“हमरी आबरू की कीमत पे शराब का धंधा न चलेगा .” 2 मार्च 2013 को बिहार के सासाराम के गांव कोनार में यह नारा गूंज रहा था. उस दिन, तकरीबन 60 महिलाओं ने सड़क पर निकल कर गांव के पुरुषों में व्याप्त शराब की लत और उसके फलस्वरूप होने वाली घरेलू हिंसा का विरोध किया. प्रदर्शनकारियों ने एक शराब की दुकान में ताला लगाकर एक लाख रुपए की शराब की बोतलों को नष्ट कर दिया और उन पर हमला करने आए एक आदमी की पिटाई भी कर दी.
यह आंदोलन तब शुरू हुआ जब कुछ महिलाओं को पता चला कि उनके बच्चे पाउच वाली शराब पी रहे हैं. आंदोलन का नेतृत्व करने वाली सासाराम की सामाजिक कार्यकर्ता सुनीता कहती हैं, “कोनार की महिलाएं पति की पिटाई को अक्सर अपना भाग्य मान लेती हैं.” सुनीता “प्रगतिशील महिला मंच” की संस्थापक हैं. इसे दिसंबर 2012 में दिल्ली में हुए गैंगरेप के बाद महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाया गया था. सुनीता का कहना है, “कोनार की महिलाओं का मानना था कि "उनके बच्चे बड़े होकर अन्याय के खिलाफ लड़ेंगे. लेकिन जब उन्होंने अपने बच्चों को पीते देखा, तब उन्हें लगा कि उनका सबसे बड़ा डर सच होने वाला है. सुनीता कहती हैं, “उन्होंने अपने परिवार के कमाने वाले को शराब के चलते खो दिया लेकिन अब अपने बच्चों को खोने के लिए तैयार नहीं थीं. यही कारण है कि वे सड़कों पर उतरीं और तभी से घरेलू हिंसा के खिलाफ खड़ी हो गईं”. जुलाई 2015 में विधान सभा चुनावों के लिए प्रचार के वक्त नीतीश कुमार ने महिलाओं के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए ऐलान किया कि यदि वह दोबारा मुख्यमंत्री बने तो शराब पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा देंगे. चुनाव के बाद अपना वादा निभाते हुए नीतीश कुमार ने अप्रैल और अक्टूबर 2016 में बिहार आबकारी संशोधन कानून और बिहार निषेध एवं आबकारी कानून के तहत राज्य में शराब की बिक्री, उत्पादन, निर्यात और पीने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया.
निषेध लगाने के बाद कुमार ने राज्य सरकार की नौकरियों में महिलाओं के लिए आरक्षण और स्कूल जाने वाली छात्राओं को निशुल्क साइकिल योजना को लागू किया. इन उपायों को बिहार में लैगिंक समानता के लिए महत्वपूर्ण प्रयास माना गया. दिसंबर 2018 में मैंने शराब बंदी के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए रोहतास, पटना और सारण का भ्रमण किया. यहां की महिलाओं ने यह बात मानी की शराबबंदी से शराब की लत और घरेलू हिंसा में काफी कमी आई है लेकिन इसके साथ उन्होंने इस बात पर दुख भी जताया कि यह बहुत धीमी गति से हो रहा है. कच्ची शराब और अवैध शराबखोरी जारी है और एक बार फिर घरेलू हिंसा की घटनाएं बढ़ रही हैं. करवंदिया की रहने वाली लालसा देवी ने मुस्कुराते हुए मुझे बताया, “बिहार में दारू और मार पिटाई कभी खत्म नहीं हो सकते”.
स्थानीय कार्यकर्ताओं और लोगों का कहना है कि 2014 और 2015 के बीच करवंदिया और सीता बिगहा में शराब पीने की वजह से दर्जनों लोग बीमार पड़े और मारे गए. इस दौरान बिहार में लाइसेंसी शराब दुकानों का जाल फैल गया था. यह इसलिए हुआ क्योंकि राजस्व बढ़ाने के लिए नीतीश कुमार ने 2005 में अपने पहले कार्यकाल में शराब के व्यापार को उदार बनाने का निर्णय लिया था. इस निर्णय के दस वर्षों में शराब से प्राप्त होने वाला राजस्व 500 करोड़ रुपए से बढ़ कर 4000 करोड़ रुपए हो गया था. लेकिन इस नीति का समाजिक मूल्य और परिणाम भयावह थे.
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