लड़ाकू रानी 

बॉलीवुड पर बीजेपी की वर्चस्व की लड़ाई में कंगना रनौत की भूमिका 

साठवें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में भाग लेती कंगना रनौत. 2020 में उन्हें भारत के चौथे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सम्मानित किया गया साथ ही वह केंद्र सरकार द्वारा "वाई-प्लस" सुरक्षा प्राप्त करने वाली पहली बॉलीवुड अभिनेत्री भी बनीं. बीसीसीएल

भारी-भरकम कढ़ाई वाली हरी साड़ी पहने हुए घोड़े पर सवार लक्ष्मीबाई ईस्ट इंडिया कंपनी के आधिकारिक बंगले के परिसर में प्रवेश करती हैं. एक अधिकारी उनसे कहता है, "तुम अनुमति के बिना अंदर नहीं आ सकती.” इधर-उधर से अन्य अधिकारियों की आवाजें आती हैं: "क्या तुमने बोर्ड नहीं देखा? ब्लडी इंडियन.” एक अन्य अधिकारी पूछता है, "क्या तुम्हें अंग्रेजी पढ़नी नहीं आती?" झांसी रियासत की रानी घोड़े से उतरकर गुस्साए हुए अधिकारियों के पास जाती हैं और उन्हें जवाब देती हैं, "मैं अंग्रेजी पढ़ सकती हूं. यह मात्र एक भाषा है. केवल कुछ शब्द. संस्कृति से कटे शब्दों का कोई अर्थ नहीं होता है."

यह कंगना रनौत द्वारा अभिनीत और सह-निर्देशित फिल्म 'मणिकर्णिका: द क्वीन ऑफ झांसी' (2019) का एक दृश्य है. लक्ष्मीबाई को 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ हुए विद्रोह के एक प्रमुख नाम के साथ-साथ अक्सर शक्ति और प्रतिरोध के राष्ट्रवादी प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है. फिल्म की राजनीति एकदम स्पष्ट है: ब्रिटिश बुराई का प्रतीक हैं और विदेशी आक्रमणकारियों की क्रूरता से लड़ने के लिए उदार भारतीय राजपरिवार ही गांव के गरीब लोगों के पालनहार हैं.

लक्ष्मीबाई अधिकारियों पर क्रोधित है क्योंकि वे एक किसान से हथियाए हुए बछड़े के मांस से बना पकवान ‘स्टेक’ खाने वाले हैं. वह उन्हें ललकारती है,  "जिस धरती पर तुम खड़े हो, उसके लोगों और उनकी भावनाओं का सम्मान करना सीखो. हमारी मातृभाषा हमारी मां है और मां केवल एक ही होती है." इसके बाद वह अपनी तलवार फेंक कर एक बाड़े से गायों और बकरियों को आजाद कर देती है और वहां मौजूद अधिकारियों को अपना फैसला सुनाते हुए कहती है, "आज से सभी मवेशी और बकरियां राजा की निजी संपत्ति हैं. इन्हें लोगों को सौंपा गया है, ताकि वे इन्हें पाल सकें. कंपनी इन जानवरों को हाथ भी नहीं लगा सकती." अंग्रेज अधिकारी बिना किसी विरोध के इस फैसले को स्वीकार करते हैं. उनमें से एक कहता है "जी, महामहिम (योर मेजेस्टी)".

बमुश्किल दो मिनट के इस दृश्य में रनौत और उनके साथी सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और उसके मूल संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा प्रायोजित मुद्दों के साथ खड़े नजर आते हैं. इसमें गाय का सम्मान, भारत की राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी को थोपना और मनमौजी इतिहास को बढ़ावा देने जैसे मुद्दे शामिल हैं, जिन्हें आरएसएस के हिंदू राष्ट्र के लक्ष्य की सेवा में लगाया जा सकता है.

वैचारिक समानताओं की बात करें तो मणिकर्णिका और रनौत एक दूसरे के पूरक हैं. हाल ही में 20 मई को रिलीज हुई अपनी फिल्म धाकड़ के एक प्रचार कार्यक्रम में रनौत ने देश में भाषा को लेकर चल रही बहस के बारे में अपनी राय जाहिर की. उन्होंने कहा, “औपनिवेशिक इतिहास कितना भी काला क्यों न हो लेकिन सौभाग्य से या दुर्भाग्य से अब अंग्रेजी हमारी बोलचाल की एक कड़ी बन गई है. लेकिन क्या इसे यह कड़ी होना चाहिए? यदि आप मेरी राय पूछते हैं तो मुझे लगता है कि संस्कृत को हमारी राष्ट्रीय भाषा होना चाहिए क्योंकि कन्नड़, तमिल, गुजराती, हिंदी सभी की उत्पत्ति इसी भाषा से हुई है.” उन्होंने कहा कि जब तमिलनाडु और बंगाल के लोग हिंदी को राष्ट्रभाषा मानने से इनकार करते हैं तो वे "यह मानने से इनकार करते हैं कि देश की सरकार दिल्ली से चलती है."

हालिया समय में रिलीज हुई रनौत की फिल्में अति-राष्ट्रवाद की ओर झुकी हुई नजर आती हैं . पिछले कुछ वर्षों से राष्ट्रवाद को लेकर उनकी अपनी सार्वजनिक अभिव्यक्ति भी तेजी से जहरीली होती गई है. मई 2021 में तृणमूल कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की. इस चुनाव को बीजेपी ने पूरे जोरो-शोरों से लड़ा था. नतीजों के ठीक बाद स्वप्न दासगुप्ता जैसे बीजेपी के कुछ नेताओं ने मामले को सांप्रदायिक रंग देते हुए टीएमसी पर बीजेपी का समर्थन करने वाले हिंदू परिवारों पर हमला करने का इल्जाम लगाया. रनौत ने इस मामले पर ट्वीट करते हुए लिखा कि "गुंडई रोकने के लिए हमें सुपर गुंडई की जरुरत है." उन्होंने राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर तंज कसा कि "वह एक निरंकुश राक्षस हैं जिसे काबू करने के लिए मोदी जी को एक बार फिर से अपना 2000 वाला विराट रूप लेना चाहिए." 

सोशल मीडिया पर अधिकांश लोगों को यह समझते देर नहीं लगी कि उनका इशारा 2002 में गुजरात में हुए मुस्लिम विरोधी दंगों की ओर था. इन दंगों के दौरान नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. महाभारत में कुरुक्षेत्र की लड़ाई के दौरान हिंदू भगवान कृष्ण द्वारा लिए गए चमत्कारी रूप को "विराट रूप" कहा जाता है. दिल्ली में सत्ता में आने के बाद मोदी ने 2002 की घटनाओं से खुद को दूर कर लिया और अब एक महान सभ्यता के पूजनीय अधिनायक के रूप में अपनी छवि स्थापित कर रहे हैं. ऐसे में रनौत का यह ट्वीट उनकी छवि पर एक छींटा साबित हो सकता था. इस ट्वीट के बाद ट्विटर ने अपनी नीतियों के लगातार उल्लंघन के आरोप में रनौत के अकाउंट को स्थायी रूप से बंद कर दिया.

प्रधानमंत्री के रूप में मोदी के कार्यकाल के दौरान 'उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक' और 'द कश्मीर फाइल्स' जैसी प्रोपेगंडा फिल्मों के निर्माण में वृद्धि हुई है. बॉलीवुड के कई सदस्यों को हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडे में शामिल किया गया है और उन्होंने भी खुले तौर पर सरकार को अपना समर्थन दिया है. इन सभी सितारों में रनौत मोदी के सबसे कट्टर समर्थक के रूप में उभर कर सामने आई हैं, जोकि उनके सबसे हालिया अवतारों में से एक है.

एक समय था जब रनौत को मीडिया में नारीवाद का आइकन माना जाता था. अपनी खुद की पहचान बनाने वाले एक सितारे के रूप में उनकी यात्रा और पुरुष-प्रधान फिल्म उद्योग की उनकी तीखी आलोचनाओं के चलते वह उदारवादियों की चहेती हुआ करती थी. बीते कई वर्षों में उन्होंने फिल्म उद्योग में एक बाहरी शख्स होने के बारे में विस्तार से बात की है. वह जोर देती हैं कि उनके पास अपने समकालीनों की तरह बसे-बसाये फिल्मी परिवारों की मिल्कियत नहीं है. जिस पेशे में अधिकतर कलाकारों को चुप्पी ओढ़े रहने के लिए जाना जाता है वहां रनौत की दो टूक बातें उन्हें औरों से अलग करती थी. वह हिंदी फिल्म उद्योग में लैंगिक वेतन अंतर के बारे में बोलने वाले पहले लोगों में से एक थीं.

रनौत का करियर निर्देशक विकास बहल की 2013 में आई फिल्म क्वीन में मुख्य किरदार रानी की भूमिका निभाने के बाद ऊंचाइयां छूने लगा. फिल्म में रनौत ने एक कलाकार के रूप में अपनी विश्वसनीयता स्थापित की. एसटीआरडीईएल/गैटी इमेजिस

फरवरी 2017 में रनौत ने निर्माता-निर्देशक करण जौहर के लोकप्रिय टॉक शो 'कॉफी विद करण' में अभिनेता सैफ अली खान के साथ शिरकत की. इस शो में जौहर अक्सर अपने महमानों से गपशप करते हुए मजाकिया अंदाज में उनसे कुछ गॉसिप-नुमा बातें पूछते थे. शो में आने वाले अधिकांश सितारे उनके चिर-परिचित होते थे. जौहर को बॉलीवुड में बहुत से लोगों के अभिनय करियर शुरू करने के लिए जाना जाता है- विशेष रूप से स्टार अभिनेताओं के बच्चों के. इस नाते उन्हें बॉलीवुड में सितारों की दुनिया का एक प्रमुख सूत्रधार भी माना जाता है.

शो के इस एपिसोड ने जल्द ही सुर्खियां बटोरीं. रनौत ने एकदम सफाई से कहा कि उनके करियर के अधिकांश समय में जौहर ने उन्हें हमेशा कमतर आंका है. उन्होंने कहा, "अगर मुझे इतनी बार न सुनने को न मिली होती और मेरा मजाक न उड़ाया गया होता तो मैं कभी सफल नहीं हो पाती." उन्होंने जौहर को फिल्म उद्योग में "भाई-भतीजावाद का झंडाबरदार" करार दिया और कहा कि अगर उन्होंने कभी अपनी बायोपिक बनाई तो उसमें जौहर को एक "फिल्म माफिया" के रूप में दर्शाया जाएगा. जब जौहर ने उनसे पूछा कि बॉलीवुड के तीन शीर्ष पुरुष अभिनेता- सलमान, शाहरुख और आमिर में से किस खान के साथ काम करने में उनकी दिलचस्पी होगी, तो रनौत ने जवाब दिया, "किसी के साथ नहीं." उन्होंने कहा कि वह ऐसी फिल्म में काम नहीं करना चाहती जिसमें उनके पास स्क्रीन टाइम में बराबर हिस्सा न हो.

इस समय रनौत का सिक्का बुलंदी पर था. वह फिल्म जगत में एक ऐसे प्रतिभाशाली अभिनेता के रूप में नाम कमा रही थी जो न केवल एक फिल्म को अपने बलबूते पर खींच सकती थी बल्कि कई पुरस्कार भी जीत चुकी थी. उनके पास 'क्वीन' और 'तनु वेड्स मनु' जैसी फिल्में थी जो बॉक्स ऑफिस पर बड़े पैमाने पर हिट रही थीं. अपनी कई फिल्मों में उन्होंने मजबूत, व्यक्तिगत, विचित्र और अगुआ महिला के किरदार निभाए थे. कभी अपने उच्चारण के लिए उपहास का पात्र बनने वाली और करीना कपूर जैसे अभिनेताओं की लीग से दूर रखी जाने वाली रनौत अब एक लंबा सफर तय कर चुकी थी.

