नेपाल ने लगाई भारतीय नोटों पर रोक, पुराने नोट न बदलने पर लिया फैसला?

तमाम आश्वासनों के बावजूद भारत ने पुराने नोट नहीं बदले हैं. नए नोट पर रोक लगा कर नेपाल बना रहा दबाव. अमित दवे/रॉयटर्स

13 दिसंबर को नेपाल के मंत्री परिषद ने 200, 500 और 2000 रुपए के भारतीय नोटों पर रोक लगाने का फैसला किया. फैसले के बाद सरकार के प्रवक्ता और संचार मंत्री गोकुल बांस्कोटा ने इसकी जानकारी मीडिया को दी.

8 नवंबर 2016 को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘नोटबंदी’ की घोषणा का नेपाल पर बुरा असर पड़ा था. इस दौरान भारत में मजदूरी कर रहे नेपाली ही नहीं बल्कि नेपाल के बड़े व्यापारियों के पास रखे पुराने नोटों को भी नहीं बदला गया. नेपाल के केंद्रीय बैंक, नेपाल राष्ट्र बैंक, के पास करोड़ों रुपए के पुराने भारतीय नोट हैं. इसके अलावा भारत में काम करने वाले नेपालियों और सीमा पार व्यवसाय करने वाले व्यापारियों एवं सीमा क्षेत्र के लोगों के पास बड़ी मात्रा में पुराने भारतीय नोट होने का अनुमान है.

माना जा रहा है कि नोटबंदी के बाद पुराने नोटों को न बदलने के कारण नेपाल सरकार ने भारत के नए नोटों पर प्रतिबंध लगाया है. एक पत्रकार सम्मेलन में संचार मंत्री बांस्कोटा ने भी इस तरफ इशारा किया था.

प्रेस वार्ता में उन्होंने कहा, ‘‘पूर्व में भारत द्वारा जारी नोटों को चलाया जा रहा था लेकिन नोटबंदी के बाद नेपाल में उपलब्ध भारतीय नोटों को नहीं बदला गया. जो नोट हम वहां से लाए थे जब उन नोटों को भी नहीं बदला गया तो हमें सतर्क होना पड़ रहा है और जनता को सतर्क करना सरकार का दायित्व है.’’

अप्रैल 2018 में नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भारत की यात्रा की थी. यात्रा से पहले संसद को दिए अपने वक्तव्य में ओली ने कहा था, ''भारत सरकार के नोटबंदी के निर्णय से नेपाली नागरिकों को परेशानी का सामना करना पड़ा है. मैं भारतीय नेताओं के साथ अपनी बातचीत में इस मसले पर चर्चा कर समस्या को हल करने का अनुरोध करूंगा.'' इस आश्वासन के बावजूद दोनों देशों के साझा वक्तव्य में इसका जिक्र नहीं है.

इससे पहले भी दोनों देशों की ओर से इस मामले को सुलझाने की दिशा में कई बार चर्चा की जा चुकी है. जनवरी 2017 में नेपाल राष्ट्र बैंक के डिप्टी गवर्नर चिंतामणी शिवकोटा ने भारत का दौरा कर पुराने नोटों को वापस करने की प्रक्रिया पर भारतीय अधिकारियों से बातचीत की थी. अगले महीने फरवरी में भारतीय रिजर्व बैंक की एक टीम ने नेपाल का दौरा कर बंद कर दी गई भारतीय मुद्रा के प्रबंधन पर नेपाली अधिकारियों से चर्चा की थी.

अभी तक भारत ने पुराने नोटों को बदलने के पीछे तकनीकी कारणों का हवाला दे कर इसे रोके रखा है. भारत के मुकाबले नेपाली अर्थव्यस्था का आकार छोटा है. इसलिए भारतीय नोटों की बदली को लंबे समय तक रोके रखना नेपाल के हित में नहीं है और इसी कारण नेपाल सरकार पर भी नागरिकों का दवाब बढ़ता जा रहा है. ओली ने जहां खुद को एक राष्ट्रवादी नेता के रूप में पेश किया है, वहीं नोटों को बदलने में नाकामयाबी उनकी छवि के खिलाफ जाती है.

इस बारे में जब मैंने नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञवाली से बात की तो उन्होंने इसे पुराने नोटों को न बदलने का बदला तो नहीं कहा, लेकिन जोर दिया कि ''नोटबंदी के बाद नेपाल में जमा पुराने भारतीय नोटों को न बदलने के कारण सबक लेना पड़ रहा है.'' उनका कहना है, “यह कदम भारत को नेपाल का जवाब नहीं है. नोटों को न चलाने के पीछे प्राविधिक कारण हैं. भारत सरकार ने नए नोटों के देश से बाहर परिचलन पर रोक लगाई है. इसलिए हम सावधान रहने के लिए मजबूर हैं.”

