अंतरजातीय और अंतरधार्मिक विवाह करने वाली स्त्रियों की दोहरी पीड़ा

इलस्ट्रेशन : तारा आनंद
07 February, 2023

नाम न छापने की शर्त पर एक पत्रकार बताती हैं, "मैं सचमुच सब कुछ छोड़ कर आई थी.” अंतरजातीय विवाह करना कितना कठिन होता है यह बताते हुए कहती हैं, “पुलिस से निपटी, अपने परिवार से दूर हो गई.” लेकिन वे दोनों अपनी बात पर अड़े रहे और जल्द ही शादी कर ली. हालांकि बाद में उनके रिश्ते में वर्बल और फिजिकल एब्यूज की खटास आ गई. उनका विवाह, जो कभी आपसी प्रेम और बगावत का पैमाना था, अब नियमित हिंसा में उलझ कर रह गया. उस पत्रकार ने बताया, "मैं रात में जाग जाती थी और रोना शुरू कर देती थी. मैं सोचती कि कोई भी ऐसा नहीं है जिसे मैं अपना दोस्त या समाज कह सकती हूं.” आखिर में वह अलग हो गईं.

भारत में दंपति के बीच दुर्व्यवहार पर गंभीर लेखन का बहुत आभाव है. यह दुर्व्यवहार कोविड-19 महामारी के दौरान और अधिक हो गया. यूनाइटेड नेशंस एंटिटी फॉर जेंडर इक्वेलिटी एंड द एम्पावरमेंट ऑफ वुमेन की 2021 की एक सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा कोविड के ही साथ चलने वाली एक अन्य महामारी थी. सर्वेक्षण में दस में से सात महिलाओं ने माना कि हमसफर द्वारा वर्बल और फिजिल एब्यूज रोजाना की बात हो गई है.” जिन महिलाओं ने सामाजिक अपेक्षाओं की अवहेलना की और अपने धर्म, जाति या जातीयता से बाहर विवाह किया, उन्होंने खुद को असुरक्षित पाया है. जब महिलाएं पारिवार और सामाज की मर्जी के खिलाफ जा कर विवाह करने का निर्णय लेती हैं, तब वे उस स्थिति में जब उन पर दुर्व्यवहार होता है तो खुद को समर्थन और सुरक्षा से वंचित पाती हैं.

नवीनतम राष्ट्रीय स्वास्थ्य और परिवार सर्वेक्षण से पता चला है कि 98 प्रतिशत से अधिक ऐसी महिलाओं ने, जो लैंगिक हिंसा का सामना करती हैं किसी भी चिकित्सा या कानूनी सहायता की मांग नहीं की. निवारण के लिए कहां जाना है, इसके बारे में जागरूकता की कमी के साथ-साथ उनके भीतर वकीलों और पुलिस अधिकारियों जैसे संस्थागत स्रोतों से सामना करने का डर था. उसी डेटा में पाया गया कि मदद मांगने के लिए महिला सबसे पहले अपने परिवार, दोस्तों और उसके बाद पति के परिवार के पास जाती है. लेकिन अंतरजातीय या अंतरधार्मिक विवाह करने के बाद दोनों ही परिवारों की सहायता नहीं मिलती. सहायता प्राप्त करने को लेकर जागरूकता अभी भी दुर्लभ बनी हुई है, जो पुलिस के साथ उलझने के डर से और भी जटिल हो गई है.

घरेलू शोषण की रिपोर्ट के लिए बनाए गए ‘साहस’ ऐप को चलाने वाली कीर्ति जयकुमार ने मुझे बताया, "दोस्तों और परिवार द्वारा महिलाओं को मिलने वाले सबसे आम ताने ये हैं कि 'हमने तुमसे पहले ही कहा था' और 'अपना फैसला खुद लिया था तो खुद निपटो.’ लेकिन इस व्यवस्था में अतिरिक्त चुनौती भी है : जैसे सामाजिक और सुरक्षा तंत्र में पितृसत्ता, जातिवाद, जेनोफोबिया. ये सब मदद मागने वाली महिला को दी जाने वाली प्रतिक्रिया में झलकते हैं."