यह एपिसोड प्रसारित होने के कुछ महीने बाद न्यूयॉर्क में एक पुरस्कार समारोह में जौहर, जिनके पिता एक बड़े फिल्म निर्माता थे और उनके सह-मेजबान अभिनेता वरुण धवन और सैफ अली खान जो बॉलीवुड की सफल हस्तियों के बेटे हैं- ने रनौत पर एक तंज कसा. तीनों ने स्टेज पर एक स्वर में कहा कि "नेपोटिज्म रॉक्स!" मामले के तूल पकड़ने और व्यापक आलोचना होने के बाद तीनों ने रनौत से माफी मांगी. 

इस घटना के कुछ समय बाद कुलीन पटौदी परिवार से आने वाल खान ने एक खुला पत्र लिखा, जो बेहद असंवेदनशील था. उन्होंने लिखा, "यूजीनिक्स का मतलब है अच्छे घर में पैदा होना. और फिल्मों के संदर्भ में धर्मेंद्र या अमिताभ बच्चन या शर्मिला टैगोर का बेटा होने के रूप में हमारे जीन्स (जिस डीएनए के साथ हम पैदा हुए हैं, न कि वह नीली पैंट जिसे हम पहनते हैं) निश्चित तौर पर मायने रखते हैं." यह एक ऐसा बयान था जिसने भारत की सामाजिक वास्तविकताओं के बारे में बॉलीवुड की शून्यता को उजागर किया. रनौत ने एक पत्र के साथ इन टिप्पणियों का जवाब दिया. "क्या आप यह कह रहे हैं कि कलात्मक कौशल, कड़ी मेहनत, अनुभव, एकाग्रता, उत्साह, उत्सुकता, अनुशासन और प्रेम पारिवारिक जीन्स के माध्यम से विरासत में मिल सकते हैं? अगर आपकी बात सही होती, तो मैं आज खेती-बाड़ी कर रही होती."

यह दीगर है कि समय के साथ साफ हुआ कि रनौत एक अलग ही संदर्भ में जीन्स की शुद्धता में विश्वास करती हैं. 2021 में परिधान ब्रांड मान्यवर ने कन्यादान की हिंदू रस्म की आलोचना करते हुए एक नया विज्ञापन जारी किया. कन्यादान की रस्म में बेटी के विवाह पर उसे दूसरे परिवार के बड़े-बुजुर्गों को "सौंप" दिया जाता है जैसे कि वह एक वस्तु हो. तुरंत ही हिंदू दक्षिणपंथियों ने विज्ञापन पर धार्मिक परंपराओं का अनादर करने का आरोप लगाया. रनौत ने कहा कि कन्यादान की प्रथा के पीछे एक "जटिल विज्ञान" है, जिसे "मंदबुद्धि जागरूक" लोग नहीं समझ पाएंगे. उन्होंने लिखा, "जहां तक बात जीन्स और खून की है तो हिंदू धर्म बहुत संवेदनशील और वैज्ञानिक है." रनौत ने कहा कि एक भावी दुल्हन को "न केवल अपने पिता की, बल्कि उन सभी पूर्वजों की अनुमति की आवश्यकता भी होती है जिनका खून उसकी नसों में बह रहा होता है."

यह कहना मुश्किल है कि रनौत ने किस मोड़ पर हिंदुत्व की रानी के अपने नए अवतार में ढलना शुरू किया. लेकिन फिल्मी जगत के अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि उनका यह रूप 2016 में अभिनेता ऋतिक रोशन के साथ एक कथित अफेयर के बाद मीडिया में सामने आया. साथी अभिनेताओं और फिल्मी दुनिया से बाहर के कई लोगों के प्रति उनके तेवर तीखे होते गए और वह अक्सर भाषा की मर्यादा खोती नजर आईं. पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के साथ मुंबई की तुलना करने वाले अपने बयान की आलोचना के पलटवार में उन्होंने अभिनेता और शिवसेना सदस्य उर्मिला मातोंडकर को एक "सॉफ्ट पोर्न स्टार" कहा. अमूमन मोदी सरकार के खिलाफ मुखर रहने वाली तापसी पन्नू और स्वरा भास्कर को उन्होंने "बी ग्रेड" अभिनेता कहा. अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत की जांच के दौरान उन्होंने सोनम कपूर को "माफिया बिम्बो" और रिया चक्रवर्ती को "छिटपुटिया नशेड़ी" कहा. इन सभी वाकयों के चलते उन्हें "बॉलीवुड की बेलगाम रानी" के नाम से जाना जाने लगा है. लेकिन इन सबसे इतर हिंदू दक्षिणपंथ के एजेंडे को आगे बढ़ाने में उनकी भूमिका सबसे ज्यादा विवादास्पद रही है.

न्यूज18 मीडिया समूह द्वारा आयोजित 2018 राइजिंग इंडिया समिट में रनौत ने पहली बार खुले तौर पर मोदी का समर्थन किया था. उन्होंने खुद को "मोदी का बड़ा प्रशंसक" बताते हुए कहा, "जब हमारे यहां एक चायवाला प्रधानमंत्री बनता है, तो मैं हमेशा कहती हूं कि यह उनकी नहीं बल्कि मेरे लोकतंत्र की जीत है." रनौत ने कहा कि हमेशा देश को प्रभावित करने वाले मुद्दों के बारे में बोलते रहना आत्मसम्मान की कमी को दर्शाता है. “युवा पीढ़ी हमेशा शिकायत करती रहती है कि हमारे यहां कोई बुनियादी ढांचा नहीं है, साफ-सफाई नहीं है. यह रवैया ठीक नहीं है.” गौरतलब है कि बीते कुछ समय से देश में अहम मुद्दों पर सवाल करने वालों को "पाकिस्तान जाने" की नसीहत दी जाती है और किसी भी तरह की अंतरराष्ट्रीय आलोचना को यह कहकर खारिज किया जाता है कि यह भारत का आंतरिक मामला है. इस संदर्भ में कंगना के बयान को देश में सामाजिक विमर्श की मौजूदा स्थिति के परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है.    

 

मार्च 2019 में पत्रकार जस्टिन राव ने रनौत से पूछा कि पुलवामा हमले के बावजूद उनकी फिल्म पाकिस्तान में क्यों दिखाई जा रही थी. उन्होंने चार महीने बाद अपनी फिल्म ‘जजमेंटल है क्या’ के प्रचार कार्यक्रम में सवाल पर बात की. प्रोदीप गुहा/गैटी इमेजिस

2019 के आम चुनाव में रनौत ने प्रधानमंत्री के रूप में मोदी के फिर से चुने जाने का समर्थन किया. उन्होंने हिंदुस्तान टाइम्स से कहा, "वह सबसे योग्य उम्मीदवार हैं. वह आज जहां हैं, अपने बलबूते पर हैं, न कि अपने परिवार की वजह से. वह लोकतंत्र के असली नेता हैं."

2020 में मोदी सरकार ने नए कृषि कानूनों की घोषणा की. किसानों ने इसे खेती-बाड़ी को कॉर्पोरेट घरानों को सौंपे जाने के रूप में देखा और जल्द ही दिल्ली और आसपास के इलाकों में विरोध प्रदर्शन होने लगे. साल भर चले किसान आंदोलन ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा. इसमें संगीतकार रिहाना और जलवायु एक्टिविस्ट ग्रेटा थुनबर्ग जैसी हस्तियों ने भी किसानों के प्रति अपना समर्थन जताया. फरवरी 2021 में रिहाना ने आंदोलन के बारे में एक लेख ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने प्रश्न किया, "हम इस बारे में बात क्यों नहीं कर रहे हैं?" जल्द ही आंदोलन को मिले अन्तराष्ट्रीय समर्थन के विरोध में बहुत से भारतीय क्रिकेटरों और फिल्म सितारों ने तेजी से सरकार का पक्ष लिया और आंदोलन को "प्रोपेगंडा" ठहराया. 

रनौत ने बाकी सबसे एक कदम आगे जाते हुए ट्वीट किया, "कोई भी इसके बारे में बात नहीं कर रहा है क्योंकि ये किसान नहीं आतंकवादी हैं, जो भारत को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं." उन्होंने आरोप लगाया कि यह आंदोलन असल में भारत पर आक्रमण करने और इसे "अमेरिका की तरह एक चीनी कॉलोनी" बनाने की साजिश थी. उन्होंने प्रदर्शनकारियों को "खालिस्तानी आतंकवादी" बताया और रिहाना को "पोर्न सिंगर" कहा, जिसे आंदोलन के बारे में ट्वीट करने के लिए 100 करोड़ रुपए का भुगतान किया जा रहा था. उसी दिन उन्होंने थुनबर्ग को एक "बौड़म और बिगड़ैल" इंसान कहा, जिसका "लेफ्ट लॉबी" द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा था.

2020 में भारत का चौथा सबसे बड़ा नागरिक पुरस्कार पद्म श्री प्राप्त करने के बाद दिए गए एक भाषण में रनौत ने अपने करियर के कुछ चुनिंदा निर्णयों के बारे में बात की. उन्होंने कहा कि उन्होंने गोरेपन की क्रीम के विज्ञापनों और आइटम गीतों को कभी स्वीकार नहीं किया. उन्होंने कहा, "मैंने पैसों से ज्यादा दुश्मन कमाए. और फिर जब मैं देश के बारे में अधिक जागरूक हुई, तो मैंने उन ताकतों के खिलाफ आवाज उठाई जो भारत को तोड़ने का प्रयास करती हैं, चाहे वे जिहादी हों, खालिस्तानी हों या दुश्मन देश हों." इसके कुछ समय बाद उन्होंने एक टेलीविजन साक्षात्कार में कहा कि भारत को अपनी वास्तविक स्वतंत्रता 2014 में मिली, जब मोदी पहली बार प्रधानमंत्री चुने गए थे, न कि 1947 में. कल की उदारवादी रनौत अब हिंदुत्व की योद्धा रानी बनने का सफ़र मुक्कम्मल करने की राह पर निकल चुकी थी. उनकी पिछली फिल्मों के एक निर्माता ने नाम न छापने की शर्त पर मुझे बताया, "वह बिल्कुल भी यह इंसान नहीं थीं. वह एक बहुत ही ईमानदार, असल इंसान थी जिसे वास्तव में बस अच्छे काम और पहचान की दरकार थी."

रनौत का जन्म हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के भांबला में हुआ था. उनका गांव, जिसे सूरजपुर के नाम से भी जाना जाता है, का नाम उनके परदादा सरजू सिंह रनौत के नाम पर है, जो कांग्रेस के पूर्व विधायक थे. उनके दादा एक नौकरशाह थे. उनके पिता एक व्यवसायी हैं, और उनकी मां एक स्कूली शिक्षिका हैं. रनौत ने हमेशा से अपनी गौरवपूर्ण राजपूत पहचान पर जोर दिया है- उन्होंने एक साक्षात्कार में दावा किया था कि वह एक शाही वंश से है. अपनी पहचान पर उनका गर्व मणिकर्णिका में उनकी निभाई मुख्य भूमिका में भी देखा जा सकता है. रनौत का परिवार एक विशाल हवेली में रहता है और उनके पास कई एकड़ जमीन है. बॉलीवुड में खुद को एक 'बाहरी' का दर्जा देते समय वह शायद ही कभी इस धन-दौलत और पारिवारिक रसूख का उल्लेख करती हैं.

रनौत को अपने स्कूल के वर्षों से ही मॉडलिंग और फिल्मों में रुचि थी, जिससे उनके परिवार को काफी परेशानी थी. वे चाहते थे कि वह डॉक्टर बने. उन्होंने कई मर्तबा इस बारे में बात की है कि कैसे उन्होंने बड़े होने के दौरान सामाजिक अपेक्षाओं को धता बताया. उसने एक साक्षात्कार में कहा था, "अगर मेरे पिता मेरे भाई को प्लास्टिक की बंदूक उपहार में देते और मेरे लिए गुड़िया लाते, तो मैं इसे स्वीकार नहीं करती थी. मैंने हमेशा इस भेदभाव पर सवाल उठाया."

रनौत ने अपने अभिनय सफर की शुरुआत थिएटर से की. उनका पहला नाटक गिरीश कर्नाड का तलेदंड था, जिसका निर्देशन अरविंद गौर ने किया था. मूल रूप से कन्नड़ में लिखे गए इस नाटक में बारहवीं शताब्दी के धार्मिक सुधार आंदोलन लिंगायतवाद के उदय की कहानी बताई गयी है. उनके पहले नाटक की प्रगतिशील कहानी और उनकी हालिया फिल्मों के राष्ट्रवादी रुझान तस्दीक करते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में रनौत की कलात्मक दृष्टि और रचनात्मक प्रयासों में एक बड़ा बदलाव आया है.

