1992 में आई फिल्म ए फ्यू गुड मेन में का मशहूर संवाद कि "तुम सच्चाई का सामना नहीं कर सकते" उन औसत अमेरिकियों के बारे में था जो चाहते हैं कि उनका देश सुरक्षित और स्वतंत्र दोनों हो लेकिन इस स्थिति के बुनियादी अंतर्विरोधों को नजरंदाज करते हैं.
फिल्म के क्लाइमेक्स में कर्नल नाथन जेसप (जैक निकोलसन) निर्मम यातना देकर एक मरीन को मौत के घाट उतारने के एक मामले में अदालत की सुनवाई के दौरान लोगों से घिरा हुआ है. नौसैनिकों में अनुशासन लाने के उसके तरीके का बचाव करते हुए जेसप ने पूछताछ कर रहे वकील (टॉम क्रूज) से कहता है कि वह इस वास्तविकता को हजम नहीं सकता है कि युवक की मौत दुखद है लेकिन इससे शायद कई जाने बची हैं.
जेसप आरोप लगाता है कि मन की गहराई में हर अमेरिकी जानता है कि एक क्रियाशील सेना उसकी स्वतंत्रता की कीमत है जिसका अलोकतांत्रिक रवैया सत्ता को बनाए रखने के लिए आवश्यक हो जाता है. लेकिन वह इसे अपनी इस सच्चाई को स्वीकार नहीं कर पाता है. आखिर में जेसप को जेल में डाल कर दर्शकों में यह छाप छोड़ी जाती है कि इस तरह की ज्यादतियों करने वाले या इनका बचाव करने वाले उसके जैसे सेना के अधिकारी कुछ ऐसे बुरे लोगों में से हैं जिन्हें अच्छे लोगों द्वारा हटा दिया जाता है. समीक्षकों और मानवाधिकार संगठनों ने इस फिल्म के बारे में लिखा कि यह एक खुला झूठ है क्योंकि जेसप अपवाद नहीं बल्कि नियम है.
इस फिल्म के भारतीय रूपांतरण शौर्य में जेसप का किरदार के. के. मेनन ने ब्रिगेडियर रुद्र प्रताप सिंह के रूप में निभाया है. वह भी जोर देकर कहता है कि आप हिंदुस्तानी सच्चाई को बर्दाश्त नहीं कर सकता है. सिंह, जिसे कश्मीर में मानवाधिकारों का हनन करते हुए दिखाया गया है, एक इस्लामोफोबिक है, जो दावा करता है कि "मुसलमानों पर भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि वे केवल अपने समुदाय के प्रति वफादार होते हैं." इसलिए किसी-न-किसी को, खुद ब्रिगेडियर को ही- देश के लिए इस खतरे को खत्म करने की जिम्मेदारी लेनी होगी.
कमेंट