थिंक टैंक सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के एफसीआरए लाइसेंस को निलंबित करने से पहले आयकर विभाग ने एक महीने लंबी जांच की थी जिसमें छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य क्षेत्र में अडानी समूह द्वारा संचालित कोयला-खनन परियोजनाओं के खिलाफ विरोध पर खास ध्यान दिया गया था. इस क्षेत्र में दो कोयला ब्लॉक अडानी समूह द्वारा राजस्थान सरकार के बिजली निगम के साथ संयुक्त उद्यम के हिस्से के रूप में संचालित किए जाते हैं. आईटी विभाग ने सीपीआर सर्वेक्षण के संबंध में खदानों के विरोध में शामिल कार्यकर्ताओं से पूछताछ की है और विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 के तहत सीपीआर के लाइसेंस को चुनौती देने वाले अपने कारण बताओ नोटिस में ऐसे ही एक कार्यकर्ता के फोन से चैट को सबूत माना है. कारवां को कारण बताओ नोटिस की एक प्रति प्राप्त हुई है.
पारसा पूर्व और कांता बसन या पीईकेबी और हसदेव अरण्य क्षेत्र में परसा कोयला ब्लॉक को अडानी समूह की प्रमुख कंपनी, अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड, राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड के साथ मिल कर एक संयुक्त उद्यम के तहत संचालित करती है. जैसा कि कारवां ने 2018 में रिपोर्ट किया था कि आरआरयूवीएनएल और एईएल के बीच साझेदारी 2014 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन करने वाली शर्तों पर चल रही है क्योंकि 2014 के उस फैसले का उद्देश्य "कोलगेट" घोटाले खत्म करना था. “कोलकेट” के तहत सरकारी संस्थाओं ने अवैध रूप से निजी कंपनियों को आकर्षक सौदों की पेशकश की थी. रूढ़िवादी अनुमानों से भी, ये शर्तें, जो 2014 के फैसले से पहले की हैं, अडानी को तीस साल की अवधि में कम से कम 6000 करोड़ रुपए का फायदा पहुंचाती हैं. परसा ब्लॉक में खनन कार्यों के लिए भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया को चुनौती देने वाली हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति, जिसमें कोयला परियोजनाओं से प्रभावित गांवों के लोग शामिल हैं, की एक याचिका सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है.
27 फरवरी 2023 को गृह मंत्रालय ने "180 दिनों की अवधि के लिए" सीपीआर के एफसीआरए पंजीकरण को निलंबित कर दिया. आईटी विभाग द्वारा 7 सितंबर 2022 को दिल्ली में सीपीआर के कार्यालयों में सर्वे किया और उसके छह महीने बाद यह निलंबन का आदेश आया. (खुलासा: सीपीआर में एक वरिष्ठ फेलो सुशांत सिंह, कारवां में सलाहकार संपादक हैं और लंबे समय से स्तंभ लिख रहे हैं.)
दिसंबर में सीपीआर को जारी कारण बताओ नोटिस, थिंक टैंक के जन अभिव्यक्ति सामाजिक विकास संस्थान (जेएएसवीएस), छत्तीसगढ़ स्थित एक गैर-सरकारी संगठन के साथ काम करने पर जोर देता है. जेएएसवीएस के कुछ सदस्य हसदेव अरण्य आंदोलन से जुड़े हुए हैं. जेएएसवीएस को विरोध आंदोलन के साथ जोड़ कर आईटी विभाग का दावा है कि सीपीआर ने "छत्तीसगढ़ में खनन कार्यों का विरोध करने वाले लोगों" को फंड देने में मदद की है. सीपीआर और जेएएसवीएस दोनों ने अवैध काम के किसी भी आरोप से इनकार किया है.
निलंबन के बाद जारी एक सार्वजनिक बयान में सीपीआर ने कहा है कि "कानूनी प्रक्रियाओं का पूरी तरह से पालन किया जा रहा" था. जेएएसवीएस के एक कर्मचारी आलोक शुक्ला, जिनसे सीपीआर जांच के संबंध में पूछताछ की गई थी, ने कहा, “जन अभिव्यक्ति और सीपीआर का पर्यावरणीय गैर-अनुपालन को दूर करने के लिए एक परामर्श अनुबंध था और जन अभिव्यक्ति के इस कार्य का हसदेव आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं है.” आंदोलन में अपनी भूमिका के बारे में शुक्ला ने कहा, “हसदेव के प्रभावित समुदाय और संघर्ष समिति ने अदालतों का दरवाजा खटखटाया है और मैं इस आंदोलन का सदस्य हूं इसलिए मैं वकीलों के साथ समन्वय की भूमिका में हूं. इस मुकदमेबाजी के साथ परामर्श अनुबंध का कोई टकराव नहीं है."
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