रनौत 19 साल की थीं जब उन्होंने 2006 में अनुराग बसु द्वारा निर्देशित क्राइम थ्रिलर फिल्म 'गैंगस्टर: ए लव स्टोरी' से बॉलीवुड में अपनी शुरुआत की. इसमें उन्होंने एक गैंगस्टर के साथ अभिशप्त रिश्ते में बंधी बार डांसर का किरदार निभाया. फिल्म का निर्माण महेश भट्ट और मुकेश भट्ट के प्रोडक्शन हाउस विशेष फिल्म्स द्वारा किया गया था. फिल्म के चार साल बाद उन्होंने पत्रिका कॉस्मोपॉलिटन को बताया, "जब आप एक बाहरी शख्स होते हैं, तो आपके पास कहानी और किरदार को लेकर बहुत विकल्प नहीं होते हैं. आपको जो मिलता है, आप उसे स्वीकार कर लेते हैं." इस भूमिका के लिए उन्होंने कई पुरस्कार जीते.

बसु ने मुझे रनौत और अपनी पहली मुलाकात के बारे में बताया, जब वह ऑडिशन के लिए उनके ऑफिस आई थी. वह कहते हैं, “वह काफी नाराज थी और मेरे एक असिस्टेंट पर भड़की हुई थी कि मैं दो घंटे से इंतजार कर रही हूं और आप मेरा ऑडिशन नहीं ले रहे हैं. मुझे इसी आग की जरूरत थी. और मैंने उसमें ये आग देखी.” बसु ने इसके बाद रनौत के साथ दो और फिल्मों में काम किया.

वह कहते हैं, "वह एक स्पंज की तरह है. वह लोगों की सुनेगी और उसे आत्मसात कर लेगी. वह सीखने के लिए लालायित रहती है.” वह याद करते हैं कि अक्सर गैंगस्टर के सेट पर वह निर्माता महेश भट्ट के साथ राजनीति पर चर्चा करते थे. भट्ट राजनीतिक रूप से मुखर हैं और अक्सर बीजेपी सरकार की आलोचना करते हैं. बसु ने मुझे बताया कि रानौत "उनमें से किसी भी चर्चा में हिस्सा नहीं लेती थी. उसकी राय, उसके सही और उसके गलत, सब उसके पिछले कुछ सालों का हासिल है."

रनौत के पूर्व निर्माता जोर देकर कहते हैं कि फिल्म जगत में उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया गया. उनकी मोटी उच्चारण वाली अंग्रेजी का लगातार मजाक बनाया जाता था और उन्होंने फिल्म की शूटिंग के बीच अंग्रेजी सीखने के लिए एक  ट्यूटर रखा हुआ था. लेकिन इससे उनके उत्साह में कोई कमी नहीं आई. 2011 के एक साक्षात्कार में वह कहती हैं, "यह इंडस्ट्री आपको किसी दूसरी जगह के मुकाबले बहुत अधिक स्वतंत्रता देती है. यहां आप जो चाहते हैं वह कर सकते हैं, जैसे हैं वैसे रह सकते हैं, जो चाहते हैं पहन सकते हैं, जो आपको पसंद है उसे कह सकते हैं और जैसे चाहे वैसे अपने पैसे खर्च कर सकते हैं. पता नहीं क्यों लोग अपनी लड़कियों को इस इंडस्ट्री में भेजने से इतना डरते हैं. जैसे मेरे माता-पिता डरते थे.”

2010 में फिल्म पत्रकार अन्ना वेट्टीकाड से बात करते हुए रनौत ने तर्क दिया कि यह एक "अच्छी बात" है कि फिल्म जगत में अधिकांश प्रमुख अभिनेताओं के पास अपने-अपने मंझे हुए मेंटर मौजूद हैं. उन्होंने "स्टार किड्स" को दी जाने वाली वरीयता की तुलना एक स्वतंत्रता सेनानी के वंशज के रूप में प्री-मेडिकल प्रवेश परीक्षा में खुद को मिले कोटे से की. एक दशक बाद, हालांकि, उन्होंने तर्क दिया कि सामाजिक रूप से हाशिए पर रहने वाले समूहों के लिए संविधान द्वारा तय आरक्षण को समाप्त कर दिया जाना चाहिए. उन्होंने अगस्त 2020 में ट्वीट किया, “जाति व्यवस्था को आधुनिक भारतीयों ने खारिज कर दिया है. छोटे शहरों तक में हर कोई जानता है कि यह अब कानून और व्यवस्था द्वारा स्वीकार्य नहीं है. अब यह केवल कुछ लोगों के लिए एक खेल है जिसमें उन्हें दूसरों को दुःख पहुंचाकर मज़ा आता है. बस हमारा संविधान ही आरक्षण के चलते अब तक इसे बनाये हुए है." अपनी बात के माध्यम से रनौत एक ऐसे प्रचारित झूठ को दोहरा रही थी, जिसमें अक्सर तर्क दिया जाता है कि आरक्षण जैसी सकारात्मक नीतियां ही जाति व्यवस्था के लिए जिम्मेदार हैं.

2013 आते-आते रनौत का करियर हिलोरे मार रहा था. तभी निर्देशक विकास बहल ने उन्हें अपनी फिल्म 'क्वीन' में मुख्य किरदार रानी की भूमिका के लिए चुना. इस फिल्म ने एक कलाकार के रूप में रनौत की विश्वसनीयता स्थापित की. उनके पूर्व निर्माता ने मुझे बताया, "उस समय उसकी स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी. वह एक या दो फिल्मों के आने का इंतजार कर रही थी. और वह वास्तव में किसी बड़ी सफलता के लिए भूखी थी.” रनौत इस से पहले 2011 में आनंद एल राय द्वारा निर्देशित रोमांटिक कॉमेडी 'तनु वेड्स मनु' के साथ व्यावसायिक सफलता का स्वाद चख चुकी थी. यह फिल्म हिट रही थी और चार साल बाद इसके सीक्वल ने पहले ही हफ्ते में 50 करोड़ रुपए कमाए थे. 

उनके निर्माता कहते हैं की इन सफलताओं के बाद रनौत को यह सवाल परेशान करने लगा था कि उन्हें "अन्य महिला सुपरस्टारों की तरह सम्मान क्यों नहीं दिया जा रहा था?" वह याद करते हैं कि रनौत पूछती थी, "आखिर लोग मुझे वैसे क्यों नहीं देखते, जैसे करीना को देखते हैं?" वह इस बात से सहमति जताते हैं कि फिल्म उद्योग में एक वंश के अभिनेताओं को ज्यादा महत्व दिया जाता है. वह कहते हैं,  “देखिए, जब वह भाई-भतीजावाद की बात करती है, तो यह काफी हद तक सच भी है. लेकिन आप कहीं भी जाएं, यह पूरा देश ही भाई-भतीजावाद पर बना है.” वह कहते हैं कि रनौत ने साबित कर दिया था कि बाहरी होने के बावजूद हिंदी सिनेमा में सफल होना संभव है. बीते कई वर्षों में रनौत की लड़ाइयों ने कई रूप ले लिए हैं, और वह उनमें कूदने और यहां तक कि उन्हें सामने से शुरू करने तक के लिए तैयार दिखती हैं.

उदाहरण के लिए मणिकर्णिका को जनवरी 2019 में रिलीज किया जाना था, लेकिन एक उग्रवादी राजपूत संगठन करणी सेना ने इसकी स्क्रीनिंग रोकने की धमकी देते हुए आरोप लगाया कि फिल्म में लक्ष्मीबाई का एक ब्रिटिश अधिकारी के साथ संबंध दिखाया गया है. रनौत ने इसका कड़ा जवाब दिया. "अगर वे नहीं रुकते हैं, तो उन्हें पता होना चाहिए कि मैं भी एक राजपूत हूं और मैं उनमें से हर एक को नष्ट कर दूंगी." इस घटना के दो साल बाद जब रनौत का महाराष्ट्र सरकार के साथ टकराव हुआ, तो करणी सेना ने उनके साथ अपने मनमुटाव को भुलाते हुए रनौत को अपना समर्थन दिया.

नारीवाद पर अपने परस्पर विरोधाभासी रवैये के बावजूद रनौत को फिल्म उद्योग में पुरुष-प्रधान प्रथाओं को चुनौती देने वाले शख्स के रूप में देखा जाता रहा है. उन्होंने एक बार कहा था कि "नारीवाद शब्द का काफी दुरुपयोग किया गया है. मैं नारीवाद की किताबी परिभाषा से नहीं चलती. मैंने अपनी परिभाषा खुद बनाई है." फरवरी 2021 में रनौत ने एक लोकप्रिय शो में फिल्म उद्योग में यौन उत्पीड़न के बारे में बात करते हुए अपनी एक क्लिप ट्वीट की और लिखा, "यह देखो, जब कई साल पहले मैं बीस साल कुछ की उम्र में बुली-वुड को नारीवाद सिखा रही थी. जहां आप पढ़ रहे हैं, मैं उस स्कूल की प्रिंसिपल रही हूं." उनका इशारा था कि वह नारीवाद के बारे में "लिब्रू नारीवादियों" से कहीं अधिक जानती हैं.

अपनी राष्ट्रवादी साख को साबित करने की कोशिश में रनौत अक्सर साथी अभिनेताओं की पाकिस्तान को लेकर खिंचाई करने की कोशिश करती हैं. फरवरी 2019 में पुलवामा में एक आत्मघाती बम विस्फोट में 40 भारतीय सुरक्षा कर्मियों की हत्या के बाद अभिनेता शबाना आजमी और उनके पति गीतकार जावेद अख्तर ने आजमी के पिता शायर कैफी आजमी के कराची में होने वाले जन्म शताब्दी समारोह में शामिल होने की अपनी योजना रद्द कर दी थी. पर रनौत संतुष्ट नहीं थी. उन्होंने  आजमी को "राष्ट्र-विरोधी" घोषित करते हुए कहा कि उनके जैसे लोग "भारत तेरे टुकड़े होंगे गिरोह" को बढ़ावा देते हैं. रनौत ने पूछा, "उरी हमले के बाद पाकिस्तानी कलाकारों को प्रतिबंधित किए जाने के बाद भी उन्होंने कराची में कार्यक्रम आयोजित ही क्यों किया?"

उनकी यह आलोचना खुले तौर पर पाखंड थी. अक्टूबर 2018 में रनौत ने पाकिस्तानी फैशन डिजाइनर सायरा रिजवान द्वारा बनाए गए ब्राइडल कलेक्शन के लिए मॉडलिंग की थी. रनौत ने एक वीडियो में रिजवान के कलेक्शन का प्रचार भी किया था, जिसके बारे में कराची स्थित समाचार पत्र डॉन ने लिखा कि यह "एक बहुत ही सुंदर पहल है. ज्यादातर भारतीय हस्तियां ऐसा करने से बचती हैं क्योंकि उन्हें सीमा पार तनाव का डर रहता है."

मार्च 2019 में मणिकर्णिका के प्रचार के दौरान एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में आजमी पर किए गए हमले रनौत के पास लौटकर आए. प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के एंटरटेनमेंट पत्रकार जस्टिन राव ने रनौत से पूछा कि उनकी फिल्म पुलवामा हमले के बावजूद पाकिस्तान में क्यों चल रही थी, जो फिल्म की रिलीज के एक महीने से भी कम समय पहले हुआ था? रनौत ने अपने बचाव में कहा कि इस निर्णय को बदला नहीं जा सकता था क्योंकि फिल्म पहले ही वितरित की जा चुकी थी. जब राव ने फिर पूछा कि 2017 के उरी हमले के बाद पाकिस्तान के साथ सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर प्रतिबंध के बावजूद फिल्म को वहां दिखाया क्यों गया तो रनौत ने फिर से फिल्म के वितरकों के सर पर ठीकरा फोड़ा.

