भारी-भरकम कढ़ाई वाली हरी साड़ी पहने हुए घोड़े पर सवार लक्ष्मीबाई ईस्ट इंडिया कंपनी के आधिकारिक बंगले के परिसर में प्रवेश करती हैं. एक अधिकारी उनसे कहता है, "तुम अनुमति के बिना अंदर नहीं आ सकती.” इधर-उधर से अन्य अधिकारियों की आवाजें आती हैं: "क्या तुमने बोर्ड नहीं देखा? ब्लडी इंडियन.” एक अन्य अधिकारी पूछता है, "क्या तुम्हें अंग्रेजी पढ़नी नहीं आती?" झांसी रियासत की रानी घोड़े से उतरकर गुस्साए हुए अधिकारियों के पास जाती हैं और उन्हें जवाब देती हैं, "मैं अंग्रेजी पढ़ सकती हूं. यह मात्र एक भाषा है. केवल कुछ शब्द. संस्कृति से कटे शब्दों का कोई अर्थ नहीं होता है."
यह कंगना रनौत द्वारा अभिनीत और सह-निर्देशित फिल्म 'मणिकर्णिका: द क्वीन ऑफ झांसी' (2019) का एक दृश्य है. लक्ष्मीबाई को 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ हुए विद्रोह के एक प्रमुख नाम के साथ-साथ अक्सर शक्ति और प्रतिरोध के राष्ट्रवादी प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है. फिल्म की राजनीति एकदम स्पष्ट है: ब्रिटिश बुराई का प्रतीक हैं और विदेशी आक्रमणकारियों की क्रूरता से लड़ने के लिए उदार भारतीय राजपरिवार ही गांव के गरीब लोगों के पालनहार हैं.
लक्ष्मीबाई अधिकारियों पर क्रोधित है क्योंकि वे एक किसान से हथियाए हुए बछड़े के मांस से बना पकवान ‘स्टेक’ खाने वाले हैं. वह उन्हें ललकारती है, "जिस धरती पर तुम खड़े हो, उसके लोगों और उनकी भावनाओं का सम्मान करना सीखो. हमारी मातृभाषा हमारी मां है और मां केवल एक ही होती है." इसके बाद वह अपनी तलवार फेंक कर एक बाड़े से गायों और बकरियों को आजाद कर देती है और वहां मौजूद अधिकारियों को अपना फैसला सुनाते हुए कहती है, "आज से सभी मवेशी और बकरियां राजा की निजी संपत्ति हैं. इन्हें लोगों को सौंपा गया है, ताकि वे इन्हें पाल सकें. कंपनी इन जानवरों को हाथ भी नहीं लगा सकती." अंग्रेज अधिकारी बिना किसी विरोध के इस फैसले को स्वीकार करते हैं. उनमें से एक कहता है "जी, महामहिम (योर मेजेस्टी)".
बमुश्किल दो मिनट के इस दृश्य में रनौत और उनके साथी सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और उसके मूल संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा प्रायोजित मुद्दों के साथ खड़े नजर आते हैं. इसमें गाय का सम्मान, भारत की राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी को थोपना और मनमौजी इतिहास को बढ़ावा देने जैसे मुद्दे शामिल हैं, जिन्हें आरएसएस के हिंदू राष्ट्र के लक्ष्य की सेवा में लगाया जा सकता है.
वैचारिक समानताओं की बात करें तो मणिकर्णिका और रनौत एक दूसरे के पूरक हैं. हाल ही में 20 मई को रिलीज हुई अपनी फिल्म धाकड़ के एक प्रचार कार्यक्रम में रनौत ने देश में भाषा को लेकर चल रही बहस के बारे में अपनी राय जाहिर की. उन्होंने कहा, “औपनिवेशिक इतिहास कितना भी काला क्यों न हो लेकिन सौभाग्य से या दुर्भाग्य से अब अंग्रेजी हमारी बोलचाल की एक कड़ी बन गई है. लेकिन क्या इसे यह कड़ी होना चाहिए? यदि आप मेरी राय पूछते हैं तो मुझे लगता है कि संस्कृत को हमारी राष्ट्रीय भाषा होना चाहिए क्योंकि कन्नड़, तमिल, गुजराती, हिंदी सभी की उत्पत्ति इसी भाषा से हुई है.” उन्होंने कहा कि जब तमिलनाडु और बंगाल के लोग हिंदी को राष्ट्रभाषा मानने से इनकार करते हैं तो वे "यह मानने से इनकार करते हैं कि देश की सरकार दिल्ली से चलती है."
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