विल स्मिथ का क्रिस रॉक्स को थप्पड़ मारने की घटना को नजरंदाज कर दें तो इस साल पहली बार ऑस्कर पुरस्कार पाने वालों की संख्या अच्छी-खासी रही. दशकों तक इन पुरस्कारों के अधिकतर विजेता श्वेत पुरुषों रहे लेकिन अब इसमें बदलाव आया है और इस बार वधिर अभिनेता ट्रॉय कोत्सुर और क्वीर अभिनेत्री एरियाना डेबोस ने ऑस्कर जीता. और पहली बार कोई भारतीय डॉक्यूमेंट्री इस अवॉर्ड के लिए नामित भी हुई. दलित महिलाओं द्वारा चलाए जाने वाला मीडिया आउटलेट खबर लहरिया पर आधारित ‘राइटिंग विद फायर’ को रिंटू थॉमस और सुष्मित घोष ने बनाया है. इस फिल्म को सनडांस अवार्ड मिला है और यह रिलीज होने के बाद से ही काफी चर्चा में है. इसलिए ऑस्कर के लिए इसका नामित होना कोई अचरज नहीं था.
ऑस्कर के लिए नामित होने के बाद रिंटू थॉमस और सुष्मित घोष की निर्देशक जोड़ी के साथ हुई मेरी शुरुआती बातचीत में उन्होंने मुझे बताया था कि फिल्म में जिन लोगों ने काम किया है उन्होंने ऑस्कर में पहन कर जाने के लिए साड़ियां तक ले ली हैं. लेकिन मुख्य समारोह के दिन थॉमस और घोष रेड कार्पेट पर अकेले ही नजर आए. खबर लहरिया का कोई भी पत्रकार उनके साथ ऑस्कर समारोह में शामिल होने लॉस एंजिल्स नहीं गया.
ऐसा क्यों हुआ?
ऑस्कर के हफ्ते भर पहले खबर लहरिया की टीम ने एक बयान जारी कर कह दिया कि डॉक्यूमेंट्री, जिसे पूरा करने में करीब पांच साल लगे थे, ने उनकी पत्रकारिता को गलत ढंग से प्रस्तुत किया है. उन्होंने माना कि यह फिल्म उनके काम का “सशक्त दस्तावेज” है “लेकिन इसमें खबर लहरिया को एक ऐसे संगठन के रूप में पेश किया गया है जिसकी रिपोर्टिंग एक पार्टी विशेष (बीजेपी) और उसके इर्द-गिर्द संस्थागत रूप से फोकस है, यह गलत है.” उन्होंने अपने बयान में कहा है, "हम मानते हैं कि स्वतंत्र फिल्म निर्माताओं के पास यह विशेषाधिकार है कि वे अपने ढंग से कहानी पेश कर सकते हैं, लेकिन हमारा यह कहना है कि पिछले बीस वर्षों से हमने जिस तरह की स्थानीय पत्रकारिता की है या करने की कोशिश की है, फिल्म में वह नजर नहीं आती. हम अपनी निष्पक्ष और स्वतंत्र पत्रकारिता की वजह से ही अपने समय के अन्य मुख्यधारा की मीडिया से अलग हैं. यह फिल्म हमारे काम के महज एक हिस्से पर केंद्रित है, जबकि हम जानते हैं कि अधूरी कहानियां पूरी तस्वीर पेश नही करतीं, बल्कि कई बार तो अर्थ के अनर्थ हो जाने का खतरा पैदा हो जाता है.”
करीब नब्बे मिनट की ‘राइटिंग विद फायर’ उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में स्थानीय मुद्दों पर रिपोर्टिंग करने वाली मीरा देवी, श्यामकली और सुनीता के जीवन और कार्यों पर आधारित है. फिल्म की शुरुआत में एक बलात्कार पीड़िता यौन हिंसा और अपने भीतर छिपे डर के बारे में मीरा को बता रही है. इस औरत का बलात्कार ऊंची जाति के मर्दों ने किया था.
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