रनौत ने चार महीने बाद अपनी फिल्म 'जजमेंटल है क्या' के प्रचार के दौरान राव पर जवाबी हमला किया. उन्होंने कहा, "जस्टिन, तुम मेरे दुश्मन बन गए हो. तुम मेरे बारे में नीच बातें लिख रहे हो. तुम इतनी नीच सोच कैसे रख सकते हो?” राव ने जवाब दिया कि उन्होंने केवल सच लिखा था. रनौत ने आरोप लगाया कि राव ने मणिकर्णिका के लिए उन्हें " जिन्गोइस्टिक (कट्टर राष्ट्रवादी) महिला " बुलाया था. राव ने आरोप से इनकार करते हुए कहा कि उन्होंने कभी उनकी फिल्म के बारे में ट्वीट नहीं किया. उन्होंने कहा, "यह सही तरीका नहीं है, कंगना. आपके शक्तिशाली होने का मतलब ये नहीं है कि आप एक पत्रकार को धमकाएं."

एंटरटेनमेंट जर्नलिस्ट्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने इस मामले का संज्ञान लेते हुए राव को अपना समर्थन दिया और फिल्म की निर्माता एकता कपूर, जिन्होंने इस कार्यक्रम की मेजबानी की थी, को पत्र लिखकर माफी की मांग की. गिल्ड के बयान में कहा गया कि उन्होंने "सामूहिक रूप से सुश्री रनौत का बहिष्कार करने और उन्हें कोई मीडिया कवरेज नहीं देने का फैसला किया है." कपूर की कंपनी बालाजी टेलीफिल्म्स ने राव से माफी मांगी लेकिन रनौत ने नहीं. उनकी बहन और प्रबंधक रंगोली चंदेल ने पत्रकारों को देशद्रोही बताते हुए ट्वीट किया कि उन्होंने "गलत व्यक्ति से माफी की मांग" की है. उन्होंने गिल्ड को एक कानूनी नोटिस भेजा, जिसमें कहा गया कि उनके पास रनौत की कवरेज पर प्रतिबंध लगाने का कोई अधिकार नहीं है. रनौत ने इंस्टाग्राम पर राव और एंटरटेनमेंट जर्नलिस्ट्स गिल्ड को संबोधित करते हुए एक वीडियो पोस्ट किया. उन्होंने कहा, "कृपया मुझ पर जरूर प्रतिबंध लगायें. मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से आपके घरों में चूल्हा जलता रहे. आप मेरे ऊपर इस से बड़ा उपकार नहीं कर सकते हैं."

ऋतिक रोशन ने 2016 में मुंबई पुलिस को दी शिकायत में आरोप लगाया था कि रनौत ने उन्हें एक हजार से अधिक ईमेल भेजकर मानसिक रूप से परेशान किया था. मीतेश भूवड़/पीटीआई

चंदेल की बात करें तो उन्होंने रनौत की मैनेजर के रूप में सोशल मीडिया पर अपनी बहन के बयानों का आक्रामक बचाव कर खूब सुर्खियां बटोरी हैं. पहले वह अक्सर एसिड अटैक की पीड़िता के रूप में अपने संघर्ष के बारे में बात करती थी. 2006 में एक व्यक्ति ने उनके द्वारा अस्वीकार किये जाने पर उन पर तेजाब फेंक दिया था, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गयी थी. वह लिखती हैं कि रनौत, उनके माता-पिता और एक दोस्त, जो बाद में उनके पति बने, के मिले जुले प्रयासों के चलते ही वह एक बार फिर "जिंदा हो पाई". उनका सोशल-मीडिया प्रोफाइल रनौत की तस्वीरों से भरा हुआ है, जहां वह एक मौसी के रूप में चंदेल के बेटे को दुलार करती नजर आती हैं. वह पूरे दमखम से रनौत की सराहना करती हैं. 2017 में जब दोनों बहनों के बीच अनबन की खबरें आई तो चंदेल ने उन्हें तुरंत खारिज करते हुए बयान दिया, "मैं कंगना के साथ तब से हूं, जब से उन्होंने एक अभिनेत्री के रूप में शुरुआत की थी. उसने न केवल हमारा साथ दिया है, बल्कि हमारे करियर को भी खड़ा किया है."

ट्विटर पर अपनी बहन का बचाव करते हुए चंदेल नियमित रूप से अतिशयोक्तिपूर्ण और भड़काऊ बयान देती हैं जिसमें वह अक्सर धड़ल्ले से मुसलमानों के लिए "मुल्ला" जैसे अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करती हैं. अप्रैल 2020 में नीतियों के उल्लंघन के चलते उनके ट्विटर अकाउंट को स्थायी रूप से निलंबित कर दिया गया था. उन्होंने पोस्ट किया था कि 2024 में आम चुनाव करवाना "संसाधनों की बर्बादी" होगी, क्योंकि मोदी सरकार का सत्ता में आना तय है. तब्लीगी जमात पर कोविड-19 फैलाने के तमाम आरोपों के बीच उन्होंने ट्वीट किया कि मुसलमानों और "धर्मनिरपेक्ष मीडिया" की हत्या की जानी चाहिए.

निर्माता ने मुझे बताया कि रनौत की तरह ही चंदेल भी अपने हालिया अवतार के उलट पहले एक मिलनसार शख्स थी. वह कहते हैं कि चंदेल भले ही रनौत की मैनेजर हैं लेकिन "उनकी बिल्कुल नहीं चलती." वह याद करते हैं कि कई दफा चंदेल के ईमेल पर भेजे गए ईमेल का जवाब रनौत दिया करती थी.

मार्च 2016 में अभिनेता ऋतिक रोशन ने रनौत को मानहानि के लिए कानूनी नोटिस भेजा. दोनों कृष, कृष-3 और काइट्स जैसी फिल्मों में सह-कलाकार रह चुके हैं. नोटिस से दो महीने पहले एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में रनौत ने इशारों -इशारों में कहा था कि वह दोनों रिलेशनशिप में रह चुके हैं. यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें रोशन के कहने पर किसी फिल्म से बाहर किया गया था, रनौत ने हां में जवाब दिया. उन्होंने कहा, "मुझे नहीं पता कि पुराने प्रेमी ध्यान खींचने के लिए ऐसी बेवकूफी भरी हरकतें क्यों करते हैं." अपने कानूनी नोटिस में रोशन ने रनौत से सार्वजनिक माफी और एक बयान की मांग की, जिसमें स्पष्ट किया जाए कि वे कभी रिलेशनशिप में नहीं थे. उन्होंने मामले पर चुटकी लेते हुए ट्विटर पर लिखा कि वह पोप को डेट करना ज्यादा पसंद करेंगे.

रोशन ने अंततः मुंबई पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि किसी फर्जीवाड़े के तहत कोई रनौत को उनके नाम से ईमेल भेज रहा था. उन्होंने एक अन्य शिकायत में आरोप लगाया कि रनौत ने उन्हें एक हजार से अधिक ईमेल भेजे, जिनसे उन्हें मानसिक प्रताड़ना हुई. रनौत के वकीलों ने अंक-गणित के साथ इन आरोपों का जवाब दिया. उन्होंने लिखा, "आपके मुवक्किल (ऋतिक) ने दावा किया है कि कंगना को सही ईमेल आईडी के बारे में पता चलने के दिन से नोटिस भेजने की तारीख तक उन्हें एक दिन में 50 ईमेल प्राप्त हुए हैं. इस हिसाब से 601 दिनों में उनके पास 30,000 मेल आने चाहिए थे, न कि 1,439 मेल, जैसा उन्होंने नोटिस में दावा किया है. यह तथ्य आपके मुवक्किल द्वारा किए गए झूठे दावों और अतिशयोक्ति को उजागर करता है." 

इस विवाद की शुरुआत 2014 में करण जौहर की एक पार्टी में हुई जिसमें रनौत और  रोशन भी शामिल थे. रनौत के पूर्व निर्माता भी इस पार्टी में थे. उन्होंने मुझे बताया कि ‘क्वीन’ हाल ही में रिलीज हुई थी और इसलिए रोशन रनौत को फिल्म की सफलता पर बधाई देने के लिए उनके पास गए. निर्माता कहते हैं कि तब तक फिल्म उद्योग में यह चर्चा आम थी कि रनौत किसी सुपरस्टार के साथ रिलेशनशिप में रहने की महत्वाकांक्षा रखती थी. वह याद करते हैं, "जब उन्होंने कंगना को देखा तो वह बहुत ही प्यार और सम्मान से उनसे मिले. रोशन ने उनसे कहा कि 'मैं क्वीन के बारे में बहुत सी तारीफें सुन रहा हूं. मुझे यकीन है कि आपने इसमें बेहतरीन काम किया है. मुझे खेद है कि मैं अभी तक यह फिल्म देख नहीं पाया हूं.'” लेकिन रनौत ने जवाब दिया कि रोशन तो पहले ही उन्हें बता चुके हैं कि उन्हें फिल्म पसंद आई थी. रोशन ने इससे इनकार करते हुए उनसे पूछा, "मैंने यह कब कहा?" रनौत ने कहा कि उन्हें रोशन की ओर से एक ईमेल आया था. जब रोशन ने उन्हें ऐसा कोई ईमेल भेजने से इनकार किया तो रनौत और चंदेल पार्टी छोड़कर चले गए.

जल्द ही रनौत ने उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई और कहा कि रोशन ने अपना ईमेल एड्रेस उनके साथ साझा किया था. रोशन ने जोर देकर कहा कि वह किसी धोखेबाज के साथ संवाद कर रही थी और कोई भी रिश्ता महज उनकी कोरी कल्पना थी. रनौत ने 2017 के टेलीविजन शो आप की अदालत के एक एपिसोड के दौरान कहा, "कोई शख्स केवल तभी किसी चीज की कल्पना कर सकता है, जब वह चीज उसके पास न हो. मैं तो उनसे हर दिन सेट पर मिल रही थी, उन्हें जानती थी." जब पुलिस रनौत के कंप्यूटर को जब्त करने के लिए उनके घर गई, तो उन्होंने अपने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को जमा करने से इनकार कर दिया और दावा किया कि उनका मोबाइल फोन रिपेयर किया जा रहा है.

अक्टूबर 2017 में रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी ने इस विषय पर रोशन से सवाल किया. "तो कोई रिलेशनशिप नहीं था? कुछ भी रोमांटिक नहीं?" गोस्वामी ने बार-बार पूछा. रोशन ने जवाब दिया, "मैं नहीं जानता कि साथी कलाकारों की तारीफ करने की मेरी आदत के चलते उन्हें कुछ और ही भ्रम हुआ हो. मुझे नहीं पता...उदाहरण के लिए अगर वह अपने किसी तरह के प्रशिक्षण में समुद्र तट पर कलाबाजी या करतब जैसा कुछ अद्भुत करती थी, तो वह मुझे उसका एक वीडियो भेज देती थी. और मैं उसकी तारीफ करता था." गोस्वामी ने कहा कि रनौत पर व्यक्तिगत हमले न करने के लिए रोशन की सराहना की जानी चाहिए. आगे चलकर गोस्वामी और रनौत ने मिलकर पूरे बॉलीवुड को सुशांत सिंह राजपूत की असामयिक मृत्यु का जिम्मेदार ठहराया.

एक पटकथा लेखक ने मुझे नाम न छापने की शर्त पर बताया कि रनौत को इस बात से खासी ठेस पहुंची कि बॉलीवुड में किसी ने भी रोशन पर सवाल उठाने के लिए उनका बचाव नहीं किया. फिल्म उद्योग के एक वरिष्ठ जानकार ने मुझे यह भी बताया कि बॉलीवुड में लंबे समय तक दरकिनार किए जाने को लेकर उनके भीतर "पनप रहा गुस्सा" अब आपे से बाहर होने लगा था. राजनीतिक ताकतों के साथ उनकी गलबहियां इस गुस्से के लिए मुफीद साबित हो सकती थी. वह कहते हैं कि मोदी के सत्ता में आने के बाद हिंदुत्व के कई समर्थक सामने आए हैं लेकिन किसी ने भी इसे अपनी सार्वजनिक छवि के साथ ऐसे नहीं मिलाया, जैसे रनौत ने. पटकथा लेखक ने बताया, "बहुत से लोग कहते हैं कि मोदी के करीब होने के चलते उन्होंने अपने फायदे के लिए स्थिति का लाभ उठाया और दिमाग में यह बात पक्की कर ली कि 'मैं इन्हें दिखा दूंगी.' समय बीतने के साथ उनका यह बर्ताव बद से बदतर होता चला गया."

