कितने सही हैं वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन में मोदी के दावे

2019 आम चुनाव से कुछ महीने पहले वाइब्रेंट गुजरात शिखर सम्मेलन में शिरकत कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी सरकार की उपलब्धियों गिना रहे थे. लेकिन उनके कुछ बयान सच्चाई से बिल्कुल उलट हैं. पीआईबी
25 January, 2019

19 जनवरी को वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल शिखर सम्मेलन के 9वें संस्करण का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया कि सकल घरेलू विकास अथवा जीडीपी की औसत दर “1991 के बाद सभी सरकारों के मुकाबले हमारी सरकार में सबसे अधिक रही है.” प्रधानमंत्री ने यह भी दावा किया कि आज प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के मामले में भारत शीर्ष 10 देशों में है. साथ ही उन्होंने घोषणा की “विनिर्माण और ढांचागत विकास में उनकी सरकार ने अभूतपूर्व योगदान किया है.” उनके भाषण के उपरोक्त और अन्य दावों में जो बात समान है, वह ये कि ये दावे या तो झूठे हैं या सच्चाई पर पर्दा डालने वाले हैं.

वाइब्रेंट गुजरात प्रत्येक दो साल में होने वाला एक निवेश सम्मेलन है जिसकी परिकल्पना मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में की थी. इन आयोजनों में मोदी प्रदेश में निवेश को आमंत्रित करते हैं. अब जबकि आम चुनाव में 2 महीनों का वक्त बचा है, मोदी ने आयोजन को केन्द्र सरकार की उपलब्धियों का बखान करने के अवसर के रूप में इस्तेमाल किया.

लेकिन लगता है कि प्रधानमंत्री ने अपने इस प्रयास में कुछ ज्यादा ही बढ़ा-चढ़ा कर दावे किए हैं. उदाहरण के लिए, जब मोदी यह दावा करते हैं कि उनके नेतृत्व में औसत जीडीपी दर सबसे अधिक रही है तो वे यह बताना भूल जाते हैं कि जीडीपी गणना के तरीके को उनकी सरकार ने इसलिए बदल दिया था क्योंकि पुरानी गणना में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की औसत दर उनके कार्यकाल की औसत विकास दर से बेहतर थी. कई सालों तक जीडीपी की गणना वित्त वर्ष 2004-05 को आधार वर्ष मान कर की जाती थी, लेकिन सांख्यिकी और कार्यक्रम सूचना मंत्रालय द्वारा गठित राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग ने अपनी रिपोर्ट में जीडीपी की तुलना वित्त वर्ष 2011-12 को आधार बना कर की है. उस रिपोर्ट के अनुसार, यूपीए के कार्यकाल में औसत विकास दर 7.75 प्रतिशत थी और मोदी सरकार के पहले चार सालों में यह दर 7.35 रही. इसके चार महीने बाद नीति आयोग ने 2005 और 2012 के बीच के वित्त वर्षों के आंकड़ों में संशोधन कर यूपीए की विकास दर को औसत 6.7 प्रतिशत कर दिया, जिससे मोदी सरकार की विकास दर तीन दशकों में सबसे अधिक हो गई.

इसी प्रकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एफडीआई का दावा भी इससे संबंधित जरूरी पक्षों की अनदेखी करता है. मोदी के सत्ता में आते ही एफडीआई में भारी वृद्धि आई थी. 2014-15 में विदेशी निवेश में 27 प्रतिशत और 2015-16 में 29 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी. लेकिन पिछले वित्त वर्ष में एफडीआई पांच सालों में सबसे कम रहा. इसकी वृद्धि का प्रतिशत मात्र 3 प्रतिशत है. साथ ही विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक भारत की जीडीपी में एफडीआई का प्रतिशत 2008 में सबसे अधिक था. मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में देश की जीडीपी में एफडीआई का हिस्सा 6.65 प्रतिशत था. मोदी के नेतृत्व में यह प्रतिशत 2.09 प्रतिशत से अधिक कभी नहीं रहा.

