बंद कमरे

कूवगम का ट्रांसजेंडर उत्सव

फोटो और ​आलेख जयसिंह नागेश्वरन
29 August, 2023

हर साल अप्रैल और मई में तमिलनाडु का विज़ुपुरम शहर हजारों आगंतुकों से भर जाता है. ये लोग मुख्यतः ट्रांसजेंडर समुदाय से होते हैं लेकिन कई क्रॉस ड्रेसर्स, खरीदार और अन्य दर्शक भी यहां पहुंचते हैं. यहां के होटलों, हॉल, बाजारों, मंदिरों और अन्य स्थानों पर इनका कब्जा हो जाता है. इनके यहां आने का कारण वह अठारह दिवसीय उत्सव है, जिसे स्थानीय भाषा में कूवगम के नाम से जाना जाता है. इस उत्सव में समलैंगिक और ट्रांसजेंडर अपनी पहचान बेजीझक हो कर उजागर करते हैं. वे साड़ियों में लिपटे हुए, झुमके, चूड़ियों, लिपस्टिक, विग और मालाओं से सजा कर और आईने में खुद को निहार कर आत्मसंतुष्टि और स्वयं के होने पर खुशी की भावना से भर कर बाहर निकलते हैं.उत्सव के चरम पर, आखिर के पांच दिन, मैंने कई बार इसका दौरा किया.

तमिलनाडु में ट्रांसजेंडेर समुदाय के प्रति हिंसा में बढ़ोतरी देखी गई है. ऐसी हिंसा में खासकर ट्रांसविमन और उनके पर्टनरों की हत्या या उनका उत्पीड़न होता है. मुख्यधारा के समाज द्वारा बहिष्कृत होने के बाद उन्हें अक्सर ट्रांसजेंडरों के समूहों द्वारा अपनाया जाता है, जो सुरक्षा और संरक्षण का आवरण प्रदान करते हैं. अधिकांश को विषम परिस्थितियों में वेश्यावृत्ति करके जीवन जीने पर मजबूर होना पड़ता है. यौन हिंसा का शिकार होने पर भी उन्हें कोई खास सहारा नहीं मिलता. विरोध के माहौल के बावजूद ट्रांसजेंडर और समलैंगिक हर साल कूवगम उत्सव को पूरे जोश के साथ मनाते हैं.

इनकी इस अज्ञात दुनिया को लेकर मेरे जेहन में उपजी जिज्ञासा ही थी जो मुझे इस समुदाय तक ले गई. 2009 में शुरू हुई समुदाय के बारे में सीखने की अपनी यात्रा के शुरुआती वर्षों में मैं महोत्सव में किसी के पास जाने से कतराता था. हालांकि, हर बार जब मैं घर लौटता, तो मुझे एहसास होता था कि मैं धीरे-धीरे एक आदमी होने की कई कठोर परतों को उतारता जा रहा हूं.

मेरे माता-पिता मेहनतकश वर्ग से थे. मैंने खुद से ही फोटोग्राफी सीखी, मेरी शिक्षा मेरी दादी ने घर पर हुई. मेरा काम, बेशक मेरी अपनी जाति और वर्ग की पहचान से प्रभावित हो कर, सामाजिक रूप से हाशिए पर रहने वाले समुदायों के जीवन को दिखाने, लैंगिक पहचान पर आधारित मुद्दों, जातीय भेदभाव और ग्रामीण जीवन के मुद्दों की खोज करने के इर्द-गिर्द घूमता है.

ये तस्वीरें एक फोटोग्राफर और उससे भी ज्यादा तिरस्कृत सौंदर्य के संग्राहक के रूप में मेरे अनुभव का रिकॉर्ड हैं. इन तस्वीरों में मौजूद लोगों ने मुझे अपने जीवन में झांकने और अपनी कमजोरियां और ताकत दिखा कर, मुझे खुले दिमाग से उनकी दुनिया को समझने में मदद की.