अप्रैल 2017 में रोशन के वकीलों ने एक और पुलिस शिकायत दर्ज की, जिसमें आरोप लगाया गया कि रनौत ने रोशन को यौन रूप से स्पष्ट ईमेल भेजे थे. उस समय महाराष्ट्र में बीजेपी सत्ता में थी. उनके पूर्व निर्माता ने मुझे बताया, "जांच के परिणामों से खुद को बचाने के लिए रनौत ने राज्य सरकार से संपर्क किया. केवल बीजेपी ही उन्हें बचा सकती थी. इन सभी ईमेल में बेहद संवेदनशील सामग्री थी, जिसमें उनके स्वयं के बनाए हुए न्यूड वीडियो भी शामिल थे. यह सभी सबूत उन्हें जेल भेजने के लिए काफी थे." रोशन द्वारा दायर की गई शिकायत, जिसे रिपब्लिक टीवी ने हासिल किया गया था, में चंदेल के ईमेल जवाब भी दर्ज थे. उन्होंने रोशन पर आरोप लगाया था कि उनका चंदेल की "बहन के साथ संबंध था और उन्होंने सुश्री रनौत के खाते को हैक कर उन्हें खुद की तस्वीरें और वीडियो लेने के लिए मजबूर किया था." निर्माता याद करते हैं कि जब वे और रनौत दोस्त थे, तब रनौत ने कभी भी बीजेपी या किसी अन्य राजनीतिक दल के प्रति कोई निकटता नहीं जताई. वह कहते हैं, "यह सब तब शुरू हुआ जब फॉरेंसिक टीम उनके घर गई. यह सब उन्होंने खुद को बचाने के लिए किया. नहीं तो उन्हें जेल जाना पड़ता."

रोशन की शिकायत में चंदेल की अभद्र भाषा की ओर भी इशारा किया गया था. रानौत को कथित तौर पर रोशन से मिले ईमेल के बारे में भ्रम दूर करने के लिए रोशन चंदेल से बात करने की कोशिश कर रहे थे. जब उन्होंने सुझाव दिया कि रनौत के लैपटॉप पर आए ​​मूल ईमेल से जालसाजों को पकड़ने में मदद मिल सकती है, तो चंदेल ने उन पर अपनी बहन का "भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक बलात्कार" करने का आरोप लगाया. शिकायत में कहा गया है, "झूठे आरोपों से भरे इस तरह के बेतुके और गलत ईमेल मिलने पर हमारे मुवक्किल ने फैसला किया कि वह इस तरह के अतार्किक इंसान पर अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहते हैं और उन्होंने पूरे मुद्दे को नजरअंदाज करने का फैसला किया."

मैंने रनौत और चंदेल को कई साक्षात्कार अनुरोध अनुरोध भेजे, लेकिन इन अनुरोधों को खारिज कर दिया गया. मैंने रनौत के प्रबंधक और चंदेल को विस्तृत प्रश्नों की एक सूची भी भेजी. यह सूची देखने के बाद चंदेल ने मुझे कुछ संदेश भेजे: "सही में?? क्या आप अभी भी उस युग में हैं? आगे बढ़िये!" "इन सभी सवालों का जवाब पहले ही दिया जा चुका है !!! बहुत पहले."

रनौत के कई सहयोगियों के अनुसार उनके साथ काम करना कठिन होता जा रहा है. पूर्व में उनका प्रचार संभालने वाली कंपनी की एक कर्मचारी ने मुझे बताया, "हमें हर दिन सुबह 7 बजे तक उनके बारे में छपे हर लेख को उनके पास भेजना होता था." उन्होंने कहा कि रनौत की थका देने वाली मांगों के चलते उनके कई साथियों ने काम छोड़ दिया था. इस प्रचारक ने मुझसे कहा कि मैं उनकी या उनकी कंपनी की पहचान का खुलासा न करूं. उनकी चिंताएं वाजिब थी. जून 2015 में रनौत ने कथित तौर पर उनके बारे में नकारात्मक कहानियां फैलाने के लिए एक अन्य पीआर फर्म पर मुकदमा दायर किया था.

जुलाई 2020 में फिल्म निर्माता अनुराग कश्यप, जिन्होंने कभी रनौत को "बहुत अच्छा दोस्त" बताया था, ने ट्वीट किया, "जो पुराने निर्देशक कभी कंगना की सराहना करते थे, अब उनके साथ काम करने से दूर भागते हैं." एक लंबे ट्विटर थ्रेड में कश्यप ने लिखा कि वह नई कंगना को नहीं पहचानते हैं. दो महीने बाद छायाकार पीसी श्रीराम ने खुद को एक फिल्म से इसलिए बाहर कर लिया, क्योंकि इसमें रनौत मुख्य भूमिका में थी. उन्होंने ट्वीट किया, "मैं अंदर ही अंदर असहज महसूस कर रहा था और मैंने निर्माताओं को यह बात बताई समझाई और वे मान गए. कभी-कभी हमें सिर्फ वही करना चाहिए जो हमें सही लगता है." मई 2021 में फैशन डिजाइनर आनंद भूषण और रिमज़िम दादू ने घोषणा की कि वे रनौत के साथ अपनी साझेदारी समाप्त कर रहे हैं और फिर कभी उनके साथ काम नहीं करेंगे. भूषण ने इंस्टाग्राम पर लिखा, "एक ब्रांड के तौर पर हम नफरती बातों का समर्थन नहीं करते हैं." दादू ने इसी तर्ज पर एक बयान दिया और कहा कि "सही काम करने का कोई समय नहीं होता."

धार्मिक अल्पसंख्यकों और फिल्मी जगत के कई नामों के खिलाफ बयानबाजी के बावजूद अधिकांश प्रमुख निर्माता रनौत के साथ काम कर रहे हैं. उनकी आगामी फिल्म ‘तेजस’, जिसमें वह एक वायु सेना पायलट की भूमिका निभा रही हैं, का निर्माण आरएसवीपी मूवीज द्वारा किया जा रहा है, जो फिल्म उद्योग के सबसे बड़े प्रोड्यूसर्स में गिने जाने वाले रोनी स्क्रूवाला का प्रोडक्शन हाउस है. 2019 में आरएसवीपी मूवीज ने ‘उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक’ का निर्माण किया, जिसे बीजेपी नेताओं द्वारा व्यापक रूप से प्रचारित किया गया था. तेजस के फिल्मांकन से पहले रनौत ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की और भारतीय वायु सेना की मंज़ूरी के लिए उनके साथ फिल्म की एक स्क्रिप्ट साझा की. सत्ताधारी ताकतों की आलोचना करने वाली फिल्में बनाना तो दूर, प्रोडक्शन हाउस अब सरकार की मंजूरी के लिए एक दूसरे से होड़ लगा रहे हैं. दर्शकों को लुभाने के लिए अब फिल्में सरकार से मिली मंजूरी को प्रचार के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं.

‘जजमेंटल है क्या’ का सह-निर्माण करने वाली एकता कपूर नियमित रूप से रनौत के साथ काम करती हैं. उन्होंने हाल ही में रियलिटी शो 'लॉक-अप' का निर्माण किया, जिसमें रनौत ने होस्ट की भूमिका निभाई. शो में रनौत एक जेलर की भूमिका में नजर आई. शो में शामिल प्रतियोगी पहलवान और बीजेपी नेता बबीता फोगट, कॉमेडियन मुनव्वर फारुकी और उद्यमी तहसीन पूनावाला जैसी हस्तियों को कैदी की भूमिका में दिखाया गया. जब रनौत से कपूर के साथ काम करने के बारे में पूछा गया, जो एक प्रमुख फिल्म परिवार से नाता रखती हैं- उनके पिता जीतेंद्र 1960 के दशक के लोकप्रिय स्टार थे और उनकी मां शोभा, बालाजी टेलीफिल्म्स की प्रबंध निदेशक हैं- तो उनका जवाब था कि वह कभी भी नेपोटिज्म (भाई-भतीजावाद) के खिलाफ नहीं थी. “मुझे नेपोटिज्म (भाई-भतीजावाद) से कभी कोई समस्या नहीं थी. मेरा मुद्दा यह था कि नेपोटिज्म (भाई-भतीजावाद) के कारण बाहरी लोगों को गुटबाजी का शिकार न होना पड़े. दोनों में अंतर है." उन्होंने कहा कि कपूर कभी भी "गुटबाजी गिरोह" का हिस्सा नहीं रही हैं.

अपने सहयोगियों के साथ रनौत के विवाद हमेशा राजनीति तक सीमित नहीं रहे हैं. 2017 में पटकथा लेखक अपूर्व असरानी ने उन पर फिल्म 'सिमरन' की पटकथा का श्रेय लेने का आरोप लगाया, जिसमें रनौत ने प्रमुख भूमिका निभाई थी. असरानी ने एक फेसबुक पोस्ट में लिखा, "यह मेरी मेहनत का गबन है. पर मेरे पास इस झूठ को सामने लाने के अलावा कोई चारा नहीं है, भले ही मझे उनके प्रशंसकों की नाराजगी ही क्यों न झेलनी पड़े."

इस घटना के दो साल बाद कृष जगरलामुडी को अचानक ही ‘मणिकर्णिका’ के निर्देशक के रूप में हटा दिया गया. रनौत की शिकायत थी कि अन्य अभिनेताओं को उनसे अधिक अहम भूमिकाएं दी जा रही थी और पूरी फिल्म "एक भोजपुरी फिल्म" जैसी लगने लगी थी. रनौत ने खुद निर्देशक के रूप में पदभार संभाला और फिल्म के कई हिस्सों को फिर से शूट किया गया. जल्द ही उनके सह-कलाकार सोनू सूद ने यह कहते हुए फिल्म छोड़ दी कि उनके अस्सी प्रतिशत दृश्य हटा दिए गए थे. जगरलामुडी ने ट्वीट किया, "मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझे किसी की चालबाजियों और झूठ के चलते अपनी फिल्म बनाने की क्षमता का सबूत देना पड़ेगा."

जनवरी 2021 में रनौत ने कश्मीरी शासक दीद्दा पर अपनी आगामी फिल्म की घोषणा की थी. रूपा पब्लिकेशन

रनौत पर श्रेय चुराने के और भी आरोप लगते रहे हैं. जनवरी 2021 में रनौत ने अपनी आगामी फिल्म 'मणिकर्णिका रिटर्न्स: द लीजेंड ऑफ दिद्दा' की घोषणा की- जो एक पूर्व कश्मीरी शासक की बायोपिक है. उन्होंने ट्वीट किया, 'यह कश्मीर की एक रानी की अनकही कहानी है, जिसने गजनी के महमूद को एक बार नहीं, बल्कि दो बार हराया." फिल्म की घोषणा के ठीक बाद ज़ी के एक पूर्व कार्यकारी और 'दिद्दा: द वारियर क्वीन ऑफ कश्मीर' पुस्तक के लेखक आशीष कौल ने रनौत, चंदेल और फिल्म के निर्माता कमल जैन पर कॉपीराइट उल्लंघन का आरोप लगाते हुए उन्हें कानूनी नोटिस भेजा. फिल्म की घोषणा के दो महीने बाद कौल ने आरोप लगाया कि रनौत का ट्वीट भी उनके (कौल) द्वारा रनौत को भेजे गए एक पुराने ईमेल की शब्द-दर-शब्द नकल था.

