14 फरवरी 2016 की सुबह अहमदाबाद के हयात रीजेंसी के बाहर लगभग दस लोगों का एक झुण्ड मंडरा रहा था. जल्द ही उन्होंने “जय श्री राम” और “शाहरुख खान हाय-हाय” के नारे लगाते हुए होटल की पार्किंग में पत्थरबाजी शुरू की और खान की एक गाड़ी के शीशे को चकनाचूर कर दिया. इसके तुरंत बाद वे घटनास्थल से भाग खड़े हुए. इस मामले में होटल के सुरक्षा अधिकारी की शिकायत दर्ज करने के बाद पुलिस ने विश्व हिंदू परिषद के सात कार्यकर्ताओं को दंगा करने और संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. उसी दिन पुलिस को खबर मिली कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की युवा शाखा के सदस्य होटल के बाहर खान का पुतला जलाने की फिराक में हैं, जिसके मद्देनजर पूरे इलाके की घेराबंदी कर 17 प्रदर्शनकारियों को हिरासत में ले लिया गया.
इस घटना के तीन महीने पहले खान के 50वें जन्मदिन के मौके पर समाचार चैनल इंडिया टुडे पर प्रसारित एक ट्विटर टाउनहॉल में पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने उनसे पूछा था कि क्या देश में असहिष्णुता बढ़ रही है? खान का जवाब था, “देश में काफी असहिष्णुता है. लोग अब बिना सोचे-समझे अफवाहें उड़ाने लगे हैं. हम एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं. हम वह देश हैं, जो शायद पिछले दस वर्षों से उम्मीद से कहीं बढ़कर उन्नति करने की कगार पर हैं. हम आधुनिक भारत की बात करते हैं, हम प्रगति की बात करते हैं, हम नए भारत की बात करते हैं- और हम बस बात करते रहते हैं.” उन्होंने कहा कि युवा कभी इस तरह की असहिष्णुता का पक्ष नहीं लेंगे. उन्होंने कहा, “एक देशभक्त का एक धर्मनिरपेक्ष इंसान न होना सबसे संगीन अपराध है.”
एनडीटीवी की बरखा दत्त के साथ एक अन्य साक्षात्कार में खान ने किसी के धर्म को उसके खानपान तक सीमित करने को “घिसी-पिटी और मूर्खतापूर्ण” बात कहा और तर्क दिया कि “यदि हम हमेशा अपने धर्म के बारे में बात करते रहेंगे, तो फिर से अंधकार युग में चले जाएंगे.” उन्होंने कहा कि भारत की परिभाषा में असहिष्णुता की कभी कोई जगह नहीं रही, “लेकिन अगर हम मौजूदा स्थिति को नहीं बदलते हैं, तो यह हम सभी के लिए खतरनाक है.” जब दत्त ने उनसे पूछा कि 'एक देशभक्त का एक धर्मनिरपेक्ष इंसान न होना सबसे संगीन अपराध है' से उनका क्या तात्पर्य है, तो उन्होंने जवाब दिया कि एक सच्चा देशभक्त होने का सही मायनों में अर्थ है अपने समूचे मुल्क से मुहब्बत करना. “या तो आप अपने पूरे देश को चाहते हैं, या आप बस उसके कुछ हिस्सों को चाहते हैं.” उन्होंने देश में व्याप्त माहौल के विरोध में अपने राष्ट्रीय पुरस्कार लौटाने वाली फिल्मी हस्तियों को “साहसी” करार दिया और कहा कि उनके इस कदम से रचनात्मक स्वतंत्रता के बारे में बहस होनी चाहिए. उन्होंने भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान के छात्रों का भी समर्थन किया, जो उस समय एक भाजपा समर्थक की संस्था के अध्यक्ष पद पर नियुक्ति का विरोध कर रहे थे, और विवाद को बातचीत के माध्यम से सुलझाने का अनुरोध किया.
खान की सभी टिप्पणियां काफी सधी हुई और संविधान में निहित आदर्शों पर आधारित थी. लेकिन ये उस दौर में जन्मी थी, जब नरेंद्र मोदी सरकार के शुरुआती वर्षों में असहिष्णुता पर एक उग्र राष्ट्रीय बहस अपने चरम पर थी. जल्द ही मामले ने तूल पकड़ा. भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय ने ट्वीट किया कि खान “भारत में रहते हैं, लेकिन उनका दिल पाकिस्तान में है.” वीएचपी की प्राची ने उन्हें “पाकिस्तानी एजेंट” कहा. गोरखपुर से भाजपा सांसद और उत्तर प्रदेश के भावी मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने कहा कि खान को “याद रखना चाहिए कि अगर समाज में एक बड़ा जनसमूह उनकी फिल्मों का बहिष्कार करता है, तो उन्हें एक सामान्य मुसलमान की तरह सड़कों पर भटकना पड़ेगा.” उन्होंने खान पर आतंकवादियों की भाषा बोलने का आरोप लगाया. लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि शाहरुख खान और हाफिज सईद की भाषा में कोई फर्क नहीं है.”