इस साल मार्च में केंद्र सरकार ने कोरोनावायरस लॉकडाउन के दौरान सार्वजनिक वितरण व्यवस्था या पीडीएस के जरिए निशुल्क राशन वितरण करने के संबंध में दिशानिर्देश जारी किए थे. इस घोषणा के बाद बिहार सरकार ने अप्रैल में एक करोड़ राशन कार्ड धारकों को पांच किलो चावल और एक किलो दाल निशुल्क देने की घोषणा की. लेकिन राज्य में अनाज का वितरण प्रभावकारी नहीं है और यहां खाद्य संकट ने स्वास्थ्य संकट को गहरा कर दिया है.
मैंने राज्य के जिन लोगों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और सरकारी अधिकारियों से बात की उन्होंने मुझे बताया कि लाभार्थियों तक खाद्यान्न या तो बिल्कुल नहीं पहुंच रहा है या बहुत देरी से पहुंच रहा है. दक्षिण बिहार के सारण जिले की जिला परिषद सदस्य मनोरमा कुमारी ने मुझसे कहा, “छह किलो निशुल्क राशन का वितरण जिस प्रकार से हो रहा है उसमें दिखावा ज्यादा और काम कम हो रहा है.”
स्थानीय प्रशासन के ब्लॉक विकास अधिकारी और अन्य सदस्यों का उल्लेख करते हुए मनोरमा ने मुझसे कहा, “सारण के गरखा खंड में बीडीओ, सर्किल अधिकारी और मुखिया सरकारी आदेशों को मनमाने तरीके से लागू कर रहे हैं. ये लोग बस यह देख रहे हैं कि निशुल्क राशन वितरण का काम कुछ हिस्सों में हो जाए और कुछ लाभार्थियों के साथ फोटो खिंचवा लें. इनका ध्यान लोगों का पेट भरने में कम और अपना प्रचार करवाने में ज्यादा है. मेरे इलाके में शायद ही किसी को निशुल्क दाल मिली हो. अधिकतर लोगों को केवल चावल बांटा गया है.”
दक्षिण बिहार में लोगों ने मुझे बताया कि मई के आखिर में ही उन्हें निशुल्क राशन मिला. छत्तीसगढ़ से गया जिले के पंचरत्न गांव लौटे प्रवासी मजदूर राहुल यादव ने मुझे बताया, “हम लोगों के परिवार में 12 सदस्य हैं. मेरा राशन कार्ड बहुत पुराना है इसलिए मैं निशुल्क राशन या रियायती राशन के लिए पात्र नहीं हूं लेकिन मेरे परिवार के छह सदस्यों को उनके राशन कार्ड पर राशन बहुत देरी से मिला. लॉकडाउन के दौरान हम जैसे बेरोजगार गरीबों को देर से राशन मिलने का कोई मतलब नहीं रह जाता. हमें अप्रैल का राशन मई के आखिर में मिला और वितरण में भी भेदभाव हुआ. मेरे परिवार को 50 किलो राशन मिला लेकिन 25 किलो का पैसा देना पड़ा. फ्री में तो हमें एक किलो दाल भी नहीं मिली.”
अप्रैल में बिहार सरकार ने कहा था कि जीविका कर्मचारी जरूरतमंद लाभार्थियों की पहचान कर उनका राशन कार्ड अपडेट करने या नया बनाने में मदद करेंगी. जीविका कर्मचारी ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी कामों को लागू करने वालीं महिलाओं के समूह हैं. 4 मई को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार के मुख्य सचिव दीपक कुमार को ऐसे गरीब परिवारों के राशन कार्ड बनाने को कहा था जिनके पास कार्ड नहीं हैं लेकिन जमीन पर इसका कोई असर नहीं दिखता.
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