मुझे बचपन से ही ट्रांसजेंडर समुदाय के बारे में जानने की जिज्ञासा थी. इसकी शुरुआत मेरे पड़ोसी और परिचित सुब्बू से हुई. वह एक ट्रांसवुमन ​थी. सुब्बू दक्षिण भारतीय महिलाओं द्वारा पहनी जाने वाली वाली माथे की सजावटी पट्टी जिसे पोट्टू कहते थे, पहनती थी. जिसके पीछे बंधे हुए लंबे बाल होते थे और वह लुंगी के ऊपर आधी आस्तीन की शर्ट पहनती थी. हालांकि, उसे पानी लाने, बाजार से खरीदारी करने और कपड़े धोने जैसे छोटे-मोटे काम दिए जाते थे लेकिन सुब्बू ने बिना किसी शिकायत के वे सब काम किए. वही पड़ोसी जो सुब्बू को ताना मारते थे, कभी-कभी उसे पोट्टा कहते थे - जो स्त्री लक्षण वाले लोगों के लिए अपमानजनक शब्द है लेकिन जरूरत पड़ने पर बेशर्मी से मदद भी मांगते थे.

मैंने अपने रोजमर्रा के जीवन में जो देखा उससे कई सालों तक ट्रांसजेंडरों के प्रति मेरी धारणा में पूर्वाग्रह था. वे कौन थे? मैं उनसे क्यों डरता था? हर बार मैं उन्हें समझने के लिए और अधिक उत्सुक हो जाता. मैं यह जान गया था कि उनसे दोस्ती करना ही एकमात्र रास्ता है उन्हें जानने का. लंबे समय से चले आ रहे अपने संदेह को दूर करने के लिए हाथ में कैमरा लेकर मैंने कूवगम की अपनी यात्रा शुरू की.

पहले चार वर्षों के दौरान मैं ज्यादा कुछ नहीं जान सका क्योंकि मैं खुद को त्योहार के रीति-रिवाजों, रंगों और तेज आवाजों से अलग महसूस करता था. हालांकि मैं उनके साथ बातचीत करने के लिए बेचैन और बेताब था तो भी मैं रूढ़ियों से बंधा हुआ था. फिर भी मैं हर साल इस उम्मीद में लौटता था कि शायद अगली बार कुछ बदल जाए. आखिरकार चार वर्ष बाद उनका विश्वास हासिल करने और उनकी तस्वीरें लेने की इजाजत पाने में मैं सफल हुआ.

2013 में अपनी पांचवीं यात्रा पर मैंने हलचल भरे शहर की सड़कों पर घूमने का फैसला किया और पुराने बस स्टैंड रोड के किनारे एक विचित्र, पुराने लॉज के सामने पहुंच गया. ट्रांसविमन दिन भर अपने ग्राहकों को बुलाने का प्रयास करते हुए लॉज के अंदर और बाहर घूमती रहीं. दोपहर के आसपास लगभग पच्चीस साल की दिखने वाली एक खूबसूरत और आकर्षक ट्रांसवुमन ने मुझे बुलाया. उत्साह में आकर मैंने कुछ दूरी तक उसका पीछा किया, वह रास्ता एक संकरी गली से होते हुए, एक शराब की दुकान के पार, लॉज के अंदर पहुंचा. गलियारे में कई ट्रांसविमेन दिखाई दीं जो आपस में हंसी मजाक में लगी हुई थी. जैसे ही मैंने प्रवेश किया, उनकी आंखे मेरा पीछा करने लगीं. मैं उसके पीछे उसके कमरे में चला गया, जहां उसने मुझे बिस्तर पर आराम से बैठाया और दरवाजा बंद कर दिया. जब उसने मुझे एक ग्राहक समझने की भूल की तो मैं चौंक गया. मैंने उनसे कहा, “मैं सिर्फ आपसे बात करने और तस्वीरें लेने आया हूं!” मेरे जवाब से नाराज होकर उसने मुझसे कहा कि मैं चला जाऊं और उसका बिजनेस बर्बाद न करूं.

मैं शर्मिंदा होकर कमरे से बाहर निकला और बाहर निकलते समय एक अन्य ट्रांसवुमन से मिला, जिसने मजाकिया ढंग से टिप्पणी की, "आपका काम खत्म हो गया है? तो फिर यहां आओ!” मैंने उसे नजरअंदाज किया और तेजी से नीचे चला गया. हालांकि मैं अभी भी उसकी आवाज सुन सकता था. उसने पुकारते हुए कहा, “क्या मैं उसकी तरह सुंदर नहीं हूं? क्या इसीलिए तुम मुझसे दूर भाग रहे हो?” मैं रुक गया. मैं पूरे प्रकरण से शर्मिंदा हो गया. जब तक मैं पीछे मुड़ कर उसकी ओर देखता, वह अपने कमरे में जा चुकी थी. मैं उसके पीछे अंदर गया और देखा कि पांच अन्य ट्रांसविमेन उसके बिस्तर के पास बैठी थीं.