मैं कौल से इस साल मार्च में मिली. उन्होंने मुझे बताया कि उन्होंने इस विषय पर फिल्म बनाने के इरादे से ही किताब लिखी थी. उन्होंने 2017 में इसे फिल्म राइटर्स एसोसिएशन के साथ एक स्क्रिप्ट के रूप में पंजीकृत भी किया था और इसके निर्माण के लिए रिलायंस और डिजनी के साथ बातचीत कर रहे थे. उन्होंने मुझे बताया, "मेरे पास एक पूरा ग्रंथ है जिसमें मैंने किरदारों के रेखाचित्रों से लेकर फिल्मांकन के स्थानों तक सब कुछ तैयार किया है. मैंने इस पर बहुत मेहनत की थी." कौल एक कश्मीरी पंडित हैं और उन्होंने मुझे बताया कि वह अक्सर अपने समुदाय की पीड़ाओं को लेकर रनौत के बयान सुनते रहते हैं, लेकिन उन्हें उनकी सहानुभूति संदेहास्पद लगती हैं. वह कहते हैं, "मैं भली-भांति जानता हूं कि जब कोई बड़ा नाम कश्मीरी पंडितों की बात करना शुरू करता है, तो वह इस मुद्दे से एक किस्म की उगाही भी करता है."

 2020 के अंत में शिवसेना और रनौत के बीच चल रही तनातनी के बीच प्रभात प्रकाशन समूह से कौल की पुस्तक का हिंदी अनुवाद आने की तैयारी थी. प्रकाशक ने कौल से कहा कि वे किताब की प्रस्तावना के लिए रनौत से संपर्क करें. इस वाकये को याद करते हुए वह बताते हैं, "मुझे किताब में उनके नाम से कोई परेशानी नहीं थी. मैंने इसके बारे में ज्यादा नहीं सोचा, क्योंकि प्रकाशक के साथ मेरे लंबे समय से अच्छे संबंध थे." इस काम में एक ज्योतिषी मनोज जैन ने मध्यस्थता की. अक्टूबर में जैन के आग्रह पर कौल ने दिद्दा की कहानी सुनाते हुए रनौत को एक ईमेल लिखा. उन्हें कोई जवाब नहीं मिला. जैन ने उन्हें बताया कि रनौत कहानी को लेकर उत्साहित हैं और कौल से मिलना चाहती हैं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. प्रकाशक ने अंततः प्रस्तावना के बिना ही किताब को छापने का फैसला किया. कौल को भी लगा कि बात यहीं खत्म हो गई. लेकिन वह गलत थे. वह कहते हैं कि जब उन्हें रनौत की घोषणा के बारे में पता चला, तो "पलभर के लिए जैसे मेरी धड़कन रुक गई थी." उन्होंने दावा किया कि रनौत का ट्वीट भी उनके ईमेल से लिया गया था- उन्होंने "एक पूर्ण विराम या अल्पविराम तक नहीं बदला था."

कौल ने मुझे बताया कि उनकी नानी के वशंज दिद्दा से थे और उनकी पुस्तक में ऐसी जानकारी है जो कोई अन्य स्रोत प्रदान नहीं कर सकता है. उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्हें दिद्दा पर किसी के भी फिल्म बनाने से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन "मैं चाहता हूं कि लोग मेरे नजरिए, मेरे काम और मेरी कहानी से दूर रहें." वह कहते हैं कि रनौत और कमल जैन ने यह सोचकर उनकी कहानी चुराई कि जो सब उनकी किताब में लिखा है, वह इंटरनेट पर भी आसानी से प्राप्त किया जा सकता है. "उन्हें बस ये लगा कि दिद्दा ने महमूद गजनी को हराया था...वाह क्या कहानी है!"

दो महीने बाद कौल ने रनौत पर मुंबई की एक अदालत में मुकदमा दायर किया. उन्होंने मुझे बताया, "जब मामला दर्ज किया गया था तब हर कोई मुझे ऐसे देखता था कि ये तो 'शिवसेना का होगा'." रनौत और राज्य सरकार का नेतृत्व करने वाली पार्टी शिवसेना के बीच टकराव जारी था और इसलिए रनौत के खिलाफ हुई शिकायत को राजनीति से प्रेरित माना जा रहा था. कौल कहते हैं, "पुलिस भी इसे गंभीरता से नहीं ले रही थी." उन्होंने कहा कि एक साल तक एफआईआर दर्ज नहीं की गई. आखिरकार इस साल मार्च में मुंबई पुलिस ने अदालत के आदेश के बाद रनौत, चंदेल, अक्षित (रनौत के भाई) और निर्माता कमल जैन के खिलाफ एफआईआर दर्ज की. कौल कहते हैं कि उस दिन रनौत के प्रशंसक इस खबर को सोशल मीडिया पर साझा करते हुए उनकी ही किताब के कवर फोटो को इस्तेमाल कर रहे थे. "मतलब कोई कितना मूर्ख हो सकता है?"

दिद्दा की कहानी को बड़े पर्दे पर लाने में रनौत की दिलचस्पी आश्चर्य की बात नहीं है, खासकर जब कहानी का खलनायक मुस्लिम हो. मोदी के शासन में मुस्लिम खलनायक वाली राष्ट्रवादी फिल्में बड़ी व्यावसायिक सफलताएं साबित हुई हैं.

बॉलीवुड को हमेशा सत्ताधारी दलों के साथ मधुर संबंध रखने पड़े हैं. लगभग तीन दशक पहले निर्देशक मणिरत्नम ने अपनी फिल्म 'बॉम्बे' की सुरक्षित रिलीज के लिए इसे पहले शिवसेना के संरक्षक बाल ठाकरे को दिखाया था. 1992 में मुंबई में हुई सांप्रदायिक हिंसा में एक हिंदू पुरुष और एक मुस्लिम महिला की कहानी दर्शाती इस फिल्म में ठाकरे से प्रेरित एक चरित्र को दिखाया गया था. फिल्म इतिहासकार गौतम चिंतामणि लिखते हैं कि ठाकरे इसे देखकर नाखुश थे और उन्होंने रत्नम से पूछा कि वह "किसी पात्र में दंगों के दौरान एक निश्चित दिशा में अपने अनुयायियों को उकसाने के लिए खेद जैसी झूठी भावनाओं को कैसे दिखा सकते हैं, जबकि असल में ऐसा कुछ नहीं था."

1999 में जब अभिनेता दिलीप कुमार को पाकिस्तान में सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-इम्तियाज से सम्मानित किया गया, उस समय सीमा पर कारगिल युद्ध छिड़ा हुआ था. तब पाकिस्तान की बुराई करना खुद को देशभक्त साबित करने का नया इम्तिहान बन गया था. ठाकरे ने कुमार से पुरस्कार वापस करने को कहा लेकिन कुमार ने इससे इनकार कर दिया था. दिल्ली की बीजेपी सरकार ने इस मुद्दे पर हंगामा करने से परहेज किया. मोदी, जो उस समय पार्टी के महासचिव थे, ने कहा कि पुरस्कार लौटाना "दिलीप कुमार का अपना फैसला है." ठाकरे ने कभी कोई चुनावी कार्यकाल नहीं संभाला लेकिन मुंबई (और बॉलीवुड) पर उनका एकछत्र राज चलता था. बीजेपी द्वारा देश भर में सांस्कृतिक स्थानों पर शिकंजा कसने से बहुत पहले शिवसेना मुंबई में काम करने वाले पाकिस्तानी कलाकारों का विरोध करती थी और अक्सर भारतीय मुस्लिम अभिनेताओं पर देश के प्रति अपनी वफादारी साबित करने का दबाव बनाए रखती थी. फिल्म उद्योग के वरिष्ठ जानकार ने मुझे बताया कि इन सब बातों के बावजूद बॉलीवुड ने हमेशा से निजी संबंधों और राजनीतिक विचारों को बड़े करीने से संभालते हुए शिवसेना के साथ अच्छे संबंध बनाकर रखे हैं. वह कहते हैं, "उनका रवैया हमेशा से साफ था. जब भी शिवसेना कोई समारोह आयोजित करती तो फिल्म उद्योग के सभी सितारे बड़ी संख्या में वहां शिरकत करते थे. वे सभी उनसे अच्छे संबंध बनाकर रखते थे क्योंकि शिवसेना बहुत शक्तिशाली पार्टी थी." वह ये भी कहते हैं कि बीजेपी के सत्ता में आने से पहले अगर कोई समूह किसी फिल्म की रिलीज में बाधा डालते, तो उन्हें बड़े पैमाने पर फ्रिंज तत्वों के रूप में खारिज कर दिया जाता था. "आप अदालत जा सकते थे. आप पुलिस के पास जा सकते थे. आप कहीं न कहीं से कुछ राहत पा सकते थे."

 

बाल ठाकरे ने कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा फिर भी उन्होंने मुंबई और बॉलीवुड को अपने प्रभाव में रखा. कल्पक पाठक/हिंदुस्तान टाइम्स

2008 में बॉलीवुड और शिवसेना की मराठी गौरव की राजनीति एक दूसरे से उलझ बैठे. एक फिल्म प्रचार कार्यक्रम में अभिनेत्री जया बच्चन ने कहा, "हम यूपी से हैं और हमें केवल हिंदी में बात करनी चाहिए." शिवसेना ने इस बयान को महाराष्ट्र विरोधी टिप्पणी के रूप में देखा. पार्टी प्रवक्ता संजय राउत ने कहा, "महाराष्ट्र की जनता ऐसी भाषा बर्दाश्त नहीं करेगी." वैचारिक नजरिए से देखें तो शिवसेना ने हमेशा से हिंदी फिल्म जगत के सदस्यों से नमक हलाली की मांग की है, भले ही इनमें से अधिकांश सदस्य देश के अलग-अलग हिस्सों से ताल्लुक रखते हैं.

इस साल मार्च की एक गर्म दोपहर में मैं इस स्टोरी के लिए संभावित स्रोतों की तलाश में शिवसेना के मुख्यालय पहुंची. जैसे ही मैंने अपने विषय का नाम लिया, सेना के एक अधिकारी ने अपनी नाक सिकोड़ ली. उन्होंने मुझसे पुछा, "हमें उसे इतना महत्व देने की क्या जरुरत है?" 

पर अगर पार्टी के मुखपत्र सामना में तकरीबन दो साल पहले के प्रेस बयानों और संपादकीय या उस समय पार्टी द्वारा किए गए विरोध प्रदर्शनों को देखें, तो हर जगह रनौत का ही नाम नजर आता है. उस समय, जब भारत कोविड-19 महामारी की त्रासदियों और तबाही को रोकने में मोदी सरकार की विफलता से जूझ रहा था, तब समाचार 14 जून 2020 को हुई अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु से जुड़ी ऊटपटांग खबरों से पटे पड़े थे. शुरुआती रिपोर्टों में कहा गया कि राजपूत ने लंबे समय तक अवसाद से जूझने के बाद आत्महत्या की थी. लेकिन जल्द ही सोशल मीडिया और टेलीविजन चैनलों पर बिना किसी पुष्टि के यह खबरें उड़ाई जाने लगी कि बॉलीवुड में पसरे भाई-भतीजावादी गुटों ने ही राजपूत को खुद की जान लेने के लिए मजबूर किया था.

रनौत भी इस भीड़ में कूद पड़ी. उन्होंने राजपूत की मृत्यु के एक दिन बाद इंस्टाग्राम पर एक वीडियो पोस्ट कर इन कयासों को खारिज किया कि वह अवसाद से जूझ रहे थे. उन्होंने पूछा, "एक आदमी जो स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय की इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा में रैंक-धारक था, उसका दिमाग कमजोर कैसे हो सकता है?" उन्होंने सोशल मीडिया पर राजपूत की पिछली कुछ पोस्ट्स की ओर इशारा किया, जिसमें रनौत के अनुसार वह लोगों से अपनी फिल्में देखने की "भीख" मांग रहे थे. रनौत ने खुद की तुलना राजपूत से करते हुए आरोप लगाया कि उनमें से किसी को भी कभी फिल्म जगत में उचित पहचान नहीं मिली. उन्होंने कहा, "हमें आपसे कुछ नहीं चाहिए. हमें आपकी फिल्में नहीं चाहिए. लेकिन आप हमारी फिल्मों को स्वीकार क्यों नहीं करते हैं? मैंने जो सुपरहिट फिल्में बनाई हैं, उन्हें भी फ्लॉप कहा जाता है.” 

