लॉकडाउन के चलते परिवार का अपमान सहने को मजबूर क्विअर समुदाय

13 मई 2020
लॉकडाउन ने कई क्विअर और ट्रांस व्यक्तियों को ऐसे माहौल में वापस भेज दिया है जहां वे दमित और भावनात्मक रूप से बंदी हैं महसूस करते हैं.
ईशन तन्खा
लॉकडाउन ने कई क्विअर और ट्रांस व्यक्तियों को ऐसे माहौल में वापस भेज दिया है जहां वे दमित और भावनात्मक रूप से बंदी हैं महसूस करते हैं.
ईशन तन्खा

रे बीस 25 साल की हैं. वह ट्रांसवुमन हैं और दिल्ली विश्वविद्यालय में विधि संकाय में कानून की पढ़ाई करती हैं. वह अपने कॉलेज के छात्रावास में रहती थीं लेकिन जब कोविड-19 के चलते देशव्यापी लॉकडाउन लागू किया गया तो उन्हें दिल्ली में अपने माता-पिता के साथ रहने के लिए जाना पड़ा. रे ने कहा कि लगभग एक साल पहले उन्होंने अपने माता-पिता को बता दिया था कि वह एक ट्रांसवुमन है लेकिन जब से वह घर वापस आईं हैं वह दमित महसूस कर रही हैं. उन्होंने कहा, "इसने वे सारे काम बंद कर दिए हैं जिनसे मैं खुद को बहला लेती थी.”

 रे भारत के शहरों में रहने वाले उन ढेरों क्विअर और ट्रांस व्यक्तियों में से एक हैं जिन्हें लॉकडाउन ने ऐसे माहौल में वापस जाने के लिए मजबूर किया है जहां वे दमित और भावनात्मक रूप से बंदी महसूस करती हैं. मारिवाला स्वास्थ्य पहल के सर्टिफिकेट कोर्स-क्विअर अफरमेटिव काउंसलिंग प्रैक्टिस की मेंबर पूजा नायर ने मुझे बताया कि इस समुदाय के लोगों का अपने परिवारों के साथ रहना उनके लिए कष्टदायी हो सकता है. उन्होंने कहा, "इन क्विअर समुदायों और उनके परिवारों के बीच का संबंध कभी भी सरल नहीं होता है, यह बिल्कुल भी आकर्षक नहीं होता. जब सभी लोग इससे इनकार करते हैं, तो आपके अंदर सेल्फ की भावना कैसे विकसित होगी? जब आपके आस-पास की हर चीज आपके अस्तित्व, आपकी पहचान को अस्वीकार कर रही है, तो आप अपने सेल्फ का अनुभव कैसे करेंगे?”

रे ने मुझे बताया कि उनके जैसे अन्य लोगों की तरह ही लॉकडाउन उनके लिए कठिन है क्योंकि उनके दोस्त उनके जीवन का जरूरी हिस्सा हैं. रे ने कहा कि लॉकडाउन शुरू होने से पहले अपने दोस्तों, खासकर अपने ट्रांस दोस्तों से मिलने में उन्हें खुशी होती थी. उन्होंने कहा, "यह मेरे जीने का एकमात्र जरिया था." अपने विश्वविद्यालय परिसर में वह अपनी इच्छानुसार जीने, खुद को व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र थीं. वह अपने कॉलेज में मजबूती के साथ ट्रांस अधिकारों पर चर्चा कर सकती थीं और वहां सार्वजनिक रूप से साड़ी पहन सकती थी. वह अपने बैग में एक साड़ी रखा करती थीं.

लेकिन अब उन्हें अपने तरीके से रहने की बहुत कम आजादी है. अब उन्हें अपने माता-पिता के साथ अधिक समय बिताना है, जो उनके ट्रांस होने को स्वीकार नहीं कर रहे हैं और मददगार भी नहीं हैं. रे ने मुझे बताया कि उनके परिवार ने उनकी पहचान को पूरी तरह से स्वीकार करने से इनकार कर किया है. रे ने कहा, “अपनी पहचान उजागर करने के लगभग एक साल बाद मैं ऐसी स्थिति में हूं जहां एक अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ है. यह लगभग वैसा है जैसे कुछ भी न हुआ हो. मैं अपने दोस्तों को वीडियो कॉल या फोन कॉल नहीं कर सकती हूं क्योंकि मेरा हर शब्द, हर कार्य माता-पिता को बुरा लग सकता है और हमारे बीच झगड़े का कारण बन सकता है."

26 वर्षीय वैष्णवी शाह पैनसेक्सुअल महिला हैं. उनके लिए घर पर रहने का अर्थ "चिंतित, तनावग्रस्त, आसानी से भयभीत हो जाना" है. शाह हरियाणा के गुड़गांव जिले में योग ट्रेनर हैं और लॉकडाउन के कारण उन्हें अपने परिवार के साथ राजस्थान के भरतपुर जिले में जाना पड़ा. शाह ने मुझे बताया कि वह मध्यवर्गीय परिवार से हैं जो उनकी लैंगिकता को पूरी तरह से अस्वीकार करता है. उन्होंने कहा, "मेरे माता-पिता के लिए डेटिंग का विचार ही अपने आप में उच्छृंखल है. किसी महिला के साथ डेटिंग करने पर मेरे माता-पिता अपना आपा खो देंगे.'' उन्होंने आगे बताया, "उनके लिए या तो यह किसी प्रकार की बीमारी है या उसका केवल एक चरण है. ...मुझे हर चीज के बारे में झूठ बोलना पड़ता है. यह ऐसा है जैसे मैं दोहरी पहचान के साथ जी रही हूं.”

Keywords: coronavirus lockdown coronavirus Queer community
कमेंट