"सलाम, हैलो, क्या तुम वहां हो?" "क्या हम आज मुखालफत के लिए मिल रहे हैं?" "कहां पर?" ये कुछ मैसेज थे जिनके साथ जनवरी की एक सुबह मजार-ए-शरीफ शहर में रह रही एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी की 25 साल की प्रेस अधिकारी जागी. मजार-ए-शरीफ अफगानिस्तान का चौथा सबसे बड़ा शहर है. उस अधिकारी ने पिछले कुछ महीने दूसरी अफगान औरतों के साथ एक सुरक्षित घर में प्लेकार्ड्स बनाने और तालिबान की मुखालफत के लिए लामबंदी में बिताए थे. मैसेज देख कर वह सोचने लगी कि ये मैसेज किसने भेजे हैं. हैरानी और डर में उसने अपने दोस्तों से पूछा कि क्या उन्हें भी इसी तरह के मैसेज मिले हैं. कुछ को ऐसे मैसेज मिले थे, कुछ को नहीं लेकिन सवाल अभी भी जस का तस था. भेजने वाले को आखिर कैसे पता चला कि वे उस दोपहर एक बंद कमरे में गुपचुप तरीके से विरोध करने का मंसूबा बना रहे हैं?
तालिबान सरकार का विरोध कर रहीं ये हर किसी की जांच करती हैं क्योंकि तालिबान सरकार के समर्थक उनके व्हाट्सएप ग्रुपों में तक घुसे हुए हैं. नवंबर 2021 तक तालिबान को हर मुजाहिरीन (प्रदर्शनकारी) के नाम और फोन नंबर मालूम हो चुके थे.
गुमनाम नंबर से आए मैसेजों ने रात भर प्रेस इस अधिकारी को जगाए रखा. "मैं दिल से जानती हूं कि ये संदेश तालिबान ने भेजे थे," उसने मुझसे कहा. “उन्होंने विरोध प्रदर्शन के दौरान फोन जब्त करना शुरू कर दिया था और हमें अगवा करने, हमें चुप कराने के लिए गुप्त मैसेज ग्रुपों में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे थे. वे पश्तो में, फारसी में और एक लाइन में मैसेज देते हैं या सीधे सवाल पूछते हैं. वे हमें यह यकीन दिलाने की कोशिश करते हैं कि वे हममें में से ही हैं. एक दूसरे को पहचानने के लिए हम लड़कियों के पास एक कोड होता है. मैं उसका खुलासा नहीं करूंगी लेकिन जब हमें इस तरह का कोई मैसेज मिलता है, तो हम जान जाती हैं.”
महीनों पहले, 15 अगस्त को, जब यह प्रेस अधिकारी काम पर जाने के लिए तैयार हो रही थी तो उसने तालिबान के काबुल पर कब्जे के बारे में खबरों के जरिए जाना. "मेरा परिवार मेरे लिए परेशान था क्योंकि वे जानते थे कि मैं तालिबान के गजनी और कंधार जैसे दूसरे शहरों पर कब्जे को लेकर खुल कर बोल रही थी," उसने बताया. "वे डरे हुए थे क्योंकि मैंने एक ऐसी कंपनी के साथ काम किया था जिसे पहले की सरकार चलाती थी.”
परिवार का डर बेवजह नहीं था. कब्जे के बाद से पत्रकारों, एक्टिविस्टों और पूर्व सुरक्षा कर्मियों को गिरफ्तार किया गया है. कुछ मामलों में, तालिबान हिरासत में लिए गए लोगों की केवल लाशें उनके परिवारों को लौटाता है. ह्यूमन राइट्स वॉच ने नवंबर में बताया था कि पिछले तीन महीनों में 100 से ज्यादा सुरक्षाकर्मी मारे गए हैं या जबरन गायब कर दिए गए हैं.
