पूर्व सूचना आयुक्त और सूचना अधिकार कार्यकर्ता शैलेश गांधी ने नवंबर 2012 में सूचना का अधिकार कानून के तहत एक आवेदन जमा किया. आवेदन में गांधी ने महाराष्ट्र के पूर्व उप मुख्यमंत्री अजीत पवार का आयकर रिटर्न और बैलेंसशीट की जानकारी मांगी थी. उनके आवेदन और उसके बाद दायर अपीलों को जन सूचना अधिकार, प्रथम अपील प्राधिकारी, केन्द्रीय सूचना आयोग और बॉम्बे हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया और अंततः 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी विशेष अवकाश याचिका खारिज कर दी.
सूचना अधिकरियों और अदालतों ने 2012 के गिरीश आर. देशपांडे बनाम केन्द्रीय सूचना आयुक्त मामले का हवाला देकर गांधी के आवेदन को खारिज कर दिया. उस आदेश में दीपक मिश्रा और केएस राधाकृष्णन की बेंच ने कहा था कि सार्वजनिक अधिकारियों के आयकर रिटर्न, संपत्ति, दायित्व, आधिकारिक आदेश और प्रदर्शन रिकार्ड निजी जानकारी के दायरे में आता हैं और आरटीआई कानून 2005 की धारा 8 (आई) (जे) के तहत कानून के दायरे से बाहर हैं. इस प्रावधान में ऐसी किसी भी सूचना का खुलासा करना मना है, जो व्यापक जनहित में न आती हो और जो व्यक्ति के निजता के अधिकार का हनन करती हो. लेकिन इस कानून की मोटी व्याख्या ने आरटीआई कानून को कमजोर किया है और सूचना के सार्वजनिक न होने से सरकारी अधिकारियों पर जनता का अंकुश ढीला पड़ा है.
अगस्त 2013 में कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने एक कार्यालय मेमो (ज्ञापन) जारी किया, जिसके अनुसार अधिकारी के खिलाफ शिकायत और उन पर की गई कार्रवाई निजी जानकारी के तहत आती हैं और यह आरटीआई कानून के तहत सार्वजनिक नहीं की जा सकती. भूतपूर्व सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलु का कहना है, “यह ज्ञापन किसी भी सूचना आयुक्त के लिए सबसे बड़ी समस्या है क्योंकि वह उन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकते, जो सूचना नहीं दे रहे हैं. यदि सरकार आरटीआई कानून को लेकर ईमानदार है तो उसे इस ज्ञापन को वापस लेना चाहिए.”
कार्मिक विभाग का यह ज्ञापन देशपांडे मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के हवाले से आया है. श्रीधर आचार्युलु का कहना है कि गांधी जैसे लाखों लोगों के सूचना आवेदनों को देशपांडे फैसले का हवाला देकर रोका जा रहा है. जिन विधि जानकारों, भूतपूर्व सूचना आयुक्तों एवं आरटीआई कार्यकर्ताओं से मैंने बात की उनका कहना है कि कार्मिक विभाग का आदेश आरटीआई कानून और संविधान की धारा 19 में उल्लेखित सूचना की गारंटी की मान्यता के खिलाफ जाता है.
श्रीधर आचार्युलु का कहना है कि आज 20 में से 10-12 आवेदन देशपांडे फैसले का हवाला दे कर खारिज कर दिए जाते हैं. जिन अधिकारियों को सूचना नहीं देनी होती है वे देशपांडे फैसले का हवाला दे देते हैं.
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