10 जून को उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर या नोएडा के सेक्टर 8 की एक झुग्गी में रहने वाले वाल्मीकि समाज के लोगों ने बताया कि मार्च 25 को शुरू हुए लॉकडाउन से अब तक नोएडा अथॉरिटी ने इस इलाके में केवल तीन बार राशन बांटा है. इन लोगों ने मुझे बताया कि अधिकारियों ने उनसे राशन कार्ड मांगे थे जबकि ऐसी कोई शर्त इसी इलाके में रहने वाले बिहार और पश्चिम बंगाल के लोगों के लिए नहीं है.
डेमोक्रेटिक आउटरीच फॉर सोशल ट्रांसफॉरमेशन (दोस्त) के एक प्रतिनिधि ने उपरोक्त बात की पुष्टि की. यह संस्था नोएडा प्राधिकरण के साथ मिलकर लॉकडाउन के दौरान राशन वितरण में सहयोग कर रही है. सूरज सुधाकर इस संस्था के सेक्टर 8 में जारी राहत कार्य के इंचार्ज हैं. सुधाकर ने मुझसे कहा, “हमने सोचा कि लोगों को तुरंत राशन देने से अच्छा होगा कि उनके लिए राशन कार्ड बनवा कर स्थाई समाधान निकाला जाए.”
वाल्मीकि समाज पर राशन कार्ड के लिए आवेदन करने का दबाव डाला जा रहा है जबकि राज्य सरकार ने तय किया है कि 30 जून से वह सार्वजनिक वितरण प्रणाली को वैश्विक करेगी. 17 अप्रैल को एक प्रेस रिलीज में राज्य सरकार के इस निर्णय की घोषणा करते हुए मुख्यमंत्री अजय सिंह बिष्ट या आदित्यनाथ ने कहा था कि इससे यह सुनिश्चित होगा कि जरूरतमंद को निशुल्क राशन मिले, फिर चाहे उसके पास राशन कार्ड या आधार कार्ड हो या ना हो.
परिणाम स्वरूप वाल्मीकि समुदाय के पास राशन कार्ड के बिना आपूर्ति प्राप्त करने के बहुत कम रास्ते हैं. एक हस्तलिखित पत्र में 14 अप्रैल को झुग्गी के लोगों ने गौतमबुद्ध नगर के जिला मजिस्ट्रेट सुहास लालिनाकेरे यथिराज को राशन की कमी की सूचना दी थी. उस पत्र में लिखा था कि करीब 250 से 300 वाल्मीकि परिवारों को राशन कार्ड की जरूरत है और इन लोगों को बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. उस पत्र में करीब 150 लोगों के फोन नंबर भी थे ताकि यदि सरकार राशन वितरण के प्रयास को तीव्र करना चाहे तो लोगों से संपर्क कर ले. इनमें से 20 लोगों से मैंने बात की. इन लोगों ने मुझे बताया कि वितरण के काम में असंगति है. इन लोगों ने बताया कि स्थानीय स्तर पर राशन खरीदना संभव नहीं हो पा रहा है क्योंकि यह इलाका लंबे समय से कंटेनमेंट जोन में आता है और लोगों की बचत भी खत्म हो गई है. कुछ लोगों ने कहा कि उन्होंने सरकारी अधिकारियों को भोजन बांटते देखा है लेकिन वह बहुत अपर्याप्त था.
मैंने यथिराज को इस संबंध में सवाल भेजे थे लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. इस क्षेत्र के विधायक पंकज सिंह के एक स्टाफ कर्मचारी ने नाम ना लिखने की शर्त पर आपूर्ति में कमी के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि “सरकार प्रत्येक व्यक्ति को जरूरत के हिसाब से राशन उपलब्ध करा रही है.”
सुधाकर ने समझाया कि कैसे दोस्त, जिसकी स्थापना बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने की थी, और नोएडा अथॉरिटी राशन का वितरण कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि हमने तय किया है कि हम उन लोगों को कच्चा राशन प्राथमिकता में देंगे जो उत्तर प्रदेश के डोमिसाइल नहीं हैं. लेकिन उन्होंने यह भी दावा किया यह कोई भेदभाव पूर्ण निर्णय नहीं है.
