जातिवाद की जहरीली फसल

नस्ल, जाति और दलितों के जीवन को समग्र मानवीय गरिमा प्रदान करने वाले तत्व क्या होंगे?

1991 में दिल्ली में आयोजित एक दलित प्रतिरोध.
रॉबर्ट निकेल्सबर्ग / गैटी इमेजिस
1991 में दिल्ली में आयोजित एक दलित प्रतिरोध.
रॉबर्ट निकेल्सबर्ग / गैटी इमेजिस

जुलाई 1967 में बुधवार की एक शाम का वाकया है, जब दो गोरे पुलिस अधिकारी एक काले व्यक्ति जॉन विलियम स्मिथ को नेवार्क शहर के सीमांत पर स्थित अपनी इमारत के परिसर में घसीट कर ले जा रहे थे. स्मिथ एक टैक्सी ड्राइवर थे और उन्हें अभी-अभी गिरफ्तार किया गया था और उन्हें इतनी बेरहमी से पीटा गया था कि वह चल नहीं पा रहे थे. उनके ऊपर उन अधिकारियों की कार को गलत तरीके से पार करने के कथित अपराध का आरोप लगाया गया था. एक आवासीय परिसर के निवासियों ने उन्हें घसीटे जाते हुए देखा और एक अफवाह फैल गई : “पुलिस ने एक और काले व्यक्ति को मार डाला.” एक भीड़ उमड़ पड़ी और उस इमारत पर हमला कर दिया. पांच दिनों तक पूरे शहर में हिंसा का माहौल बना रहा जिसमें दो दर्जन से अधिक लोगों की जान गई. कुछ ने इसे दंगा कहा तो कुछ ने विद्रोह.

यह वाकया तो उस दौर की चरम उत्तेजना का महज एक उदाहरण है जिसे “1967 की लंबी गर्मी” के रूप में जाना जाता है. इस दौर में अमरीका में 150 से अधिक "नस्लीय दंगे" हुए जिनमें चिंगारी भड़कने का आम कारण काले लोगों के खिलाफ पुलिस की बर्बरता थी. इस चिंगारी ने आक्रोश के एक लंबे सिलसिले का रूप ले लिया- 1966 में होफ में, 1965 में वाट्स में, 1964 और 1943 में हार्लेम में, 1935 और 1919 में शिकागो में और इसी तरह अनेक अन्य शहरों में भी. वियतनाम पर हमले के चलते पहले से ही लोगों के गुस्से से जूझ रहे अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन बी. जॉनसन को इस नए संकट का भी सामना करना पड़ा. उन्होंने तीन सवालों के जवाब देने के लिए एक समिति बनाई : “क्या हुआ? ऐसा क्यों हुआ? और दुबारा ऐसा न हो, इसके लिए क्या किए जाने की जरूरत है?"

कर्नर आयोग ने अपने काम के दौरान, अपने शोध में सहयोग के लिए समाज-वैज्ञानिकों के एक समूह की मदद ली. आयोग के समक्ष प्रस्तुत उनके मसौदे से उभरते हुए ब्लैक पावर आंदोलन की उग्र भाषा और विचारों की अनुगूंज सुनाई दे रही थी और इस मसौदे ने कुछ चेतावनी भरे निष्कर्ष भी निकाले. शोधकर्ताओं ने लिखा कि, मौजूदा हालात में, अमरीका एक पूर्ण विकसित नस्लीय युद्ध की दिशा में अग्रसर है, जिसमें “अमरीका के प्रमुख शहरों में गोरों की सत्ता के खिलाफ काले युवाओं के छापामार युद्ध" भी शामिल हैं. इन परिस्थितियों से बाहर निकलने का एकमात्र उपाय यह है कि अब तक इस समुदाय को “नाममात्र के लिए दी जा रही छोटी-मोटी रियायतों" से आगे बढ़कर कुछ प्रभावी बुनियादी बदलाव किए जाएं. इसके लिए जरूरी है कि उग्र सुधार वाले ऐसे कार्यक्रम शुरू किए जाएं, जो काले समुदायों द्वारा झेली जा रही गरीबी और गतिरोध का शिकार हो चुकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति का समाधान करने वाले हों, तथा जिनसे पुलिस तथा अन्य संस्थाएं, जो कालों के खिलाफ खुलेआम भेदभाव करती हैं, उनके रवैये में बदलाव हो. शोधकर्ताओं ने आगे लिखा कि “अभी भी समय है, कि हम एक राष्ट्र बने रहने के लिए हमारे बीच मौजूद नस्लवाद पर सम्मिलित हमला शुरू कर दें." यदि ऐसा नहीं होता है, तो "नस्लवाद की यह फसल अमेरिकी सपने का अंत कर देगी."

