छत्तीसगढ़ में अडानी का विरोध करने वालों को निशाना बनाने के लिए सीपीआर पर आईटी सर्वे?

2009 में लिया गया छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में गेवरा कोयला खदान का एक दृश्य. रूपक डे चौधरी/रॉयटर्स

थिंक टैंक सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के एफसीआरए लाइसेंस को निलंबित करने से पहले आयकर विभाग ने एक महीने लंबी जांच की थी जिसमें छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य क्षेत्र में अडानी समूह द्वारा संचालित कोयला-खनन परियोजनाओं के खिलाफ विरोध पर खास ध्यान दिया गया था. इस क्षेत्र में दो कोयला ब्लॉक अडानी समूह द्वारा राजस्थान सरकार के बिजली निगम के साथ संयुक्त उद्यम के हिस्से के रूप में संचालित किए जाते हैं. आईटी विभाग ने सीपीआर सर्वेक्षण के संबंध में खदानों के विरोध में शामिल कार्यकर्ताओं से पूछताछ की है और विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 के तहत सीपीआर के लाइसेंस को चुनौती देने वाले अपने कारण बताओ नोटिस में ऐसे ही एक कार्यकर्ता के फोन से चैट को सबूत माना है. कारवां को कारण बताओ नोटिस की एक प्रति प्राप्त हुई है.

पारसा पूर्व और कांता बसन या पीईकेबी और हसदेव अरण्य क्षेत्र में परसा कोयला ब्लॉक को अडानी समूह की प्रमुख कंपनी, अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड, राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड के साथ मिल कर एक संयुक्त उद्यम के तहत संचालित करती है. जैसा कि कारवां ने 2018 में रिपोर्ट किया था कि आरआरयूवीएनएल और एईएल के बीच साझेदारी 2014 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन करने वाली शर्तों पर चल रही है क्योंकि 2014 के उस फैसले का उद्देश्य "कोलगेट" घोटाले खत्म करना था. “कोलकेट” के तहत सरकारी संस्थाओं ने अवैध रूप से निजी कंपनियों को आकर्षक सौदों की पेशकश की थी. रूढ़िवादी अनुमानों से भी, ये शर्तें, जो 2014 के फैसले से पहले की हैं, अडानी को तीस साल की अवधि में कम से कम 6000 करोड़ रुपए का फायदा पहुंचाती हैं. परसा ब्लॉक में खनन कार्यों के लिए भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया को चुनौती देने वाली हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति, जिसमें कोयला परियोजनाओं से प्रभावित गांवों के लोग शामिल हैं, की एक याचिका सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है.

27 फरवरी 2023 को गृह मंत्रालय ने "180 दिनों की अवधि के लिए" सीपीआर के एफसीआरए पंजीकरण को निलंबित कर दिया. आईटी विभाग द्वारा 7 सितंबर 2022 को दिल्ली में सीपीआर के कार्यालयों में सर्वे किया और उसके छह महीने बाद यह निलंबन का आदेश आया. (खुलासा: सीपीआर में एक वरिष्ठ फेलो सुशांत सिंह, कारवां में सलाहकार संपादक हैं और लंबे समय से स्तंभ लिख रहे हैं.)

दिसंबर में सीपीआर को जारी कारण बताओ नोटिस, थिंक टैंक के जन अभिव्यक्ति सामाजिक विकास संस्थान (जेएएसवीएस), छत्तीसगढ़ स्थित एक गैर-सरकारी संगठन के साथ काम करने पर जोर देता है. जेएएसवीएस के कुछ सदस्य हसदेव अरण्य आंदोलन से जुड़े हुए हैं. जेएएसवीएस को विरोध आंदोलन के साथ जोड़ कर आईटी विभाग का दावा है कि सीपीआर ने "छत्तीसगढ़ में खनन कार्यों का विरोध करने वाले लोगों" को फंड देने में मदद की है. सीपीआर और जेएएसवीएस दोनों ने अवैध काम के किसी भी आरोप से इनकार किया है.

निलंबन के बाद जारी एक सार्वजनिक बयान में सीपीआर ने कहा है कि "कानूनी प्रक्रियाओं का पूरी तरह से पालन किया जा रहा" था. जेएएसवीएस के एक कर्मचारी आलोक शुक्ला, जिनसे सीपीआर जांच के संबंध में पूछताछ की गई थी, ने कहा, “जन अभिव्यक्ति और सीपीआर का पर्यावरणीय गैर-अनुपालन को दूर करने के लिए एक परामर्श अनुबंध था और जन अभिव्यक्ति के इस कार्य का हसदेव आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं है.” आंदोलन में अपनी भूमिका के बारे में शुक्ला ने कहा, “हसदेव के प्रभावित समुदाय और संघर्ष समिति ने अदालतों का दरवाजा खटखटाया है और मैं इस आंदोलन का सदस्य हूं इसलिए मैं वकीलों के साथ समन्वय की भूमिका में हूं. इस मुकदमेबाजी के साथ परामर्श अनुबंध का कोई टकराव नहीं है."

आयकर विभाग ने पूछताछ के दौरान शुक्ला का फोन जब्त कर लिया था और उनके व्हाट्सएप और सिग्नल चैट को आधार बना कर उनसे पूछताछ की थी. कारण बताओ नोटिस में सबूत के तौर पर इस्तेमाल की गई शुक्ला की एक चैट पीईकेबी ब्लॉक में वन और पर्यावरण नियमों के कथित गैर-अनुपालन से संबंधित एक बातचीत से संबंधित है. नोटिस और शुक्ला से पूछे गए सवालों से यह साफ होता है कि आईटी विभाग हसदेव अरण्य के विरोध प्रदर्शनों में दिलचस्पी ले रहा था. इस रिपोर्ट के प्रकाशन के समय तक आयकर विभाग ने विरोध प्रदर्शनों पर ध्यान केंद्रित करने के बारे में कारवां के सवालों का जवाब नहीं दिया था.