काबुल पर कब्जा करने की खींच-तान के बीच, प्रेस अधिकारी के परिवार ने शुरू में उसे अपने घर से बाहर निकलने से मना किया था. अगले कुछ दिनों में उसे दूसरे अफगान एक्टिविस्टों के मैसेज मिले जो विरोध प्रदर्शन की कोशिश कर रहे थे. वे एक्टिविस्ट यह साफ कर देना चाहती थीं कि मुल्क वापस लौटकर उस जगह नहीं पहुंचेगा जहां जुबान पर ताले और आजादी पर बंदिशें हों. दस दिनों के भीतर तालिबान ने अपने सूरते हाल साफ कर दिए. औरतों को बिना मर्द सरपरस्ती के घर से बाहर निकलने पर रोक लगा दी गई, काम करने और पढ़ाई करने से रोक दिया गया. जब औरतें चौकियों को पार करतीं तो उन्हें अक्सर अपने पैर दिखाने को कहा जाता कि कहीं उन्होंने ऊंची एड़ी के चप्पल तो नहीं पहनी हैं या नेल पॉलिश तो नहीं लगाई है.
अगले महीने काबुल, हेरात और मजार-ए-शरीफ में जल्द ही औरतों की लीडरशिप में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए. प्रेस अधिकारी, जो अपनी पीढ़ी के कई दूसरे लोगों की तरह, कभी तालिबान के मातहत नहीं रही, मार्च में प्रदर्शन में शामिल हुई. वह 7 सितंबर को काबुल में एक विरोध प्रदर्शन में सबसे आगे थी, जब डंडों से लैस तालिबान के मेंबरों ने उन पर हमला किया. वह घर पहुंची, अपना बैग पैक किया और अपने परिवार के साथ राजधानी से निकल गई. वे एक रिश्तेदार के घर से दूसरे के घर शरण लेते रहे. एक तालिबानी अधिकारी ने उसके भाई को फोन किया और उसने कहा कि अगर वह मुखालफत करती रही तो उसे अंजाम का सामना करना होगा. "मैं कुछ दिनों तक थोड़ा खामोश रही और फिर नवंबर के पहले हफ्ते से मैं फिर से मुखालफत में शामिल हो गई." दूसरे मुजाहिरीन जल्द ही गायब होने लगे.
2 अक्टूबर को, हजारा बिरादरी की एक मेंबर, आलिया अजीजी, जो हेरात में औरतों की एक जेल की देखरेख करती है, काम के लिए घर से निकली. उसके बाद से उसका कुछ पता नहीं चला. उसके परिवार का मानना है कि तालिबान ने उसको अगवा कर लिया है. इसी साल 19 जनवरी को हथियारबंद लोग तमन्ना परयानी और परवाना इब्राहिमखेल के घरों में जबरन घुस गए, जो तीन दिन पहले काबुल युनिवर्सिर्टी में तालिबान की खिलाफत में शामिल हुई थीं. दो औरतों, साथ ही परयानी की तीन बहनों को अगवा कर लिया गया था, साथ ही उनके नेटवर्क से दो और को भी अगवा कर लिया गया था. दो हफ्ते बाद, जहरा मोहम्मदी, जिन्होंने दो औरतों की रिहाई की मांग के लिए बंद कमरे में विरोध करने की तैयारी की थी और पत्रकार और एक्टिविस्ट मुर्सल अय्यर भी लापता कर दिए गए.
प्रेस अधिकारी ने मुझे बताया कि उसने और बाकी लोगों ने एक व्हाट्सएप ग्रुप पर, जिससे गिरफ्तार किए गए कई एक्टिविस्ट जुड़े हैं, तुरंत अपने मैसेज और विरोध स्थल के पते हटा दिए और अपनी प्रोफाइल फोटों बदल दीं. "मैंने अपने दोस्तों और अगवा किए गए बहादुर प्रदर्शनकारियों के फोन नंबर और नाम भी बदल दिए," उसने कहा.
संयुक्त राष्ट्र और कई मानवाधिकार समूहों ने तालिबान से एक्टिविस्टों को रिहा करने की अपील की है. हालांकि, बीबीसी के साथ एक इंटरव्यू में, संयुक्त राष्ट्र में तालिबानी निजाम की ओर से नामित अफगान राजदूत सुहैलो शाहीन ने इन खबरों की सच्चाई से इनकार किया कि तालिबान ने औरतों को अगवा किया है. उन्होंने प्रदर्शनकारियों पर पश्चिम में पनाह लेने के लिए अगवा होने की फर्जी कहानी बनाने का इल्जाम लगाया.