इस दस्तावेज को, इसके पहले पृष्ठ पर “इसे नष्ट कर दिया जाए" की टिप्पणी के साथ, गुमनामी के अंधेरे में फेंक दिया गया था. आधी सदी बाद यह एक अभिलेखागार में मिला और इसे प्रकाशित किया गया. इसे तैयार करने वाले सभी शोधकर्ताओं को बर्खास्त कर दिया गया था. फिर भी, जैसा कि इतिहासकार जूलियन ई ज़ेलिज़र ने लिखा है कि, उनके द्वारा एकत्र किए गए अधिकांश आंकड़े आयोग की अंतिम रिपोर्ट में भी बचे रह गए थे और इसके निष्कर्षों में भी शामिल थे. आयोग ने अपना “मूल निष्कर्ष प्रस्तुत किया : हमारा राष्ट्र काले और गोरे, दो पृथक और असमान समाजों की ओर बढ़ रहा है."

इस रिपोर्ट ने ऐसी किसी भी धारणा को खारिज कर दिया कि ये दंगे किसी बड़ी साजिश का हिस्सा थे, या कि पूरी शिद्दत से बदलाव का इंतजार कर रहे आम काले लोगों की बजाय सड़कों पर कुछ अन्य लोग उतर आए थे. जॉनसन की उम्मीद के विपरीत, यह रिपोर्ट उनके सामाजिक कार्यक्रमों के प्रति खास उम्मीद जगाने वाली नहीं थी, न ही यह समस्या के कारण के रूप में "नीग्रो परिवारों" की ढहती हुई व्यवस्था का रोना रो रही थी. (इसके पहले मोयनिहान रिपोर्ट के रूप में प्रस्तुत एक सरकारी अध्ययन में "नीग्रो परिवारों" की ढहती हुई व्यवस्था को ही समस्या का कारण बताया गया था.) इसके बजाय यह रिपोर्ट पुलिसिया हिंसा, संस्थागत बहिष्करण, बेरोजगारी और बिलगाव को दंगों का कारण बता रही थी, और यह आह्वान कर रही थी “एक ऐसी राष्ट्रीय कार्रवाई शुरू की जाए, जिसके मूल में अपार और शाश्वत करुणा का भाव हो और इसमें धरती के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र के संसाधन खर्च किए जाएं," और हालांकि इस स्थिति को पैदा करने वाले कारक जटिल हैं, फिर भी “कुछ बुनियादी मामले स्पष्ट हैं. इनमें से सबसे प्रमुख है काले अमरीकियों के प्रति गोरे अमरीकियों का नस्लीय रवैया और व्यवहार. नस्लीय पूर्वाग्रह हमारे इतिहास पर अपना निर्णायक प्रभाव डाल चुका है; अब इससे हमारे भविष्य के भी प्रभावित होने का खतरा पैदा हो गया है."

सूरज येंगडे बेस्टसेलिंग किताब कास्ट मैटर्स के लेखक और पुरस्कृत किताब द रेडिकल इन अम्बेडकर: क्रिटिकल रिफ्लेक्शंस के सह-संपादक हैं.

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