हसदेव अरण्य क्षेत्र उत्तरी छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों में सघन वन भूमि खंड है जहां हसदेव अरण्ड बचाओ संघर्ष समिति एक दशक से ज्यादा समय से कोयला-खनन परियोजनाओं को दी गई पर्यावरण और वन मंजूरी के खिलाफ विरोध कर रही है, जो अक्सर स्थापित प्रक्रिया कानूनों और नियमों का उल्लंघन करती है. इस क्षेत्र के अधिकांश लोग आदिवासी समुदायों से हैं और अपनी आजीविका के लिए कृषि और वन उपज पर निर्भर हैं. उन्होंने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि मंजूरी से उनकी आजीविका खत्म हो जाएगी, जंगल की पारिस्थितिकी नष्ट हो जाएगी और मानव-पशु संघर्ष शुरू हो जाएगा. मार्च 2015 में, जब आरआरयूवीएनएल ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले की शर्तों के अनुसार एईएल के साथ अपने संयुक्त उद्यम को जारी रखने का फैसला किया, तब भारतीय जनता पार्टी राजस्थान और छत्तीसगढ़ दोनों में सत्ता में थी. कांग्रेस पार्टी ने 2018 में दोनों राज्यों में बीजेपी की जगह ली और तब से सत्ता में है.

शुक्ला छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक और हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के प्रमुख कार्यकर्ता हैं. छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन राज्य भर में जन आंदोलनों और कार्यकर्ताओं का एक छातार निकाय है. शुक्ला का नाम पहले पेगासस स्पाइवेयर के संभावित लक्ष्यों की एक लीक सूची में दिखाई दिया था. 26 सितंबर 2022 को शुक्ला को सीपीआर की जांच के तहत पूछताछ के लिए आईटी विभाग के सामने पेश होने के लिए कहा गया था.

शुक्ला और जेएएसवीएस के एक अन्य कर्मचारी के बीच बातचीत के स्क्रीनशॉट के आधार पर आईटी विभाग ने पूछा कि वे "मुकदमे के मामलों" के लिए दो लोगों को धन हस्तांतरित करने की चर्चा क्यों कर रहे थे. इस पर शुक्ला ने स्पष्ट किया कि कर्मचारी हसदेव आंदोलन का भी सदस्य था. उन्होंने कहा कि चैट "हसदेव आंदोलन बैंक खातों से मुकदमेबाजी के मामलों" के वकीलों के "खातों में धन के हस्तांतरण के लिए बातचीत से संबंधित" थी.

साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किया गया एक अन्य स्क्रीन शॉट एक अपसी बातचीत था जहां शुक्ला ने जेएएसवीएस में एक कार्यक्रम प्रबंधक से ट्विटर पर प्राप्त एक संदेश को देखने के लिए कहा था जो कहता है कि "पीईकेबी खानों में वन और पर्यावरण अनुपालन में कुछ बड़ी गड़बड़ी है." उसके जवाब में कार्यक्रम प्रबंधक ने कहा कि वह खान की अनुपालन रिपोर्ट की जांच कर रही है और सुझाव दिया कि ग्राउंड ट्रूथिंग- डेटा को सत्यापित करने के लिए क्षेत्र में एक सर्वेक्षण अभ्यास- की जा सकती है. आईटी विभाग ने शुक्ला से पूछा कि क्या "यह चैट हसदेव को संदर्भित करता है." इस पर शुक्ला ने जवाब दिया था कि उन्होंने हसदेव में चल रही खदानों के अनुपालन न होने के मुद्दे पर काम किया है.

शुक्ला के फोन के स्क्रीनशॉट के आधार पर आईटी विभाग का दावा है कि शुक्ला और जेएएसवीएस के अन्य कर्मचारी "मुकदमे के मुद्दों की पहचान करने, लोगों को जुटाने और हसदेव आंदोलन के लिए धन जुटाने" में शामिल हैं.

परसा कोयला-ब्लॉक आवंटन से प्रभावित गांवों की ग्राम सभाओं ने 2015 से खनन परियोजना का विरोध करते हुए कई सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किए हैं. संविधान की छठी अनुसूची के तहत आने वाले क्षेत्रों में किसी भी भूमि अधिग्रहण से पहले कानून को ग्राम सभाओं से सूचित सहमति की आवश्यकता होती है.

जिस दिन शुक्ला से पूछताछ की गई उसी दिन छत्तीसगढ़ वन विभाग ने भारी पुलिस सुरक्षा के बीच छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में पीईकेबी के दूसरे चरण के लिए पेड़ों की कटाई शुरू कर दी. इस चरण में खनन के लिए 1136 हेक्टेयर वन क्षेत्र को साफ करना शामिल है. केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और कांग्रेस पार्टी द्वारा संचालित छत्तीसगढ़ सरकार ने क्षेत्र में ग्राम सभाओं के सदस्यों और हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के विरोध के बीच इसे मंजूरी दे दी. समाचार रिपोर्टों के अनुसार, विरोध प्रदर्शनों के सिलसिले में कम से कम दस लोगों को गिरफ्तार किया गया है.