आंदोलन को उनके कमजोर आधार पर चित्रित करने की कोशिश की है. युवाओं के समूहों और खासकर विभिन्न भाषा बोलने वाले युवाओं तक मुद्दे के पहुंच जाने से सरकार हिल गई." उन्होंने आगे कहा कि यह सरकार अपनी एक विशेष वैश्विक छवि को बनाए रखने के लिए चिंतित है और किसान आंदोलन से दुनिया भर में पैदा हो रही प्रतिक्रियाएं उसके लिए समस्या बन गई हैं. कोठारी का मानना था कि कुछ कॉरपोरेट घरानों और उनके भयंकर पर्यावरणीय रिकॉर्ड को निशाना बनाने और ईआईए अधिसूचना का विरोध करने के कारण वे सरकार के राडार पर आ गए होंगे.

ईआईए के मुद्दे पर राष्ट्रीय स्तर पर लामबंदी करने के अलावा युवा पर्यावरण समूहों ने स्थानीय खनन परियोजनाओं औए अन्य विकास प्रस्तावों को लेकर भी विरोध किया है. उदाहरण के लिए, फ्राइडे फॉर फ्यूचर इंडिया की शिलांग इकाई मेघालय में कोयला खनन पर फोकस है. क्यंदी ने आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रतिबंध लगाने के बावजूद वहां अवैध खनन जारी है. उन्होंने शिलांग में एक मॉल के निर्माण के खिलाफ किए गए उनके आंदोलन के बारे में भी बताया. क्यंदी ने कहा, "हमें शहरी इलाकों में आई गिरावट को ध्यान में रखना है. शिलांग में संपन्न समुदायों की संख्या बढ़ी है और मॉल का निर्माण मेघालय में नव उदारवादी पूंजी को बढ़ाने की प्रक्रिया का हिस्सा है. हम व्यापक स्तर पर चल रहे सामाजिक, आर्थिक बदलावों में जलवायु की राजनीति को नहीं ला सकते हैं और यही कारण है कि हम जैसे युवा समूह स्थानीय मुद्दों को लेकर सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं."

एक दूसरा समूह गोयंट कोलसो नाका, जिसका मतलब है "गोवा को कोयले की जरूरत नहीं है, गोवा के स्थानीय मुद्दों को उठा रहा है." यह आंदोलन गोवा को कोयल के केंद्र में बदलने से रोकने के लिए चलाया जा रहा है. केंद्र सरकार गोवा के वास्को डी गामा क्षेत्र में स्थित मोरमुगाओ पोर्ट ट्रस्ट में कोयले के आयात को, जो 2020 में 24.7 मिलियन टन था, 2030 तक 51 मिलियन टन यानी दोगुना कर देना चाहती है.

इस योजना के अंतर्गत सरकार दो राजमार्गों का विस्तार करने के साथ-साथ वास्को डी गामा से कर्नाटक तक एक रेल मार्ग और एक बिजली लाइन का निर्माण करना चाहती है. तीनों अवसंरचनागत परियोजनाएं राज्य के मोलेम नेशनल पार्क और भगवान महावीर वन्यजीव अभयारण्य से होकर गुजरेंगी, जो यूनेस्को द्वारा धरोहर घोषित किए गए पश्चिमी घाट के लगभग 240 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ है. पिछले साल दिसंबर में इस परियोजना के खिलाफ शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करने वाले दर्जनों युवा प्रदर्शनकारियों को हिरासत में ले लिया गया था.

गोयंट कोलसो नाका की सचिव दीपिका डिसूजा ने मुझे बताया, "सरकार ने लोगों के आरोपों और पर्यावरण संबंधी मंजूरी लेने से बचने के लिए इन तीन परियोजनाओं को तेरह छोटी परियोजनाओं में बांट दिया. इनमें से किसी भी परियोजना से गोआ को कोई भी फायदा नहीं हुआ, वे सिर्फ खनन, स्टील और ऊर्जा निगमों अडाणी, जेएसडब्ल्यू और वेदांत समूहों के लिए ही हैं, जिनको इससे लाभ मिलेगा. लेकिन इसकी कीमत गोवा को चुकानी पड़ेगी. क्योंकि वे मोलेम में स्थित जैव विविधता के मुख्य केंद्र को बर्बाद कर देंगे." "मोलेम बचाओ" के बैनर तले इन परियोजनाओं के विरोध में शामिल होने के लिए गोवा के लोगों को लामबंद किया जा रहा है. उन्होंने आगे कहा, "कई युवा पर्यावरण कार्यकर्ता इस कोयला विरोधी आंदोलन में शामिल हुए हैं. हमें सोशल मीडिया और ऑनलाइन माध्यम के ​जरिए लोगों को लामबंद करने की ज्यादा जानकारी नहीं है लेकिन सभी युवा कार्यकर्ताओं ने गोवा से बाहर भी हमारे संदेश को फैलाने में सहायता की है."