मोदी ने दावा किया कि उनकी सरकार ने “युवाओं को रोजगार देने के लिए विनिर्मण को प्रोत्साहन देने की दिशा में कड़ी मेहनत की है.” लेकिन इस मेहनत का असर दिखाई नहीं दिया. 2013-14 से बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है. भारतीय श्रम ब्यूरो के एक सर्वे के अनुसार, 2017 में अप्रैल और जून के बीच 87 हजार रोजगार खत्म हो गए. निर्माताओं के अखिल भारतीय संगठन 2018 के सर्वे में बताया गया है कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों में वर्ष 2014 से निरंतर रोजगार घटे हैं और पिछले चार वर्षों में 24 से 35 प्रतिशत रोजगार कम हुए हैं.

मोदी ने दावा किया कि उनकी सरकार ने विनिर्माण क्षेत्र में अभूतपूर्व ध्यान दिया है लेकिन नीति आयोग की नवंबर 2018 की रिपोर्ट बताती है कि वर्तमान सरकार के कार्यकाल में जीडीपी में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी 1 प्रतिशत से कम की वृद्धि हुई है. 2014-15 में यह 16 प्रतिशत था जो 2017-18 में 16.6 प्रतिशत हुआ.

अपनी सफलता के बारे में विस्तार से बताते हुए मोदी ने दावा किया कि “मेक इन इंडिया योजना के तहत होने वाले निवेश को डिजिटल इंडिया और स्किल इंडिया जैसे कार्यक्रमों से अच्छा सहयोग मिला है. इन तीनों योजनाओं के प्रदर्शन की जांच करने से मोदी का यह दावा भी गलत साबित होता है. उदाहरण के लिए मोदी ने 2014 में जब मेक इन इंडिया को शुरू किया था तो दावा किया था कि यह “भारत को विश्व का डिजाइन और विनिर्माण का केन्द्र बना देगी”. लेकिन योजना के तहत बेहद कम निवेश हुआ है. दिल्ली की औद्योगिक विकास अध्ययन संस्थान द्वारा दिसंबर 2016 में 1188 भारतीय कंपनियों के अध्ययन से पता चलता है कि अक्टूबर 2014 और सितंबर 2016 के बीच विनिर्माण क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का 29.1 प्रतिशत हुआ जबकि इससे पहले के दो सालों में यह प्रतिशत 47.8 था. इस अध्ययन में बताया गया है कि जिन कंपनियों को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हासिल हुआ उनमें से बहुतों को यह निवेश इस योजना के लागू होने से पहले ही प्राप्त हो चुका था. विनिर्माण क्षेत्र में यह 2 प्रतिशत से भी कम है. विनिर्माण क्षेत्र के अध्ययन में शामिल 442 कंपनियों में से केवल 8 में ही एफडीआई मिला.

स्किल इंडिया और डिजिटल इंडिया कार्यक्रमों ने भी उम्मीद से कम प्रदर्शन किया. मार्च 2018 में कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने राज्य सभा में बताया कि पिछले तीन वर्षों में 41 लाख 30 हजार लोगों ने कौशल प्रशिक्षण पूरा किया है, जिनमें से 6 लाख 15 हजार लोगों को काम मिला. यानि 15 प्रतिशत से भी कम लोगों को रोजगार प्राप्त हो सका. डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का लक्ष्य 2016 दिसंबर तक 250000 पंचायतों को ब्रॉडबैंड से जोड़ना था. सरकार ने संसद को जानकारी दी है कि 21 जनवरी 2018 तक 1 लाख 10 हजार पंचायतों को फाइबर ऑपटिक से जोड़ा जा चुका है. फाइबर ऑपटिक जोड़ना और ब्रॉडबैंड होना दो अलग-अलग बातें हैं. नवंबर 2018 में प्रकाशित द वायर की एक रिपोर्ट में दूरसंचार विभाग की आंतरिक रिपोर्ट के हवाले से बताया गया है कि मात्र 5010 पंचायतों को ही ब्रॉडबैंड से जोड़ा जा सका है. यह घोषित लक्ष्य का केवल 2.5 प्रतिशत है.

अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने दावा किया कि “जलवायु परिवर्तन से होने वाले असर को कम करने के लिए हम विश्व समुदाय के प्रति प्रतिबद्ध है. हम वायु ऊर्जा उत्पादन में विश्व में चौंथे और सौर ऊर्जा उत्पादन में विश्व में पांचवें नंबर पर हैं.” 2015 में पेरिस में हुए जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन में मोदी ने घोषणा की थी कि भारत 175 गीगावॉट ऊर्जा नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से हासिल करेगा. इसमें से 100 गिगावॉट सौर ऊर्जा से उपलब्ध होगा. लेकिन सितंबर 2018 में भारत सरकार ने सौर उपकरणों के आयात शुल्क को बढ़ा दिया जिससे सौर ऊर्जा क्षमता में कमी आई है. क्वार्टज इंडिया वेबसाइट के अनुसार, नवीकरणीय ऊर्जा परामर्श कंपनी ब्रिज इंडिया के अनुसार वित्त वर्ष 2018-19 में सौर ऊर्जा इकाइयों के निर्माण में 55 प्रतिशत की कमी आएगी और मार्च 2022 तक भारत 67 गिगावॉट से अधिक सौर ऊर्जा का उत्पादन नहीं कर सकेगा.

वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने उन दावों को भी दोहराया जिन्हें पहले भी चुनौती दी जा चुकी है. उन्होंने दावा किया कि सरकार ने प्रत्येक परिवार को बैंक खाता उपलब्ध करा कर वित्त समावेश सुनिश्चित किया है. साथ ही उनका कहना था कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सरकार ने “उचित सफाई सुनिश्चित की है.” पूर्व में कई बार बताया जा चुका है कि ये दोनों ही दावे सही नहीं हैं.

अगस्त 2014 में प्रधानमंत्री ने देश के प्रत्येक परिवार को बैंकिंग सेवा उपलब्ध कराने के लिए प्रधानमंत्री जनधन योजना आरंभ की. इस माह के आरंभ में बिजनेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया है कि 2018 में इस योजना के तहत खोले गए 33 करोड़ 50 लाख खाते में से 23 प्रतिशत से अधिक खाते निष्क्रिय हैं. गांवों में बैंकिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी, जैसे बैंकों की स्थानीय शाखाओं और एटीएम का न होना, प्रभावशली वित्त समावेश में अवरोध है.

सरकार का स्वच्छ भारत मिशन भी फेल हो गया है. इसका सबूत इस बात से मिलता है कि वाराणसी का नागेपुर गांव खुले में शौच मुक्त घोषित नहीं हुआ है. 2014 में शुरू हुई ग्रमीण विकास परियोजना, सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत मोदी ने इस गांव को गोद लिया था. कारवां के मई 2017 अंक में प्रकाशित स्टाफ राइटर सागर की रिपोर्ट बताती है कि स्वच्छ भारत योजना के तहत निर्मित लेट्रीनों की संख्या इस अभियान के अन्य महत्वपूर्ण पक्षों की अनदेखी करती है. सागर लिखते हैं, “नागेपुर गांव में मैंने वंचित समुदाय का सामाजिक बहिष्कार देखा और लोगों की पुरानी आदतें भी नहीं बदली हैं.”

अपने भाषण के अंत में प्रधानमंत्री ने एक ऐसी बात कही जो कमजोर दावों से अलग और सच के करीब है. उन्होंने लोगों से भारत में निवेश करने की अपील की. फिर कारपोरेट क्षेत्र के जानेमाने लोगों की ओर देख कर कहा, “आप की यात्रा में आपका साथ देने के लिए मैं हमेशा मौजूद हूं.”