नेपाल राष्ट्र बैंक के विदेशी मुद्रा विनिमय विभाग के निदेशक भीष्मराज ढुंगाना भी ‘‘प्राविधिक कठिनाइयों’’ को नए भारतीय नोटों के प्रयोग पर प्रतिबंध का कारण बताते हैं. उनका कहना है कि नए नोट जारी होने के बाद नेपाल में इन नोटों को रखा जा सकता है या नहीं, इसकी जानकारी भारतीय रिर्जव बैंक ने नहीं भेजी है. इसलिए इनके परिचलन पर रोक लगा दी गई है.’’ ढुंगाना ने बताया, “2016 में नोटबंदी के बाद उस समय आए नोट स्वतः अवैध हो गए. इसके बाद भारत ने नए नोट जारी किए. इन नए नोटों से नेपाल में भी कारोबार होने लगा. लेकिन नए नोटों को नेपाल में चलने देने के बारे में भारत ने किसी भी प्रकार की सूचना नेपाल सरकार को नहीं दी है. इसलिए इनके परिचलन पर रोक लगा दी गई है.” उन्होंने बताया, क्योंकि 2015 की सूचना में नए नोटों के संबंध में कुछ नहीं है इसलिए भारतीय पक्ष को इस संबंध में सूचना देनी चाहिए.

नेपाल ने इससे पहले भी साल 2001 में 500 और 1000 के भारतीय नोटों पर प्रतिबंध लगाया था. इसके अलावा नेपाल में जाली भारतीय मुद्रा का कारोबार रोकने के लिए भारत ने स्वयं भी कई बार 1000 और 500 के भारतीय नोटों को नेपाल में प्रतिबंधित किया है. अक्सर भारत ने पाकिस्तान में भारतीय जाली नोटों की छपाई और नेपाल के रास्ते भारत में प्रवेश का आरोप लगाया है.

नेपाल के बहुत से अर्थशास्त्रियों ने नेपाल सरकार के इस निर्णय की सराहना की है. उन्होंने नेपाल की संप्रभुता और स्वतंत्र मौद्रिक प्रणाली के लिए इस निर्णय को महत्वपूर्ण बताया है. नेपाल राष्ट्र बैंक के पूर्व निदेशक त्रिलोचन पंगेनी के अनुसार, नेपाल में भारतीय मुद्रा का स्वतंत्र कारोबार एक ओर जहां जनता पर भारतीय प्रभुत्व का घोतक है वहीं दूसरी ओर नेपाल की मौद्रिक नीति भी स्वतंत्र नहीं है. किसी भी संप्रभु देश के लिए दूसरे देश की मुद्रा का अपने भूभाग में खुला परिचलन होने देना ठीक नहीं होता.

उन्होंने कहा, “किसी भी संप्रभु देश में विदेशी मुद्रा का प्रभुत्व सकारात्मक नहीं होता. संप्रभु देश द्वारा अपनी ही मुद्रा को मजबूती दी जानी चाहिए और जनता में अपनी मुद्रा के प्रति विश्वास बढ़ाना चाहिए. इन बातों के मद्देनजर नेपाल सरकार का हाल का फैसला महत्वपूर्ण और स्वागत योग्य है.” “फिलहाल हम पर भारत की मौद्रिक नीति को देख कर अपनी मौद्रिक नीति तय करने का दवाब रहता है.”

नेपाल से बहुत पहले भारत में आधुनिक मौद्रिक प्रणाली का आरंभ हुआ. नेपाल की तुलना में भारतीय अर्थतंत्र बेहद बड़ा है जिसके कारण यहां की जनता का विश्वास भारतीय मुद्रा में है. नेपाल की जनता भारतीय मुद्रा को अपनी मुद्रा की तरह देखती है. खासकर, भारत के साथ लगे सीमा क्षेत्र में भारतीय मुद्रा का प्रयोग अधिक होता है.

पंगेनी ने बताया कि 1965 में नेपाल राष्ट्र बैंक ने भारतीय मुद्रा के परिचलन के बारे में शोध किया था. उनका कहना है कि जांच रिपोर्ट को नेपाल राष्ट्र बैंक ने सार्वजनिक नहीं किया. “लेकिन बाहर आई सूचना के मुताबिक उस वक्त नेपाल में होने वाले मौद्रिक कारोबार में 40 प्रतिशत कारोबार भारतीय मुद्रा से हो रहा था.” उसके बाद से इस तरह का शोध नहीं हुआ है लेकिन पंगेनी का मानना है कि तब के मुकाबले आज अधिक भारतीय मुद्रा परिचलन में है. भारतीय अर्थतंत्र के आकार और उसकी आर्थिक गतिविधि में बढ़ोतरी होने से नेपाल में भारतीय मुद्रा का परिचलन होने की बात को पंगेनी स्वाभाविक मानते है.