सुधाकर ने बताया, “राशन वितरण करने के लिए हमने उन लोगों को दो श्रेणियों में बांटा है जिनके पास राशन नहीं है. एक जो उत्तर प्रदेश के डोमिसाइल नागरिक हैं और दूसरे जो अन्य राज्यों से पलायन करके आए हैं.” इन लोगों को प्रारूप एक और प्रारूप दो फार्म भरने हैं. उन्होंने कहा, “प्रारूप दो फार्म भराया जा रहा है क्योंकि अभी राशन कार्ड जारी नहीं किया जा सकता है क्योंकि एक राष्ट्र एक राशन कार्ड अभी शुरू ही हुआ है. इसलिए यह ऐसे लोग हैं जिन्हें राशन नहीं मिलेगा लेकिन सरकार सीएसआर फंड के द्वारा इनको राशन उपलब्ध करा रही है.” सुधाकर ने बताया कि उनकी टीम ने अन्य राज्यों के प्रवासियों को राशन वितरण किया और उत्तर प्रदेश के डोमिसाइल लोगों को प्रारूप एक फार्म बांटा. उन्होंने कहा कि यदि उत्तर प्रदेश के लोग राशन कार्ड धारक बन जाते हैं तो उन्हें महामारी के बाद भी इसका लाभ मिलेगा. लेकिन स्थानीय लोगों ने जोर दिया कि उन्हें तत्काल राहत की जरूरत है.
झुग्गी बस्ती में रहने वाले लोगों ने मुझसे कहा कि ऐसा लगता है कि अथॉरिटी वाले बिहार या पश्चिम बंगाल के लोगों का पक्ष ले रहे हैं लेकिन उन्हें नहीं पता कि ऐसा क्यों कर रहे हैं. 16 साल से झुग्गी में रह रहे राजेंदर ने मुझसे कहा. “कुछ व्यवस्थाएं की गई थीं लेकिन वह सिर्फ बंगाली और बिहारी लोगों के लिए थीं.” राजेंदर सफाईकर्मी हैं लेकिन लॉकडाउन के पहले वह बीमार पड़ गए थे और उनकी नौकरी चली गई थी. राजेंदर के अनुसार, अथॉरिटी वालों ने उनके इलाके में 20 मई को राशन बांटा था लेकिन उन्हें राशन देने से इनकार कर दिया था. राजेंदर ने कहा कि उन लोगों ने कहा, ‘यूपी वालों को राशन नहीं मिलेगा’. राजेंदर ने कहा कि उनसे कहा गया कि पहले हम लोग राशन कार्ड बना लें. हालांकि उन्हें नहीं पता कि ऐसा कहने वाले अधिकारी कौन थे.
यहां रहने वालों को सरकारी डॉक्यूमेंट बनाने की परेशानियां अच्छी तरह पता है. उन्होंने बताया कि उन्होंने पहले भी राशन कार्ड बनाने का प्रयास किया था लेकिन उनके आवेदन मंजूर नहीं हुए. “आज 21 मई को मैंने तीसरी बार फॉर्म भरा है,” यहां रहने वाले सचिन कुमार ने कहा. “अगर हम राशन कार्ड के लिए आवेदन करते हैं तो उसमें तीन महीना लगता है और उसके बावजूद वह अस्वीकार हो जाता है. इसमें बहुत समय लगता है. जब हमने आखिरी बार फॉर्म भरा था तो हमें बताया गया था कि यह पुराना हो गया है और नए फॉर्म से आवेदन भरो.”