2005-06 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों पर आधारित 2011 के एक अध्ययन में पाया गया कि लगभग दो प्रतिशत विवाह अंतरधार्मिक हैं. और 2011 की जनगणना के अनुसार छह प्रतिशत से भी कम भारतीय विवाह अंतरजातीय थे, यह दर पिछले चार दशकों से समान ही रही है. ऐसी यूनियनें भी हैं जो सगोत्र विवाह, ऑनर किलिंग के साथ-साथ लव जिहाद जैसे मनगढ़ंत हौवे के खिलाफ कदम उठाने की मांग करते हैं. इस तरह के रिश्तों में होने वाली हिंसा को गलत तरीके से प्रस्तुत किया जाता है और अंतर-सामुदायिक विवाहों के खिलाफ एक चेतावनी देने वाली कहानी के रूप में पेश किया जाता है. इसका सबसे हालिया मामला एक हिंदू महिला श्रद्धा वाकर की उसके साथी आफताब पूनावाला द्वारा की गई हत्या है.

13 दिसंबर 2022 को वाकर की हत्या के तुरंत बाद महाराष्ट्र सरकार ने अंतरजातीय और अंतरधार्मिक विवाह करने वाले लोगों का विवरण एकत्र करने के लिए एक पैनल बनाने का प्रस्ताव पारित किया. नियुक्त अधिकारियों को ऐसे जोड़ों पर नजर रखने, पते और व्यक्तिगत विवरण सहित अन्य जानकारी इकट्ठा करने और नवविवाहित महिलाओं के साथ-साथ उनके परिवारों से संपर्क करने का काम सौंपा गया था. यदि महिला अपने परिवार से अलग हो जाती है तो अधिकारियों को उनसे एक-दूसरे के संपर्क में रहने और परिवारों को बातचीत करने के लिए प्रोत्साहित करने का आग्रह करना चाहिए. यह विचार महिलाओं को उनके परिवारों से जोड़ने और कथित तौर पर उनके लिए समर्थन और पुनर्वास का एक रास्ता तैयार करने का तरीका है. 15 दिसंबर को केवल अंतर-धार्मिक विवाहों को शामिल करने के लिए सरकार के प्रस्ताव में संशोधन किया गया था.

घरेलू हिंसा और मानवाधिकार मामलों पर काम करने वाली वकील रमा सरोदे ने वाकर की हत्या के बाद जिस तरह की बाते कही गई उनके बारे में मुझे बताया, "अंतरधार्मिक विवाह के कारण ऐसा हुआ कहना और दावा करना कि बस ऐसे ही जोड़ों को ही घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ता है, काफी बचकाना है. सरकार ने पहले कभी ऐसा नहीं किया लेकिन श्रद्धा वाकर के मामले के बाद अंतरधार्मिक विवाहों को लेकर उठी चिंता में यह कदम उठाया गया है.” उन्होंने इस कदम के पीछे की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा, "भले ही यह श्रद्धा के मामले के जवाब में हो लेकिन श्रद्धा शादीशुदा नहीं थी."

इस इरादे में निजता और व्यक्तिगत पसंद के अधिकार पर सवाल उठाने वाले निहितार्थ मौजूद हैं. इसका तात्पर्य यह है कि यह केवल अपनी पसंद से की गई शादियों में ही दुर्व्यवहार किया जाता हैं. इस विचार को उचित ठहराने वाला कोई डेटा नहीं है कि हिंसा केवल अंतरधार्मिक या अंतरजातीय विवाहों में होती है या किसी विशेष समुदाय द्वारा की जाती है. सरकार द्वारा घर छोड़ने वाली महिलाओं को उनके परिवार के साथ मिलाने का प्रस्तावित समाधान उनकी सुरक्षा को और खतरे में डालता है. अंतरधार्मिक विवाह करने वाले जोड़ों को अक्सर परिवारों की धमकियों और डराने-धमकाने के कारण कानूनी सुरक्षा की मांग करनी पड़ती है.