धीरे-धीरे, मैंने अपना परिचय देना और यह बताना शुरू किया कि मैं वहां तक कैसे पहुंचा. उन्होंने उत्सुक होकर मेरे बारे में कई सवाल पूछे. अगले कुछ दिनों और वर्षों तक मैं उनके साथ चाय पीने के लिए कमरों, दरवाजों के बाहर उनका इंतजार करता, अपने कैमरे से तस्वीर लिए बिना, बस उन्हें सुनता रहता. जिस लॉज में वे रह रहे थे उसमें कर्मचारियों की कमी थी. मैं उनके लिए थोड़े काम कर देता था. धीरे-धीरे, वे मुझे एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखने लगे जिस पर वे भरोसा किया जा सकता था. आखिरकार, उन्होंने मुझे अपनी तस्वीर खींचने की इजाजत दे ही दी.

मैंने उस ट्रांसवूमन की तस्वीरें लेने की इच्छा जताई जिसने मुझे अपने कमरे के अंदर बुलाया था. इस पहली तस्वीर से एक दशक लंबे रिश्ते की शुरुआत हुई जो विश्वास और फोटो खिंचने की इजाजत के आधार पर बना था.

इस माध्यम ने ही खुद मुझे फोटोग्राफर और विषय के बीच की जगह लेने वाले किसी कैमरा लैंस के बिना करीब आने की इजाजत दी. इस फोटो निबंध के लिए मैंने एक फिल्म कैमरे से शुरुआत की, उसके बाद डिजिटल कैमरा और अंत में एक तत्काल फिल्म कैमरे से काम किया, जो छोटा और उपयोगी था, यह तुरंत प्रिंट निकाल कर फीडबैक लेने में मदद करता था. मैं एक दिन में केवल कुछ स्नैपशॉट और पोर्ट्रेट लेता था और उन्हें जांचने में अधिक समय लेना पसंद करता था.

मेरी पहली शामें उनके साथ हंसी-मजाक, चाय पीने और हमारी यात्राओं के बारे में लंबी बातचीत में बीतीं. मैं जिन डरों के साथ बड़ा हुआ था और वे छवि जो समाज ने उनके बारे में चित्रित की हैं, उस लॉज की चार दीवारों के भीतर धीरे-धीरे खत्म हो गईं. कहानी के लिए मैंने जो माध्यम चुना, वह समुदाय द्वारा सामना किए जा रहे अपमान को दर्शाता है.

वे दिन मेरी स्मृति में उस दिन के रूप में अंकित हैं जब मैंने नए दोस्त बनाए. कई बार मैं एक फोटोग्राफर के रूप में अपना काम भूल गया और उनके साथ बातचीत में खो गया. मैंने उनमें, एक कठोर दुनिया के बीच जो उनके लिए रास्ते बंद कर देती है, एक-दूसरे को पूरी तरह से स्वीकार करने और अपने स्वयं के समुदायों का निर्माण करने की एक स्वतंत्र भावना देखी. पूर्वाग्रह और शत्रुता के बावजूद दूसरों को ईमानदारी और प्यार से स्वीकार करने की क्षमता जैसी बहुत बातें हैं जो यह दुनिया उनसे सीख सकती है.

लॉज सभी के लिए खुला रहता है. हालांकि, साफ-सफाई की उम्मीद रखने वाले मेहमान जगह देखने के बाद अक्सर गंदी चादरों और फफूंद से भरी दीवारों को देख कर निराश हो जाते. जब मैंने लॉज के कमरे की चारों दीवारों को देखा, तो मुझे गंध, दृश्यों में अपनेपन के निशान दिखाई दिए. यह गंदी दीवारें, बेडशीट और फर्श उन जगहों की याद दिलाते थे जहां मैं रहता था. इस समुदाय के लिए जो लॉज को अपना अस्थायी घर कहते थे, उन्हें एक सुरक्षित आश्रय और आराम मिला. अपनी समझ के उस लैंस से कैमरे से इस जगह की असंपादित और ठोस सच्चाई की तस्वीर लेकर मैं कई कमरों में मौजूद सामाजिक-राजनीतिक अंतर को समझ सका.


जयसिंह नागेश्वरन तमिलनाडु के वाडीपट्टी गांव के एक स्व-शिक्षित फोटोग्राफर हैं. उनका काम उनकी बचपन की यादों का दस्तावेजीकरण करने और चार पीढ़ियों में उनके पारिवारिक इतिहास का पता लगाने के जरिए दलित प्रतिरोध और लचीलेपन पर केंद्रित है.