4 जून को यहां रहने वाले एक अन्य व्यक्ति ने, जिसके पास राशन कार्ड है और जो राहत कार्यों में मदद कर रहा है, मुझसे कहा था कि नोएडा अथॉरिटी के अधिकारियों ने झुग्गी बस्ती में रहने वाले उत्तर प्रदेश के लोगों को आश्वासन दिया है कि उनके कार्ड दो दिन में बन जाएंगे. उस व्यक्ति ने बताया कि उसे 10 जून को राशन मिल गया था लेकिन राशन कार्ड के बारे में उसके पास कोई अपडेट नहीं है.
5 जून को सुधाकर ने मुझे बताया कि उनकी टीम ने राशन कार्ड के लिए 70 आवेदन झुग्गी में रहने वाले उत्तर प्रदेश के लोगों से प्राप्त किए हैं जिनकी आने वाले सप्ताह में कार्यवाही पूरी की जाएगी. जब मैंने उनको बताया की यहां रहने वाले बहुत से लोगों को राशन कार्ड बनने में होने वाली देरी की चिंता है तो उन्होंने जवाब दिया इन लोगों ने स्थानीय राशन कार्ड ऑफिस में आवेदन जमा करने में चार-पांच दिन लगा दिए.
बस्ती में रहने वाले आशु फॉर्म भरने में लोगों की मदद कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि आवश्यक पहचान पत्र के होने भर से राशन मिल जाएगा यह जरूरी नहीं है. उन्होंने बताया कि उन्होंने देखा है कि 20 जून को और उससे पहले कुल 2 बार कच्चा राशन वितरण हुआ है. उन्होंने कहा, “राशन वितरण का कोई तरीका नहीं है. जो लोग पहले पहुंचते हैं उन्हें मिल जाता है. कुछ लोगों को दो बार मिल जाता है. वे लोग ध्यान देते ही नहीं कि कौन ले रहा है.”
आशु की पड़ोसी मंजू ने बताया कि उसे एक बार भी राशन नहीं मिला है. उन्होंने कहा, “ये लोग सिर्फ अपने ही लोगों को राशन देते हैं. मैं वहां जाकर खड़ी हो जाती हूं लेकिन मुझे नहीं मिलता.” उन्होंने कहा, “अपने लोगों को बांटने के बाद ये लोग कहते हैं ‘अरे डीएम का फोन आ गया चलो भागो, भागो’.”
उन्होंने बताया कि नोएडा अथॉरिटी के एक अधिकारी ने 20 मई को होने वाले राशन वितरण के बारे में उन्हें पहले ही बता दिया था. “जब वितरण वाहन यहां आया तो वे लोग उसे अपने मोहल्लों में ले गए. वे लोग मेरे पास नहीं आए. बिहारियों को राशन मिला और उत्तर प्रदेश वालों को फार्म. वहां झगड़ा और हल्ला हो रहा था लेकिन हमारे लोगों में से किसी को राशन नहीं मिला और हम घर लौट आए.” मंजू ने बताया कि वह अपने इलाके के ऐसे 8-10 लोगों को जानती है जिन्हें उस दिन राशन नहीं मिला था.
मंजू अपने पति और 5 बच्चों के साथ रहती हैं. उनके पति एक होटल में काम करते हैं लेकिन वह होटल लॉकडाउन की वजह से बंद है. उसके परिवार में किसी के पास राशन कार्ड नहीं है. जब मैंने उनसे पूछा कि वह किस तरह अपनी जरूरतों को पूरा कर रही है तो उन्होंने कहा, “मैं आपको क्या बताऊं? मैं अपने रिश्तेदारों से उधार मांग रही हूं. किसी से 500 रुपए मांगती हूं, तो किसी से 1000 रुपए मांगती हूं.”