अपनी पहचान उजागर नहीं करने वाली एक कंटेंट राइटर 2011 में अपने साथी से अलग होने से पहले एक एब्यूसिव अंतरधार्मिक संबंध में थी. उसके दफ्तर के सहयोगियों ने उसे अपने पूर्व ससुराल वालों से दूर एक अलग शहर में जाकर बसने में मदद की. उसके मालिकों ने भी उसे चिकित्सा और परामर्श लेने के लिए प्रोत्साहित किया. उसने बताया, "आम तौर पर लोगों को समझना चाहिए कि महिलाओं के साथ क्या हो रहा है और इसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं है. यह किसी के भी साथ हो सकता है." उसने इसके बाद अपने ही धर्म के एक और व्यक्ति के साथ एब्यूसिव संबंध के बारे में बताया, जिसमें उसे शारीरिक और भावनात्मक हिंसा झेलनी पड़ी थी. तलाक के बाद से उसके माता-पिता ने उससे बात नहीं की है. उसने बताया, "मुझे अच्छा लगता अगर मेरे माता-पिता सामने आकर स्वीकार करते कि उन्हें भी थोड़ी सी काउंसलिंग की जरूरत है. इसके बजाए, वे अभी भी अपनी बेटी के जीवन में स्थिरता लाने के लिए 20 करोड़ देवताओं से प्रार्थना कर रहे हैं."

सरोदे ने कहा, "हम इन मामलों में वर्ग देखते हैं, धर्म देखते हैं, और हम इसमें जाति देखते हैं. चाहे वह शादीशुदा है या लिव-इन रिलेशनशिप में है या अपने ही मायके के परिवार द्वारा प्रताड़ित की जा रही है क्योंकि वह भी एक घरेलू रिश्ता है." घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के तहत लिव-इन रिलेशनशिप को भी घरेलू संबंधों की श्रेणी में रखा गया है. घरेलू हिंसा की शिकार घरेलू हिंसा की शिकार ही होती है, चाहे वह किसी भी जाति और धर्म की हो."

बहुत से लोग जिन्होंने अपने अंतरजातीय या अंतरधार्मिक विवाहों को पंजीकृत कराया और पुलिस सुरक्षा की मांग की, उन्होंने पाया कि इस प्रक्रिया में उन्हें उत्पीड़न और बदनामी का सामना करना पड़ा. इसलिए जब इन विवाहों के भीतर दुर्व्यवहार होता है, तब इस कठोर व्यवस्था के पास फिर से जाने का विचार कठिन लगता है. पत्रकार ने बताया, “यहां व्यवस्था का बहुत डर है. आपने पुलिस के सामने गवाही दी है कि आप अपने परिवार को अपनी जाति के बाहर किसी के साथ रहने के लिए छोड़ देंगे. और फिर अगर आप कहते हैं कि रिश्ते में सब ठीक नहीं चल रहा या आपका साथी वैसा नहीं है जो आपने सोचा था, तो आप डरते हैं कि वे आप पर हंसेंगे. या इससे भी बुरा हो कि वे शिकायत को ही खारिज कर दें.”

जयकुमार ने मुझे बताया कि “कानूनी, स्वास्थ्य और सुरक्षा सेवाएं प्रदान करने वाले हमेशा संवेदनशील नहीं होते हैं और पीड़ित लोगों के साथ उनकी बातचीत में जाति, वर्ग और धार्मिक विशेषाधिकार एक सामान्य बात हो सकते हैं. यह भयानक चीज है. उनकी मानवता पर सवाल उठाया जाता है और उनकी स्वतंत्रता और व्यक्तिगत कारणों को उन्हीं के खिलाफ हथियार बना दिया जाता है. मुझे यह हास्यास्पद लगता है कि हम यह मानकर चलते हैं कि कोई भी इच्छा से हिंसा का सामना करना चाहेगा.”

अंतरजातीय या अंतरधार्मिक विवाहों में लोगों के लिए रिहैबिलिटेशन असंभव जैसा लगता है क्योंकि न्याय प्रणाली को कभी यह देखने के लिए प्रशिक्षित नहीं किया गया कि इस प्रकार के उत्पीड़न इंटरसेक्शनल भी हैं. इस तरह हिंसा को खारिज करना उनकी व्यक्तिगत पहचान और मानसिक स्वास्थ्य को जटिल बनाता है. कुछ का विवाह जैसी संस्था से मोहभंग हो जाता है और सामाजिक हायरार्की की अवहेलना करने का अपराधबोध बना रहता है. कुछ लोग घातक शादियों में फंसे रह गए हैं और सामाजिक और कानूनी मदद कभी हासिल नहीं कर पाते. ऐसी स्थिति लोगों को पेचीदा जीवन जीने के लिए मजबूर करता है, जहां वे अपराधबोध, भय, लाचारी और शोक से लड़ते रहते हैं. आखिर में पत्रकार ने अपनी आपबीती को याद करते हुए कहा, "मैं थक गई हूं."

(अनुवाद : अंकिता)