हालांकि नेपाल के एक बड़े व्यापारिक घराने गोल्छा हाउस के शेखर गोल्छा पंगेनी के तर्क से सहमत नहीं हैं. वे मानते हैं, “खुली सीमा के कारण नेपाली बाजार में भारतीय नोटों के कारोबार को भारतीय प्रभुत्व की तरह देखना अति राष्ट्रवाद है. इस फैसले से नेपाल आने वाले भारतीय पर्यटक, दोनों देशों की सीमाओं पर रहने वाले लोग और भारत में काम करने वाले नेपाली मजदूरों को समस्या होगी.” उनका अनुमान है कि वर्तमान में लगभग 30 लाख नेपाली भारत में काम करते हैं जो दस्तावेजों के अभाव में बैंकिंग सुविधा से नहीं जुड़े होते हैं और अपनी कमाई को नगदी में लेकर आते हैं.

जब मैंने पंगेनी से पूछा कि बड़े नोट नहीं चलने पर नेपाली मजदूरों सौ के नोट लेकर आने को मजबूर होंगे, इससे उनकी समस्या और बढ़ जाएगी तो जवाब में पूर्व निदेशक ने कहा कि भारत में काम करने वाले नेपाली मजदूरों को बैंकिंग प्रणाली से जोड़ने और भारत और नेपाल के बीच मनी ट्रांसफर की सुविधा बढ़ाने से यह परेशानी हल हो सकती है. साथ ही सीमा में भारतीय नाटों को बदलने के लिए आसान व्यवस्थाएं की जानी चाहिए. हाल में यह सुविधा बहुत सीमित स्तर पर मौजूद है.

पंगेनी का मानना है कि भारत के साथ सटे सीमा क्षेत्रों में तस्करी, कालेधन, अपराध और अनौपचारिक व्यापार का बड़ा हिस्सा नियंत्रण करने के लिए यह कदम जरूरी था. बड़े नोटों का इस्तेमाल बंद होने से राजस्व में बढ़ोतरी होगी. भारत से होने वाला अवैध व्यापार 2015 की आर्थिक नाकेबंदी के वक्त चरम पर था. उस वक्त पट्रोल और गैस भारी मात्रा में अवैध रूप से नेपाल लाया गया.

हाल में नेपाल भारत सीमा में होने वाले अवैध व्यापार को रोकने के लिए नेपाल पुलिस ने अभियान चलाया था, जिसका सरकार में शामिल तराई के बड़े दल मधेशी जनाधिकार फोरम के कुछ स्थानीय नेताओं ने विरोध किया था.

पंगेनी कहते है कि भविष्य में अरबों रुपयों की बरबादी को रोकने के लिए यह प्रतिबंध सही है.

नेपाल के मामलों और राजनीति में दखल करने वाली भारत की राजनीति के कारण नेपाल का एक वर्ग हमेशा ही भारत को लेकर सशंकित रहता है. पिछले सालों में भारत विरोधी स्वर नेपाल में मजबूत हुआ है और 2015 में भारत द्वारा लगाई गई आर्थिक नाकेबंदी ने इसे और मजबूत किया है. नाकेबंदी का विरोध कर वर्तमान प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली नेपाली राजनीति में अपना वर्चस्व कायम कर दो तिहाई समर्थन के साथ प्रधानमंत्री बने.

प्रतिबंध का यह निर्णय भारत पर कितना दवाब बना पाएगा यह देखना बाकी है, लेकिन इससे नेपाल को तत्काल घाटा होगा यह तय है. नेपाल में सबसे अधिक पर्यटक भारत से आते हैं. सरकार के इस निर्णय से आने वाले पर्यटकों को असुविधा का सामना करना पड़ सकता है और उनकी संख्या भी कम हो सकती है. आंकड़ों के अनुसार नवंबर 2018 तक नेपाल में 10 लाख पर्यटक आए हैं. इनमें से सबसे अधिक 1 लाख 45 हजार भारतीय हैं. हर महीने औसत 20000 पर्यटक भारत से नेपाल आते हैं. 2020 को सरकार ‘नेपाल भ्रमण वर्ष’ के रूप में मनाने की योजना बना रही है और सरकार का लक्ष्य हर साल 20 लाख पर्यटक नेपाल लाने का है. इसलिए भी गोल्छा जैसे व्यवसायियों का मानना है कि सरकार का यह फैसला उनकी योजना को बर्बाद करने वाला है. पूर्व में भूटान ने भी 500 और 1000 के भारतीय नोटों पर प्रतिबंध लगाया था. लेकिन उसे अपने फैसले से पीछे हटना पड़ा था.

अगस्त 2017 में भूटान ने भविष्य में एक बार फिर नोटबंदी होने की स्थिति में समस्या होने की आशंका का हवाला देते हुए भूटानी नागरिकों पर 500 और 2000 के भारतीय नोटों के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था. लेकिन वह एक साल भी निर्णय पर कायम नहीं रह सका. जून 2018 में भूटान सरकार ने अपना फैसला वापस ले लिया और 25000 रुपए तक भारतीय नोटों को रखने की सूचना जारी की.

इसलिए क्या नेपाल अपने फैसले पर कायम रह सकेगा यह अभी दावे के साथ नहीं कहा जा सकता.