5 जून को जब मैंने सुधाकर से बात की तो उन्होंने झुग्गी में राशन की अपर्याप्त आपूर्ति की बात को खारिज कर दिया. लेकिन उन्होंने इस बात से इनकार नहीं किया कि सिर्फ दो बार राशन वितरण हुआ है. उन्होंने कहा, “राशन के एक पैकेट में 15 किलो खाद्य सामग्री होती है जो 4 लोगों के एक परिवार के लिए 15 दिनों तक के लिए पर्याप्त है और इस प्रकार यदि सरकार ने दो बार राशन वितरण किया है तो यह अच्छी बात है.” उन्होंने दावा किया कि उनका संगठन दोस्त उत्तर प्रदेश के लोगों के लिए, जिनके पास राशन कार्ड नहीं है, लॉकडाउन शुरू होने के बाद से ही रोजाना 300 पैकेट पका खाना भेज रहा है. “मैं उन्हें रोज फोन कर पूछता हूं कि क्या उन्हें खाना मिला. मैं उनके संपर्क में हूं.”
इलाके के कुछ लोगों ने बताया कि उन्होंने रोटी-सब्जी बटते देखी है. वहां रहने वाले सतीश कुमार ने मुझे बताया, “मैंने उन लोगों को पके खाने के पैकेट बांटते देखा है. लेकिन लाइन बहुत लंबी होती है और मैं कभी ले नहीं पाया.” आशु ने बताया कि उन्हें एक बार पका हुआ खाना मिला था. उन्होंने कहा कि उस पैकेट में खिचड़ी, पूरी और सब्जी थी. आशु ने बताया कि यहां उनका भाई है जो सामान का रखरखाव करता है. उन्होंने बताया कि अधिकारियों ने एक बार कुछ स्थानीय लोगों को राशन बांटने का जिम्मा सौंपा था.
सुधाकर के दावों के विपरीत लोगों ने बताया कि राशन पर्याप्त नहीं था क्योंकि अधिकतर लोग संयुक्त परिवारों में रहते हैं. सतीश ने बताया कि वह 9 लोगों के परिवार में रहते हैं. उन्होंने कहा, “जब से वितरण शुरू हुआ है तब से उन्हें सिर्फ एक ही बार राशन मिला है और वह भी शुरुआती दिनों में.” वह और उनके साथ रहने वाली उनकी बहन को उनके आधार कार्ड के आधार पर दो आपूर्तिया मिली थी. सतीश की पत्नी 4 महीने की गर्भवती हैं. सैलून में भाइयों के साथ कटिंग का काम करने वाले अर्जुन सिंह ने बताया कि उनके परिवार में 16 लोग हैं और उन्हें रोजाना 5 किलो आटा लगता है. उन्हें 27 मई को राशन मिला था और उनके परिवार के लोगों को भी उसी दिन राशन मिला था. लेकिन उन्हें आगे के दिनों की चिंता थी. “2 किलो गेहूं से हमारा क्या होगा”, उन्होंने कहा. उन्होंने बताया कि उन्हें राशन दो-तीन महीने बाद मिला. “हमें सरकार से कोई उम्मीद नहीं है.”
लेकिन सुधाकर ने जोर दिया कि सरकार की तरफ से कोई कमी नहीं है. उत्तर प्रदेश के लोगों के बारे में उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, “मैं यह कह सकता हूं कि उनके साथ पक्षपात नहीं किया जा रहा है.” उनके अनुसार, दोस्त टीम ने 150 प्रवासी परिवारों को कच्चे राशन के किट वितरित किए थे और विधायक पंकज सिंह के कार्यालय ने भी लोगों को 54 पैकेट वितरित किए थे. “कुल मिलाकर अब तक लगभग 200 पैकेट बांटे जा चुके हैं.” इसके बाद सुधाकर ने बताया कि 1 जून को फंड की कमी के कारण दोस्त ने खाद्य सामग्री का वितरण रोक दिया लेकिन नोएडा अथॉरिटी राशन उपलब्ध करा रही है.