बीजेपी की समर्थक रनौत की शिवसेना के साथ ठन चुकी थी. शिवसेना ने 2019 में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर राज्य में गठबंधन सरकार बनाई थी. सितंबर 2020 में रनौत ने मुंबई के पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह पर एक ऐसे ट्वीट को "लाइक" करने का आरोप लगाया, जिसमें रनौत की तुलना गटर से की गई थी. उन्होंने ट्वीट किया, "सुशांत के हत्यारों के खिलाफ लड़ने वाले लोगों के बारे में अपमानजनक ट्वीट्स की निंदा करने की बजाय उन्हें लाइक करना...सार्वजनिक रूप से चिढ़ाना और धमकाना...@CPMumbaiPolice इसे प्रोत्साहित कर रहे हैं, @MumbaiPolice एकदम गिर चुकी है... शर्म करो !!" मुंबई पुलिस के ट्विटर अकाउंट ने तुरंत ही उनके इस आरोप का खंडन किया.

रनौत द्वारा उकसावे में आकर मुंबई की तुलना पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से करने पर शिवसेना नेता संजय राउत की शहर में वापस न आने की धमकी के बाद रनौत और शिवसेना के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया था. पीटीआई

यह तनातनी तब अपने चरम पर पहुंच गई जब रनौत ने आरोप लगाया कि मुंबई की तुलना पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से करने के उनके बयान के जवाब में शिवसेना नेता संजय राउत ने उन्हें शहर में न लौटने की धमकी दी है. रानौत को "पागल" करार देते हुए राउत ने कहा कि "वह जिस थाली में खाती हैं, उसी में छेद कर रही हैं." इसके बाद मुंबई के विभिन्न हिस्सों में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए ,जहां शिवसेना कार्यकर्ताओं ने रनौत के पुतले फूंके और पार्टी ने उनके खिलाफ देशद्रोह के आरोप में शिकायत दर्ज की.

पुलिस के बारे में उनके ट्वीट के एक हफ्ते बाद 9 सितंबर को शिवसेना द्वारा नियंत्रित बृहन्मुंबई नगर निगम के बुलडोजरों ने रनौत के कार्यालय के कुछ हिस्सों को ध्वस्त कर दिया. निगम ने एक हलफनामे में दावा किया कि संपत्ति में ऐसे कई परिवर्तन किये गए थे, जिन्हें भवन योजना में मंजूरी नहीं दी गयी थी. रनौत ने तुरंत इस तोड़-फोड़ पर रोक के आदेश हासिल किए और आरोप लगाया कि महाराष्ट्र सरकार ने उनके खिलाफ बदले की भावना से इस करवाई को अंजाम दिया था. एक इंस्टाग्राम वीडियो में उन्होंने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर उनसे बदला लेने के लिए "फिल्म माफिया" के साथ मिलकर काम करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, "मैं समझ सकती हूं कि कश्मीरी पंडितों को कैसा लगा होगा. आज मुझे इसका अनुभव हो गया है." उस सप्ताह वह केंद्र सरकार द्वारा "वाई-प्लस" सुरक्षा प्राप्त करने वाली पहली बॉलीवुड कलाकार बनी. शिवसेना की नई-नई दुश्मन बनी बीजेपी अब इस लड़ाई में अपने पुराने साथी के खिलाफ रनौत के पीछे मजबूती से खड़ी थी.  

बीएमसी बुलडोजर प्रकरण पर उनका गुस्सा जल्द ही पाखंड के रूप में सामने आया. इस साल अप्रैल में जब दिल्ली नगर निगम ने जहांगीरपुरी में मुस्लिम बहुल बस्तियों को जमींदोज किया तो रनौत उन बाशिंदों का मजाक उड़ाने से नहीं चूकी, जिनके सर से अचानक छत छीन ली गई थी. इस घटना के कुछ हफ्तों बाद जोधपुर के जालोरी गेट क्षेत्र में सांप्रदायिक तनाव की खबरें आई. अपनी फिल्म ‘धाकड़’ के एक प्रचार कार्यक्रम के दौरान रनौत ने बयान दिया कि “अगर राजस्थान में दंगे हो रहे हैं, तो वहां ऐसी सरकार लाएं जो दंगों को रोक सके. या हम यहां से बुलडोजर भेज सकते हैं."

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अक्टूबर 2019 में महात्मा गांधी की डेढ़सौवीं जयंती के अवसर पर बॉलीवुड अभिनेताओं और फिल्म निर्माताओं से अपने आवास पर मुलाकात की.

पिछले एक दशक में हिंदी फिल्म जगत ने बहुत हद तक देश की राजनीति पर मौन धारण करते हुए प्रगतिशीलता का चोला ओढ़े रखा है. उदाहरण के लिए शुक्राणु दान (विकी डोनर), फैट-शेमिंग (दम लगा के हईशा), स्वच्छता (टॉयलेट: एक प्रेम कथा) और होमोफोबिया (बधाई दो) जैसे मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाने वाली कई फिल्में लगातार बनती रही हैं. लेकिन इनमें से अधिकांश फ़िल्में न तो शासन पर कोई आलोचनात्मक रुख अपनाती हैं और न ही हिंदुत्व की ज्यादतियों को चुनौती देती हैं.

फिल्म उद्योग के वरिष्ठ जानकार के अनुसार बॉलीवुड का सरकार के प्रति नतमस्तक होना उसके लंबे समय से चले आ रहे गैर-राजनीतिक स्वभाव का परिणाम है. वह कहते हैं, "इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि शक्तिशाली ताकतों की राजनीति की नैतिकता क्या है." वह बताते हैं कि अपने शुरुआती दौर में बॉलीवुड अक्सर धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी मूल्यों के साथ जुड़ा हुआ नजर आता था. "बिमल रॉय, महबूब खान या राज कपूर जैसे नाम व्यक्तिगत रूप से धर्मनिरपेक्ष थे और मानते थे कि उन्हें राष्ट्र निर्माण में भाग लेना चाहिए." 1991 में हुए उदारीकरण के साथ इस तरह की राजनीतिक समझ भी फिल्म जगत से दूर होती गई. वह कहते हैं कि इस दौर के "परिणामस्वरूप अब पूरा ध्यान बाजार अर्थव्यवस्था पर केंद्रित होता गया. और इसी के साथ एक गैर-राजनीतिकरण की प्रक्रिया शुरू हुई, जिसमें नई पीढ़ी एक राजनीतिक विचारधारा के साथ नहीं, बल्कि एक उपभोक्तावादी विचारधारा के साथ बड़ी होने लगी. ”

करण जौहर और आदित्य चोपड़ा जैसे फिल्म निर्माता उद्योग के उभरते सितारे बन रहे थे. उद्योग के वरिष्ठ जानकार आगे बताते हैं, "ये लोग बिना किसी राजनीतिक विचारधारा, बिना राजनीतिक जड़ों के साथ बड़े हुए थे. इसलिए इन्होंने खुद को समृद्ध, उच्च वर्ग और शिक्षित पीढ़ी के साथ जोड़ लिया." उनकी फिल्मों में अंग्रेजी बोलने वाले, विदेश में शिक्षित किरदार होते थे जो अपने माता-पिता की तुलना में अधिक स्वतंत्र दिखाई देते थे. लेकिन इन किरदारों को पितृसत्तात्मक परंपराओं को चुनौती देने के बजाय उनके संरक्षक के रूप में पेश किया जाता था.

मोदी सरकार पूर्व की किसी भी सरकार की तुलना में फिल्म उद्योग पर कहीं अधिक प्रभुत्व रखती है. इसके लिए सरकार अक्सर केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड, प्रवर्तन निदेशालय, आयकर विभाग और केंद्रीय जांच ब्यूरो सहित कई सरकारी संस्थानों का उपयोग भी करती है. नतीजतन फिल्म निर्माता अब सरकार की आलोचना करने वाली फिल्में बनाने से परहेज करते हैं. वरिष्ठ जानकार कहते हैं, "अगर पहले कोई कट्टरवाद या राजनीतिक स्थिति की थोड़ी बहुत आलोचना दिखाता भी था, तो अब यह भी बंद हो गया है. वे खुद को कमजोर महसूस करने लगे हैं." उन्होंने कहा कि नेटफ्लिक्स और अमेजन प्राइम जैसे अंतरराष्ट्रीय प्लेटफॉर्म भी सरकार के शिकंजे से अछूते नहीं रह गए हैं.

पटकथा लेखक ने मुझे बताया कि सरकार की ओर से ऐसी फिल्मों के खिलाफ "बहुत स्पष्ट आदेश" हैं जो "किसी भी तरह से शासन को चुनौती दे सकती हैं." वह बताती हैं कि फिल्मों में "कांग्रेस को खलनायक दिखाने वाली" चीजो से इतर किसी भी तरह की राजनीतिक सामग्री को दिखाने की अनुमति नहीं है." स्क्रूवाला की आरएसवीपी फिल्म्स वकील राम जेठमलानी की बायोपिक पर काम कर रही है. फिल्म के कई महत्वपूर्ण हिस्से जेठमलानी और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के आपसी रिश्तों पर आधारित हैं.

पटकथा लेखक ने मुझे बताया कि फिल्म के एक निर्माता ने पटकथा पर काम कर रहे लेखक को बुलाया और शिकायत करते हुए कहा कि उन्होंने गांधी को पर्याप्त रूप से बदनाम नहीं किया है- "ये लेकर जाओ और राजीव गांधी को खलनायक बनाकर लाओ." वह याद करती हैं कि उन्हें ‘उरी’ जैसी फिल्म लिखने के लिए कहा गया था. उनका कहना है कि प्रोडक्शन हाउस अब ऐसे लेखकों से दूरी बना रहे हैं जो मोदी सरकार के मुखर आलोचक हैं और कई अनुबंधों में अब राजनीतिक मत जाहिर करने के खिलाफ एक क्लॉज शामिल किया जाने लगा है. वह कहती हैं कि ऐसे माहौल में जटिल किरदारों के लिए कोई जगह नहीं है. फिल्म निर्माताओं से यह अपेक्षा की जाती है कि राजनीति आधारित फिल्मों में कांग्रेस को और युद्ध आधारित फिल्मों में पाकिस्तान को खलनायक दिखाया जाए. 

पटकथा लेखक ने मुझे बताया कि फिल्म जगत एक बेहद भ्रमित करने वाली जगह है. वह कहती हैं, "हम नहीं जानते कि क्या ये लोग हमेशा से कट्टरवाद के समर्थक थे." रनौत की राजनीति पर संदेह करते हुए वह कहती हैं, "मुझे हैरानी नहीं होगी अगर कुछ सालों बाद कंगना को किसी धर्मा फिल्म में लिया जाएगा जिसे अनुराग कश्यप निर्देशित करेंगे... शाहरुख इसमें कैमियो करेंगे... अंबानी आएंगे और ताली बजाएंगे... और जियो फिल्म को स्पॉन्सर करेगा."

रनौत के पूर्व निर्माता कहते हैं, "बहुत सारे लोग किसी भी चीज के खिलाफ खुल कर नहीं बोलना चाहते." वह कहते हैं कि "फिल्म निर्माण व्यवसाय पर अपनी पकड़ मजबूत कर रही बीजेपी की खिलाफत करने के लिहाज से फिल्मी बिरादरी बेहद कमजोर है. और फिर इन सब के बीच अनुपम खेर जैसे लोग हैं, जो पूरी तरह से अवसरवादी हैं और सत्ता की दिशा में झूलते रहते हैं." खेर, जिनकी पत्नी बीजेपी सांसद हैं, मोदी सरकार के समर्थन में असाधारण रूप से मुखर रहे हैं, जिसके बाद उन्हें पद्म भूषण और भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान के अध्यक्ष के रूप में एक विवादास्पद कार्यकाल के साथ सम्मानित भी किया गया है. इस साल की शुरुआत में वह विवेक अग्निहोत्री की 'द कश्मीर फाइल्स' में मुख्य भूमिका में नजर आए. यह फिल्म कश्मीरी पंडितों के पलायन पर आधारित थी, जहां मुसलमानों को खुल के बदनाम किया गया. देश भर से आई रिपोर्टों से पता चला है कि फिल्म की स्क्रीनिंग के दौरान सिनेमा-घरों में "जय श्री राम" और "देश के गद्दारों को, गोली मारो सालों को" जैसे नारे लगाए गए.