जब कार्यवाहक विदेश मंत्री, अमीर खान मुत्ताकी की लीडरशिप में तालिबान के एक प्रतिनिधिमंडल ने फरवरी में ओस्लो का दौरा किया, पत्रकार और एक्टिविस्ट होदा खामोश उन छह अफगान औरतों में से एक थीं जिन्हें बातचीत में शामिल होने के लिए चुना गया था. "जिस पल मुझे बताया गया कि मैं तालिबान के सामने अफगान औरतों की नुमाइंदगी करूंगी, मुझे पता था कि मुझे हिरासत में रखी अफगानी एक्टिविस्ट औरतों की रिहाई की मांग करनी होगी," उन्होंने मुझे बताया. मुलाकात के दौरान, खामोश ने परयानी और इब्राहिमखेल की तस्वीरें दिखा कर मुत्ताकी को चौंका दिया. उन्होंने कहा, "मैं चिल्ला गई कि अभी फोन उठाओ और उनकी रिहाई की बात करो. मैं डरी नहीं और न ही अब मैं उनसे डरती हूं."
बढ़ते अंतरराष्ट्रीय दबाव के बीच और बार-बार इनकार के बावजूद, तालिबान ने कुछ दिनों बाद इब्राहिमखेल, मोहम्मदी, अयार, परयानी और उसकी बहनों को रिहा कर दिया. खामोश ने मुझे बताया कि उन्हें लगा कि कुछ गड़बड़ है. "उनकी रिहाई के ऐलान से कुछ दिन पहले, मुझे अगवा हुई एक्टिविस्टों में से एक के मोबाइल नंबर से मैसेज मिला जिसमें कहा गया था कि तालिबान उसके साथ पूरी इज्जत से पेश आ रहा है," उन्होंने कहा. "उसने इसका भी जिक्र किया कि वह खुश है और दिन में पांच बार नमाज अता कर रही थी. मुझे पता था कि यह वह नहीं थी क्योंकि वह अपनी नमाज के बारे में इस लहजे में या मैसेज में नहीं बोलती. मैं बता सकती थी कि उसने जो मैसेज किया वह पूरी तरह से बनाया हुआ है."
खामोश ने कहा कि एक्टिविस्टों से तालिबान ने कहा था कि वह लिख कर दें कि कभी विरोध प्रदर्शन में शामिल नहीं होंगी. वह उनसे संपर्क नहीं कर सकीं या यह पता नहीं लगा सकीं कि जिस गारंटी पर दस्तखत हुए वह क्या है. "वे अपनी जिंदगी को लेकर इतने सिहर गई थीं और परेशान थीं कि उस बात को बताना नहीं चाहती थीं," उन्होंने मुझे बताया. अजीजी अभी भी लापता हैं. जब चारों औरतों को रिहा कर दिया गया तब भी अफगानिस्तान में एक अमेरिकी दूत ने ट्वीट किया कि तालिबान ने 29 अन्य प्रदर्शनकारियों और उनके परिवारों को हिरासत में लिया हुआ है. खामोश की मेज पर जबरन हिरासत में लेने की और भी खबरें आ रही हैं. अभी भी लड़कियों के उच्च माध्यमिक स्कूलों में जाने पर पाबंदी लगी है और ज्यादातर औरते काम से बाहर हैं.
प्रेस अधिकारी ने मुझे बताया कि उसे यूरोपीय संघ के देश से निकलने की मंजूरी दे दी गई है. हालांकि, निकासी अधिकारियों ने उससे कहा है कि वे उसे सरकार से नहीं बचा सकते. उसे पाकिस्तान में सीमा पार करने की सलाह दी गई है. "मेरे पास वक्त नहीं है," उसने कहा. "मेरा पासपोर्ट कुछ महीनों में खत्म हो जाएगा और हर सुबह मैं अपने फोन पर धमकी भरे मैसेजों से जागती हूं. मेरे दरवाजे पर दस्तक कभी भी हो सकती है. मैंने अपने सबसे करीबी दोस्तों को यह भी नहीं बताया कि मैं जल्द ही जा रही हूं. मुझे इसे लेकर बहुत बुरा लग रहा है."