मोलेम बचाओ अभियान की एक स्वयंसेवक 23 वर्षीय मलाइका मैथ्यू चावला की गोवा में वन्यजीव संरक्षण में स्नातक करने के दौरान इस मुद्दे को लेकर काफी दिलचस्पी पैदा हुई. मलाइका अब ऑस्ट्रेलिया में रहती हैं. वह मोलेम बचाओ आंदोलन के ट्विटर पर चल रहे अभियान को संभालने वाले स्वयंसेवकों की एक टीम का हिस्सा हैं. चावला ने मुझे बताया, "कोरोना महामारी के दौरान लोगों तक पहुंचकर समर्थन जुटाना संभव नहीं था, इसलिए हमने ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम के माध्यम से समर्थन जुटाना शुरू किया. हम सोशल मीडिया पर केवल तथ्य और वैज्ञानिक सबूत ही पोस्ट करते हैं. इंस्टाग्राम पर कला से जुड़ी सामग्री डाली जाती है, जबकि ट्विटर का उपयोग दैनिक समाचार लिखने, हैशटैग चलाने, नामी हस्तियों और राजनेताओं को टैग करने के लिए किया जाता है. फ्राइडे फॉर फ्यूचर और लेट इंडिया ब्रीथ अरुणाचल प्रदेश में एटलिन पनबिजली परियोजना और असम के देहिंग पटकाई में कोयला खनन परियोजनाओं को लेकर जागरूकता बढ़ाने में अच्छा काम कर रहे हैं. हम उनसे सोशल मीडिया पर अभियान चलाने के गुण सीखने और अपने सोशल मीडिया में सुधार करने के लिए उत्सुक हैं."

यह नई पीढ़ी जिसे अनुभवी पर्यावरणविद कभी-कभी "क्लिक एक्टिविस्ट्स" के नाम से बुलाते हैं, लगभग तीन वर्षों से काफी सक्रिय रही है. बेंगलुरु स्थित एक पर्यावरण सहायता समूह के संस्थापक और संरक्षक लियो सल्दान्हा ने बताया, "हमारी पिछली पीढ़ी ने वैश्विक स्तर के मुद्दों को उठाने से पहले स्थानीय मुद्दों को उजागर करना शुरू किया."

उन्होंने ग्रेटा थुनबर्ग द्वारा चलाए जाने वाला फ्राइडे फॉर फ्यूचर अभियान का उदाहरण देते हुए कहा कि प्रौद्योगिकी और संचार के नए प्रकारों के आने से कार्यकर्ता वैश्विक मुद्दों पर पहले ध्यान दे रहे हैं.

उन्होंने आगे बताया, "हालांकि जिन वैश्विक मुद्दों ने एफएफएफ और एक्सआर (एक्सटिंशन रिबेलिअन) को प्रभावित किया है वे यूरोप केंद्रित मुद्दों से जुड़े हुए हैं. पहले स्थानीय मुद्दों को लेकर काम करना स्वयं को वैश्विक स्तर पर काम करने लायक बनाने में अधिक सक्षमता प्रदान करता है. सरकार द्वारा किसानों के आंदोलन नहीं रौंदने का कारण यही है कि यह आंदोलन स्थानीय परंपरा और लोगों से दृढ़ता से जुड़ा हुआ है. स्थानीय लोगों और मुद्दों से नहीं जुड़ने का मतलब है कि ये युवा लोग जाति और वर्ग की बारीकियों को कभी नहीं समझ पाएंगे." सल्दान्हा ने आगे कहा, "शायद यही वह भावना है जिसके कारण वे आरे, मोलेम, ईआईए और किसान आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं."

मुंबई की एक पर्यावरण कार्यकर्ता ने सलदान्हा के इस मूल्यांकन से सहमति जताते हुए कहा, "अनुभवी पर्यावरण कार्यकर्ताओं का यह बिंदु सही है, ऐसे में मुझे भी कभी-कभी लगता है कि हमारा सारा आंदोलन मुख्य रूप से सोशल मीडिया पर ही चल रहा है. लेकिन हम उसे बदलने की कोशिश कर रहे हैं. उदाहरण के लिए, हाल ही में हमने एक समुद्र तट पर सफाई अभियान चलाया और जल्द ही हम वैश्विक स्तर पर जलवायु को लेकर एक हड़ताल शुरू कर रहे हैं जो धरातल और सोशल मीडिया दोनों पर नजर आएगी."

सलदान्हा ने भी युवाओं के बीच फैलते जलवायु न्याय आंदोलन के महत्व को स्वीकार किया. उन्होंने मुझसे कहा, "मैं उनके लिए "क्लिक एक्टिविस्ट" शब्द का इस्तेमाल नहीं करूंगा, क्योंकि युवा अपने भविष्य को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय मुद्दों से जुड़ने लगे हैं. यह और अधिक उपयोगी होगा यदि जाति और वर्ग को लेकर जागरूकता भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाए. हालांकि यह उभरते युवा जलवायु कार्यकर्ताओं की विशेषता नहीं है."

यह देखा जाना अभी बाकी है कि भारत में जलवायु को लेकर आंदोलन किस तरह आगे बढ़ेंगे. और क्या वर्तमान समय में आंदोलन का नेतृत्व करने वाले युवा पर्यावरणविद और पुराने, अनुभवी कार्यकर्ता एक दूसरे से कुछ सीख लेंगे. मोलेम बचाओ अंदोलन और टूलकिट के मामलों ने भी दिखाया है कि सरकार द्वारा आंदोलनकारियों पर की गई कानूनी कार्रवाई भी युवाओं के जोश को कमजोर नहीं कर सकी. लेकिन इसका डराने वाला परिणाम उन कार्यकर्ताओं की संख्या में साफ नजर आया जिन्होंने अपनी पहचान उजागर करने से मना किया है. भविष्य की रणनीति को लेकर सवाल पूछे जाने पर मुंबई की एक कार्यकर्ता ने मुझसे कहा, “दिशा की गिरफ्तारी निश्चित रूप से एक झटका है. उसने जो भी किया उसमें कुछ भी गलत नहीं था लेकिन हम अपनी तरफ से विशेष सावधानी बरत रहे हैं."