19 जनवरी को वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल शिखर सम्मेलन के 9वें संस्करण का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया कि सकल घरेलू विकास अथवा जीडीपी की औसत दर “1991 के बाद सभी सरकारों के मुकाबले हमारी सरकार में सबसे अधिक रही है.” प्रधानमंत्री ने यह भी दावा किया कि आज प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के मामले में भारत शीर्ष 10 देशों में है. साथ ही उन्होंने घोषणा की “विनिर्माण और ढांचागत विकास में उनकी सरकार ने अभूतपूर्व योगदान किया है.” उनके भाषण के उपरोक्त और अन्य दावों में जो बात समान है, वह ये कि ये दावे या तो झूठे हैं या सच्चाई पर पर्दा डालने वाले हैं.
वाइब्रेंट गुजरात प्रत्येक दो साल में होने वाला एक निवेश सम्मेलन है जिसकी परिकल्पना मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में की थी. इन आयोजनों में मोदी प्रदेश में निवेश को आमंत्रित करते हैं. अब जबकि आम चुनाव में 2 महीनों का वक्त बचा है, मोदी ने आयोजन को केन्द्र सरकार की उपलब्धियों का बखान करने के अवसर के रूप में इस्तेमाल किया.
लेकिन लगता है कि प्रधानमंत्री ने अपने इस प्रयास में कुछ ज्यादा ही बढ़ा-चढ़ा कर दावे किए हैं. उदाहरण के लिए, जब मोदी यह दावा करते हैं कि उनके नेतृत्व में औसत जीडीपी दर सबसे अधिक रही है तो वे यह बताना भूल जाते हैं कि जीडीपी गणना के तरीके को उनकी सरकार ने इसलिए बदल दिया था क्योंकि पुरानी गणना में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की औसत दर उनके कार्यकाल की औसत विकास दर से बेहतर थी. कई सालों तक जीडीपी की गणना वित्त वर्ष 2004-05 को आधार वर्ष मान कर की जाती थी, लेकिन सांख्यिकी और कार्यक्रम सूचना मंत्रालय द्वारा गठित राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग ने अपनी रिपोर्ट में जीडीपी की तुलना वित्त वर्ष 2011-12 को आधार बना कर की है. उस रिपोर्ट के अनुसार, यूपीए के कार्यकाल में औसत विकास दर 7.75 प्रतिशत थी और मोदी सरकार के पहले चार सालों में यह दर 7.35 रही. इसके चार महीने बाद नीति आयोग ने 2005 और 2012 के बीच के वित्त वर्षों के आंकड़ों में संशोधन कर यूपीए की विकास दर को औसत 6.7 प्रतिशत कर दिया, जिससे मोदी सरकार की विकास दर तीन दशकों में सबसे अधिक हो गई.
इसी प्रकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एफडीआई का दावा भी इससे संबंधित जरूरी पक्षों की अनदेखी करता है. मोदी के सत्ता में आते ही एफडीआई में भारी वृद्धि आई थी. 2014-15 में विदेशी निवेश में 27 प्रतिशत और 2015-16 में 29 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी. लेकिन पिछले वित्त वर्ष में एफडीआई पांच सालों में सबसे कम रहा. इसकी वृद्धि का प्रतिशत मात्र 3 प्रतिशत है. साथ ही विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक भारत की जीडीपी में एफडीआई का प्रतिशत 2008 में सबसे अधिक था. मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में देश की जीडीपी में एफडीआई का हिस्सा 6.65 प्रतिशत था. मोदी के नेतृत्व में यह प्रतिशत 2.09 प्रतिशत से अधिक कभी नहीं रहा.
मोदी ने दावा किया कि उनकी सरकार ने “युवाओं को रोजगार देने के लिए विनिर्मण को प्रोत्साहन देने की दिशा में कड़ी मेहनत की है.” लेकिन इस मेहनत का असर दिखाई नहीं दिया. 2013-14 से बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है. भारतीय श्रम ब्यूरो के एक सर्वे के अनुसार, 2017 में अप्रैल और जून के बीच 87 हजार रोजगार खत्म हो गए. निर्माताओं के अखिल भारतीय संगठन 2018 के सर्वे में बताया गया है कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों में वर्ष 2014 से निरंतर रोजगार घटे हैं और पिछले चार वर्षों में 24 से 35 प्रतिशत रोजगार कम हुए हैं.
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