उम्मीद के अनुरूप रनौत ने फिल्म की सराहना की. एक इंस्टाग्राम पोस्ट में उन्होंने लिखा, "देश बदलेगा तो फिल्में भी बदलेंगी." उन्होंने फिल्म उद्योग पर फिल्म की सफलता को लेकर जानबूझकर चुप रहने का आरोप लगाया. फिल्म जगत को गैंगस्टर दाऊद इब्राहिम के संदर्भ में "बुली-दाउद" बुलाते हुए उन्होंने लिखा- "पूरी दुनिया उन्हें देख रही है, लेकिन वे एक शब्द भी नहीं कहेंगे." एक अन्य इंस्टाग्राम पोस्ट में उन्होंने कहा कि इस फिल्म की सफलता संकेत देती है कि "भारत की अंतरात्मा आखिरकार जाग रही है."

‘द कश्मीर फाइल्स’ बॉक्स ऑफिस पर बेहद सफल रही और कोविड-19 महामारी के बाद से 250 करोड़ रुपए से अधिक कमाई करने वाली पहली हिंदी फिल्म बनी. 'उरी', जो मोदी सरकार के 2017 में पाकिस्तानी उग्रवादियों के खिलाफ की गई "सर्जिकल स्ट्राइक" के दावों पर आधारित थी, की तरह 'द कश्मीर फाइल्स' को भी बीजेपी शासित राज्य सरकारों द्वारा टैक्स-फ्री कर दिया गया. यह दिखाता है कि भारी-भरकम टैक्स वाले फिल्म उद्योग में सरकार की ओर से उन निर्माताओं को टैक्स-छूट का तोहफा दिया जाएगा, जो उनकी राजनीति से मेल खाती कहानियों को पर्दे पर उतार पाएंगे.

पटकथा लेखक कहती हैं, "ऐसा नहीं है कि लोगों के पास आवाज नहीं है. पर आप आवाज उठाने का हश्र देखिए. देखिए कि लोगों को इसकी क्या कीमत चुकानी पड़ती है. देखिए शाहरुख खान के साथ क्या हुआ.” हिंदी सिनेमा के सबसे प्रमुख मुस्लिम सितारों में से एक, खान हमेशा से विवादास्पद राजनीतिक राय व्यक्त करने से परहेज करते आए हैं. लेकिन फिर भी वह अपने सहयोगियों की तरह मोदी सरकार की बढ़-चढ़कर प्रशंसा करते नजर नहीं आते हैं. जब ममता बनर्जी ने उन्हें पश्चिम बंगाल का ब्रांड एंबेसडर नियुक्त किया, तो बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने पलटवार करते हुए बयान दिया, "हम सभी जानते हैं कि चुनावी राजनीति के लिए आपको एक खान की जरुरत है." पिछले साल अक्टूबर में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने उनके बेटे आर्यन को एक क्रूज शिप पर छापेमारी के बाद गिरफ्तार किया था. आर्यन को ड्रग्स लेने और बेचने के आरोप में करीब एक महीने तक हिरासत में रखा गया. एनसीबी की एक विशेष जांच टीम अंततः इस नतीजे पर पहुंची कि आर्यन से कोई ड्रग्स बरामद नहीं हुए थे और जिस तरह से छापे मारे गए थे, उसमें कई अनियमितताएं थीं.

मशहूर मुस्लिम सितारे आमिर खान को 2015 में मोहम्मद अखलाक की लिंचिंग की आलोचना करने के बाद भारी विरोध का सामना करना पड़ा था. एक पुरस्कार समारोह में भाग ले रहे खान ने बयान दिया था कि उनकी पत्नी फिल्म निर्माता किरण राव अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर आशंकित रहती हैं. खान, जो सरकार के पर्यटन अभियान 'अतुल्य भारत' के ब्रांड एंबेसडर थे, पर देश को बदनाम करने के आरोप लगाए गए. सरकार ने उनके अनुबंध का नवीनीकरण भी नहीं किया. दो साल बाद उन्होंने 'मेक इन इंडिया' पहल के शुभारंभ के मौके पर मुंबई में मोदी द्वारा आयोजित एक निजी रात्रिभोज में शिरकत की. इस कार्यक्रम में बहुत से प्रमुख राजनेताओं, राजनयिकों और उद्योगपतियों के अलावा रनौत भी शामिल थी.

जहां सरकार अपनी राजनीति को बढ़ावा देने वाली फिल्मों के निर्माण को प्रोत्साहित कर रही है, वहीं आलोचकों से निपटने के लिए बेहिचक विभिन्न एजेंसियों का इस्तेमाल किया जा रहा है. नियमित रूप से सरकार की आलोचना करने वाले अनुराग कश्यप और किसान आंदोलन की मुखर समर्थक रही अभिनेत्री तापसी पन्नू को पिछले साल कर अधिकारियों के छापे झेलने पड़े थे. सुशांत सिंह राजपूत की साथी रिया चक्रवर्ती को एनसीबी, सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय की जांच से गुजरना पड़ा. एनसीबी ने अभिनेत्री दीपिका पादुकोण, सारा अली खान और श्रद्धा कपूर से भी पूछताछ की. रनौत ने इन सभी जांचों का हो-हल्ले के साथ समर्थन किया.

अपनी मां, भाई अक्षित और बहन रंगोली चंदेल के साथ कंगना रनौत. चंदेल उनके प्रबंधक के रूप में काम करती है और अक्षित उनकी कंपनी के कानूनी और वित्त मामले देखते हैं. अमलान दत्ता/हिंदुस्तान टाइम्स

फिल्म जगत के वरिष्ठ जानकार का कहना है कि कई सहयोगियों से लड़ाई मोल लेने के बावजूद रनौत को निर्माताओं से काम मिलता रहेगा. उन्होंने कहा, "फिल्म उद्योग सितारों पर इतना निर्भर है, कि वे हर बात के लिए राजी हो जाएंगे. यहाँ कोई धारणा बहुत लंबे समय तक नहीं टिक सकती है. सितारे हमेशा से ख़ुशी-ख़ुशी सत्ताधरी ताकतों के साथ रहना पसंद करते आए हैं.”

पिछले नवंबर में किसान आंदोलन के चरम पर रनौत ने एक इंस्टाग्राम पोस्ट में अपनी आगामी फिल्म 'इमरजेंसी' की बात की, जिसमें वह पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की भूमिका निभा रही हैं. उन्होंने प्रदर्शनकारियों को "खालिस्तानी आतंकवादी" घोषित करते हुए हुए सिख आतंकवादियों से निपटने के लिए "अपनी जान की परवाह किए बिना उन्हें मच्छरों की तरह" कुचलने के लिए गांधी की सराहना की. ऐसे में उन्होंने एक बार फिर से प्रदर्शनकारियों को आतंकवादी घोषित करने की अपनी बात को दोहराया. उन्होंने ट्विटर पर पूछा, "भला किसान उन क्रांतिकारी कानूनों के खिलाफ क्यों विरोध करेंगे, जो उनकी भलाई के लिए बनाए गए हैं?" 

उनके इस तरह के बयान नियमित रूप से विवाद पैदा करते रहे हैं और ट्विटर ने भी उनके अकाउंट को बंद कर दिया है. लेकिन रनौत की सोशल-मीडिया फॉलोइंग साल-दर-साल बढ़ती गई है. उनके फेसबुक पर 7.8 मिलियन और इंस्टाग्राम पर 9.6 मिलियन फॉलोअर्स हैं. पर उनकी ये विशाल सोशल-मीडिया फॉलोइंग अब उनकी हालिया फिल्मों के लिए वास्तविक सफलता में बदलती नजर नहीं आती है. पिछले लंबे समय से उनकी कोई भी फिल्म 'क्वीन' और 'तनु वेड्स मनु' फ्रैंचाइजी की तरह समीक्षकों और दर्शकों का मन नहीं मोह पाई है. कुछ रिपोर्टों के अनुसार उनकी हालिया फिल्म 'धाकड़' की कुछ स्क्रीनिंग में दस से भी कम लोग मौजूद थे.

एक अभिनेता के रूप में अपने घटते कद के बीच रनौत ने खुद को आर्थिक रूप से मजबूत रखने के लिए वित्तीय संसाधनों का एक सुरक्षा जाल तैयार किया है. वह 2012 में स्थापित मणिकर्णिका फिल्म्स प्रोडक्शन हाउस की मालिक हैं. उनके भाई अक्षित कंपनी के कानूनी और वित्त विभागों के प्रभारी हैं.

उनके पूर्व निर्माता जोर देकर कहते हैं कि रनौत में अभी भी "बॉक्स-ऑफिस पर भीड़ खींचने" का दम बाकी है. बसु इस बात से सहमत हैं कि रनौत के हालिया बयानों के चलते उनके करियर को खास नुकसान नहीं पहुंचा है. उन्होंने मुझे बताया, "देखिए एक आम धारणा ये है कि क्योंकि वह इतने सारे लोगों से पंगा ले रही है, इसलिए उसे काम नहीं मिल रहा है. लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता है क्योंकि वह काफी काम कर रही है. उसके हाथ भरे हुए हैं. वह एक के बाद एक फिल्म बना रही है."

बसु ने कहा कि आज भी जब वह रनौत से मिलते हैं, तो वह "वही कंगना" होती हैं, जिनसे वह कई साल पहले मिले थे. उनका मानना है कि रनौत का निजी व्यक्तित्व और दुनिया के सामने खुद को दिखाने के उनके तरीके एक-दूसरे से पूरी तरह जुदा हैं. वह कहते हैं, "मैं व्यक्तिगत रूप से उनमें कोई बदलाव नहीं देखता. जब मैं उनसे व्यक्तिगत रूप से मिलता हूं, तब मुझे वह कंगना नजर नहीं आती जिसे मैंने किसी इंटरव्यू में देखा होता है या कहीं उनके विचार सुने होते हैं." वह तर्क देते हैं कि "वह जो कुछ भी कर रही है, फिल्म उद्योग में अपनी जगह बनाने के लिए कर रही है..जो बहुत कठिन है."

मुंबई स्थित भारतीय सिनेमा के राष्ट्रीय संग्रहालय में प्रदर्शित किए गए फिल्मों के पोस्टर. भारतीय सिनेमा का सौ साल से भी अधिक का इतिहास कई बदलावों से होकर गुजरा है. अपने प्रारंभिक वर्षों में इसके सदस्यों ने अक्सर धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी मूल्यों से जुड़े रहे. लेकिन अब कई लोगों को हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडे में शामिल हो गए हैं. इंद्रनील मुखर्जी/एएफपी/गैटी इमेजिस

उनके निर्माता कहते हैं, "वह गैर-फिल्मी दुनिया से आकर एक सफल महिला स्टार बनने का शानदार उदाहरण रही हैं. हम सभी उनकी सफलता पर बहुत गौरवान्वित और खुश थे." लेकिन साथी कलाकारों के साथ होने वाले उनके नियमित झगड़ों ने उनकी इस छवि को बदल दिया है. वह कहते हैं, "अगर वह अपनी फिल्मों को नियंत्रित करना शुरू कर देगी तो वे कैसे अच्छी फिल्में बन पाएंगी? उनके निर्देशक उन्हें छोड़ रहे हैं, हर कोई उनसे दूर जा रहा है. वह खराब फिल्में कर रही हैं. इससे वह एक खराब अभिनेत्री नहीं हो जाती हैं. वह अभी भी सबसे बेहतरीन अभिनेत्रियों में से एक हैं." उन्होंने कहा कि रनौत अब "ताकत" का स्वाद चख चुकी हैं और जानती हैं कि जब तक यह सरकार सत्ता में रहेगी कोई भी उन्हें हाथ नहीं लगाएगा. “कंगना रवि किशन या कपिल मिश्रा जैसे लोगों से बहुत अलग नहीं हैं जो सरकार बदलने के साथ बदल चुके हैं. यह सभी ताकत का स्वाद चख चुके हैं और खेल में बने रहने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं. अगर कल यह सरकार जाती है तो ये भी चलते बनेंगे और कोई नहीं जानता कि उनका क्या होगा.” 

(कारवां अंग्रेजी के जून 2022 अंक की इस कवर स्टोरी का हिंदी में अनुवाद कुमार उन्नयन ने किया है. मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)