20 साल के एक नौजवान ने पुष्टि की कि विधायक ने 50 राशन किट भेजी थीं जो यहां रहने वालों की संख्या के हिसाब से बहुत कम हैं. “यहां बहुत सारे लोग जरूरतमंद हैं. उनका वितरण बिना किसी तरीके से किया गया और लग रहा था कि लोग राशन छीन रहे थे.” उस लड़के ने बताया कि 20 मई को नोएडा अथॉरिटी के लोग 300 पैकेट वितरण करने आए थे लेकिन उन्होंने कहा कि यूपी के लोगों को राशन कार्ड के लिए आवेदन करना पड़ेगा और राशन केवल यूपी के बाहर के लोगों को दिया जाएगा. उस लड़के ने बताया, “जो 300 पैकेट आए थे उन्हें भी पूरा वितरित नहीं किया गया क्योंकि लोगों को राशन वितरण की सूचना मिल चुकी थी और वहां हजारों लोग इकट्ठे हो गए थे. 20 पैकेट बांटते-बांटते भीड़ बेकाबू हो गई और अथॉरिटी वाले चले गए.”
नाम गुप्त रखने के अनुरोध पर पंकज सिंह के कार्यालय के स्टाफ ने बताया, “सामग्री का वितरण जरूरत के हिसाब से किया गया है”. उन्होंने बताया कि सिंह का कार्यालय नोएडा में कहीं से भी आने वाले फोन कॉल और संदेशों का जवाब दे रहा है. उन्होंने कहा, “उदाहरण के लिए हमें एक एनजीओ का फोन आता है जो हमें 50 परिवारों की सूची दे देता है जिनको राशन की जरूरत है. हम उस सूची को वेरीफाई करते हैं और पूरी कोशिश करते हैं कि हम सभी को राशन उपलब्ध करा सकें.” उन्होंने कहा कि सेक्टर 8 में वितरण का काम प्रशासन के साथ सहयोग कर किया गया है क्योंकि वह इलाका पूरी तरह से सील्ड है.
मई के बीच में एक बार जब स्थानीय लोग राशन के लिए सिंह के ऑफिस के बाहर लाइन लगाकर खड़े हो गए थे तो वहां उपस्थित पुलिस वालों ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया था. झुग्गी में रहने वाले सचिन के भाई अमित कुमार ने कहा, “जब लोग राशन लेने जाते हैं तो पुलिस उनकी पिटाई करती है. सोशल डिस्टेंसिंग के नाम पर पुलिस उनको लाठियों से पीटती है. झुग्गी में रहने वाले हजारों लोग गरीब हैं और ऐसे में अगर आप सिर्फ 50 लोगों के लिए राशन लेकर यहां आते हैं तो भीड़ तो लगेगी ही. पंकज सिंह सिर्फ 50 पैकेट लेकर आए थे और 150 से 200 महिलाओं ने लाइन लगा ली थी. भला आप ही बताइए कि हम सोशल डिस्टेंसिंग का पालन तब कैसे करेंगे.” झुग्गी में रहने वाले तीन और लोगों ने भी पुलिस की कठोरता की बात बताई.
स्थानीय लोगों के पास राशन कार्ड का इंतजार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. एक व्यक्ति जिनके पास पास राशन कार्ड है, उसने बताया कि वह एनजीओ से मदद नहीं ले सकता. उस राशन कार्ड धारक ने मुझसे कहा, “हम एनजीओ वालों से मिल नहीं सकते क्योंकि उन्हें यहां इसलिए नहीं आने दिया जा रहा है क्योंकि यह रेड जोन में आता है और भीड़ लग सकती है जिससे लॉकडाउन का उल्लंघन हो सकता है.” वह अपनी पहचान बताने को राजी नहीं हुआ क्योंकि उसे लगता था कि इससे सरकारी राहत मिलने की उसकी कोशिश पर असर पड़ेगा.
20-30 साल के उस नौजवान ने बताया एनजीओ ने इलाके में राहत काम करने का प्रयास किया था. उस नौजवान को शक है कि प्रशासन ने एनजीओ वालों को राजनीतिक कारणों से ऐसा करने नहीं दिया. उसने कहा, “पुलिस उन लोगों को राशन वितरण करने नहीं दे रही है क्योंकि इससे बीजेपी की छवि को नुकसान पहुंचेगा. ऐसा लगेगा कि बीजेपी खुद कुछ नहीं कर पाई तो एनजीओ की सहायता ले रही है.”
