इन दिनों हिंदू देवता विवादों के मूड में हैं. किसी जमाने में जहां बाबरी मस्जिद खड़ी थी वहां की 2.77 एकड़ जमीन पर रामलला की दावेदारी के बाद छोटे देवता भी अपने हिस्से की दावेदारी करने लगे हैं. पूर्वी राजस्थान में श्री गोविंद देव जी का मंदिर है ‘गार्डन टेंपल’. इसमें स्थापित मूर्ति को यहां की “400 बीघा जमीन का इकलौता मालिक” करार दिया गया है. योग गुरु रामदेव अपनी पतंजलि साम्रज्य के लिए इस जमीन पर नजर गड़ाए हुए थे. वहीं, भारत सरकार जो आम तौर पर विकास से जुड़ी गतिविधियों के लिए अपने नागरिकों को विस्थापित करने में देर नहीं करती, इन देवताओं की बात आने पर बेहद मजबूर नजर आ रही है.
मूर्तियों को लंबे समय से राज्य का संरक्षण प्राप्त रहा है. 1988 में भारत सरकार ने ब्रिटिश संग्रहालय से भगवान शिव की पाथुर नटराज की मूर्ति वापस लाने के लिए ब्रिटिश कोर्ट में भगवान शिव का प्रतिनिधित्व किया था. कानूनी कार्यवाही के दौरान तर्क दिया गया कि “भले ही लंबे समय तक मूर्ति दफन रही है या क्षतिग्रस्त ही क्यों न हो, मूर्ति एक न्यायिक व्यक्ति बनी रहती है, क्योंकि देवताओं पर सांसारिक रूप के विनाश का प्रभाव नहीं पड़ता."
गैर-मानव इकाई को "कानूनी व्यक्तित्व" मानना मानव अधिकार नहीं है. यह एक ‘विशेषाधिकार’ है. यह कानूनी गल्प है. इनकी सामाजिक उपयोगिता के आधार पर राज्य और अदालत कुछ गैर-मानव संस्थाओं से इस तरह पेश आए हैं जैसे कि उन्हें व्यक्ति के अधिकार प्राप्त हों. ये संस्थाएं हाड़-मांस से बने व्यक्ति नहीं हैं. इनका शरीर या आत्मा नहीं होती. वे तर्क नहीं कर सकते. कुछ महसूस नहीं कर सकते. और न ही वे शादी या बच्चे पैदा कर सकते हैं. फिर भी कानूनी व्यक्तित्व के पास करार करने, मुकदमा दायर करने और संपत्ति का अधिकार है. हिंदू देवताओं की मूर्तियों को इस मामले में ‘व्यक्ति’ माना जाता है. दिव्य अवतार होने के नाते उन्हें एक अलौकिक इंसान के रूप में वर्णित किया जाता हैं.
मूर्तियां आधुनिक हिंदू धर्म के लिए वह हैं, जो व्यापार की दुनिया के लिए कॉर्पोरेशन हैं. अमेरिका जैसे हाइपर-पूंजीवादी देश में बिजनेस कॉर्पोरेशन को बोलने की आजादी और धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार दिए गए हैं, जो पहले केवल नागरिकों के लिए आरक्षित होते थे. भारत जैसे एक अति-धार्मिक देश में मंदिर की मूर्तियों को संपत्ति का अधिकार और मुकदमा दायर करने का अधिकार दिया गया है, जो आम तौर पर नागरिकों के लिए आरक्षित अधिकार हैं. फिर भी इन सब में जो भुलाया जा रहा है वह यह है कि इंसान और अन्य जीवित प्राणी वह श्रेणी हैं जो समाज में रहने वाले अधिकारों का आनंद लेने के हकदार हैं.
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