यहां रहने वाले लोगों ने मुझे बताया कि पड़ोस का बाजार कुछ घंटों के लिए रोज खुलता है. लेकिन इससे उन्हें कोई फायदा नहीं है क्योंकि घर के काम करने वाले सदस्य काम नहीं कर पा रहे हैं और 2 महीने में बचत भी खत्म हो गई है. दिल्ली के एक बाजार में काम करने वाले और यहां रहने वाले राजेंद्र कुमार ने मुझसे कहा, “मैं बाजार तभी जा सकता हूं जब मेरी जेब में पैसा होगा, है कि नहीं?” कुमार ने बताया कि लोगों की चहलकदमी पर लगाई गई कड़ी पाबंदी ने उनकी परेशानियां और बढ़ा दी हैं. “चलिए अगर कुछ पैसा मोदी के जरिए हमारे खाते में आ भी जाए तो हम उसे ले कैसे पाएंगे? अगर घर से निकल ही नहीं सकेंगे.”
उस 20-30 साल के नौजवान ने बताया कि अथॉरिटी के अधिकारियों ने लोगों को आश्वासन दिया था कि आवेदन करने के एक सप्ताह के भीतर लोगों को राशन कार्ड दे दिए जाएंगे लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ है. “उस लोगों के पास शक्ति और सिस्टम है. अगर वह चाहे तो इस काम को एक हफ्ते में कर सकते हैं.”
उस नौजवान के अनुसार 8 अप्रैल से सेक्टर 8 में कड़ी पाबंदियां लगी हुई हैं. “यहां कोई आजादी नहीं है. बहुत से लोगों को स्वास्थ्य की समस्या है.” उसने बताया, “यहां दो महीने पहले कोरोना के मामले आए थे. वे लोग शुरुआती 10 दिनों में और टेस्ट करा सकते थे लेकिन ऐसा करने का उनका कोई इरादा नहीं था. ऐसा लगता है कि अगर टेस्ट नहीं करेंगे तो मामले बढ़ते जाएंगे. ये लोग कब तक इस इलाके को सील्ड रखेंगे? क्या इस इलाके को एक या दो साल तक सील्ड कर रखा जा सकता है?”
इस बीच लगता है कि झुग्गी में रहने वाले लोगों की परेशानियां और बढ़ेगी. 26 मई को जिला उद्योग केंद्र ने नोएडा उद्यमी एसोसिएशन के साथ एक वेबीनार किया था जिसमें उसने कोरोना के दौरान औद्योगिक इकाइयों को संचालित करने के बारे में चर्चा की थी. दैनिक जागरण में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक एसोसिएशन के अध्यक्ष विपिन मल्हन ने सेक्टर 8 को नोएडा का कोविड-19 हॉटस्पॉट बताया था और कहा था कि वहां पर औद्योगिक जमीन पर अवैध अतिक्रमण कर झुग्गियां बनाई गई हैं. उन्होंने प्रस्ताव दिया कि झुग्गियों को चारों ओर दीवार बनाकर औद्योगिक इकाइयों से अलग कर देना चाहिए.
इस बीच सेक्टर 8 के अंदर रहने वाले कुछ लोग गांव लौटने का विचार बना रहे हैं. राजेंद्र कुमार ने बताया कि उन्हें 10 जून को दो किलो राशन मिला था. “2 किलो के उस पैकेट में आटा, तेल, चावल और दाल थी. इससे पहले हमें 10 किलो राशन मिला था. लेकिन अब दो महीनों तक जद्दोजहद करने के बाद, वह अपने घर लौटने को ज्यादा उचित विकल्प मान रहे हैं. “मेरे पास जमीन है. उससे मैं 10000 रुपया कमा लूंगा और मेरा घर चल जाएगा. हम वहां कोरोना से भी बचे रहेंगे. हमें नहीं पता कि यह लॉकडाउन कब तक चलेगा. हम यहां से चले जाने के लिए मजबूर हो रहे हैं.”